गरीबी का दर्द-हिंदी व्यंग्य कविता


जिन्होंने देखी नहीं कभी गरीबी

क्या रहेगी उनकी दर्द से करीबी

हमदर्दी के बयान देकर तालियां बटोर लें यह अलग बात है,

प्रचार सुख में गुजरता उनका दिन बहलती रात है।

कहें दीपक बापू पर्दे पर नकली जंग रोज दिखती है,

बंदूक और तोप नहीं कलम पहले उसकी पटकथा लिखती है,

पेशेवर सजाते  चित्र प्रदर्शनी जो समाचार जैसे लगते हैं,

देख कर वाह वाह कर रहे दर्शक खुद को ठगते हैं,

नायकत्व की छवि बन गयी है बहुत सारे इंसानी बुतों की

बाहर बैठे निर्देशकों के इशारे से पर्दे पर चलते फिरते हैं

मजे लेने में लगे लोग क्या जाने यह अंदर की बात है।

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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा “भारतदीप”

ग्वालियर, मध्यप्रदेश 

Writer and poet-Deepak Raj Kukreja “Bharatdeep”

Gwalior, Madhya pradesh

कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak ‘Bharatdeep’,Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।

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