धोनी की कप्तानी का अब परीक्षण होगा


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आस्ट्रेलिया की टीम  भारत दौरे पर आ गयी है और कल उसके साथ भारतीय टीम अपना  पहला एक दिवसीय मैच  खेलने  वाली है। बीस  ओवरीय विश्व कप में अपनी टीम  की जीत से हर्षित भारतीय दर्शकों की एक बार फ़िर क्रिकेट में रुचि जागी है पर उनको इन मैचों में वैसा खेल नहीं देखने को मिलेगा जैसा कि वह अपेक्षा कर रहे हैं। इसकी वजह यह है कि इसके नियम वैसे ही जैसे कि पहले थे। बीस ओवरों में नियम कुछ्ह अलग  है और जिसमें बल्लेबाजों को ज्यादा लाभ होता है और वह तेजी से बल्लेबाजी कर   रन बनाते हुए दर्शकों का मनोरंजन कर  सकते हैं जबकि एक दिवसीय  और  पांच दिवसीय टेस्ट मैचों के नियम गेंदबाज और बल्लेबाज दोनों के लिये समान रूप से  लाभदायक हैं।

                         अगर हम एक दिवसीय मैचों की दृष्टि से देखें तो भारतीय टीम की स्थिति उतनी ही दयनीय है जिस तरह पहले थी और विश्व की वरीयता सूची में उसका नबंर चर्चा लायक भी नहीं है। इसके अलावा पुराने खिलाडियों की वापसी भी कोई टीम के मनोबल बढने में सहायक सिद्ध नहीं होने वाली। जो दर्शक इन मैचों में बीस ओवरों वाले दृश्य देखने चाहेंगे उनको निराशा ही हाथ लगेगी। हालंकि एक दिवसीय मैचों के खेल में दक्षता के साथ रणनीतिक कौशल की भी आवश्यकता भी होती है और इस मामले भी भारतीय टीम बहुत् कमजोर है और कभी यह नहीं लगा कि उसका कप्तान कभी कोई रणनीति बनाकर   मैदान में उतरता है। अब धोनी को  नया कप्तान बनाया गया है और यह श्रंखला उसके लिये यह वास्तविक परीक्षा का समय है। उसके सामने सबसे बडी समस्या यह आने वाली है कि अब उसके साथ वह वरिष्ठ खिलाडी भी हैं जिन पर टीम में वैमनस्य की भावना उत्पंन करने की आरोप लगे हैं। एक संदेह यह भी है कि अपने से जूनियर खिलाडी जो अब उनका कप्तान भी है उसके लिये वह वैसा खेलेंगे भी के नहीं जैसा वह चाह्ता है।

              वैसे तो इन खिलाडियों को टीम में शामिल  करने पर भी लोग सवाल उठा रहे हैं पर भारतीय टीम के चयन में कई बातें एसी होतीं हैं जिसकी वजह से समझोते किये जाते हैं। अगर किसी को यह पता होता कि बीस ओवर में भारतीय टीम जीत भी सकती है तो यकीन मानिये इन वरिष्ठ खिलाडियों को वहां भी ले जाया जाता। यदि भारतीय दर्शकों की रती भर भी दिल्चस्पी उस प्रतियोगिता में होती तो भी इन खिलाडियो को वहां झेलना पडता। इस प्रतियोगिता को भारतीय मीडिया ने भी अधिक महत्व नहीं दिया था वर्ना वह पहले ही इन खिलाडियों का टीम में शामिल करने के लिये दबाव बना देता। विश्व कप में विजय के बाद भारत पहुंचने पर ही धोनी और उसके साथियों को पता लगा कि वह कोई भारी सफ़लता प्राप्त कर लौटे है-यह बात धोनी ने खुद कही है। धोनी इस मामले में किस्मत के घनी रहे कि उनको इन खिलाडियों का सानिध्य   वहां नहीं मिला वरना वह भी असफ़ल कप्तानों की सूची में शामिल होते। इसमें कोई शक नहीं यह सब सीनियर महान हैं पर देश को विश्व विजयी बनाने कि उनमें कुब्बत  नहीं है और इनको ऐक नहीं पांच-पांच अवसर दिये जा चुके हैं। अब धौनी को ऐसी  हालतों से जूझना होगा जिसकी कल्पना भी उनहोने पहले नहीं की होगी। अगर वह इन वरिष्ठ खिलाडियों को साध पाये तो ही वह आगे भी सफ़लता का दौर जारी रख सकते हैं।

        अगर भारतीय टीम इस श्रंखला में अच्छा प्रदर्शन करती है तो भी उसकी विश्व वरीयता में थोडा सुधार हो सकता है इससे अधिक आकर्षण इसमे और अधिक नहीं है। हां नये  कप्तान और विश्व कप जीतने के तत्काल  बाद हो रही इस श्रंखला में लोग पहले से अधिक दिलचस्पी लेंगे इसमें कोई संदेह नहीं है। बीस ओवरीय  विश्व कप प्रतियोगिता में धोनी के लिये कप्तान की रूप में करने के लिये ज्यादा के लिये कुछ था भी नहीं पर यहां एक कप्तान के रूप में अपनी क्षमता का परिचय देना होगा।
 

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