छोटी-छोटी हरकतें करते हुए
बनते है बडे और ऊंचे लोग
फिर भी पुरानी आदतें ऐसे नहीं जातीं
भेड़ की खाल ओढ़ने से सियार
भेड़ नहीं हो जाती
छोटे ही बनाते हीं बडे लोगों को
उनकी थूक चाटते भी शर्म नहीं आती
फिर बडे लोगों के छोटे अपराधों पर
क्यों ज़माना रोता है
कभी अक्ल लगाई है
बोने चरित्र में भला कभी
बड़प्पन होता है
———————————————
कभी होती थी बड़ा आदमी बनने की
चाहत कभी मेरे मन में
अब सोचते हुए भी
लगता है भय
क्योंकि मैं कभी कबूतरबाजी
कर नहीं सकता
मैं मुफ़्त में ही करता हूँ
सस्ते सवाल जमाने भर से
महंगे सवालों से अपनी झोली
नही भर सकता
माफ़ करना मेरे दोस्तो
अपने लिए फायदों के मौक़े
मुझे ढूँढना नहीं आते
और तुम्हारे लिए
मैं बड़ा आदमी नहीं बन सकता
——————
टिप्पणियाँ
aaj ke ghtnaon par meree aik kavitaa.
बहुत अच्छी लगी आपकी कविता ….बधाई