असफल लेखकों की मनमानी


आपस में मिले दो असफल लेखक
पहले पाठकों पर भंडास निकाली
फिर अपना नाम किसी भी कीमत
पर पत्र-पत्रिकाओं में चमकाने की ठानी

पहले बांधे एक-दूसरे की तारीफों के पुल
एक ने लिखा दूसरे के लिए ‘कवि सम्राट’
दूसरे ने लिखा पहले के लिए
‘व्यंग्य का राजा विराट’
न उसने कविता लिखी थी
न इसने लिखा था व्यंग्य
लेखक के नाम पर थे भाट
कभी किसी पैसा लेकर
प्रसिद्ध कवियों की कवितायेँ
उनकी प्रशंसा में चिपकायीं थीं
तो कहीं सम्मान पाने के लिए
देने वाले की चरणगाथा गाईं थीं
अब बंद होगयी थी दुकान
साहित्य की याद तो उनको थी आनी

दोनों ने बहुत की एक-दूसरे की तारीफ
पर पाठक फिर भी नहीं रीझा
तब उनक मन और खीझा
और सोची कुछ और करने की कारिस्तानी
अब तय किया कि
अब एक दूसरे पर जमकर करेंगे
अपनी लेखनी से वार
इतने लिखेंगे साहित्यक अभद्र शब्द कि
लोग भी हिल जायेंगे
और पढने लग जायेंगे
फिर सिलसिला हुआ आक्षेपों का
पर हुआ असर इसका यह कि
उनको छापने वाला अखबार ही
बंद होने के कगार पर पहुंच गया
संपादक ने हाथ जोड़कर कहा
‘अब नहीं छापूंगा आपकी रचनाएं
आहत हुईं है लोगों की भावनाएं
कलम जिनके हाथ में हो
अक्ल भी होना चाहिए
अपने से बाहर निकल कर भी सोचना चाहिऐ
नहीं चलती लिखने में मनमानी’

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