दोनों रहिमन एक से, जौ लौं बोलत नाहिं
जान परत हैं काक पिक, ऋतू बसंत के माहिं
कविवर रहीम कहते हैं कि जब तक मुख से बोलें नहीं कौआ और कोयल एक ही समान प्रतीत होते हैं ऋतूराज बसंत की आने पर कोयल की मीठी वाणी कुहू-कुहू से और कौए की कर्कश आवाज से अंतर का आभास हो जाता है।
इसका आशय यह है कि मनुष्य को अपनी वाणी मधुर और कोमल रखने का प्रयास करना चाहिए अन्यथा अपनी अयोग्यता का परिचय ही देना होगा। आदमी की काया कितनी भी सुन्दर क्यों न हो अगर उसके वाणी में माधुर्य और कोमलता नहीं है तो वह प्रभावहीन हो जाता है।
धन थोरो इज्जत बड़ी, कह रहीम का बात
जैसे कुल कि कुलबधू , चिथडन मांह समात
जैसे वंश की कुलवधु फटे-पुराने कपडे में भी शोभायमान होती है उसी प्रकार यदि अपने पास धन कम भी है, परंतु समाज में मान-सम्मान है वह चिंता का विषय नहीं है ।
हमें कभी यह नहीं समझना चाहिए कि समाज में केवल धन से सम्मान मिलता है, अगर व्यवहार और योग्यता से समाज में सम्मान मिलता है तो इस बात की परवाह नहीं करना चाहिए कि हमारे पास धन नहीं है।
टिप्पणियाँ
nice deep thoughts
good one
और दोहे होने चाहिए
Very good
gud 1 :>