गर्मी पर लिखी गर्मी ने कविता


(भीषण गर्मी में बैठकर कविता लिखने का एक प्रयास)

मंच पर मौजूद कवि ने श्रोताओं से कहा

“सुनो आज मैं तुम्हें एक नयी कविता सुनाता हूँ

तुम्हें गर्मी से निजात दिलाता हूँ

क्योंकि मैंने लिखी थी एक कविता

एक भैस पर
वह मर गयी

एक बकरी देखी

उसे देखकर मेरा दिल पसीजा
कागज पर अपनी कलम से शब्दों को खींचा

वह परलोक सिधार गयी
अपनी कलम के अलौकिक होने के

अहसास से मैं खामोश रहा

अब छुट्टी करता हूँ इस गर्मी की
तुमने और मैंने बहुत सहा

उनके इतना कहते ही

वहां भगदड़ मच गयी

कवि के पास जाने के लिए

होड़ मच गयी

हर कोई अपने सुख के लिए

अपना काँटा निकालने के लिए खङा था

उनकी पर्ची पर किसी न किसी का नाम था

क्या दोस्त,क्या भाई

ससुर हो या जमाई

नाम लेकर चिल्ला रहे थे

कविता लिख उसे मारो

अपनी कलम से उसे निपटाओ

भगदड़ में सब हुआ बेहाल

कवि के कपडे फट गये

चेहरा हुआ बदहाल

बिना कविता सुनाए

अपना सब कुछ गवाए

घर लौटते हुए हमें मिल गया

हमसे लिफ़्ट मांगे बिना

स्कूटर पर बैठ गया

हमें उसने कथा सुनाई और बोला

“यार , आज कविता लिखते समय
मैं भूल गया था

मैंने अपना उपनाम भी

गर्मी रखा हुआ था

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