जिनके महल रौशन है वह क्या अंधेरे घरों का दर्द जानेंगे,
रोटियों को ढेर जिनके सामने है वह भूख का क्या दर्द मानेंगे।
कांपते है जिनके हाथ व्यवस्था में बदलाव के नाम से
वह क्रांति का दावा बेबस लोगों के सामने करते हैं,
घूमते हैं कार में रिक्शा चालकों की चिंता का दंभ भरते हैं,
आदर्शवादी बाते कहना आसान है अमल में लाना जरूरी नहीं,
पर्दे पर चमक जाओ बयानों पर चलने की फिर मजबूरी नहंी,
पानी की प्यास पर देते हैं बहुत सारे बयान
घर में पीने के लिये उनके यहां समंदर भरे हैं,
प्यासों के दर्द पर जताते सहानुभूति वही
खुद प्यासे मरने के भय से जो डरे हैं,
कहें दीपक बापू नहीं मांगना रोटी और पानी
कभी भलाई के धंधेबाज दलालों से नहीं मांगना
तुम्हें भीड़ में भेड़ की तरह लगाकर अपना सीना तानेंगे।
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सेवा के स्वांग स्वामी बनने के लिये किये जाते हैं,
दूसरे लोग बदनाम अपनी इज्जत बढ़ाने के लिये किये जाते हैं।
हर इंसान जी रहा स्वार्थ के लिये पर परमार्थ का करता दावा,
पुजने के लिये सभी तैयार आता रहे रोज उनके पास चढ़ावा।
दूसरे को नसीहतें देते हुए ढेर सारे उस्ताद मिल जायेंगे,
दाम खर्च करो तो बड़े बड़े ईमानदार हिलते नज़र आयेंगे,
शिक्षा कहीं नहीं मिलती ज़माने से वफादारी दिखाने की,
गद्दारी करते सभी जल्दी कामयाबी अपने नाम लिखाने की,
कहें दीपक बोते सभी अपने घर में बबूल हमेशा
आम उगने की उम्मीद सर्वशक्तिमान से किये जाते हैं।
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja “Bharatdeep”,Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak “Bharatdeep”,Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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