ईमानदारी का भाव-हिन्दी हास्य कविताएँ (imandari ka bhav-hindi hasya kavitaen)


वह ईमानदार हैं
इसलिये बिना दाम के
ईमान नहीं बेचते
मगर नेक हैं
मोलभाव नहीं करते।
…………….
एक आदमी ने दूसरे से पूछा
‘‘यार, हमारे जिम्मे जो काम हैं
उसे करने के लिये
हम लोगों से पैसा लेते हैं
कहीं इसी को तो भ्रष्टाचार नहीं कहा जाता है,
अगर यह सच है
छोड़ देते हैं यह काम
भ्रष्टाचारी कहलाना अब सहा नहीं जाता है।’’
दूसरे ने कहा
‘किस पागल ने हमारे काम को भ्रष्टाचार कहा है
काम के बदले दाम लेना
व्यापार कहलाता है,
जिसे नहीं मिलता वह
अपनी ईमानदारी को खुद ही सहलाता है,
वैसे मुझे नहीं मालुम भ्रष्टाचार किसे कहा जाता है,
पर लगता है कि कुछ लोग
बिना काम किये
पैसा लेते हैं,
फिर मुंह फेर लेते हैं,
ऐसे लोग मुफ्तखोर है या भिखारी
शायद दोनों को एक संबोधन देने के लिये
भ्रष्टाचारी कहकर पुकारा जाता है।’’
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कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  ‘Bharatdeep’,Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com

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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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टिप्पणियाँ

  • anu  On अक्टूबर 17, 2011 at 14:56

    भ्रष्टाचार ….और भ्रष्टाचारी की नई परिभाषा ……….बहुत खूब

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