Category Archives: alekh

अण्णा हजारे (अन्ना हजारे)के आंदोलन की वजह से भ्रष्टाचार विरोधी सामग्री की इंटरनेट पर खोज बढ़ी-हिन्दी लेख (anna hazare’s anti corruption movement and internet-hindi article)


        अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन और जनलोकपाल की स्थापना के अभियान को प्रचार माध्यमों ने देश में चर्चा का विषय बना दिया है। यह तो पता नहीं कि इस आंदोलन की चरम परिणति किस तरह होगी पर इतना तय है कि इससे देश के लोगों पर इतना प्रभाव हुआ है कि इसकी चर्चा हर कहीं चल रही है। टीवी चैनलों पर भारी भरकम पेशेवर विद्वान निरंतर अपने विचार प्रकट कर रहे हैं तो समाचार पत्रों में उनके ही लेख छाये हैं। हमारी दिलचस्पी भी इस आंदोलन के भ्रष्टाचार विरोधी विषय में है पर इतर गतिविधियों पर भी बराबर नज़र रहती है। इसके आधार पर कह सकते हैं कि भ्रष्टाचार विरोध एक नारा बन गया है जिससे इंटरनेटर पर संभवत सबसे अधिक खोजा जा रहा है। भ्रष्टाचार विरोध शब्द अन्ना हजारे से अधिक सर्च इंजिनों में ढूंढा जा रहा है।
        इसका आभास अपने ब्लाग दीपक बापू कहिन पर लगातार दो दिन एक हजार से अधिक पाठक/पाठ पठन संख्या होने पर हुआ। हालांकि अन्य ब्लाग हिन्दी पत्रिका को भी यह श्रेय हिन्दी दिवस के अवसर पर मिल चुका है। आज भी ऐसा लग रहा है कि दीपक बापू कहिन एक हजार से अधिक का आंकड़ा पार करेगा। ऐसे नहीं है कि भ्रष्टाचार पर लिखी गयी हास्य कवितायें या लेख पहले पाठक नहीं जुटा रहे थे। दरअसल उस समय वह पाठ अन्य शब्दों से सर्च इंजिनों पर पढ़े जा रहे थे। भ्रष्टाचार शब्द से भी पढ़े गये पर उनकी संख्या इतनी नहंी थी जितनी आजकल दिख रही है।
       इसका अभिप्राय यह है कि अन्ना हजारे साहब का अनशन, भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन तथा जनलोकपाल की मांग से कहीं न कहीं टीवी चैनलों तथा समाचार पत्रों के अपने विज्ञापन के साथ प्रसारण तथा प्रकाशन के लिये एक महत्वपूर्ण रुचिकर सामग्री मिल रही है। इतना ही नहीं पिछले दिनों ऐसा लग रहा था कि इंटरनेट का प्रभाव कम हो सकता है क्योंकि इस पर परंपरागत प्रचार माध्यमों जैसी सामग्री प्रस्तुत हो रही है। इधर भारत ही नहीं बल्कि इंटरनेट को सामूहिक अभियानों और आंदोलनों के लिये प्रभावी बताकर यह साबित किया जा रहा है कि उससे जुड़ा रहना बेहतर है। लगता है कि कहीं न कहीं टेलीफोन कंपनियां अपने ग्राहक बनाये लगने के लिये ऐसे अभियानों को प्रोत्साहित कर रही हैं। संभव है प्रत्यक्ष नहीं तो अप्रत्यक्ष विनिवेश भी करती हों। तय बात है कि इससे टेलीफोन कंपनियों को ही सहारा मिलना है। पहले ब्लाग, फिर ट्विटर और अब फेसबुक जनचर्चा के लिये महान कार्य करते दिखाये जा रहे हैं। पहले फिल्मी अभिनेताओं, अभिनेत्रियों तथा अन्य अन्य प्रतिष्ठित लोगों के ब्लाग चर्चित कर इंटरनेट की महिमा बतायी जाती थी आजकल ट्विटर और फेसबुक पर उनके जारी संदेश टीवी चैनलों और समाचार पत्रों में प्रचारित किये जाते हैं। तय बात है कि किसी खास आदमी की आम बात को जोरदार प्रचार होता है पर आम आदमी की खास बात को भी छोड़ दिया जाता है। अन्ना हजारे के आंदोलन से अंततः कहीं न कहीं आजकल के प्रचार माध्यमों के साथ ही टेलीफोन कंपनियों को भी लाभ हो रहा है। लोगों से एसएमएस भी कराये जा रहे हैं और भावुक लोग ऐसा कर भी रहे हैं। हमें इन चीजों से कोई लेना देना नहीं है पर इतना जरूर कह सकते हैं कि प्रचार माध्यमों के स्वामी इस आंदोलन से लाभ उठा रहे हैं शायद यही कारण है कि इस आंदोलन के विरोधी इससे जुड़े आर्थिक स्तोत्रों पर संदेह करते हैं क्योंकि अंतत उनके माध्यम से एक बहुत बड़ी राशि समाज सेवकों के पास चाहे वह आंदोलनकारी हों या उनके प्रबंधक-जाती है।
            अन्ना साहेब बुजुर्ग हैं और इस गैस विकार पैदा करने वाले मौसम में उनका इस तरह अनशन पर बैठना चिंता का विषय है। एक बात साफ है कि उन्होंने देश के जनमानस को आंदोलित किया है पर भ्रष्टाचार ऐसी बीमारी है जिसका हल लोगों को स्वयं भी ढूंढना चाहिए। भ्रष्टाचार का कारण लालच और लोभ है। एक लालची अधिक चाहता है इसलिये वह दूसरे लालची को इसलिये पैसा देता है ताकि वह उसकी सहायता करे। फिर जिस तरह आज के प्रचार माध्यमों का रवैया है वह उपभोग संस्कृति को प्रोत्साहित करते हैं और खास लोगों की  अभिव्यक्ति को ही आवाज देते हैं और आम आदमी उनके लिये अत्यंत निरीह है। यही कारण है कि हर आम खास बनना चाहता है। इस लोभ के चलते कोई भी किसी मार्ग पर चला जाता है यह जाने कि वह अच्छा है कि नहीं। अपनी जरूरतें बढ़ा दी गयी हैं जिससे लोग धन पाने के अलावा कोई अन्य लक्ष्य जीवन में रखना तो दूर सोचते तक भी नहीं है। दीपक बापू कहिन ही नहीं अन्य ब्लाग पर भी भ्रष्टाचार के विरुद्ध लिखी सामग्री इंटरनेट पर ढूंढती दिखी। तब यह लिखने का विचार आया कि अन्ना हजारे के आंदोलन से ‘भ्रष्टाचार का विषय’ कितना चर्चित हुआ है यह अनुभव पाठकों तथा ब्लाग मित्रों से बांटा जाये। आखिरी बात यह है कि व्यंजना विधा में भ्रष्टाचार को लक्ष्य कर लिखी गयी हमारी एक कविता का उपयोग कहीं न कहीं अन्ना साहेब के प्रचार में दिखा। व्यंजना विधा में लिखी गयी बात बहुत कम समझ में आती है पर अन्ना साहेब के अंादोलन में विलक्षण प्रतिभाशाली लोग भी हैं यह आज प्रचार माध्यम बता रहे थे। इसका मतलब है कि उनमें से किसी एक ने पढ़ा है और उसका उपयोग अपने ढंग से किया है। यह अलग बात है कि हमें वह कविता पुनः देखने के लिये बीस ब्लागों का अवलोकन करना पड़ेगा। हमने यह कविता तब लिखी थी जब यह अनशन होने की बात भी नहीं थी।

दीपक बापू कहिन में पढ़े गये पाठों का विवरण इस प्रकार है
 Total views of posts on your blog      1035 date on 19.08.11   &
Total views of posts on your blog 1019 date on 18.8.11
हास्य कविता-भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन (hasya kavita-bhrashtachar ke khilaf andolan)     More stats    225
नीयत में भ्रष्टाचार-हिन्दी व्यंग्य कवितायें (neeyat men bhrashtachar-hindi satire poem’s)     More stats    197
Home page     More stats    117
महंगाई देश भक्ति को कुचल जायेगी-हिन्दी कविता (mehangai aur deshbhakti-hindi hasya kavita)     More stats    94
हंसी का खज़ाना-हिन्दी कविता     More stats    69
भ्रष्टाचार एक अदृश्य राक्षस–हिन्दी हास्य कविताएँ/शायरी (bhrashtachar ek adrishya rakshas-hindi hasya kavitaen)     More stats    57
स्वामी रामदेव, अन्ना हजारे और विकिलीक्स के जूलियन असांजे की त्रिमूर्ति-हिन्दी व्यंग्य चिंत्तन (swami ramdev,anna hazare aur wikileak ke julian asanje ki tikdi-hindi vyangya chinttan)     More stats    46
इश्क और मशीन-हास्य कविता (hasya kavita)     More stats    42
बेशर्मी अब बुरी आदत नहीं कहलाती-हिन्दी व्यंग्य कविता     More stats    26
हिंदी दिवस:व्यंग्य कवितायें व आलेख (Hindi divas-vyangya kavitaen aur lekh)     More stats    22
प्रजांतत्र का चौथा खंभा-हिन्दी हास्य कविता (prajatantra ka chautha khanbha-hindi hasya kavita)     More stats    21
इंसान के भेष में शैतान-हिन्दी शायरी     More stats    9
भगतसिंह के इंतज़ार में-हिन्दी व्यंग्य चिंतन (bhagatsinh ke intzar mein-hindi vyangya chittan     More stats    9
भारतीय धनपतियों की खुलती पोल-हिन्दी लेख (indial capitalist and comman society-hindi article)     More stats    8
‘आरक्षण’ फिल्म पर हायतौबा पूर्वनियोजित-हिन्दी लेख (film or movie Aarakshan par vivad fix-hindi lekh)     More stats    8
भरोसे के नाम पर तोहफा धोखे का-हिन्दी व्यंग्य कविता (bharose ka naam par tohfe dhokhe ka-hindi vyangya akvita)     More stats    8
चाणक्य नीति:असंयमित जीवन से व्यक्ति अल्पायु     More stats    8
न खेलो इस ज़माने से-हिन्दी साहित्यक कविता     More stats    7
मुस्कराहट-हिन्दी कविता     More stats    7
चांद और समंदर-हिन्दी कविता (chand aur samandar-hindi poem)     More stats    7
यादों का बयान-हिन्दी शायरी     More stats    5
बिना मेकअप के अभिनय-हास्य व्यंग्य कविता     More stats    4
तुम्हारी ताकत-हिन्दी कविता (tumhari takat-hindi poem)     More stats    3
‘मेरे पास बस प्यार है’ -hasya kavita     More stats    3
प्रलय की भविष्यवाणी-हिन्दी व्यंग्य (prlaya ki bhavishvani-hindi vyangya)     More stats    3
होली के अवसर पर विशेष लेख (special article on holi festival)     More stats    2
हारने पर इनाम-हास्य व्यंग्य (hasya vyangya)     More stats    2
जो सभी को पसंद हो वही कहो -हास्य कविता     More stats    2
संत कबीर वाणी:जादू टोना सब झूठ है     More stats    2
बहस और बाजार-व्यंग्य कविता (bahas aur bazar-hindi vyangya kavita)     More stats    2
रहीम के दोहे: वाणी से होती है आदमी की पहचान     More stats    2
दौलत की इबारत-हिन्दी कविता     More stats    2
आशिक खिलाड़ी-हिन्दी दिवस पर हास्य कविता (player and lover-comic poem on hindi diwas)     More stats    2
व्यंग्य के लिए धार्मिक पुस्तकों और देवों के नाम के उपयोग की जरूरत नहीं-आलेख     More stats    1
तकदीर और चालाकियां-हिन्दी व्यंग्य कवितायें (taqdir aur chalaki-hindi comic poems     More stats    1
बच गया हेरी पॉटर     More stats    1
वर्षा ऋतु:कहीं सूखा कहीं बाढ़     More stats    1
दशहराःरावण के नये रूप महंगाई, भ्रष्टाचार, और बेईमानी से लड़ना आवश्यक-हिन्दी लेख (ravan ke naye roop-hindi lekh     More stats    1
साढ़े चार साल में चला दो लाख पाठक/पाठ पठन संखया तक यह ब्लाग-हिन्दी संपादकीय     More stats    1
आदर्श के नाम पर समाज सेवा-हिन्दी हास्य व्यंग्य कविता (adrash ke nam par samaj seva-hindi hasya vyangya kavita)     More stats    1
ईमानदार का बलिदान-हिन्दी लेख (imandar ka balidan-hindi lekh)     More stats    1
निगाहों ने खो दी है अच्छे बुरे की पहचान-हिन्दी शायरी (nanigah ne kho di pahchan-hindi shayari)     More stats    1
ख्वाब जब हकीकत बनते हैं-हिन्दी शायरी (khavab aur haqiqut-hindi shayri)     More stats    1
पाप छिपाने के लिये धर्म की आड़-हिन्दी व्यंग्य कविताऐं (paap aur dharma-hindi vyangya kavitaen)     More stats    1
जज़्बातों की कत्लगाह-हिन्दी शायरी (jazbat-hindi shayri)     More stats    1
कौटिल्य का अर्थशास्त्र-किसी को अपनी योग्यता से अधिक महापद भी मिल जाता है (ablity and post-kautilya ka arthshastra)     More stats    1
विज्ञान और ज़माना-हिन्दी व्यंग्य शायरी (vigyan aur zamana)     More stats    1
Total views of posts on your blog      1035 date on 19.08.11  

Total views of posts on your blog 1019 date on 18.8.11
हास्य कविता-भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन (hasya kavita-bhrashtachar ke khilaf andolan)     More stats    241
नीयत में भ्रष्टाचार-हिन्दी व्यंग्य कवितायें (neeyat men bhrashtachar-hindi satire poem’s)     More stats    166
Home page     More stats    146
हंसी का खज़ाना-हिन्दी कविता     More stats    74
भ्रष्टाचार एक अदृश्य राक्षस–हिन्दी हास्य कविताएँ/शायरी (bhrashtachar ek adrishya rakshas-hindi hasya kavitaen)     More stats    55
स्वामी रामदेव, अन्ना हजारे और विकिलीक्स के जूलियन असांजे की त्रिमूर्ति-हिन्दी व्यंग्य चिंत्तन (swami ramdev,anna hazare aur wikileak ke julian asanje ki tikdi-hindi vyangya chinttan)     More stats    54
महंगाई देश भक्ति को कुचल जायेगी-हिन्दी कविता (mehangai aur deshbhakti-hindi hasya kavita)     More stats    44
इश्क और मशीन-हास्य कविता (hasya kavita)     More stats    40
बेशर्मी अब बुरी आदत नहीं कहलाती-हिन्दी व्यंग्य कविता     More stats    27
हिंदी दिवस:व्यंग्य कवितायें व आलेख (Hindi divas-vyangya kavitaen aur lekh)     More stats    23
मुस्कराहट-हिन्दी कविता     More stats    12
प्रजांतत्र का चौथा खंभा-हिन्दी हास्य कविता (prajatantra ka chautha khanbha-hindi hasya kavita)     More stats    11
भगतसिंह के इंतज़ार में-हिन्दी व्यंग्य चिंतन (bhagatsinh ke intzar mein-hindi vyangya chittan     More stats    9
दौलत की इबारत-हिन्दी कविता     More stats    8
‘आरक्षण’ फिल्म पर हायतौबा पूर्वनियोजित-हिन्दी लेख (film or movie Aarakshan par vivad fix-hindi lekh)     More stats    8
भारतीय धनपतियों की खुलती पोल-हिन्दी लेख (indial capitalist and comman society-hindi article)     More stats    8
यादों का बयान-हिन्दी शायरी     More stats    8
तुम्हारी ताकत-हिन्दी कविता (tumhari takat-hindi poem)     More stats    7
न खेलो इस ज़माने से-हिन्दी साहित्यक कविता     More stats    6
‘मेरे पास बस प्यार है’ -hasya kavita     More stats    5
बिना मेकअप के अभिनय-हास्य व्यंग्य कविता     More stats    5
रहीम के दोहे: वाणी से होती है आदमी की पहचान     More stats    5
संत कबीर वाणी:जादू टोना सब झूठ है     More stats    4
चाणक्य नीति:असंयमित जीवन से व्यक्ति अल्पायु     More stats    4
आशिक खिलाड़ी-हिन्दी दिवस पर हास्य कविता (player and lover-comic poem on hindi diwas)     More stats    4
प्रलय की भविष्यवाणी-हिन्दी व्यंग्य (prlaya ki bhavishvani-hindi vyangya)     More stats    4
भरोसे के नाम पर तोहफा धोखे का-हिन्दी व्यंग्य कविता (bharose ka naam par tohfe dhokhe ka-hindi vyangya akvita)     More stats    4
हारने पर इनाम-हास्य व्यंग्य (hasya vyangya)     More stats    3
बाबा रामदेव को कौन क्या समझा रहा है-उनके आंदोलन पर लेख (baba ramdev ko kaun kya samjha raha hai-a hindi lekh his new movement on anti corruption)     More stats    2
वर्षा ऋतु:कहीं सूखा कहीं बाढ़     More stats    2
बाबा रामदेव क्या चमत्कार कर पायेंगे-हिन्दी आलेख (swami ramdev ka bhrashtacha ke viruddhi andolan-hindi lekh)     More stats    2
हास्य कविताएं और गंभीर चिंतन है पाठकों की पसंद-संपादकीय     More stats    2
भारत में भूत-हिन्दी हास्य कविता (bharat men bhoot-hindi hasya kavita)     More stats    2
विज्ञान और ज़माना-हिन्दी व्यंग्य शायरी (vigyan aur zamana)     More stats    2
दिखावटी और मिलावटी-हिन्दी व्यंग्य कविता     More stats    1
रिश्ता और सवाल जवाब-हास्य कविता (rishta aur sawal jawab-hasya kavita     More stats    1
भाषा और अखबार-लघु हास्य व्यंग्य (bhasha aur akhabar-hindi short comic satire article)     More stats    1
ऑपरेशन में ध्यान की विधा का उपयोग-हिन्दी लेख(opretion and dhyan yoga-hindi lekh)     More stats    1
कभी ख्वाब तो कभी हकीक़त-व्यंग्य शायरी     More stats    1
बहस और बाजार-व्यंग्य कविता (bahas aur bazar-hindi vyangya kavita)     More stats    1
कमीशन-हिन्दी व्यंग्य कविताएँ     More stats    1
असली झगड़ा, नकली इंसाफ-हिन्दी व्यंग्य और कविता (asli jhagad aur nakli insaf-hindi vyangya aur kavita)     More stats    1
ज़िन्दगी के बदलते रंग     More stats    1
चांद और समंदर-हिन्दी कविता (chand aur samandar-hindi poem)     More stats    1
बेईमान चढ़े हैं हर शिखर पर-हिन्दी शायरी (beiman shikhar par-hindi shayri)     More stats    1
बेपैंदी का लोटा-हिंदी व्यंग्य कविताएँ     More stats    1
हिन्दी भाषा की महिमा-आलेख     More stats    1
आत्मसम्मान से जीता है मजदूर     More stats    1
साढ़े चार साल में चला दो लाख पाठक/पाठ पठन संखया तक यह ब्लाग-हिन्दी संपादकीय     More stats    1
ईमानदार का बलिदान-हिन्दी लेख (imandar ka balidan-hindi lekh)     More stats    1
बुत सम्मलेन में एक सवाल-लघु कथा     More stats    1
शांति पर कोई शांति से नहीं लिखता-हिंदी व्यंग्य कविता (peace writting-hindi vyangya)     More stats    1
इंसान के भेष में शैतान-हिन्दी शायरी     More stats    1
छोटा आदमी, बड़ा आदमी-लघुकथा     More stats    1
क्रिकेट और फिल्म में सफलता का साया-हास्य कविता(cricket and film-hasya kavita     More stats    1
इन्टरनेट हैकर्स-आलेख (internet hecker-hindi lekh)     More stats    1
Total views of posts on your blog 1019 date on 18.8.11
——————–

कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak ‘Bharatdeep’,Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका

४.दीपकबापू कहिन
5.हिन्दी पत्रिका 
६.ईपत्रिका 
७.जागरण पत्रिका 
८.हिन्दी सरिता पत्रिका 
९.शब्द पत्रिका

ऑपरेशन में ध्यान की विधा का उपयोग-हिन्दी लेख(opretion and dhyan yoga-hindi lekh)


                ईरान के डाक्टर का एक किस्सा प्रचार माध्यमों में देखने को मिला जिसे चमत्कार या कोई विशेष बात मानकर चला जाये तो शायद बहस ही समाप्त हो जाये। दरअसल इसमें ध्यान की वह शक्ति छिपी हुई है जिसे विरले ही समझ पाते हैं। साथ ही यह भी कि भारतीय अध्यात्म के दो महान ग्रंथों ‘श्रीमद््भागवत गीता’ तथा ‘पतंजलि योग साहित्य’ को भारतीय शिक्षा प्रणाली में न पढ़ाये जाने से हमारे देश में से जो हानि हो रही है उसका अब शिक्षाविदों को अंांकलन करना चाहिए। यह भी तय करना चाहिए कि धर्मनिरपेक्षता के नाम पर इन दो ग्रंथों का शैक्षणिक पाठ्यक्रम में शामिल न कर कहीं हम अपने देश के लोगों के अपनी पुरानी विरासत से परे तो नहीं कर रहे हैं।
           पहले हम ईरान के डाक्टर हुसैन की चर्चा कर लें। ईरान के हुसैन नाम के चिकित्सक अपने मरीजों को बेहोशी का इंजेक्शन दिये बिना ही उनकी सर्जरी यानि आपरेशन करते हैं। अपने कार्य से पहले वह मरीज को आंखें बंद कर अपनी तरफ घ्यान केंद्रित करते हैं। उसके बाद अपने मुख से वह कुछ शब्द उच्चारण करते हैं जिससे मरीज का ध्यान धीरे धीरे अपने अंगों से हट जाता है और आपरेशन के दौरान उसे कोई पीड़ा अनुभव नहीं होती। इसे कुछ लोग हिप्टोनिज्म विधा से जोड़ रहे हैं तो कुछ डाक्टर साहब की कला मान रहे हैं। हमें यहां डाक्टर हुसैन साहब की प्रशंसा करने में कोई संकोच नहीं है। उनके प्रयासों में कोई दिखावा नहीं है और न ही वह कोई ऐसा काम कर रहे हैं जिससे अंधविश्वास को बढ़ावा मिले। ऐसे लोग विरले ही होते हैं जो अपने ज्ञान का दंभ भरते हुए दिखावा करते हैं। सच कहें तो डाक्टर हुसैन संभवत उन नगण्य लोगों में हैं जो जान अनजाने चाहे अनचाहे ध्यान की विधा का उपयोग अपने तरीक से करना सीख जाते हैं या कहें उनको प्रकृत्ति स्वयं उपहार के रूप में ध्यान की शक्ति प्रदान करती है । उनको पतंजलि योग साहित्य या श्रीमद्भागवत गीता पढ़ने की आवश्यकता भी नहीं होती। ध्यान की शक्ति उनको प्रकृति इस तरह प्रदान करती है कि वह समाधि आदि का ज्ञान प्राप्त किये बिना उसका लाभ लेने के साथ ही दूसरों की सहायता भी करते हैं।
           हुसैन साहब के प्रयासों से मरीज का ध्यान अपनी देह से परे हो जाता है और जो अवस्था वह प्राप्त करता है उसे हम समाधि भी कह सकते हैं। उस समय उनका पूरा ध्यान भृकुटि पर केद्रित हो जाता है। शरीर से उनका नाता न के बराबर रहता है। इतना ही नहीं उनके हृदय में डाक्टर साहब का प्रभाव इतना हो जाता है कि वह उनकी हर कही बात मानते है। स्पष्टतः ध्यान के समय वह हुसैन साहब को केंद्र बिन्दु बनाते हैं जो अंततः सर्वशक्मिान के रूप में उनके हृदय क्षेत्र पर काबिज हो जाते हैं। वहां चिक्त्सिक उनके लिये मनुष्य नहीं शक्तिमान का आंतरिक रूप हो जाता है। ऐसी स्थिति में उनकी देह के विकार वैसे भी स्वतः बाहर निकलने होते है ऐसे में हुसैन जैसे चिकित्सक के प्रयास हों तो फिर लाभ दुगुना ही होता है। देखा जाये तो ध्यान में वह शक्ति है कि वह देह को इतना आत्मनिंयत्रित और स्वच्छ रखता है उसमें विकार अपना स्थान नहीं बना पाते।
         इतिहास में ईरान का भारत से अच्छा नाता रहा है। राजनीतिक रूप से विरोध और समर्थन के इतिहास से परे होकर देखें तो अनेक विशेषज्ञ यह मानते हैं कि ईरान की संस्कृति हमारे भारत के समान ही है। कुछ तो यह मानते हैं कि हमारी संस्कृति वहीं से आकर यहां परिष्कृत हुई पर मूलतत्व करीब करीब एक जैसे हैं।
         ध्यान कहने को एक शब्द है पर जैसे जैसे इसके अभ्यस्त होते हैं वैसे ही इस प्रक्रिया से लगाव बढ़ जाता है। वैसे देखा जाये तो हम दिन भर काम करते हैं और रात को नींद अच्छी आती है। ऐसे में हम सोचते हैं कि सब ठीक है पर यह सामान्य स्थिति है इसमें मानसिक तनाव से होने वाली हानि का शनैः शनै प्रकोप होता है। हम दिन में काम करते है और रात को सोते हैं इसलिये मन और देह की शिथिलता से होने वाले सुख की अनुभूति नहीं कर पाते। जब कोई सामान्य आदमी ध्यान लगाना प्रारंभ करता है तब उसे पता लगता है कि उससे पूर्व तो कभी उसका मन और देह कभी विश्राम कर ही नहीं सकी थी। सोये तो एक दिमाग ने काम कर दिया और दूसरा काम करने लगा और जागे तो पहले वाली दिमाग में वही तनाव फिर प्रारंभ हो गया। इसके बीच में उसे विश्राम देने की स्थिति का नाम ही ध्यान है और जिसे जाग्रत अवस्था में लगाकर ही अनुभव किया जो सकता है।
ध्यान के विषय में यह लेख अवश्य पढ़ें
पतंजलि योग विज्ञान-योग साधना की चरम सीमा है समाधि (patanjali yog vigyan-yaga sadhana ki charam seema samadhi)
        भारतीय योग विधा में वही पारंगत समझा जाता है जो समाधि का चरम पद प्राप्त कर लेता है। आमतौर से अनेक योग शिक्षक योगासन और प्राणायाम तक की शिक्षा देकर यह समझते हैं कि उन्होंने अपना काम पूरा कर लिया। दरसअल ऐसे पेशेवर शिक्षक पतंजलि योग साहित्य का कखग भी नहीं जानते। चूंकि प्राणायाम तथा योगासन में दैहिक क्रियाओं का आभास होता है इसलिये लोग उसे सहजता से कर लेते हैं। इससे उनको परिश्रम से आने वाली थकावट सुख प्रदान करती है पर वह क्षणिक ही होता है । वैसे सच बात तो यह है कि अगर ध्यान न लगाया जाये तो योगासन और प्राणायाम सामान्य व्यायाम से अधिक लाभ नहीं देते। योगासन और प्राणायाम के बाद ध्यान देह और मन में विषयों की निवृत्ति कर विचारों को शुद्ध करता है यह जानना भी जरूरी है।
    पतंजलि योग साहित्य में बताया गया है कि 
           ——————————
      देशबंधश्चित्तस्य धारण।।
    ‘‘किसी एक स्थान पर चित्त को ठहराना धारणा है।’’
     तत्र प्रत्ययेकतानता ध्यानम्।।
       ‘‘उसी में चित्त का एकग्रतापूर्वक चलना ध्यान है।’’
        तर्दवार्थमात्रनिर्भासयं स्वरूपशून्यमिव समाधिः।।
        ‘‘जब ध्यान में केवल ध्येय की पूर्ति होती है और चित्त का स्वरूप शून्य हो जाता है वही ध्यान समाधि हो जाती है।’’
        त्रयमेकत्र संयम्।।
          ‘‘किसी एक विषय में तीनों का होना संयम् है।’’
           आमतौर से लोग धारणा, ध्यान और समाधि का अर्थ, ध्येय और लाभ नहीं समझते जबकि इनके बिना योग साधना में पूर्णता नहीं होती। धारणा से आशय यह है कि किसी एक वस्तु, विषय या व्यक्ति पर अपना चित्त स्थिर करना। यह क्रिया धारणा है। चित्त स्थिर होने के बाद जब वहां निरंतर बना रहता है उसे ध्यान कहा जाता है। इसके पश्चात जब चित्त वहां से हटकर शून्यता में आता है तब वह स्थिति समाधि की है। समाधि होने पर हम उस विषय, विचार, वस्तु और व्यक्ति के चिंत्तन से निवृत्त हो जाते हैं और उससे जब पुनः संपर्क होता है तो नवीनता का आभास होता है। इन क्रियाओं से हम अपने अंदर मानसिक संतापों से होने वाली होनी को खत्म कर सकते हैं। मान लीजिये किसी विषय, वस्तु या व्यक्ति को लेकर हमारे अंदर तनाव है और हम उससे निवृत्त होना चाहते हैं तो धारणा, ध्यान, और समाधि की प्रक्रिया अपनाई जा सकती है। संभव है कि वस्तु,, व्यक्ति और विषय से संबंधित समस्या का समाधाना त्वरित न हो पर उससे होने वाले संताप से होने वाली दैहिक तथा मानसिक हानि से तो बचा ही जा सकता है।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak  “Bharatdeep”,Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

आतंक और युद्ध में फर्क होता है-हिन्दी लेख (diffarence between terarrism and war-hindi aticle)


फर्जी मुठभेड़ों की चर्चा कुछ
इस तरह सरेआम हो जाती कि
अपराधियों की छबि भी
समाज सेवकों जैसी बन जाती है।
कई कत्ल करने पर भी
पहरेदारों की गोली से मरे हुए
पाते शहीदों जैसा मान,
बचकर निकल गये
जाकर परदेस में बनाते अपनी शान
उनकी कहानियां चलती हैं नायकों की तरह
जिससे गर्दन उनकी तन जाती है।
——–
टीवी चैनल के बॉस ने
अपने संवाददाता से कहा
‘आजकल फर्जी मुठभेड़ों की चल रही चर्चा,
तुम भी कोई ढूंढ लो, इसमें नहीं होगा खर्चा।
एक बात ध्यान रखना
पहरेदारों की गोली से मरे इंसान ने
चाहे कितने भी अपराध किये हों
उनको मत दिखाना,
शहीद के रूप में उसका नाम लिखाना,
जनता में जज़्बात उठाना है,
हमदर्दी का करना है व्यापार
इसलिये उसकी हर बात को भुलाना है,
मत करना उनके संगीन कारनामों की चर्चा।
———–

कवि लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
————————

दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका

मशहूर होने का बोझ सभी नहीं उठा सकते-आलेख


हिंदी ब्लाग जगत पर अनेक लोग छद्म नाम से लिखते हैं और यह परंपरा उन्होंने अंग्रेजी से ही ली है। जहां तक हिंदी में छद्म नाम से लिखने का सवाल है तो इतिहास में ऐसे कई लेखक और कवि उस नाम से प्रसिद्ध हुए जो उनका असली नाम नहीं था। अनेक लोग अपने नाम के साथ आकर्षक उपनाम-जिसे तखल्लुस भी कहते हैं-लिख देते हैं और उससे उनके कुल का उपनाम विलोपित हो जाता है। इसलिये उनके नाम को छद्म कहना ठीक नहीं है।
हिंदी ब्लाग जगत की शुरुआत करने वाले एक ब्लाग लेखक ने लिखा था कि उसने अपना छद्म नाम इसलिये ही लिखा था क्योंकि अंतर्जाल के ब्लाग या वेबसाईट पर कोई भी गंदी बात लिख सकता है। ऐसे में कोई परिचित पढ़ ले तो वह क्या कहेगा?
उसका यह कथन सत्य है। ऐसे में जब पुरुष ब्लाग लेखकों के यह हाल हैं तो महिला लेखकों की भी असली नाम से लिखने पर चिंता समझी जा सकती है। हालत यह है कि अनेक लोग असली नाम से लिखना शुरु करते हैं और फिर छद्म नाम लिखने लगते हैं।
छद्म नाम और असली नाम की चर्चा में एक बात महत्व की है और वह यह कि आप किस नाम से प्रसिद्ध होना चाहते हैं। जब आप लिखते हैं तो आपको इसी नाम से प्रसिद्धि भी मिलती है। कुछ लोग अपने असली नाम की बजाय अपने नाम से दूसरा उपनाम लगाकर प्रसिद्ध होना चाहते हैं उसे छद्म नाम नहीं कहा जा सकता क्योंकि वह छिपाने का प्रयास नहीं है।
दूसरी बात यह है कि अंतर्जाल पर लोग केवल इस डर की वजह से अपना परिचय नहीं लिख रहे क्योंकि अभी ब्लाग लेखक को कोई सुरक्षा नहीं है। इसके अलावा लोग ब्लाग तो केवल फुरसत में मनोरंजन के साथ आत्म अभिव्यक्ति के लिये लिखते हैं। अपने घर का पता या फोन न देने के पीछे कारण यह है कि हर ब्लाग लेखक अपना समय संबंध बढ़ाने में खराब नहीं करना चाहता। सभी लोग मध्यम वर्गीय परिवारों से है और उनकी आय की सीमा है। जब प्रसिद्ध होते हैं तो उसका बोझ उठाने लायक भी आपके पास पैसा होना चाहिये।
अधिकतर ब्लाग लेखक अपने नियमित व्यवसाय से निवृत होने के बाद ही ब्लाग लिखते और पढ़ते हैं। यह वह समय होता है जो उनका अपना होता है। अगर वह प्रसिद्ध हो जायें या उनके संपर्क बढ़ने लगें ं तो उसे बनाये रखने के लिये इसी समय में से ही प्रयास करना होगा और यह तय है कि इनमें कई लोग इंटरनेट कनेक्शन का खर्चा ही इसलिये भर रहे हैं क्योंकि वह यहां लिख रहे हैं। सीमित धन और समय के कारण नये संपर्क निर्वाह करने की क्षमता सभी में नहीं हो सकती। यहां अपना असली नाम न लिखने की वजह डर कम इस बात की चिंता अधिक है कि क्या हम दूसरों के साथ संपर्क रख कर कहीं अपने लिखने का समय ही तो नष्ट नहीं करेंगे।
ब्लाग पढ़ने वाले अनेक पाठक अपना फोटो, फोन नंबर और घर का पता मांगते हैं। उनकी सदाशयता पर कोई संदेह नहीं है पर अपनी संबंध निर्वाह की क्षमता पर संदेह होता है तब ऐसे संदेशों को अनदेखा करना ही ठीक लगता है। सीमित धन और समय में से सभी ब्लाग लेखकों के लिये यह संभव नहीं है कि वह प्रसिद्धि का बोझ ढो सकें। इसलिये पाठकों पढ़ते देखकर संतोष करने के अलावा कोई चारा नहीं है।
हां, एक बात मजे की है। भले ही लेखक असली नाम से लिखे या छद्म नाम से उसका चेहरा पहचाना जा सकता है। अगर आपने किसी को असली नाम से लिखते देखा है और अगर वह छद्म नाम से लिखेगा तो भी आप पहचान लेंगे। एक बात याद रखने की है शब्दों के चेहरे तभी पहचाने जा सकते हैं जब आप उस लेखक को नियमित पढ़ते हों।
प्रसंगवश याद आया कि अंतर्जाल पर अपने विरोधियों से निपटने के लिये इस ब्लाग/पत्रिका लेखक ने भी दो ब्लाग अन्य नाम -उसे भी छद्म नहीं कहा जा सकता-से बनाया था और वह अन्य बाईस ब्लाग में सबसे अधिक हिट ले रहे हैं पर उनमें सात महीने से कुछ नहीं लिखा जा रहा है क्योंकि उस नाम से प्रसिद्ध होने की इस लेखक की बिल्कुल इच्छा नहीं है। आज अपने मित्र परमजीत बाली जी का एक लेख पढ़ते हुए यह विचार आया कि क्यों न उनको अपने ही इस नाम से पुनः शुरु किया जाये। उस नाम से दूसरे ब्लाग पर एक टिप्पणी आई थी कि आपकी शैली तो …………………….मिलती जुलती है।
मतलब टिप्पणीकर्ता इस लेखक की शैली से पूरी तरह वाकिफ हो चुका था और वह इस समय स्वयं एक प्रसिद्ध ब्लाग लेखक है।
जहां तक शब्दों से चेहरे पहचानने वाली बात है तो यह तय करना कठिन होता है कि आखिर इस ब्लाग जगत में मित्र कितने हैं एक, दो, तीन या चार, क्योंकि उनके स्नेहपूर्ण शब्द एक जैसे ही प्रभावित करतेे हैं? विरोधी कितने हैं? यकीनन कोई नहीं पर शरारती हैं जिनकी संख्या एक या दो से अधिक नहीं है। वह भी पहचान में आ जाते हैं पर फिर यह सोचकर कि क्या करना? कौन हम प्रसिद्ध हैं जो हमारे अपमान से हमारी बदनामी होगी। ले देकर वही पैंच वही आकर फंसता है कि प्रेम और घृणा का अपना स्वरूप होता है और आप कोई बात अंतर्जाल पर दावे से नहीं कह सकते। जब चार लोग प्रेम की बात करेंगे तो भी वह एक जैसी लगेगी और यही घृणा का भी है। कितने प्रेम करने वाले और कितने नफरत करने वाले अंतर्जाल पर उसकी संख्या का सही अनुमान करना कठिन है। रहा छद्म नाम का सवाल तो वह रहने ही हैं क्योंकि आम मध्यम वर्गीय व्यक्ति के लिये अपनी प्रसिद्धि का बोझ उठाना संभव नहीं है। ब्लाग लेखन में वह शांतिप्रिय लेखक मजे करेंगे जो लिखते हैं और प्रसिद्धि से बचना चाहते हैं। अपने लिखे पाठों को प्रसिद्धि भी मिले और लेखक बड़े मजे से बैठकर शांति से उसे दृष्टा की तरह (state counter पर) देखता रहे-यह सुख यहीं नसीब हो सकता है।
………………………………………..

यह हिंदी शायरी मूल रूप से इस ब्लाग

‘दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान-पत्रिका’

पर लिखी गयी है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन के लिये अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की हिंदी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.अनंत शब्दयोग
कवि और संपादक-दीपक भारतदीप

एक दिन क्या पूरा महीना है मज़े लेने का – व्यंग्य


वैलंटाईन डे की चर्चा आजकल सुर्खियों में हैं। इसका कुछ लोग विरोध करते हैं तो कुछ नारी स्वतंत्रता के नाम पर इसे मनाये रखने के पक्षधर हैं। सही तो पता नहीं है पर कोई बता रहा था कि पश्चिम में वैलंटाइन नाम के कोई संत हो गये हैं जिनकी स्मृति में यह दिवस मनाया जाता है। हिंदी के गहन ज्ञान रखने वाले एक सज्जन ने बताया कि इसे ‘शुभेच्छु दिवस’ कहा जाता है। बाजार और प्रचार में इसे प्रेम दिवस कहा जा रहा है और निश्चित रूप से इसका लक्ष्य युवाओं को प्रेरित करना है ताकि उनकी जेब ढीली की जा सके।
आज से दस पंद्रह वर्ष पूर्व तक अपने देश में पश्चिम में मनाये जाने वाले वैलंटाइन डे (शुभेच्छु दिवस) और फ्रैंड्स डे (मित्र दिवस) का नाम नहीं सुना था पर व्यवसायिक प्रचार माध्यमों ने इसे सुनासुनाकर लोगोें के दिमाग में वह सब भर दिया जिसे उनके प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रायोजकों को युवक और युवतियों एक उपभोक्ता के रूप में मिल सकें।

मजेदार बात यह है कि वैलंटाईन डे को मनाने का क्या तरीका पश्चिम में हैं, किसी को नहीं पता, पर इस देश में युवक युवतियां साथ मिलकर होटलों में मिलकर नृत्य कर इसे मनाने लगे हैं। प्रचार माध्यमों का मुख्य उद्देश्य देश के युवा वर्ग में उपभोग की प्रवृत्ति जाग्रत करना है जिससे उसकी जेब का पैसा बाजार में जा सके जो इस समय मंदी की चपेट में हैं। आप गौर करें तो इस समय पर्यटन के लिये प्रसिद्ध अनेक स्थानों पर लोगों के कम आगमन की खबरें भी आती रहती हैं और प्रचार और विज्ञापनों पर निर्भर माध्यमों के लिये यह चिंता का विषय है।

बहरहाल हम इसके विरोध और समर्थन से अलग विचार करें। इस समय बसंत का महीना चल रहा है। बसंत पंचमी बीते कुछ ही दिन हुए हैं। यह पूरा महीना ही प्रेम रस पीने का है। जो कभी कभार सोमरस पीने वाले हैं वह भी इस समय उसका शौकिया सेवन कर लेते हैं। पश्चिम में शायद लोगों को समय कम मिलता है इसलिये उन्होंने आनंद मनाने के लिये दिन बनाये हैं पर अपने देश में तो पूरा महीना ही आनंद का है फिर एक दिन क्यों मनाना? अरे, भई यह तो पूरा महीना है। चाहे जैसा आनंद मनाओ। बाहर जाने की क्या जरूरत है? घर में ही मनाओ।

दरअसल संकीर्ण मानसिकता ने संस्कृति और संस्कारों के नाम पर लोगों की सोच को विलुप्त कर दिया। हालत यह है कि बच्चे शराब पीते हैं पर मां बाप को पता नहीं। बाप के सामने बेटे का पीना अपराध माना जाता है। सच बात तो यह है कि परिवार में अपने से छोटों से जबरन सम्मान कराने के नाम पर कई बुराईयां पैदा हो गयी हैं। कहा जाता है कि जिस प्रवृत्ति को दबाया जाता है वह अधिक उबर कर सामने नहीं पाती।

एक पिता को पता लगा कि‘उसका पुत्र शराब पीता है।’
पिता समझदार था। उसने अपने पुत्र से कहा-‘बेटा, अगर तूने शराब पीना शुरु किया है तो अब मैं तुम्हें रोक नहीं सकता! हां, एक बंदिश मेरी तरफ से है। वह यह कि जितनी भी पीनी है यहां घर में बैठकर पी। मुझसे दूसरे काम के लिये पैसे लेकर शराब पर मत खर्च कर। तेरी शराब की बोतल मैं ले आऊंगा।’
लड़के की मां अपने पति से लड़ने लगी-‘आप भी कमाल करते हो? भला ऐसा कहीं होता है। बेटे को शराब पीने से रोकने की बजाय उसे अपने सामने बैठकर पीने के लिये कह रहे हो। अरे, शराब पीने में बुराई है पर उसे अपने बड़ों के सामने पीना तो अधिक बुरा है। यह संस्कारों के विरुद्ध है।
पति ने जवाब दिया-‘याद रखना! बाहर शराब के साथ दूसरी बुराईयां भी आयेंगी। शतुरमुर्ग मत बनो। बेटा बाहर पी रहा हो और तुम यहां बैठकर सबसे कहती हो ‘मेरा बेटा नहीं पीता‘। तुम यह झूठ अपने से बोलती हो यह तुम्हें भी पता है। उसे अपने सामने बैठकर पीने दो। कम से कम बाहरी खतरों से तो बचा रहेगा। ऐसा न हो कि शराब के साथ दूसरी बुरी आदतें भी हमारे लड़के में आ जायें तब हमारे लिये हालात समझना कठिन हो जायेगा।’
इधर बेटे ने एक कुछ दिन घर में शराब पी। फिर उसका मन उचट गया और वह फिर उस आदत से परे हो गया। पिता ने एक बार भी उसे शराब पीने से नहीं रोका।
अगर आदमी की बुद्धि में परिपक्वता न हो तो स्वतंत्रता इंसान को अनियंत्रित कर देती है और जिस तरह अनियंत्रित वाहन दुर्घटना का शिकार हो जात है वैसे ही मनुष्य भी तो सर्वशक्तिमान का चलता फिरता वाहन है और इस कारण उसके साथ यह भय रहता है।
भारतीय अध्यात्म ज्ञान और हिंदी साहित्य में प्रेम और आनंद का जो गहन स्वरूप दिखता है वह अन्यत्र कहीं नहीं है। वेलंटाईन डे पर अंग्रेज क्या लिखेंगे जितना हिंदी साहित्यकारों ने बंसत पर लिखा है। बसंत पंचमी का मतलब एक दिन है पर बसंत तो पूरा महीना है। वैलंटाईन डे का समर्थन करने वालों से कुछ कहना बेकार है क्योंकि नारों तक उनकी दुनियां सीमित हैं पर जो इसका विरोध करते हैं उनको भी जरा बसंत पर कुछ लिखना चाहिये जैसे कवितायें और कहानियां। उन्हें बसंत का महात्म्य भी लिखना चाहिये। इस मौसम में न तो सर्दी अधिक होती है न गर्मी। हां आजकल दिन गर्म रहने लगे हैं पर रातें तो ठंडी हो जाती हैं-प्रेमरस में रत रहने और सोमरस को सेवन करने अनुकूल। किसी की खींची लकीर को छोटा करने की बजाय अपनी बड़ी लकीर खींचना ही विद्वता का प्रमाण है। वैलंटाईन डे मनाने वालों को रोकने से उसका प्रचार ही बढ़ता है इससे बेहतर है कि अपने बंसत महीने का प्रचार करना चाहिये। वैसे आजकल के भौतिक युग में बाजार अपना खेल दिखाता ही रहेगा उसमें संस्कृति और संस्कारों की रक्षा शारीरिक शक्ति के प्रदर्शन से नहीं बल्कि लोगों अपनी ज्ञान की शक्ति बताने से ही होगी।हां, यह संदेश उन लोगों को नहीं दिया जा सकता जिनको आनंद मनाने के लिये किस्मत से एक दिन के मिलता है या उनकी जेब और देह का सामथर््य ही एक दिन का होता है। सच यही है कि आनंद भी एक बोतल में रहता है जिसे हर कोई अपने सामथर््य के अनुसार ले सकता है। अगर आनंद में सात्विक भाव है तो वह परिवार वालों के सामने भी लिया जा सकता है। अंतिम सत्य यह है कि आंनद अगर समूह में मनाया जाये तो बहुत अच्छा रहता है क्योंकि उससे अपने अंदर आत्म विश्वास पैदा होता है। वैलंटाईन डे और फ्रैंड्स डे जैसे पर्व दो लोगों को सीमित दायरे में बांध देते हैं। इस अवसर पर जो क्षणिक रूप से मित्र बनते हैं वह लंबे समय के सहायक नहीं होते।
……………………………….

दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
कवि एंव संपादक-दीपक भारतदीप

अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका
लेखक संपादक-दीपक भारतदीप

आम पाठक को चाटुकारिता या चांटाकारिता से मतलब नहीं होता-आलेख


हिंदी ब्लाग लेखकों का एक समूह इस बात के लिस बहुत हाथ पांव मार रहा है कि अंतर्जाल पर हिंदी का लेखन और पठन पाठन बढ़े। इसके लिये नये ब्लागर के प्रवेश कई ब्लागर लेखकों ने उसके स्वागत में कमेंट रखने का सिलसिला जारी रखा है। देखा जाये तो स्थिति में धीरे धीरे बदलाव आ रहा है पर जिस गति से प्रगति होना चाहिए वह नहीं हो रही । दरअसल हिंदी इस विशाल भारत देश के उपभोक्ताओं मेें सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। बाजार अपने उत्पाद बेचने के लिये हिंदी भाषा को एक हथियार की तरह उपयोग करना चाहता है। इस देश में सात करोड़ इंटरनेट कनेक्शन हैं-इसका आशय यह है कि इनमें हिंदी बोलने और समझने वालों की संख्या निसंदेह अधिक है पर फिर भी अंतर्जाल के हिंदी लेखकों की पहुंच उन तक नहीं हैं। बड़ी बड़ी कंपनियां वहां अपना माल पहुंचा रही है, पर अंतर्जाल पर लिखे गये हिंदी के शब्दों से प्रयोक्ता अभी बहुत दूर है। हिंदी ब्लाग जगेत के अनेक ब्लाग लेखक अगर हिंदी में अपनी पैठ बनाने का प्रयास इसलिये कर रहे हैं क्योंकि वह भविष्य में अपने लिये संभावना देखते हैं। उन्हें ऐसा करना भी चाहिए क्योंकि आम प्रयोक्ता भी उनको पढ़ने के लिये लालायित हैं। मुश्किल यह है कि इन दोनों बीच संपर्क कायम करने के लिये कोई व्यवसायिक एजेंसी नहीं हैं और जो हैं वह केवल तात्कालिक लाभ के लिये लालायित हैं ओर उनके पास कोई दीर्घकालीन योजना नहीं है।

कल मीडिया से जुड़े दो लोगों ने हिंदी ब्लाग जगत में प्रवेश किया तो आज एक अभिनेता ने भी अपना ब्लाग लिखा। हिंदी ब्लाग जगत के अनेक ब्लाग लेखकों ने अपनी परंपरा का निर्वाह करते हुए टिप्पणियां लिखकर उनका स्वागत किया। प्रसिद्ध लोग हिंदी में ब्लाग बनायें या अंग्रेजी में उनको पाठक मिल जायेंगे पर हिंदी ब्लाग जगत के लिये उनकी कोई महत्वपूर्ण भूमिका तब तक नहीं बन सकती जब तक सर्वांगीण रूप से हिंदी अंतर्जाल पर स्थापित नहीं हो पाती।

अभी देश के लिये अंतर्जाल एकदम नया है। देश का एक बहुत बड़ा वर्ग अंतर्जाल से दूर है। फिर आम लोगों के लिये इसमें या तो शिक्षा है या सैक्स। अभी लोगों को यह जानकारी मिलना है कि उन्हें यहां पढ़ने को वैसा भी मिल सकता है जैसा कि बाहर। टीवी चैनल और अखबारों की खबरों से लेाग संतुष्ट नहीं हैं। फिर यथास्थितिवादी लोगों के हाथ में यह प्रचार माध्यम है जो थोड़े बहुत बदलाव की हवा से भी घबड़ा जाते हैं। कुछ अलग हटकर पढ़ने की चाहत हर आदमी में है पर अंतर्जाल पर वैसा लिखा जा रहा है उसको जानकारी नहीं है।

लोग माने या नहीं सच यह है कि अंतर्जाल पर लिखने वाले अनेक ब्लाग लेखक सच्चाईया लिख रहे हैं। वह ऐसे समाचार देते हैं जो बाहर नहीं मिलते। वह खुलकर ऐसे विषयों पर वाद-विवाद करते हैं जिनसे प्रचार माध्यम संस्कृति,संस्कार और धार्मिक सहिष्णुता के भय के कारण बचते हैं। समस्त प्रचार माध्यम सच से मूंह चुरा रहे हैं पर ब्लाग लेखकों उन पर अपनी राय बेबाक रख रहे हैं। आम आदमी अगर चाहता कि वह सच पढ़े और सुने तो उसे हिंदी ब्लाग पढ़ना चाहिए। उसे अपने बच्चों को भी पढ़ने के लिये भी प्रेरित करना चाहिए। आजकल की शिक्षा और प्रचार माध्यम बच्चों में चिंतन और मनन की चिंगारी पैदा करने में विफल हो गये हैं। आप थोड़ा गौर करें तो लगेगा कि पूरा समाज ही अंधी दौड़ में भागे जा रहा है और लोग रुक कर विचार करने के लिये तैयार नहीं हैं। वह किसी बदलाव का विचार भी नहीं करते क्योंकि उनके चारों तरफ शोर बचाया जा रहा है यह खरीदी, वह खरीदो, यह देखो, वह देखो।

समाचार पत्र पत्रिकायें भी समसामयिक विषयों पर सतही लेख (वह भी लेखन के अलावा अन्य कारणों से प्रसिद्ध लोगों के होते हैं)लोगों को पढ़ने के लिये प्रस्तुत कर रहे हैं। इनमें से कई लेखक तो अंग्रेजी में लिखने के कारण प्रसिद्ध हुए हैं और उनके अंग्रेजी में लिखे का अनुवाद प्रस्तुत किया जा रहा है। ऐसा लगता है कि हिंदी में नये लेखक पैदा होना ही बंद हो गये है। यह प्रचार केवल अपने बचाव के लिये बाजार अपना रहा है। हिंदी ब्लाग पर ऐसे लोग लिख रहे हैं जिनको पढ़ने पर पाठक किसी और को पढ़ना नहीं चाहेगा। वह पैदा कर सकते हैं हिंदी के पाठकों में विचार, चिंतन और मनन की चिंगारी जो बाहर कोई भी लेखक पैदा नहीं कर सकता। अध्यात्म और साहित्य की बात तो छोडि़ये समसामयिक विषयों पर भी ऐसे लेख समाचार पत्र पत्रिकाओं में पढ़ने को नहीं मिल सकते क्योंकि तमाम तरह के विज्ञापनों का बोझ उठाने वाले ऐसे गंभीर और प्रेरित करने वाले लेखों को अपने यहां स्थान नहीं दे सकते।

मुश्किल यह है कि हिंदी ब्लोग जगत को आगे लेने के इच्छुक अनेक लोगों के मन में केवल आत्मप्रचार का भाव है। यहां के अनेक लोगों ने बाहर जाकर केवल अपने ब्लाग का प्रचार किया। इससे उनको लाभ नहीं होना है क्योंकि यहां समूहबद्ध रूप से ही सफलता संभव है। हिंदी ब्लाग जगत में गुटबंदी के कारण इसमें बाधा आयेगी। प्रचार माध्यमों में अनेक लोगों ने स्वयं को ब्लाग लेखक के रूप में प्रचारित कर रखा है और वह अन्य किसी का नाम वहां नहीं लेतें। यहां गजब का लिखने वाले लोगों का नाम बाहर कोई नहीं लेता और ऐसा कर वह उन्हीं प्रचार माध्यमों की सहायता कर रहे हैं जिनको आगे इस ब्लाग जगत से चुनौती मिलने वाली है। यहां यह नहीं भूलना चाहिए कि आम पाठक की पसंद है समसामयिक विषयों पर गंभीर विचारोत्तेजक लेख, हास्य व्यंग्य, गंभीर और हास्य कवितायें, कहानियां तथा चुटकुले न कि उन्हें ब्लाग लेखकों की आपसी चाटुकारिता या चांटाकारिता।
दूसरी समस्या बड़े शहर के कुछ ब्लाग लेखकों का आत्म मुग्ध होना भी है। वह लोग मानकर चले रहे हैं कि हिंदी ब्लाग जगत की शुरूआत उन लोगों ने की है और वह अब सर्वश्रेष्ठ हैं ओर यही रूप सब जगह प्रचारित होना चाहिए। छोटे शहरो के ब्लाग लेखकों को तो केवल भीड़ की भेड़ की तरह समझा जा रहा है जबकि हकीकत यह है कि छोटे शहरों के अनेक लोग बेहतर लिख रहे हैं। अभी तक प्रचार माध्यमों में ब्लाग के नाम पर जिन लोगों के नाम आये हैं उनमें से ब्लाग लेखक कितनों को प्रभावपूर्ण मानते हैं यह एक अलग विषय है पर पिछले दिनों एक ऐजेंसी के कर्ताधर्ता की पत्रकार वार्ता का समाचार अखबारों में छपा उसमें वह ब्लाग लेखकों की बात तो कह रहा था पर किसी का नाम नहीं लिया। अगर पांच दस ब्लाग लेखकों के नाम लेता तो क्या बिगडता? मगर उसे तो केवल अपना प्रचार करना था। यह दिखाना था कि वह हिंदी ब्लाग जगत के लिये सक्रियता दिखा रहा है।

इसके बावजूद हिंदी ब्लाग जगत के लेखक आशावादी हैं क्योंकि यह शब्द अपना काम करेंगे किसी की चाटुकारिता नहीं। आगे वही ब्लाग लेखक प्रसिद्धि प्राप्त करेंगे जिनके लिखे में दम होगा। जहां तक वर्तमान प्रचार माध्यमों में प्रचार का प्रश्न है तो लोग आजकल अंतर्जाल पर ही अधिक विश्वास करते हैं और वहां जब धीरे धीरे किसी ब्लाग लेखक के शब्द प्रभावी काम करेंगे तो वह प्रसिद्ध हो जायेंगे। ऐसे में जिन लोगों को वास्तव में अंंतर्जाल पर हिंदी को स्थापित करना है उनको चेत जाना चाहिये। अगर वह चाहते हैं कि उनके प्रयासों की वजह से उनको प्रसिद्धि मिले तो उन लोगों को प्रोत्साहित करें जिनके आगे बढ़ने की संभावना है। जिनके शब्दों में प्रभाव है वह आज नहीं तो कल नाम करेंगे पर फिर वह किसी को अपना साथी नहीं बना

ब्लागवाणी जैसे हिट किसी के लिये भी सपना-आलेख


ब्लागवानी के लोग सही कहते हैं कि वह लोग शौकिया हैं पर उनको नहीं मालुम वह कई व्यवसायिक लोगों के लिये चुनौती बने हुए हैंं। इस समय हिंदी ब्लाग जगत में चार हिंदी फोरम ऐसे हैं जो सभी हिंदी ब्लाग को अपनी जगह दिखाते हैं। ब्लाग वाणी के अलावा तीन अन्य हैं-नारद, चिट्ठाजगत, और हिंदी ब्लागस। अधिकतर हिंदी ब्लाग लेखक लिख तो पूरी दुनिया के रहे हैं पर उनकी दुनिया इन चार के आपपास ही सिमटी हुई है। इनमें ब्लागवाणी सर्वाधिक लोकप्रिय हैं। अधिकतर हिंदी ब्लाग लेखक उस पर आकर ही दूसरे के ब्लाग को पढ़ना और उन पर टिप्पणियां लिखना पसंद करते हैं।

ब्लागवाणी के जन्म की एक कहानी है पर उसके बाद जो बदलाव हिंदी ब्लाग जगत में आये हैं उस पर अनेक लोगों की हिंदी ब्लाग जगत में दिलचस्पी जागी। वैसे हिंदी में ब्लाग लेखक की शुरुआत ऐसे लोगों ने की जो व्यवसायिक थे या फिर इसमें आगे व्यवसाय की संभावनाएं तलाश रहे थे। उनके साथ ऐसे लोगों का समूह भी जुड़ा जो पूरी तरह शौकिया था। ब्लाग वाणी के कर्णधार भले ही विनम्रता के कारण अपने आपको कर्णधार कहलाने की वजह कार्यकर्ता कहलाना चाहते हैं पर वह अनेक वेबसाईट और अपने स्वाजातीय फोरमों के कर्णधारों के लिये चुनौती है। ब्लागवाणी के कर्णधार विशुद्ध रूप से शौकिया है कम से कम यह बात हम मान सकते हैं क्योंकि वह किसी बदलाव से विचलित नहीं होते। उनको किसी एग्रगेटर या वेबसाइट का अभ्युदय विचलित नहीं करता पर ब्लागवाणी का आकर्षण कई लोगों के लिये ईष्र्या का विषय हो सकता है।

हिंदी में अन्य एग्रीगेटर और वेबसाईटें ब्लागवाणी की चुनौती का सामना करने के लिये तमाम उपाय कर रहीं हैं। यहां उनमें से किसी का नाम लेना ठीक नहीं है क्योंकि हर किसी को व्यवसाय करने का अधिकार है। मुद्दा यह है कि हिंदी में बरसों से चली आ रही परंपराओं के आधार लेखकों को मजदूर या मुफ्त का समझना है। हिंदी में लिखने वाले बहुत हैं पर जिसे रचना कहा जाता है उसकी कसौटी पर कितने खरे उतरते हैं-यह एक अलग विषय है। कई वेबसाईटें अपने यहा लिखने के लिये इनाम आदि देने की बात करती हैं तो कोई इशारों में सम्मान आदि देने की बात भी करती हैंं। दरअसल उन वेबसाईटों के कर्णधारों का मुख्य उदद्ेश्य अपने आपको प्रचारित करना है। लिखे लेखक और वह उसे छापकर संपादक या हिंदी भाषा के अंतर्जाल पर अभ्युदय करने वाले श्रेष्ठ व्यक्ति कहलाना चाहते हैं। इनमें कुछ लेखक भी हैं पर निरंतर लिखने के लिये उनके पास अवसर नहीं हैं पर नाम निरंतर चर्चा में बनाये रखने के लिये वह ऐसे प्रयास कर रहे हैं जिन पर सोचना पड़ता है।

ब्लागवाणी के कर्णधारों को अपने फोरम में कोई ऐसा बदलाव नहीं करना चाहिए जिससे ब्लागलेखक उनसे दूर जायें। उन्हें किसी दूसरी वेबसाईट की नकल भी नहीं करना चाहिए और अगर करते हैं तो उन्हें यह देखना चाहिए कि कहीं वह उनको ब्लाग लेखकों से दूर तो नहीं ले जायेगा। आज यह लेख लिखते समय इसके लेखक का ध्यान उनकी चिप्पियों की तरफ गया। वहां उसके ब्लाग से संबंधित कुछ भी नहीं था। चाणक्य, कबीर, रहीम, अध्यात्म तथा अन्य कई चिप्पियां गायब हैं। स्पष्टतः यह दूसरी वेबसाईटों से प्रेरित होकर किया लगता है यही कारण है कि अपनी श्रेणियों, लेबल और टैगों से आने वाले पाठकों के आने के मार्ग देखने पर पता चलता है कि तो वहां ब्लागवाणी का अस्तित्व नहीं दिखता जबकि उसका एक प्रतिद्वंद्वी फोरम सभी जगह दिखता है। यह लेखक कोई शिकायत नहीं करता क्योंकि इस अंतर्जाल पर किसी भी लेखक के शब्द ही अपने ब्लाग पर पाठको को लाने में सक्षम है। बाकी वेबसाईटें या तो अपने प्रिय ब्लाग लेखकों की चिप्पियां लगाये हुए हैं या फिर वह स्वयं ही उनके मालिक भी है। अगर ब्लागवाणी उनकी नकल कर रहा है तो वह गलती करने जा रहा है। यह उनकी अपनी मर्जी है पर लेखक का अपना यह एक विचार है। इस लेखक को तकनीकी ज्ञान नहीं है पर जो दिखता है उसे इसी सरल भाषा में लिखना जरूरी है। खासतौर से ब्लागवाणी के कर्णधार भी जब उसकी श्रेणी के उपेक्षित लेखकों की जमात से हो तब तो और भी जरूरी हो जाता है।
अनेक हिंदी वेबसाईटों के लिये ब्लागवाणी जितने पाठक पाना अभी भी एक ख्वाब हैं। यह अंतर्जाल है जहां अंतरिक्ष और हवा तक शब्दों घूम रहे हैं यहां जमीन पर चलने वाली पूंजीवादी और सामंतशाही के सहारे हिंदी में प्रसिद्धि पाना एक ख्वाब है। अंतर्जाल पर घूमने वाले टीवी चैनलों और अखबार के आधार पर ही यहां खोज करें यह जरूरी नहीं है। यही कारण है कि ऐसी मानसिकता वाले कुछ लोग ब्लागवाणी जैसा बनना चाहते हैं।

नारद फोरम की पुरानी साख है और वह परिदृश्य में अधिक नहीं होने के बावजूद लोगों की जुबान पर चढ़ा हुआ है। हिंदी ब्लाग्स भी अपनी छबि धीरे धीरे बना रहा है पर चिट्ठाजगत इस समय जमकर प्रयोग कर रहा है। ब्लागवाणी को ऐसे प्रयोगों से बचना चाहिए क्योंकि वह हिंदी ब्लाग जगत पर जितनी चमक बनाये हुए है उसे फिलहाल कोई चुनौती नहीं है। कई चमकदार चेहरे अपने लेखन और व्यवसायिक कौशल से वैसी ही स्थिति प्राप्त करना चाहते हैं जो उसके कर्णधारों को बड़ी सहजता से ही मिल गयी। ब्लाग वाणी के कर्णधार पहले पंगों और धुरविरोध के लिये जाने जाते थे। उनमें जोश और लिखने के प्रति निष्काम भाव था जो उन्हें ऐसी स्थिति मिल गयी। ब्लोगवाणी इस लेखक के उस पाठ को नहीं भूले होंगे जिसमे सभी ब्लाग लेखकों से समस्त फोरमों पर जाने का आग्रह किया गया था और उसके बाद ब्लागवाणी तेजी ने नारद पर हावी हो गया। नारद के कर्णधारों ने एक योजना के तहत ही उसे शुरू किया पर ब्लागवाणी के कर्णधारों ने तो केवल उसे चुनौती देने के लिये ही यह फोरम बनाया।

ब्लागवाणी दूसरे फोरमों या वेबसाईटों की नकल करे इसके लिये अन्य बेवसाईटें बहुत प्रयास कर रही हैं- इनामों की घोषणा और हिंदी का एक मात्र मसीहा बनने की होड़ लगी हुई है। कहीं फिल्म के कार्यक्रम जोड़े जा रहे हैं तो कहीं इनाम आदि की घोषणा की जा रही है। कहीं लिखना सिखाया जा रहा है। कहीं ब्लाग लेखकों द्वारा लिखे जा रहे विषयों पर उंगलियां उठाई जा रही है। यह सब प्रयास प्रयास ब्लागवाणी को पथ से विचलित करने के लिए है।
फोरमों से अलग वेबसाईटें अभी हिंदी ब्लाग को इस तरह दिखाती हैं जैसे वह कोई हल्की विधा हो पर आने वाले समय में यह सभी छांटछांटकर ब्लाग अपने यहां दिखायेंगी यह इस लेखक का दावा है। अभी पुरानी किताबों से पुराने लेखकों की रचनायें छापकर लोग अपना काम चला रहे हैं पर नये लोगों को चाहिए नये संदर्भों के नयी रचनायें और आम ब्लाग लेखकों के अलावा यह कोई और नहीं कर सकता। ऐसे अनेक ब्लाग लेखक हैं जो स्तरीय लिख रहे हैं। अंतर्जाल पर संक्षिप्तता का महत्व है और यहां गागर में सागर भरने वाले ही हिंदी में पुराने लेखकों से भी अधिक नाम कर सकते हैं।
ब्लाग लेखकों को दोयम दर्जे का कहने वालों पर आप हंस सकते हैं क्योंकि उनके लिखों में वैसे ही पूर्वाग्रह हैं जो हम हिंदी में बरसों से देखते आ रहे हैं। अंतर्जाल पर हिंदी को ले जायेंगे तो यही केवल http:// वाले ब्लागर ही न कि www वाले। www लेने के बाद लोग लिखना ही भूल जाते हैं केवल यही प्रयास करते हैं कि उनके विज्ञापन पर अधिक क्लिक हो। सभी वेबसाईटें अपनी चिप्पियों में इस ब्लाग लेखक की श्रेणियों, लेबलों और टैगों से दूरी बनाये हुए हैं और यह सोच समझकर किया गया है। फोरमों के बारे में तो मुझे कुछ नहीं कहता पर बाकी वेबवाईटें अगर इस ब्लाग लेखक को इतना हेय समझती हैं तो क्यों फिर उसके ब्लाग लिंक किये बैठी हैं। बहरहाल ब्लाग लेखकों को लिखने के लिये प्रेरित किया जा रहा है पर न तो उनको नाम देना चाहता है कोई और नहीं सम्मान। ब्लाग लेखकों को यह समझना चाहिए कि उनको अपना लिखा ही शिखर पर पहुंचा सकता है। ब्लागवाणी के कर्णधारों के बारे में मेरी राय यही है कि वह आम ब्लाग लेखकों की मानसिकता वाले हैं और इस वास्तविकता का उन्हों समझ लेना चाहिए। वैसे वह भी जमीन पर पूंजीवादी, सामंतवादी और रूढि़वादी लोगों से उपेक्षित लेखक हैं और वह दूसरों के कहने में आकर बहकेंगे नहीं यह कहा जा सकता है पर सजी सजाई वेबसाईटें देखकर उनके मन में विचार आते ही होंगे तक उन्हें यह सोचना चाहिए कि उन जितने पाठक अभी किसी के पास भी नहीं है। अगर बहके तो वह लोकप्रियता के उस शिखर से गिरेंगे जिसकी कल्पना ही उनके प्रतिद्वंद्वी करते है। ब्लाग लेखकों को तो चारों फोरमों के प्रति एक जैसा रवैया अपनाना चाहिए पर अन्य वेबसाईटों के प्रचार पर बहुत सोच समझ कर विचार करना भी आवश्यक है कि क्या वह वास्तव में ब्लाग लेखकों का सम्मान करती हैं कि नहीं। यहां उन्हें किसी का मोहताज नहीं होना चाहिए। यह अंतर्जाल एक खुला मैदान हैं जहां केवल लेखकों के शब्द ही पाठक जुटा सकते है। इसलिये अपने ब्लाग पर ही लिखते रहें। कितने लोगों ने आज तक पढ़ा यह मत सोचें आगे कितने पढ़ने वाले हैं इस पर विचार करें। ब्लागवाणी नहीं कई ब्लाग लेखक भी इन वेबसाईटों के लिये चुनौती बने हुए हैं हालांकि यह लेखक ब्लागवाणी पर फ्लाप ब्लागर है पर यह इसी कारण कि इधर उधर घूमते हुए ऐसी चीजे उसकी नजर में आती है जिससे लगता है ब्लागवाणी जैसे हिट किसी के लिये भी अभी तक सपना है। ब्लागवाणी के कर्णधार (उनके अनुसार कार्यकर्ता) कभी दूसरी वेबसाईटों को देखकर यह न सोचें कि उनकी चमक हमसे अधिक कैसे? उनके पास पाठक नहीं है और न वह आम ब्लाग लेखकों को महत्व देती है।

यह मूल पाठ इस ब्लाग ‘दीपक बापू कहिन’ पर लिखा गया। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की ई-पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप का शब्दज्ञान-पत्रिका

एक ब्लाग गायब हुआ तो दूसरा प्रकट हो गया-आलेख


अपने साफ्टवेयर की सहायता से वर्डप्रेस की पांच श्रेणियों को अपने यहां खिसकाकर ले जाने वाला ब्लाग परिदृश्य गायब हुआ तो दूसरा छठी श्रेणी से यही काम करते हुए प्रकट हो गया। 20 जुलाई को उसने इस लेखक के ब्लाग की एक पोस्ट ली है और उससे पहले और बाद में कोई पोस्ट नहीं ली। इस तरह का जो पहला ब्लाग था उसकी जानकारी एक सप्ताह पहले ही आयी थी और उस पर कुछ पाठ इसी ब्लाग पर लिखे गये थे। अब यह पता नहीं कि यह ब्लाग उसी विवाद के दौरान जानकारी के अभाव में बना या चूंकि इस ब्लाग से उस पर प्रहार हुए तो प्रतिकार स्वरूप उसने यह ब्लाग बनाया है। यह कोई एक व्यक्ति कर रहा है या कोई समूह है कहना मुश्किल है। यह कहना मुश्किल है कि इस ब्लाग पर लिखे गये पाठ उनकी दृष्टि में आ रहे हैं कि नहीं क्योंकि वह अपने यहां अनेक ब्लाग खींच लेते हैं और यह संभव नहीं है कि वह सभी पढ़ते हों। बहरहाल यह चालाकियों से भरा काम है और इसका मुकाबला चालाकी से ही किया जा सकता है। वह नाम छिपाना चाहते हैं तो हम अपने पाठों पर अपना नाम इस तरह दें कि उनके पाठक यह जान सकें कि उस पाठ को किसने लिखा है।

अंतर्जाल पर वैसे कोई बात तो पूरी तरह कह पाना मुश्किल है पर ऐसा लगता है कि लोगों के पास डोमेन की खरीद के कारण स्पेस हैं पर उनका उपयोग करने के लिये उनके पास कोई योजना नहीं है। वह नाम और नामा तो कमाना चाहते हैं पर इसके लिये जो प्रयास किये जाने की आवश्यकता है वह उनके बूते का नहीं है। अधिकतर वेबसाइट उतावली में बना लीं गयी कि हम कुछ करेंगे! पर क्या? इसकी कोई योजना नहीं है। डोमेन बेचने वालों की हालत के बारे में इन्हीं ब्लाग पर पढ़ा कि उनके व्यवसाय को वह ऊंचाई नहीं मिली जिसकी वह आशा कर रहे थे। ऐसे में हो सकता है कि जिनके पास डोमेन फालतू पड़े हों वह स्पेस भरकर यह प्रयास कर रहे हों कि शायद इससे कुछ बात बन जाये। कहने का मतलब यही है कि स्पेस भरने के लिये उन्हें कुछ चाहिए। फोटो और विडियो से भी कौन और कब तक काम चलायेगा? शब्द पढ़ने का अलग ही मजा है और अब उन्हें चाहिए शब्द! ऐसे में उनके पास इस दुनियां में अनेक भाषाओं को ब्लाग लेखक हैं जो अपनी अभिव्यक्ति और अनुभूतियों के साथ यहां मौजूद हैं। अपने हाथों को कंप्यूटर पर नचाते हुए अपना पसीना निकालकर शब्दों की रचना कर रहे हैं। उनसे अपने ब्लाग को साफ्टवेयर से सजाने में उनको भला क्या परेशानी?

यह मूल पाठ इस ब्लाग ‘दीपक बापू कहिन’ पर लिखा गया। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की ई-पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप का शब्दज्ञान-पत्रिका

ऐसे साफ्टवेयर बनाये गये हैं जिसमें लेखक का नाम अगर पाठ में नहीं हो तो पाठक को दिखाई नहीं देगा। इसलिये वह उस ब्लाग की संपत्ति बन जाता है जिस पर वह दिखाई दे रहा है। शब्दों के रचयिता मजदूर भला कहां देखने जाते हैं कि उनका उपयोग कैसा कर रहा है? वह तो अपने ब्लाग पर ही पाठकों की आमद देखकर यही सोचते हैं कि उनके ब्लाग पर ही आमद हो रही है। जब यहां ऐसे कारिस्तानी करने वाले ब्लागर है तो कुछ ऐसे भी हैं जो ऐसी चालाकियों की जानकारी संबंधित ब्लाग लेखकों तक पहुंचा कर अपने मजे लेते हैं। आशय यह हैकि यहां केवल लेखक होने से ही काम नहीं चलने वाला बल्कि अपने साथ ऐसे मित्र भी रखना जरूरी हैं कि जो अंतर्जाल पर अपने ब्लाग की देखरेख करते रहें।

कुल मिलाकर अब कहीं शिकायत लेकर जाने का विचार करना बेकार लगता है क्योंकि यह एक व्यवसायिक चालाकी है और उसका प्रतिकार किया जा सकता है। अभी कौनसा पैसा मिल रहा है बस नाम की एक ललक है और अगर कहीं पाठक ब्लाग का पाठ पढ़ते हुए लेखक का नाम पढ़ सकता है तो फिर विवाद में अपना समय नष्ट करने से कोई फायदा नहीं है। अपने कुछ तकनीकी ब्लागरों की राय अनुसार अपने ही ब्लाग पर अपनी पहचान लिखते जाना ही एक ठीक उपाय है । हर पाठ में अपने ब्लाग का नाम लिख कर लिंक लगाकर प्रदर्शित करना अच्छा उपाय है। यह लिंक ऐसे ही है जैसे अपनी पूंछ की कुर्सी बनाकर बैठना। जहां यह पाठ चालाकी से जायेगा वहां यही लिंक हमारे ब्लाग से उसको भी लिंक कर बताता है कि यह पाठ उस ब्लाग पर लिंक हुआ पड़ा है। अभी चालाक ब्लागरों की नजर में यह बात शायद नहीं आयी। यहां यह स्पष्ट करना जरूरी है कि यह काम कट पेस्ट कर नहीं किया गया क्योंकि उनके द्वारा ब्लाग को देखने की जानकारी कहीं नहीं मिल रही। अगर ऐसे ब्लाग लेखकों ने उसे मिटाने का प्रयास किया तो हर पैराग्राफ के नीचे अपनी पहचान लिखी जाये ताकि वह वह हम लोगों के ब्लाग के पाठ उठाने में कुछ मेहनत करें। वैसे वह लोग इतनी मेहनत करेंगे इसकी संभावना कम ही है।

आखिर वह ब्लाग परिदृश्य से गायब हो गया-आलेख


आज वह ब्लाग गायब हो गया जो दूसरों के ब्लाग के पाठ चालाकी से अपने यहां ले जाकर अपने यहां सजा रहा था। उसका तरीका यह था कि वह किसी भी ब्लाग के साइडबार लिये बिना ही पाठ इस तरह ले जाता कि किसी भी ब्लाग लेखक को पता ही नहीं लग सकता था कि उसका ब्लाग वहां देखा गया है। ब्लाग लेखक के नाम पर उसने तारीख इस तरह लगा दी थी कि अगर कोई पाठक पढ़े तो उसे पता ही नहीं चलेगा कि उसका लेखक कौन है? कितने पाठक पढ़ गये यह तो ब्लाग लेखक को पता तो तब चले जब उसे वहां अपने ब्लाग पहुंचने की जानकारी हो।

शायद वह कोई चालाक ब्लागर था जो पांच सामाजिक श्रेणियों में लिखे जाने वाले पाठों को अपने यहां दिखाकर हिट होना चाहता था। इस लेखक के कई ब्लाग/पत्रिकाओं के पाठ वहां पहुंच गये थे, पर इसका शिकार वह अकेला ब्लागर नहीं था। उस चालाक ब्लाग लेखक ने वर्डप्रेस के ब्लाग की पांच अंग्रेजी श्रेणियों की सैटिंग इस तरह की थी वह उनमें लिखा गया कोई भी पाठ वहां पहुंच जाता था। न कापी करने की जरूरत न पेस्ट करने की। एक साफ्टवेयर बनाया और बन गये ब्लागर। अपने आप पाठ आंधी की तरह वहां चले जा रहीं थे। कई अंग्रेजी ब्लाग लेखकों के पाठ भी वहां थे पर वह फिर भी लोगों से बचा रहता अगर अपने पाठों को उसकी श्रेणियों में ही भारत के हिंदी ब्लाग लेखक नहीं लिखते। वैसे वह किसी खास ब्लाग या लेखक को लक्ष्य कर रहा था यह तो नहीं कहा जा सकता पर वर्डप्रेस के ब्लाग उसकी चालों के घेरे में थे यह सत्य है। एक वरिष्ठ हिंदी ब्लाग लेखक की नजर में वह ब्लाग चढ़ गया और और उन्होंने चिट्ठाकार समूह की चर्चा में यह मुद्दा भेजा। इस लेखक की नजर उस पड़ी और फिर शुरू हुआ एक शाब्दिक युद्ध। एक ब्लाग लेखक ने यह सुझाव दिया कि अगर ब्लाग चोरी इसी तरह की हो रही है तो उस ब्लाग की निंदा करते हुए एक पाठ लिखा जाये जिससे वह विचलित हो जाये और फिर पाठ को हटा लें या फिर अपने पाठ पर ही अपने ब्लाग का लिंक लिखकर पाठकों को सचेत किया जाये। इस लेखक ने अपने वर्डप्रेस पर पहले ही अपना नाम और ब्लाग का पता देने का सिलसिला शुरू कर दिया पर इस सुझाव के बाद तो एक आदत बना ली। अलबत्ता निंदापरक शब्दों से बचते हुए केवल अपने निज प्रचार की जानकारी पाठ पर लिखना शुरू की। इसका परिणाम सामने आया और वह ब्लाग आज परिदृश्य में नहीं आया क्योंकि वह लेखक अपने ब्लाग पर किसी दूसरे का प्रचार सहन नहीं कर सकता था। उसके लिये कोई चेतावनी जारी नहीं की गयी पर वह सहन नहीं सकता था कि उसके ब्लाग पर कोई अपना प्रचार पाये।

क्या वह इस लेखक के द्वारा अपने पाठों पर अपना नाम तथा ब्लाग का पता देने से ही विचलित हो गया जो उसने अपना ब्लाग परिदृश्य से गायब कर लिया या अन्य कहीं भी उसकी ऐसी गतिविधियों की जानकारी ऐसे शक्तिशाली केंद्रों पर पहुंच गयी थी जो उस पर कार्यवाही करने में सक्षम थे और जहां से हटाया गया या वह स्वयं ही छोड़ गया। कहना कठिन है पर एक बात सत्य है कि उसके इस कृत्य के बारे में बहुत लोग जान चुके थे। हालांकि इस लेखक के अलावा किसी ने क्या कार्रवाई की यह पता नहीं पर ऐसा लगता है कि कुछ अन्य ब्लाग लेखकों ने उस पर दबाव बनाया है। आज लेखक के एक ब्लाग पर उस ब्लाग का लिंक मिला है जिससे पता लगता है कि उसने वह ब्लाग लिंक किया था। यह भी संभव है कि इस लेखक से लिंक करने में कोई ऐसी बात हो गयी हो जो उसका लिंक लग गया हो-यह तकनीकी बातें समझना कठिन है।

यह मूल पाठ इस ब्लाग ‘दीपक बापू कहिन’ पर प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
1. शब्दलेख सारथी
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप

उसकी यह चालाकी कोई अब छिपा विषय नहीं रह गया था। इस लेखक ने भले ही अपने ब्लाग पर उसका पता नहीं दिया पर हिंदी ब्लाग जगत में अनेक ब्लाग लेखक उस चालाक के बारे में जान गये थे। संभव है कुछ तकनीकी ब्लाग लेखकों ने उसकी गतिविधियों को रोकने का दबाव बनाया हो। उस ब्लाग का परिदृश्य से गायब होना यही दर्शाता है कि अंतर्जाल पर अगर चालाकियां चलेंगी तो उनके रोकने वाली ताकतें भी होंगी। यह समझना बेकार है कि हम किसी के साथ चालाकी कर उसका माल अपने यहां उठा लेंगे तो कोई पकड़ेगा नहीं। यह गलतफहमी जिनको हो वह दूर करे लें। किसी के साथ बदतमीजी करके भी बचने की संभावना अब नगण्य होती जा रही है। वैसे यह लेखक उन ब्लाग लेखकों को नहीं भूल सकता जिन्होंने पहले जानकारी दी और फिर उससे भिड़ने का मार्ग बताया।

आखिर में एक बात कहना चाहूंगा कि वह चालाक भी हिंदी प्रकाशन जगत की परंपराओं को ही निभा रहा था जिसमें लेखक को शब्दों का मजदूर समझा जाता है जहां नाम और नामा दोनों से ही उसे दूर रखने का प्रयास होता है शायद यही कारण है कि मेरा नाम अपने ब्लाग पर दिखने से अधिक अच्छा उसने अपना ब्लाग अंतर्जाल के परिदृश्य से गायब करना पसंद किया। आज सुबह और शाम को देखने पर भी नहीं दिखाई दिया। आगे वह क्या करेगा इसका अनुमान करना कठिन है। इस बारे में शेष चर्चा फिर कभी।

ब्लाग के पाठों पर ही अपनी पहचान लिखनी होगी-आलेख


आज मैं एक ब्लाग लेखक का ब्लाग पड़ रहा था जिसमें ब्लाग चोरों के साथ कुछ सहानुभुति दिखाने का आग्रह था। आशय यह कि चोरी होगयी तो क्या बात है? आपका लिखा कोई तो पढ़ रहा है इस पर संतोष कर लो। मुझे ताज्जुब हुआ। हालांकि वहां अनेक ब्लाग लेखकों ने अपनी असहमति दर्ज करायी थी। मुझे ऐसे विचारों पर हैरानी होती है।

पिछले दिनों ब्लाग चोरी को लेकर हुई चर्चा में मुझे आज श्री अमित गुप्ता की सलाह पर यह विचार आया कि बजाय लड़ने भिड़ने के मैं अपने संपादकीय कौशल का उपयोग करूं। अपने पत्रकार गुरूजी की याद करते हुए मैंने तय किया कि न पीछे हटूंगा, न लड़ूंगा बल्कि अपने लिखने पर ही डटा रहूंगा।

मेरे वर्डप्रेस की अनेक पोस्टें एक ऐसे ब्लाग पर जा रही हैं जिसने मुझसे पूर्वानुमति नहीं ली। मुद्दा केवल यही नहीं है। मुझे हैरानी इस बात की है कि वहां केवल पाठ ही जाता है ब्लाग और उसके साइडबार वहां नहीं दिखते। वहां अगर कोई जाकर दस बार पड़े या हजार पर मेरे पास उसका व्यूज नहीं आयेगा। मेरा नाम पाठक पूरा नहीं पढ़ जायेगा। एक ब्लाग पर कितनी मेहनत होती है सब जानते हैं। मेरे को यहां एक धेला भी नहीं मिल रहा। अगर मैं यहां लिख रहा हूं तो अपने मित्र लेखक ब्लागरों की सतत प्रेरणा से और पाठकों की रुचि को देखकर। लोग छिपाते हैं पर मैं साफ कहता हूं कि मैं नाम का भूखा हूं पर इसके लिये कोई छलकपट नहीं करता। अपनी मेहनत और बुद्धि का उपयोग करता हूं। मेरे एक सहृदय मित्र ने मुझसे पूछा कि ब्लाग लिखने में परिश्रम कहां होता है तो मैंने उनको उत्तर दिया था कि स्वेटर बुनने वाली औरत क्या मेहनत नहीं करती? यहां केवल लिखना ही नहीं होता बल्कि अपने दोनों हाथों की उंगलियां नचानी पड़ती हैं और उस समय कुर्सी पर कोई आराम से बैठा नहीं होता। ऐसी में बैठकर नहीं लिखता। कई बार शरीर से पसीना भी आ जाता है। यानि ब्लाग लिखना बौद्धिक और शारीरिक दोनों प्रकार के श्रम से ही संभव है। मैंने अपने मित्रों के ब्लाग भी लिंक किये हुए हैं तो इसलिये कि उनके लिये भी पाठक आयें। यहां तो हर तरफ से मेरे लिये अलाभकर स्थिति है।
मगर यह मामला अभी थमा नहीं है। मैंने अमित गुप्ता जी के कहने पर यह निर्णय लिया है कि मेरा पाठ जहां वहां सीधा जा रहा है तो क्यों न उसमें अपने प्रचार की सामग्री डाल दूं। मैंने अपने एक पाठ में अपने ही दूसरों ब्लाग के लिंक दिये थे और वह वहां दिख रहे थे तब यही विचार आया था पर आज श्री अमित गुप्ता की सलाह के बाद मेरा विचार पुष्ट हो गया। इसलिये आज से वर्डप्रेस के ब्लाग पर पाठ के बीच या अंत में मेरा नाम और ब्लाग का पता तो रहेगा ही। उस ब्लाग लेखक से इतनी मेहनत नहीं होगी कि वह उसे काटता फिरे। वह केवल अपने साफ्टवेयर के भरोसे है।
इस मामले में यहां बता दूं कि उसके पास वर्डप्रेस की पांच अंग्रेजी की श्रेणियां हैं जिससे वहां ब्लाग का पाठ सीधा पहुंचता है-अगर इस पांच में कोई नहीं है तो वह ब्लाग वहां नहीं जायेगा यह मैंने प्रयोग कर दिख लिया है। फिर मुझे मामला लड़ने से अधिक इसे जारी रखने पर ही अधिक है। मेरे ब्लाग अंग्रेजी ब्लाग के बीच में कहीं चमकें इसमें इतना बुरा भी नहीं लगता।
हां, इस बात से एक सबक मैंने सीख लिया है कि यहां ऐसे काम नहीं चलेगा कि जैसे किसी अखबार में सामग्री भेजने के लिये उसके ऊपर ही अपना नाम लिख दिया। ऐसे ही तो मैं ब्लाग पर भी कर रहा था (वहां तो पहले से ही शीर्षक में ही नाम लिखा हुआ है) और कहीं बीच में नाम नहीं लिख रहा था। आज से सभी ब्लाग चाहे वह ब्लाग स्पाट के हों या वर्डप्रेस के उनमें कहीं न कहीं नाम जरूर लिखूंगा। वैसे अन्य ब्लाग लेखक भी चाहें तो इस पर विचार कर लें। कल मेरे दिमाग में श्रेणियों की जगह टैग से काम चलाने का विचार भी आया था पर आज तय किया कि मुझे अपने लिखने में ही कोई प्रयोग करना चाहिए। वैसे श्री अमित गुप्ता ने लिखा ‘ यदि एचटीएमएल (HTML) और जावास्क्रिप्ट (Javascript) की जानकारी रखते हैं तो और भी अधिक मज़ेदार पंगे ले सकते हैं!! ;)” पर मैंने अपने हिसाब से अपना विचार बना लिया। मेरी अंतर्जाल के सभी लेखकों -चाहे वह वेब साइट पर हो ब्लाग पर-को सलाह है कि आगे और भी ऐसे मामले आयेंगे इसलिये अपनी पहचान को अपने पाठों में ही स्थापित करते रहें क्योंकि वह आपका हथियार है जिस पर मित्रों और विरोधियों के साथ उसे उठाने वालों की भी नजर रहती है। फिलहाल मेरी दिलचस्पी इस मामले में अधिक नहीं है पर मुझे एक बात अच्छी लगी कि हिंदी ब्लाग जगत में सक्रिय ब्लागरों के प्रयास अनुकरणीय है और मुझे नहीं लगता कि किसी अन्य भाषा में ऐसा होगा। वरिष्ठ ब्लाग लेखक श्री रविशंकर श्रीवास्तव ने यह मुद्दा चिट्ठाकार समूह में भेजा था और मेरे विचार से उसके बाद जो मैंने आत्म मंथन किया उससे कुछ सीखा है। मैं उनका भी आभारी हूं।

नोट-यह इस ब्लाग “दीपकबापू कहिन” पर लिखी गयी मूल रचना है। इसे यदि कहीं अन्यत्र ब्लाग के शीर्षक और लेखक के नाम के बिना देखें तो यहां सूचित करें।
दीपक भारतदीप, लेखक एवं संपादक

अंतर्जाल पर चालाकियों का मुकाबला तो करना ही होगा-आलेख


अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ही अंतर्जाल लेखक ब्लागरों की शोषण की तैयारी पूरी हो चुकी है। इस काम में जुट रहे हैं वह ब्लाग लेखक जो इसकी तकनीकी विद्या में पारंगत है। अब यह मुद्दा नहीं है कि वह किस भाषा का है बल्कि उसके पाठ की श्रेणी के आधार पर ही उसका मूल्यांकन होगा। कल अपने पाठों की चोरी की चिंता मुझे इतनी नहीं थी जितनी यह जिज्ञासा यह जानने की थी कि यह हो कैसे रहा है? मेरे पाठ सीधे ऐसे कहीं और पहुंच रहे हैं जैसे यहां हिंदी फोरम में पहुंचते हैं। एक प्रायोगिक पोस्ट डाली और उसे वहां पहुंचने नहीं दिया।

अंग्रेजी का ब्लाग था और उसने मेरे पाठ की कापी नहीं की बल्कि सीधे वह ऐसे ही वहां पहुंच रहा था। उसका लक्ष्य मेरा ब्लाग नहीं बल्कि मेरी श्रेणियां थीं जो अंग्रेंजी में थी। मैं कहूं कि मेरा ब्लाग यहां कैसे आया तो वह कहेगा अपने आप! इसका मेरे पास कोई जवाब नहीं है सिवास इसके कि मैं उन श्रेणियों को बंद कर दूं जिनसे वह ब्लाग वहां जाता है। मगर अंग्रेजी के ब्लागर क्या करेंगे? उनमें से कई लोगों को पता नहीं है कि ऐसा भी हो रहा है। यह तो हिंदी के वरिष्ठ ब्लागर इधर उधर धूम रहे हैं तो बता दिया। उस ब्लागर को ढूंढना बेकार है क्योंकि उसने अपना साफ्टवेयर बना लिया है और उसका ब्लाग इसी कारण ही चल रहा है। कहने का तात्पर्य यह है कि अंतर्जाल पर मेहनत से लिखने वालों के लिये सफलता संदिग्ध है क्योंकि वह एक जगह लिखेंगे पर चालाक ब्लागर बीस ब्लागरों के ब्लागर को अपने यहां खींच लेंगे। इसका कोई उपाय नहीं है कि इसका प्रतिकार कैसे किया जाये।

जब यह अंग्रेजी वालों के हाल हैं तो हिंदी वालों के तो वैसे भी बुरे हैं। यहां तो लिखने वालों को एक मजदूर ही माना जाता है। वैसे शुरुआत में अपनी सदाशयता से मैं सभी को भला समझ रहा था और अधिकतर हैं भी पर चालाक लोगों की चमक अब दिखने लगी है। मैंने यह देख लिया है कि कई लोग वेबसाइट बनाकर हिंदी के ब्लाग लेखकों को ऐसे समझ रहे हैं जैसे कि डौमेन के पैसे उन्होंने यहां ब्लाग लेखकों को दिये हैं।

लगातार इधर उधर देखते हुए एक बात साफ लगी कि अब कहीं और लिखने के बजाय अपने ब्लाग पर ही लिखो। किसी अन्य को अपने लेख वगैरह भेजने की उदारता दिखाना बेकार ही लगता है। यह अंतर्जाल है यहां अगर कोई ब्लागर हिट हो गया तो यह वेबसाइट वाले उससे याचना करेंगे कि हमारे ब्लाग लिंक कर दो हमारा प्रचार हो जायेगा। यह तभी संभव है कि जब अपने ही ब्लाग पर लिखते रहेंगे। वैसे इन वेबसाईट वालों से संपर्क बनाये रखना ठीक रहेगा क्योंकि यह घूमते घामते बहुत हैं और चिट्ठाकार समूह की चर्चा में कई जानकारियां दे जाते हैं पर अब वह ब्लाग स्पाट और वर्डप्रेस के ब्लाग के स्वरूप का ज्ञान भूल चुके हैं। और अगर आप अपने ब्लाग लिखने में कोई परेशानी अनुभव कर रहे हैं तो आप अपने जैसे ब्लाग लेखक की मदद लें वेबसाइट वालों ने बहुत थोड़े दिन इन पर काम किया और फिर डोमेन लेकर अपना काम करने लगे। उसके बाद ब्लागस्पाट और वर्डप्रेस में बहुत बदलाव आयें हैं।

आज तो लगभग मैंने मान ही लिया है कि ब्लागर का मतलब है बिना डोमेन लेकर लिखने वाला। गूगल और वर्डप्रेस अपने ब्लागों पर इसलिये ही अधिक सुविधायें ला रहे हैं क्योंकि वह जानते हैं कि असली लेखक यहीं मिलेंगे जो पैसा खर्च कर डोमेन नहीं लेंगे। मेरे ब्लाग को अपनी तरफ खींचने वाले वेबसाइट को मैंने देखा और समझ में आ गया कि यह सब चलता रहेगा। उसकी काट मैंने निकाल ली है। अब वर्डप्रेस की श्रंेणियों की बजाय टैगों का उपयोग करूंगा। श्रेणियां मुख बन जाती हैं और टैग पूंछ है। वैसे भी श्रेणियों से अब अधिक लाभ नहीं था। वह वेबसाइट इस तरह बनी है कि अनेक अंग्रेजी ब्लाग अपने आप ही वहां पहुंच रहे हैं। अब यह कहना कठिन है कि उसके पीछे इस देश का कोई आदमी है या बाहर का। बहरहाल मौलिक लेखकों को इससे विचलित नहीं होना चाहिए। अगर जिज्ञासा नहीं होती तो मैं अपना समय नष्ट नहीं करता पर मुझे लगा कि आखिर देखा जाये कि मामला क्या है? तब समझ में आया कि अंतर्जाल की चाालकियों का यह एक नमूना है अब इसका प्रतिकार कैसे हो सकता है यह देखा जायेगा।

इसी दौरान मुझे अपने हिंदी ब्लाग जगत में भी आगे ऐसे ही होने की संभावना भी लगी। हालांकि यह काम अभी बड़े प्यार के साथ हो रहा है कि आओ यार यहां लिखो, तो मजा आयेगा।’ कई लोग अपने लिंक पकड़ा देते हैं। नारा यह हिंदी को अंतर्जाल पर स्थापित करना है। यह उनके सब नाटक हैं वह हमसे लिखवाकर फिर अपने नाम इनामों और सम्मान के लिये भिजवायेंगे। यहां जिसके लिये लिखो वह अपना नाम संपादक या माडरेटर के रूप में प्रमुखता से प्रचारित करता है पर अपने साथ खड़े आदमी को वह ऐसा दिखाता है जैसा मजदूर हो। यहां हिंदी ब्लाग जगत में कुछ लोग तो केवल नाम और सम्मान के लिये चाालकियों से काम ले रहे हैं। ऐसे में बेहतर यही है कि यहां वहां लिखने की बजाय अपने ब्लाग पर ही ताकत लगायी जाये।

अपने मित्रों और पाठकों यह बताने के लिये यह मैं लिख रहा हूं कि इस मामले से परेशान होने की जरूरत नहीं है और अब मेरा ब्लाग वहां नहीं जा पायेगा और जो चले गये उनकी वापसी अब मुश्किल है और यही एक विचार का विषय है। जिस पर आगे देखा जायेगा। अगर इस पर कुछ किया जा सकता है तो वह गूगल या वर्डप्रेस पर शिकायत कर ही किया जा सकता है पर वहां अंग्रेजी में शिकायत भेजना मुझे आता नहीं है। किसी से लिखवा लाऊंगा और फिर टाईप कर भेज दूंगा। उसे मेरे ब्लाग रखने का हक नहीं है शायद गूगल और वर्डप्रेस इससे सहमत हों। वैसे मैं इसे चोरी नहीं बल्कि चालाकी कहता हूं अब यह पता नहीं है कि इसे अपराध की श्रेणी में रखना चाहिए कि नहीं।
बहरहाल एक बात साफ है कि मौलिक और साहित्यक ब्लागर अपने ब्लाग पर ही अधिक मेहनत करें क्योंकि अगर वह उसके दम पर पाठक अधिक जुटाने में सफल हुए तो अपने आप ही लोग उनके पीछे चक्कर लगायेंगे नहीं तो वह अपना लिखा लेकर दूसरों के चक्कर लगाते रह जायेंगें।
………………………………………………….

दीपक भारतदीप
लेखक संपादक

आखिर उसने इस ब्लाग के पूर्व पाठ की कापी क्यों नहीं की-आलेख


उसने कल मेरा इसी ब्लाग पर लिखा गया आलेख पढ़ा और इसलिये उसने उसकी कापी नहीं की क्योंकि इसमें उसी पर आक्षेप किया गया था। इसका मतलब साफ है कि वह एक सक्रिय ब्लाग लेखक है। उसने मेरे पाठ की कापी अपने ब्लाग पर रखकर एक तरह से अपराधिक कृत्य किया है। वह शायद अनुमान नहीं कर सकता कि मैं उसे ढूंढ लूंगा। उसे कोई अधिकार नहीं है कि मुझे पैसे का भुगतान किये बिना अपनी वेबसाईट पर मेरे पाठ रखे।

उसने मेरे कल तीन ऐसे ब्लाग की पोस्टें कापी कीं जो हिंदी के ब्लाग एक जगह दिखाये जाने वाले फोरमों नारद, चिट्ठाजगत और हिंदी ब्लाग पर ही दिखते हैं ब्लागवाणी पर नहीं। इनके नाम हैं साहित्य पत्रिका, अभिव्यक्ति पत्रिका, और अनुभूति पत्रिका। इन तीनों के नाम मैं अक्सर बदलता रहता हूं और कल ही इनका यह नाम रखा था, पर वह इनसे पहले से ही पाठ उठा रहा है। इन पर मैं कभी कभी अपनी पुराने पाठ रखता हूं। जो 12 ब्लाग सभी फोरमों पर दिखते हैं उन पर अपनी नये पाठ रखता हूं। कल के व्यूज देखने से पता चलता है कि उसने नारद और चिट्ठाजगत से ही यह ब्लाग देखे हैं। वह इन्हीं फोरमों से यह कापी करता होगा क्योंकि ब्लागवाणी से उसे पकड़े जाने का भय भी है। ब्लागवाणी पर पसंद का बटन किसी भी कंप्यूटर से एक बार ही दबता है और यह संदेह पैदा करता है कि कहीं वहां उसकी पकड़ न हो। नारद और चिट्ठाजगत से उसे ऐसा भय नहीं है। मतलब वह पुराना आदमी है और यहां से पूरी तरह जानकार है।

सवाल यह है कि उसने विनय प्रजापति ‘नजर’ और मेरे ब्लाग से ही कापी इस क्यों की? इसका उत्तर यह है उसमें साहित्य जैसे विषय होते हैं जो कि आम पाठक के लिये एक अच्छी सामग्री होती है। उसका यह ब्लाग किसी फोरम पर नहीं है। उसने डोमेन लिया है और वह पैसे कमाना चाहता है। वह यहां भी सक्रिय है एक सभ्य ब्लागर के रूप में। उसकी कार्यशैली को मैं जानता हूं उसे इस पाठ के माध्यम से यही समझा रहा हूं।
इससे साहित्यक ब्लाग लेखक हताश होंगे। डोमेन के पैसे का भुगतान तो लोग कर रहे हैं पर हमारे पाठों को वह फ्री का माल नहीं समझ सकते। यह अपने ब्लाग लेखकों और मित्रों को बता दूं यहां डोमेन होना या फ्री ब्लाग होना कोई मायने नहीं रखता। यहां महत्व है लिखे गये विषय का! चुराने वाले तो वेब साइट से भी चुरा सकते हैं और ब्लाग से भी! वह मुझसे चिढ़ा हुआ है और फायदा भी उठाना चाहता है। उसने पेैसे खर्च कर डौमेन तो ले लिया पर लिखे क्या? ताउम्र छलकपट में निकाल दी। लिखने के लिये सरल हृदय होना आवश्यक है। उसने ब्लाग बनाया पर लिखता क्या होगा? उसने विनय प्रजापति ‘नजर’, अचेत, रेवा स्मृति तथा मेरे साहित्यक पाठों की कापी अपने यहां रखी क्योंकि वह ऐसा नहीं लिख सकता।
वह अपने कमाने के लिये मेरा मुफ्त में उपयोग नहीं कर सकता है। मेरे एक पाठ की कीमत है 2500 रु.। उसे अधिक लग सकती है। वह कह सकता है कि यह तो फालतू पड़ी थी। नहीं, उसे यह बात समझनी होगी कि शोरुम में सोने के अनेक कीमती गहने पड़े रहते हैंं पर उससे उनकी कीमत कम नहीं हो जाती। मेरे उसने ढाई लाख रुपये से अधिक के पाठों की कापी की है और उसका भुगतान वह कर नहीं सकता। अगर कोई उस ब्लाग को देखेगा तो कहेगा कि यह तो दीपक भारतदीप का ब्लाग है। वह मेरे नाम को भी भुनाना चाहता है। भले ही फोरमों पर मुझे उस जैसे हिट नहीं मिलते पर आम पाठक की पहुंच मेरे ब्लाग पर बढ़ती जा रही है इसलिये वह मेरे नाम को भी लिख रहा है। यह उसकी चाल है। वह कथित रूप से इन फोरमों पर हिट ब्लागर ही हो सकता है। वह तकनीकी ब्लागर नहीं हैं पर प्रयोक्ता के रूप में वह इसका उपयोग अच्छी तरह जानता है।

उसकी सक्रियता का प्रमाण यह है कि कल उसने मेरे पाठ को अपने कापी कर अपने यहां चिपकाने का काम नहीं किया। आज मेरे कमेंट को माडरेट नहीं कर रहा है। शायद वह अपने उस ईमेल को भी नहीं खोलता होगा जिससे यह ब्लाग संबंद्ध है। वह देख चुका है कि इस पर बवाल मच रहा है। मैंने तकनीकी मित्रों से सलाह की है उनका कहना है कि उसे ढूंढना कोई मुश्किल काम नहीं है। मैं गुस्से में हूं पर अपना विवेक कभी नहीं खोता। यहां अनेक ब्लाग लेखकों ने मुझे कभी न कभी सहयोग और प्रेरणा दी है इसलिये नहीं चाहता कि किसी को इतना मानसिक अधिक आघात पहुंचा दूं कि फिर मुझे पैर वापस खींचने का अवसर ही न रहे। यहां अनेक ब्लाग लेखक है, और पिछले पौने दो वर्षों से अनेक ब्लाग लेखकों से मेरी मित्रता है और करीब करीब सभी सहृदय हैं। कई तो बहुत भोले हैं और मुझे उनके किसी की चाल में फंसने पर दुःख होता है। जिस ब्लाग लेखक पर संदेह है उसे पता नहीं क्यों मैं शुरू से संशय से देखता आया हूं। वह सक्रिय ब्लाग लेखकों है पर उसने टिप्पणी अधिक से अधिक तीन बार दी होगी और उसके प्रिय विषय देखकर मुझे यह समझते देर नहीं लगती कि बेकार की बातें भी कर सकता है।

किसी भी ब्लाग लेखक का पाठ कापी कर अपने ब्लाग पर रखना अपराधिक कृत्य है। इसके लिये उसकी पूर्व अनुमति आवश्यक है।
दीपक भारतदीप, लेखक और संपादक

आज मैं राजीव तनेजा जी की शिकायत पर उस ब्लाग पर गया जहां उनकी कहानी कापी कर रखी गयी थी। उसका भी मैंने विश्लेषण किया तो लगा कि अधिक से अधिक दो लोग ही ऐसे हैं जो ऐसा काम कर रहे हैं। उस पर जो देखकर आया उसे पर आगे लिखूंगा। हां, इतना तय है कि यह ब्लाग पर साहित्य लिखने वाले ब्लाग लेखकों को हतोत्साहित करने वाला कदम है। वैसे अगर नारद और चिट्ठा जगत के पास ऐसा कोई साफ्टवेयर हो कि पता चले कि कल मेरे इन तीन ब्लाग को किस ईमेल से देखा गया तो पता चला सकता है कि वह कौन है क्योंकि कुछ लोगों के पास ऐसे साफ्टवेयर हैं जिससे ईमेल से फोन नंबर पता किया जा सकता है-ऐसा । कल मेरे ब्लाग पर वहां से दो-दो व्यूज आये उनमें एक तो सहृदय ब्लाग लेखक अपनी टिप्पणी दे गये। इसका मतलब दूसरा देखने वाला ही संदेह के घेरे में हो सकता है। अधिक व्यूज होते तो मैं नहीं कहता। वैसे एक बात और है कि वर्डप्रेस के ब्लाग कम व्यूज ही बताते हैं इसलिये मैं इस पर दावे से कुछ नहीं कह सकता कि अन्य व्यूज नहीं होंगे। मै ऐसे ही किसी का नाम नहीं लूंगा जब तक मुझे कोई प्रमाण नहीं मिलेगा। बाकी अभी मैं उसकी गतिविधियों पर नजर रखे हुए हैं उसे रोकना तो होगा ही नहीं तो यहां मौलिक लेखक करना बेकार ही लगने लगेगा।

लेख प्रकाशित करने के चिट्ठकार समूह की चर्चा देखी तो पता चला कि आई डी तो ढूंढ निकाला है। नाम कुछ अंग्रेजी में है पर इससे क्या? वह हिंदी जानता है या कोई ऐसा उसका सहायक है। उसने कल मेरी पाठ की कापी नहीं की इसका आशय यह है कि उसका मतलब वह समझ गया है। वैसे जिस ब्लाग लेखक पर मेरा संदेह है वह न हो तो अच्छा ही है। कम से कम मुझे इस बात की प्रसन्नता होगी कि कि हमारे अपने लोगों पर कभी कोई ऐसा आक्षेप नहीं करेगा।

इसे ब्लाग के पाठ की चोरी कहें या चालाकी-आलेख


आज एक वरिष्ठ ब्लाग लेखक ने चिट्ठाकार समूह की चर्चा के सूचित किया कि एक ब्लाग चोर और नजर आया है। ऐसी चर्चाएं पहले भी होती रही हैं और जो मेरे सामने आया है उसे मैंने जाकर देखा है। आज जब देखने गया तो पता लगा कि मेरे ही ब्लाग से पाठ उठाकर वहां रखे गये हैं।
अब सवाल यह है कि इसे चोरी कहें या चालाकी! मेरे साथ विनय प्रजापति ‘नजर’ तथा एक अन्य ब्लाग लेखक के भी पाठ वहां रखे गये थे। यह बात इसलिये पता लगती है कि उसमें posted by से पता लग रहा था कि किसका ब्लाग है। विनय प्रजापति ‘नजर’ तो हर पोस्ट के नीचे अपना नाम रख देते हैं और आजकल मैं भी अपने पाठों के नीचे अपना नाम लिख देता हूं। इस तरह वहां मेरा नाम तो दिख रहा पर तारीखों की सैंटिंग इस तरह की गयी है कि posted by के बाद नाम पूरा नहीं दिखाई देता पर पाठों की कापी बड़ी चालाकी से की गयी है कि अगर कोई दावा करे तो कहा जायेगा कि हमने तो केवल कापी उठाई है और ऐसा तो बहुत लोग कर रहे हैं। वैसे इस संबंध में कानून है कि आप किसी से पूछे बगैर किसी का पाठ इस तरह कापी कर नहीं ले जा सकते पर संभवतः अगर ‘साभार’ कहकर उठाया जाता है तो उस पर कार्यवाही नहीं की जा सकती। फिर उस ब्लाग पर हमारा नाम है मतलब चोरी कहना कठिन होगा और उसकी शिकायत करने पर सकारात्मक परिणाम मिलेगा या नहीं यह अनुमान भी नहीं किया जा सकता है। यह अलग बात है कि नाम चालाकी तारीखों के पीछे छिपाये गये हैं।
मैंने अपने ब्लाग देखे। मेरे तीन ब्लाग ऐसे हैं जिन पर मैं अपनी पुराने पाठ ही रखता हूं और जो केवल नारद और चिट्ठाजगत पर दिखते हैं। मेरे 12 ब्लाग ऐसे है जो सभी फोरम पर दिखते हैं और उन पर मैं अपने नये पाठ रखता हूं। एक ब्लाग तो ऐसा था पर एक अन्य ब्लाग जिस पर ताजा पोस्ट थी और वह केवल नारद से देखा गया था वही दिखाई दे रही थी। इसका आशय यह है कि नारद से ऐसे ब्लाग उठाये गये हैं-यही प्रतीत होता है।
यह करतूत किसी बाहरी आदमी की नहीं प्रतीत होती और हमारे बीच में से ही ब्लाग लेखक की सक्रियता इसमें दिख रही है। आजकल डौमेन लेना सस्ता और सरल हो गया है और इसकी पूरी संभावना है कि ब्लाग के नशेड़ी ब्लाग लेखकों ने ऐसे कई डोमेन ले लिये होंगे पर लिखने से वह लाचार अपने को पाते हैं सो चमकने के लिये छद्म नाम से पहले ब्लाग बनाते थे अब डौमेन लेकर वेबसाइट बनाने लगे हैं। चालाकी इसमें यही की गयी है कि कल को कोई ब्लाग लेखक अपने पाठ के उपयोग पर आपत्ति कर कोई दावा करे तो यही जवाब मिलेगा कि आपका तो फ्री ब्लाग है और फिर हमने चोरी नहीं की है बस कापी की है और आपका नाम भी है।
वैसे मैंने चिट्ठाकार समूह में अपनी बात रखी है और मेरा अपने मित्र ब्लाग लेखकों से आग्रह है कि अपने स्तर पर वह ऐसी हरकतों को रोकें। मैं हवा में तीर नहीं छोड़ता और इसलिये यह बता दूं कि मैं ब्लाग जगत पर सक्रिय सभी ब्लाग लेखकों के स्वभाव और कार्यशैली से अवगत हो गया हूं। मुश्किल यही है कि यहां मित्र और आलोचक दोनों ही छद्म नाम से हो सकते हैं। जिस वेबसाइट पर मेरे यह पाठ हैं वह मुझे बहुत पढ़ने वाला आदमी लगता है। उसकी इस चालाकी से ही मैं समझ गया। मैंने इस चोरी के विषय पर कई बार लिखा है और वह जानता है कि इसे पढ़कर मैं शायद ही आक्रामकता दिखाऊं।

इस मामले में अपने सभी ब्लाग लेखक मित्रों के विचारों का मुझे इंतजार है। लोग ब्लाग लेखकों को मुफ्त का माल समझ रहे हैं या उन पर डौमेन खरीदने के लिये दबाव बनाना चाहते हैं यह भी एक विचारणीय विषय है क्योंकि मैंने देखा है कोई ऐसी परेशानी आने पर डौमेन खरीदने की सलाह भी दी जाती है। मेरे से खेलना आसान नहीं है यह बात उन लोगों का समझ लेना चाहिए। मेरे एक मित्र आज मुझसे कह रहा था कि वह यह पता कर सकता है कि उस वेबसाइट का ईमेल और फोन नंबर तक पता कर सकता है। मैंने उससे कहा कि देखना पड़ेगा कि कोई अपना मित्र तो नहीं है। सच बहुत कड़वा होता है पर कहना पड़ रहा है। मुझे जिस आदमी पर उसकी कार्यशैली पर संदेह है वह कुछ ऐसा ही है। यहां लोग इस तरह है कि अपना नाम अखबार में ब्लाग लेखक के रूप में प्रचारित करना चाहते हैं पर लिखने का उनमें माद्दा नहीं है और वह ऐसी वेबसाईटे बना रहे कि अगर वह चल निकले तो हम अपने असली नाम से वहां प्रकट हो जायें। कल ही एक ब्लाग लेखक ने लिखा था कि अखबारों में जिन प्रतिष्ठित ब्लाग लेखकों के नाम पढ़े थे वह तो यहां अधिक सक्रिय नहीं है और यहां तो कोई और ही लिख और दिख रहे हैं।

मेरा यह आलेख उसके पास जायेगा और मेरी उसे सलाह है कि वह मेरे ब्लाग का पता देते हुए उसे छापने के साथ मुझे उसकी सूचना मुझे प्रदान करे वरना मैं पता कर लूंगा कि वह कौन है? मैं अनुमान कर चुका हूं कि वह कौन है? क्योंकि उसकी कार्यशैली मेरे दिमाग में है। मैं चाहता हूं कि ब्लागर यहां कमायें और अगर मेरे पाठों से उनको मदद मिलती है तो अच्छी बात है पर इस तरह की चालाकियों का मुकाबला करना मेरे लिये कठिन नहीं है। वैसे मैंने तय किया है कि अपने व्यंग्यों और आलेखों में पैराग्राफों के बीच में ही अपना नाम डाल दूंगा ताकि कोई उसकी कापी करे तो वह वहां बने रहें। मेरे पाठों से छेड़छाड़ न कर जो सावधानी बरती गयी है यह उसका जवाब होगा। मैने उसकी वेबसाइट का नाम इसलिये नहीं दिया क्योंकि हो सकता है कि यह एक चाल हो कि दीपक भारतदीप गुस्से में आकर अपना संयम खो बैठेगा और वेबसाइट का लिंक देगा और वह मुफ्त में उसका प्रचार होगा। मैं भी तय कर चुका हूं कि या तो मैं अपने मित्रों के नाम दूंगा या उनके ब्लाग लिंक करूंगा। बाकी लोगों को प्रशंसा पानी हो या प्रचार के लिये आलोचना उनसे भुगतान लिये बिना उनका नाम नहीं दूंगा।

दीपक भारतदीप लेखक एवं संपादक


अभी अभी-मैं अभी देखकर आया तो उसने नारद और चिट्ठाजगत पर ही दिखने वाले दो ब्लाग के पाठ वहां फिर रखे हैं। उसने मेरे नाम छिपाने का कोई प्रयास नहीं किया। इसे चोरी तो नहीं पर चालाकी तो कहा जा सकता है। मेरे समझ में यह नहीं आ रहा कि क्या किया जाये?

भेदात्मक दृष्टि वाले विद्वानों की बहुतायत-आलेख


भारत में कदम कदम पर विद्वान मिल जायेंगे। अगर देखा जाये तो हर तीसरे आदमी को अपना ज्ञान बघारने की आदत होती है। फिर अब तो अंग्रेजी से पढ़े लिखे लोगों का कहना ही क्या? यहां भाषा का ऐसा कबाड़ा हुआ है कि हिंदी वाले ही सही शुद्ध हिंदी नहीं समझ पाते और इसलिये अंग्रेजी वालों का भाव अधिक बढ़ा ही रहता है। ऐसे में उनको अपने ज्ञान के अंतिम होने का आभास-जिसे भ्रम भी कहा जा सकता है-कि अपने विचार के प्रतिवाद करने पर हायतौबा मचा देते हैं। ऐसे में मेरा कई ऐसे विद्वानों से वास्ता पढ़ता है जो अपनी बात को अंतिम कहते हैं और सिर हिलाकर सहमति देता हूं। अगर देखता हूं कि वह सहनशील है तो प्रतिवाद करता हूं हालांकि यह भी एक बात है कि जो वास्तव में जो ज्ञानी होते है वह गलत प्रतिवाद पर भी उत्तेजित नहीं हेाते।

जीवन में कई बार ऐसा अवसर आता है जब हमें दूसरे से विचार या ज्ञान लेने की आवश्यकता पड़ जाती है। ऐसे में संबंधित विषय की जानकारी रखने वाले की शरण लेने में कोई संकोच भी नहीं करना चाहिए। मुश्किल तब आती है जब हम ज्ञानी समझकर किसी के पास जाते हैं और वह अल्पज्ञानी होता है। हम उसकी राय से सहमत नहीं होते तो वह उग्र हो जाता है‘-तुम मेरे पास आये ही क्यों?’
फिर अंग्रेजों ने इस देश में अनेक विभाजन स्थापित कर दिये। चाहे
वह समाज हो या शिक्षा सभी क्षेत्रों के अलग अलग स्वरूप कर दिये। उनको इस देश पर राज्य करना था इसलिये फूट डालो और राज्य करो की नीति अपनाई तो शिक्षा में भी अलग-अलग विषय स्थापित किये। अर्थशास्त्र, समाज शास्त्र, हिंदी, राजनीति शास्त्र, विज्ञान, और दर्शनशास्त्र जैसे विषयों में शिक्षा का विभाजन कर इस देश में अधिकाधिक विद्वानों का अस्तित्व बनाये रखने का मार्ग प्रशस्त किया ताकि विवाद खड़े होते रहें पर समाधान न हो। वैसे अर्थशास्त्र में दर्शनशास्त्र को छोड़कर सारे शास्त्रों का अध्ययन किया जाता है-इसमें भारत के प्राचीन शास्त्र शामिल नहीं है। इस शिक्षा पद्धति से विद्वानों के झुंड के झंड इस देश में पैदा हो गये और आजकल सभी जगह बहसों में उन विद्वानों को बुलाया जाता है जो कहीं अपनी ख्याति अपनी शिक्षा की बजाय अपने धन, पद, और प्रतिष्ठा के कारण अर्जित कर चुके होते हैं।

अब विद्वानों की बात करें तो अर्थशास्त्र के विद्वान केवल अर्थ के धन और ऋण से अधिक नहीं जानते। वह मांग और आपूर्ति की बात करते हैं वह विश्व बाजार में से अपने देश के बाजार की तुलना करते हैं पर कभी अपने समाज के बारे में वह नहीं बोलते। समाज के नियमित क्रिया कलापों का किसी भी देश की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ता पर किसी अर्थशास्त्री को उसका जिक्र करते हुए नहीं देखते होंगे। अर्थशास्त्र के अध्ययन में भारत के पिछड़े होने का कारण यहां के लोगों के अंधविश्वास और रूढियों को भी बताया जाता है। सगाई शादी और मृत्यु के अवसर पर उनके द्वारा दिखावे के लिये धन व्यय करना गांवों में गरीबी का एक बहुत बड़ा कारण माना जाता है। इसके लिये लोग अपनी जमीन गिरवी रखकर सगाई, शादी और मुत्यु के अवसर पर समाज में अपनी साख बनाये रखने के लिये भोज का आयोजन करते हैं और कई लोग तो इतना कर्जा लेते हैं कि उनकी पीढि़यां भी उबर नहीं पाती। पहले भारत के किसान साहूकारों से कर्जा लेते थे और उनकी ब्याज दर बहुत अधिक होती थी। आजकल कई जगह बैंकों से भी कर्जा दिया जाने लगा है पर वह धन वास्तव में कृषि पर होता है या अनुत्पादक कार्यों-जैसा सगाई, शादी या मुत्यु भोज- पर इस कोई चर्चा नहीं करता। आपने कई जगह किसानों द्वारा आत्महत्या की बात सुनी होगी। नित-प्रतिदिन ऐसी घटनायें प्रचार माध्यमों से आती हैं। आखिर वह किसके कर्ज से त्रस्त हो कर आत्म हत्या कर रहे हैं और वह कर्ज किस काम के लिये लिया और किस काम पर किया-यह कभी चर्चा का विषय नहीं बनता। अर्थशास्त्र के विद्वान तो समाज शास्त्र का मुद्दा होने के कारण इस पर प्रकाश नहीं डालते और समाज शास्त्री अर्थशास्त्र का विषय मानकर मूंह फेर जाते हैं। वर्तमान में पश्चिमी प्रभावित संस्कृति ने जिस तरह इस देश में पांव फैलाये हैं और भौतिकता के प्रति लोगों का रुझान बढ़ा है उससे समाज में तमाम तरह के आर्थिक तनाव है पर यह बात कोई नहीं लिखता।
मैंने इस पर अनेक लंबी चैड़ी बहसें सुनी हैं पर यह सच्चाई सामने नहीं आ पाती कि आखिर किसानों के कर्ज के आत्महत्या के मूल में कारण क्या है? क्या किसी समाज शास्त्र ने इस पर अपना विचार रखा है। यह एक चिंता का विषय है। यह आत्महत्यायें देश के लिये शर्म की बात है पर हमारे अर्थ और समाज शास्त्री इसके मूल कारणों पर प्रकाश डालने की बजाय ऐसी बहसों में ही लगे रहते हैं जिनका कोई हल नहीं निकलाता।
अर्थशास्त्र में यह भी पढ़ाया जाता है कि यहां रूढि़वादिता है। अगर किसी किसान के छह बेटे हैं तो उसके बाद उसकी जमीन के छह विभाजन हो जाते हैं और यह विभाजन आगे बढ़ता जाता है और धीरे-धीरे कृषि योग्य जमीन कम होती जाती है। जनसंख्या वृद्धि के चलते यह समस्या बढ़ती जाती है और इसका अंत भी अभी तो नजर नहीं आता। देश के अर्थशास्त्री विश्व बाजार में उथल पुथल के कारण देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों की बात तो करते हैं जो कि जो केवल औद्योगिक क्षेत्र पर ही पड़ता है। भारत की अर्थव्यवस्था आज भी कृषि प्रधान है और उसके साथ ऐसी समस्यायें जो अन्य देशों में कम ही पायी जातीं है-जिनका निराकरण केवल कर्जे माफी से नहीं बल्कि देश में रूढि़वादिता के विरुद्ध लोगों में जागृति कर ही लाया जा सकता है।
किसान-उद्योगपति, मजदूर-मालिक, स्त्री-पुरुष, जवान बालक-वृद्ध और अधिकारी-कर्मचारी जैसे भेद कर सब पर अलग-अलग चर्चा करते हुए ढेर सारे विद्वानों के तर्क सुनिये और फिर भूल जाईये। कोई घटना हो तो तैयार हो जाईये प्रचार माध्यमों पर फिर वही बहस सुनने के लिये।
बहसें भी ऐसी होती हैं कि किसान, मजदूर, स्त्री, बालक-वृद्ध के कल्याण पर ऐसे तर्क सुनाये जाते हैं कि दिल खुश हो जाता है। उद्योगपति, मालिक, पुरुष और जवान की जैसे कोई समस्या नहीं है जबकि यह अभी तक इस भारतीय समाज में अपनी सक्रियता के कारण प्रभाव बनाये हुए हैं।
आखिर यह समझ में नहीं आता कि इतनी सारी बहसें होने के बावजूद कोई निष्कर्ष क्यों नहीं स्थापित हो पाता है। कुछ लोग कहते हैं कि अगर निष्कर्ष निकलने लगे तो फिर बहस के लिये बच क्या जायेगा? अर्थशास्त्र में मनोविज्ञान का अध्ययन किया जाता है जो कि सारे शास्त्रों का आधार स्तंभ होता है पर विद्वान लोग इस पर कभी चर्चा नहीं करते। वैसे मैंने मनोविज्ञान नहीं पढ़ा पर अपने मन को एक दृष्टा की तरह उसके उतार चढ़ाव देखकर कई अनुभूतियां होती हैं उस पर कविता और आलेख लिखता हूं। इसलिये मैं कभी भेदात्मक दृष्टि से कहीं नहीं देखता।
ऐसा अनेक बार होता है कि कहीं दो समुदायों में दंगे होते हैं तो वहां पर कुछ सज्जन लोग दूसरे समुदाय वाले को न बल्कि बचाते हैं बल्कि उसकी अन्य प्रकार से सहायता भी करते हैं। वह लोग प्रशंसनीय हैं पर देखने वाले लोग इसमें भी भेद देखते हुए उसकी कहानी बयान इस तरह बताते हैं कि जैसे कोई अस्वाभाविक बात हुई हो। तमाम तरह के कसीदे पढ़े जाते हैं और बताया जाता है कि ऐसे में भी कुछ लोग हैं जो दुर्भावना में नहीं बहते।

आप जरा इस पर गहराई से दृष्टि डालें तो यह समझ में आयेगा कि मनुष्य का मन ही उसे ऐसे काम के लिये प्रेरित करता हैं हर मनुष्य में क्रूरता और उदारता का भाव होता है। कुछ लोगों में जब क्रूरता का भाव पैदा होता है तो कुछ में दया भाव भी होता है। अगर कहीं कोई मनुष्य तकलीफ में है तो और इधर उधर कातर भाव से देखता है तो उसकी भाषा न जानने वाला व्यक्ति सामथर्य होने पर उसकी सहायता करता हैं-कोई भी मनुष्य अपने पास पानी या भोजन होने पर किसी को प्यासा या भूखा करने नहीं दे सकता क्योंकि उसका मन नहीं मानता। अगर किसी व्यक्ति को किन्हीं व्यक्तियों से खतरा उत्पन्न हो गया है तो उसके निकट उस समय मौजूद कोई अनजान आदमी भी उसे छिपा सकता है क्योंकि किसी आदमी को संकट में फंसे होने पर मूंह फेरने के लिये उसका मन नहीं मानता। यह मन है जो मनुष्य को चलाता है मगर देखने और सुनने वाले भी उसमें धर्म, जाति और भाषा के भेद कर उस पर लिखते हैं और वाहवाही बटोरते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि अगर कोई मनुष्य किसी की सहायता करता है तो वह उसकी प्रकृति न कि उसे जाति, धर्म या प्रदेश से जोड़ना चाहिये।

वाद और नारों पर बनी अनेक विचाराधाराओं के मानने वाले विद्वान इस देश में हैं और वह अपनी भेदात्मक बुद्धि के कारण विश्व में कोई सम्मान नहीं बना पाये उल्टे वह विदेशी विद्वानों के कथनों को यहां लिखकर ऐसे दिखाते हैं जैसे तीर मार लिया हो। अगर आप देखें तो निश्चयात्मक और भेद रहित होकर संत कबीर, रहीम और तुलसी ने पूरे विश्व में ख्याति अर्जित की और अब तो विदेशों में भी उनकी लोकप्रियता बढ़ रही है। मूर्धन्य हिंदी साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद ने भी इसी मार्ग का अनुसरण किया और इसलिये उनको पूरे विश्व में ख्याति मिली। बाद में हुए विद्वान वाह वाही बटोरने के लिये अंग्रेजों द्वारा सुझाये गये भेदात्मक मार्ग पर चले तो फिर किसी ने विश्व में अपनी ख्याति नहीं बनायी। हां, तमाम तरह के शास्त्रों के अध्ययन के नाम पर उनको धन और सम्मान जरूर मिला पर यहां वह लोगों के हृदय में स्थान नहीं मना सके। यही कारण है कि पुराने विद्वान आज भी प्रासंगिक है और वर्तमान विद्वान भेदात्मक मार्ग के कारण आपस में झगड़े कर वहीं गोल-गोल चक्कर लगाते हैं।

इसका कारण यह है कि वाद और नारों पर चलते रहने से एक छवि बन जाती है और उससे विद्वान लोगों को यह लगता है कि उसे भुनाया जाये। वैसे अधिकतर लोग किसान, नारी,गरीब, बालक, शोषित, वृद्ध और अन्य तमाम तरह के वह वर्ग जिनके नाम पर शब्दों का संघर्ष कर अपनी छवि बनायी जा सकती है उनका उपयोग करते हैं। अब ऐसा भी नहीं है किसी एक वर्ग का नारा लगाकर काम करते हों वह समय के अनुसार अपने अभियानों में वर्ग बदलते रहते है ताकि लोग उनके वाद और नारों से उकतायें नहीं। कभी किसान की बात करेंगे तो कभी गरीब और कभी नारी कल्याण की बात करेंगे। यह सब केवल अपनी छवि बनाये रखने के लिये करते है। यही कारण है कि कोई समग्र विकास में समस्त लोगों के हित देखने की बात कोई नहीं करता।

विविध और रोचक विषयों पर लिखे जाने पर पाठक आकर्षित होंगे-आलेख


उस दिन पड़ौस में दिल्ली से कोई दंपत्ति आये थे। संयोग से उनकी मेरी पत्नी से चर्चा हुई होगी। मेरी पत्नी को जब उसने बताया कि वह अपनी तीन बेटियों से अंतर्जाल पर चैट के माध्यम से बात करती है तो उनमें इसी विषय पर चर्चा प्रारंभ हो गयी। मेरी पत्नी ने उसे बताया कि ‘हमारे पति भी अंतर्जाल पर लिखते हैं।’
उसने पूछा-‘क्या और कहां लिखते हैं।’
मेरी पत्नी ने कहा-‘ब्लाग लिखते हैं।‘
उसने एक बड़े अभिनेता का नाम लेते हुए पूछा-‘वैसे ही न जैसे वह लिख रहा है।’
मेरी पत्नी ने कहा-‘हां, वैसे ही।
इस पर उसने पूछा-‘फिर तो उस पर लोग कमेंट लिखते होंगे। क्या लिखते हैं?
मेरी पत्नी ने कहा-‘हां, कुछ लोग लिखते हैं और यह भी उनको लिखकर आते है। वैसे इन्होंने उस अभिनेता के ब्लाग पर कमेंट भी लगायी थी। इनका नंबर था 294 यह स्वयं उन्होंने बताया।‘‘

बातें करते हुए मेरी पत्नी उस दंपत्ति को अपने घर के अंदर ले आयी क्योंकि अभी तक उनकी सड़क पर ही बातचीत हो रही थी। इधर मैं भी वहां पहुंच गया। उसे चूंकि मैं एक दो दिन से देख रहा था इसलिये उसके वहां होने से कोई आश्चर्य नहीं हो रहा था। मैंने अनुमान कर लिया कि पड़ौस में आने की वजह से यह परिचय हुआ होगा।
उन दंपत्ति ने मेरा अभिवादन किया। पति अब रिटायर हो चुके हैं और पत्नी भी पहले नौकरी करती थी पर अब उसने छोड़ दी है। कुछ देर बाद वह बोली-‘‘आप अभी आये हैं। थोड़ा आराम कर लीजिये फिर हम दोनों आपका ब्लाग देखकर ही जायेंगे। देखेंगे आप क्या लिखते हैं और कैसे कमेंट आते है।’
मुझे हैरानी हुई और मैंने पूछ लिया किया कि‘आप लोग ब्लाग के विषय में कैसे जानते हैं?’
मेरी पत्नी ने कहा‘-बड़े लोग ब्लाग बना रहे हैं न! इन्होंने भी सुन लिया होगा।’
वह बोली-‘नहीं हमारे एक परिचित प्रोफेसर हैं वह इन ब्लाग पर कमेंट लिखते हैं। वह बताते हैं और उनके यहां ही हमने कई ब्लाग देखते हैं। हालांकि पढ़े नहीं हैं पर दूर से उनको देखा है।’

उन्होंने जो नाम बताया तो मुझे लगा कि संभवतः उस उपनाम के एक टिप्पणीकर्ता मेरे ब्लाग पर आये थे। मैं उनके ब्लाग पर गया पर वह अंग्रेजी में था। एक पाठ हिंदी में था और मेरी स्मृति अगर ठीक है तो मैंने उनके ब्लाग पर मैंने विभिन्न फोरमों के ईमेल पते भी लिखे थे और वहां पंजीकरण की सलाह भी दी। इस बारे में दावे से कुछ नहीं कह सकता पर जिस तरह उन्होंने बताया उससे लगता है कि वह वही थे। उनके विज्ञान से संबद्ध होने की बात उस दंपत्ति ने बतायी और उस ब्लाग पर विज्ञान से संबंधित जानकारी के कारण ही मुझे ऐसा लग रहा है।

बहरहाल कुछ देर बाद मैने उनको अपने कंप्यूटर पर शब्दलेख सारथी और अंतर्जाल पत्रिका नाम वाले ब्लाग दिखाये-क्योंकि वह थोड़े सम्मानजनक लगते है बाकी तो हास्य कविताओं और व्यंग्यों से भरे हुए हैं तो यह सोचकर कि उसके लिये उनको पढ़कर अजीब न लगे इसलिये नहीं दिखाये। वह उनको देखकर बहुत खुश हुए। हां, एक जगह वह आपस में झगड़ा करते करते बचे। भृतहरि शतक की यह शिक्षा कि ‘बड़े भाई, पुत्र और पत्नी से विवाद करने से बचें‘ पति महाशय को नही हजम हो पायी।
वह बोले‘-एक बात बताओ साहब! क्या यह तीनों गलत बोलें तब भी उनको भी झेल जायें। क्या पत्नी हमेशा सही बोलती है।’

पत्नी बोली-‘देखों! अब लगे बहस करने। सच हजम नहीं होता।’
मैंने झगड़े से बचने के लिये कहा-‘यह मेरा ब्लाग अध्यात्मिक विषयों के लिये है। आप अगर फुरसत में आयें तो बाकी ब्लाग भी दिखा दूंगा।’

उन्होंने कमेंट भी पढ़े। मेरा नाम लिखा और बोले आपकी चर्चा प्रोफेसर साहब से करेंगे। मैंने उनको वह संस्मरण सुनाया और यही बताया कि यह बात वही प्रोफेसर हैं यह दावे से नहीं कह सकता।
उसके बाद मैंने उनको वह अपने सारे हथियार(टूल)दिखाये जिनका उपयोग करते हुए मैं प्रसिद्ध ब्लागर (ऐसा मुझसे कुछ ब्लाग लेखक कहते हैं इसलिये लिख रहा हूं)बन गया। इंडिक का हिंदी यूनिकोड, कृतिदेव का यूनिकोड, अरबी यूनिकोड टूल और अंग्रेजी-हिंदी अनुवाद टूल का उपयोग कर दिखाया। इससे वह हैरान हो गये। पत्नी ने कहा-‘ आपके पास तो यह गजब के टूल हैं। यह तो अनुवाद तो ऐसे हो जाता है कि जैसे आपने लिखा हो।’
उसने इस बात की पुष्टि की कि हिंदी से अंग्रेजी में अनुवाद बहुत अच्छा हुआ है। वह इन टूलों के बारे में नहीं जानते थे। मैंने उससे पूछा कि क्या इन टूलों की चर्चा कभी उनके संपर्क में आने वाले अंतर्जाल प्रयोक्ता करते हैं। उन्होंने इंकार किया।
महिला वहां से जाते हुए कहा-‘आपके यह ब्लाग मैं पढ़ूंगी। बहुत मजेदार लिखा हुआ है। खासतौर से आपकी अपनी व्याख्यायें बहुत अच्छी लगीं। अब मैं आपके यह ब्लाग पढ़ूंगी।

उनके जाने के बाद मैं उन टूलों के बारे में सोच रहा था कि अगर उनका प्रचार अच्छी तरह हो जाये तो शायद लोगों की रुचि और बढ़ेगी। वैसे वह महिला मेरा ब्लाग पढ़ेगी इसमें मुझे संशय है। बाद में मेरी पत्नी से उसकी चर्चा हुई थी। मेरी पत्नी ने कहा-‘वह शायद इंटरनेट का उपयोग केवल अपने बेटियों यो रिश्तेदारों के चैट लिये करती हैं अन्य किसी कार्य के लिए नहीं। हां, उन प्रोफेसर साहब के यहां जाते हैं तो उनको ब्लाग पर काम करते देख ही उनको पता है कि कोई ब्लाग भी होता है। मुझे नहीं लगता कि वह आपका ब्लाग पढ़ेगी।’
इस देश में अंतर्जाल के प्रयोक्ताओं की संख्या देखते हुए हिंदी में ब्लाग पढ़ने वालों की संख्या बहुत कम हैं इसका कारण यह है कि यहां हर प्रचार में बड़े लोगों के नाम का सहारा लिया जाता है। इससे लोगों में यह मनोवृति हो जाती है कि यह तो बड़े लोगों का काम है और कोई छोटा व्यक्ति ब्लाग लिख रहा है तो वह महत्वहीन है। जब उस महिला ने मेरे सामने अभिनेता का नाम लिया था तो मैंने स्पष्ट रूप से कह दिया था-‘‘हां, उस जैसा ही ब्लाग लिखता हूं पर उसे पढ़ने वाले बहुत हैं और मेरे पास इतनी संख्या नहीं है।’
इसके अलावा अगर आप समाचार पत्र-पत्रिकाओं को देखेंं तो लिखकर कोई बड़ा लेखक नहीं बन रहा है। हां, जो बड़े हैं उनको लेखक बनाकर पेश किया जा रहा है। वह महिला पढ़ेगी या नहीं अगर मैं इस बात की परवाह करूंगा तो शायद लिख ही नहीं पाऊंगा। वैसे इसमें संशय नहीं है कि उसने मेरे ब्लाग देखने में जितनी दिलचस्पी दिखाई उतनी किसी अन्य मेहमान नहीं दिखाई। इसके लिये तो मैं उसकी प्रशंस करूंगा।

प्रसंगवश याद आया। हां, उस अभिनेता के ब्लाग पर मैंने 294 नंबर पर टिप्पणी लिखी थी। वहां वेबसाइट का पते के स्थान पर अपने ब्लाग/पत्रिका का पता डाला। जब टिप्पणी वहां दिखने लगी तो मैंने अपना ब्लाग/पत्रिका खोलकर देखा। वापस लौटकर अपना उसी ब्लाग पर अभिनेता के ब्लाग से देखे जाने की पुष्टि हो रही थी। कुछ घंटों बाद वह गायब हो गयी। मैंने अपने व्यूज की सूची देखी वहां भी नहीं दिखी। ऐसा क्यों हुआ मैं समझ नहीं पाया। इतना तय है कि ब्लाग लिखने वालों को अभी अपनी पहचान बनाने में समय लगेगा। इस समय तो हाल यह है कि अगर किसी ब्लाग लेखक के बार में किसी को बताया जाये तो सबसे पहला वह सवाल करेगा-‘वह है क्या? कोई नेता, अभिनेता या समाजसेवी जो ब्लाग लिखता है? नहीं है तो लिखने से क्या फायदा?’

हालांकि समाज में किसी भी उपलब्धि का पैमाना आर्थिक आधार ही है। इस समय तो ऐसे व्यक्ति को जो लिखने पढ़ने में रुचि नहीं लेता उसे यह बताना भी बेवकूफी लगता है कि मैं ब्लाग लिख रहा हूं। उसका सबसे बड़ा प्रश्न यह होता है कि ‘उससे क्या कमाई होती है। नहीं होती तो क्या भविष्य में संभावना है?’
अभी लोगों को यह पता नहीं है कि बहुद्देशीय उपयोग हो रहा है। जब लोगों को ब्लाग के बारे में जानकारी हो जायेगा तभी पाठको की संख्या बढ़ेगी। बहरहाल उन दंपत्ति से चर्चा कर यह तो लगा कि अब आम लोग भी ब्लाग के विषय में जानने लगे हैं और जब विविध रोचक विषयों वाले ब्लाग उनको उपलब्ध होंगे तब वह इस तरफ आकर्षित होंगें।

ब्लाग दे सकते हैं प्रचार माध्यमों को चुनौती-आलेख


कितनी विचित्र बात है कि प्रचार माध्यमों से जुड़े लोग स्वयं ही यह स्वीकार करने लगे हैं कि व्यवसायिकता से जो प्रतिस्पर्धा की भावना ने उनको सामाजिक सरोकारों से परे कर दिया है। सारे टीवी चैनल टी.आर.पी. की अंधी दौड़े में शामिल होने के साथ अधिक मुनाफा कमाना चाहते हैं। उनको अपने कल पर विश्वास नहीं है इसलिये वह सारी कमाई आज करना चाहते हैं।

सभी संचार और प्रचार माध्यम-टीवी चैनल और समाचार पत्र-पत्रिकाऐं-अपने प्रसारणों और प्रकाशनों की विषय सामग्री में सामाजिक सरोकारों से संबद्ध दिखने का प्रयास करते हैं पर उनसे जुड़े लोगों को पता है कि वह हृदय से इसमें शामिल नहीं है। वह यह भी जानते हैं कि उनके प्रस्तुतीकरण में व्यवसायिकता अधिक है और समाज से प्रतिबद्धता कम। उससे अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि वह इसे स्वीकार कर रहे हैं। कितनी विचित्र बात है कि जो समाचार पत्र सामाजिक सरोकारों से परे हैं वही ऐसे लेखों को छाप भी रहे हैं जिसमें उन्हीं पर यह आक्षेप आता है।
किसी भी टीवी चैनल पर भ्रष्टाचार के रहस्योद्घाटन करने वाला कोई कार्यक्रम प्रसारित हो रहा है उसमें उद्घोषक नैतिकता और ईमानदारी की बात करता है जैसे कि उसका व्यवसायिक कार्य केवल शुद्ध नैतिक आधार पह टिका है-और सामने बैठे दर्शक भी पूरी तरह उस जैसे हैं। यह सच सभी जानते हैं कि जो पकड़ा गया चोर और जो नहीं पकड़ा गया वही साहूकार है। तसल्ली इस बात की है प्रचार मध्यमों से संबद्ध लोग व्यवसायिक बाध्यताओं के चलते वह कार्य कर रहे हैं जो हृदय से उनको स्वीकार नहंी है और अवसर पाते ही वह स्वीकार कर लेते हैं-इस पर तसल्ली की जा सकती है कि वह कम से कम इसका ज्ञान तो रखते हैं कि नैतिकता और सामाजिक सरोकार क्या होते हैं।

अक्सर मैं अपने आलेखों के प्रचार माध्यमों के प्रसारणों और प्रकाशनों पर निराशा व्यक्त करता हूं। उनके कार्यक्रमों और प्रकाशनों के स्तर में गिरावट आयी है यह लोग तो वह स्वयं भी स्वीकार करने लगे है। इसके बावजूद वह नये प्रयोग का प्रयास नहीं करते। शायद प्रयोग से उनको जो परिणाम मिलने में समय लगेगा उसकी प्रतीक्षा वह नहीं कर रहे क्योंकि उनको लगता है कि कहीं वह इस चक्कर में टी.आर.पी. की दौड़ से बाहर न हो जायें। यही कारण है कि वह पश्चिमी प्रचार माध्यमों की सफलता के फार्मूले यहां भी आजमा रहे हैं। वह अपने प्रयोग कर भविष्य में उसके परिणामों की प्रतीक्षा में समय बर्बाद नहीं कर सकते क्योंकि जिस तरह विश्व में तकनीकी परिवर्तन आ रहा है उसमें उनको अपने अस्तित्व का खतरे में पड़ने की आशंका दिखाई देती है।
देख जाये तो इस समय इंटरनेट इन प्रचार माध्यमों को एक भारी चुनौती देने जा रहा है। इस देश में इंटरनेट प्रयोक्ताओं की संख्या छह करोड़ है-यह मैंने एक हिंदी के ब्लाग में ही पढ़ा था। इसके प्रयोक्ता वही हैं जो इन्हीं प्रचार माध्यमों से हटकर यहां आ रहे हैं। इन प्रचार माध्यमों में कुछ लोग इस बात को जानते हैं इसलिये उन्होंने इंटरनेट पर भी अपने प्रकाशानों के लिये जगह बना रखी है ताकि यही प्रयोक्ता वहां भी उनके उपभोक्ता बन जायें पर जिस तरह से स्वतंत्र वेब साईटों और ब्लाग की संख्या बढ़ रही है उससे इनको चुनौती मिलेगी क्योंकि उनके स्वामियों पर कोई व्यवसायिक दबाव नहीं हैं। इस समय केवल इंटरनेट से भारी कमाई करने वाला कोई है इसकी जानकारी मुझे नहीं है पर आगे यह संभावना बन सकती है पर ऐसे लोग किसी के दबाव में आयेंगे यह नहीं लगता।

अनेक वेबसाईट और ब्लाग लेखक तमाम तरह के प्रयोग कर रहे हैं। ऐसे में हो सकता है कि कोई अपना टीवी चैनल या अखबार बना ले जिसे लोग रुचि के साथ पढ़ना और देखना चाहें। यह सही है कि अपने घर पर रखे टीवी का बटन खोलकर उसे तत्काल देखना और अपने आंगन में पड़े अखबार को पढ़ना अधिक सरल है बनिस्बत कंप्यूटर खोलने से, पर अगर किसी वेबसाइट या ब्लाग ने अपनी विशिष्टता के कारण लोकप्रियता प्राप्त कर ली तो लोग वह भी करेंगे। अभी कई लोग अपने कंप्यूटर का उपयोग गाने सुनने और फिल्में देखने के लिये कर रहे हैं। जिस तरह नित नयी तकनीकी आ रही है इंटरनेट की शक्ति और प्रतिष्ठा बढ़ रही है जो आगे इन प्रचार माध्यमों को चुनोती देगी।
अंतर्जाल पर ब्लाग लेखन का विरोध बहुत लोग कर रहे हैं तो इसका कारण यह है कि उनको समाज और व्यक्ति को नियंत्रित करने वाले संगठनों का सहयोग रहा है। अनेक लोग यथास्थिति बनाये रखने के लिये इसका विरोध कर रहे हैं क्योंकि परिवर्तन से उनके अस्तित्व पर संकट आ सकता है। मैं केवल अपने लिखने के कारण ही अंतर्जाल पर आया पर ऐसे परिवर्तनों का साक्षी बन रहा हूं जिसकी कल्पना मैंने कभी नहीं की। अंतर्जाल पर सक्रिय मेरे मित्र और पाठक शायद ऐसे परिवर्तनों का महत्व इसलिये नहीं समझ रहे क्योंकि वह उनके लिये अभी फलदायी नहीं हुए हैं। उदाहरण के लिये अंग्रेजी-हिंदी अनुवाद टूल से कोई हिंदी भाषी ब्लाग लेखक और पाठक अभी मुझे नहीं पढ़ रहा इसलिये वह इसका महत्व नहीं समझ पायेंंगे पर मुझे ऐसा लग रहा है कि मेरे ब्लाग इसी टूल से अन्य भाषी लोग पढ़ रहे हैं और यह केवल मेरे नहीं पूरे हिंदी ब्लाग जगत के व्यापक क्षेत्र में पहुंचने का संकेत है। कुछ समय बाद हो सकता है कि हिंदी के वेब साईट और ब्लाग लेखक यह अनुभव करें कि उनको तो अन्य भाषी भी पढ़ रहे हैं। दो वर्ष पूर्व मुझे अपने कृतिदेव फोंट में टंकित कर उसे अपने ब्लाग पर प्रकाशित करने की सुविधा नहीं थी पर आज यह आसान हो गया है। इसकी उपलब्धता का महत्व भी वही ब्लाग लेखक समझ सकते हैं जिनको इसकी जरूरत है। इधर मैं देख रहा हूं कि कुछ वेबसाइट और ब्लाग लेखक वीडियो और आडियो के जरिये भी अपनी बात रख रहे हैं। ऐसे में बहुद्देशीय कंप्यूटर और इंटरनेट प्रचार माध्यमों को वेबसाईट और ब्लाग चुनौती देगा इसकी संभावना प्रबल है। अभी तक आम लोगों में इसका प्रचार अधिक नहीं हुआ है पर आगे इसका प्रचार बढ़ेगा वैसे ही पाठक तो बढ़ेंगे ही ऐसे लेखक भी आयेंगे जो इसे विस्तार प्रदान करेंगे।

हां, एक बात है कि ऐसे परिवर्तनों का साक्षी बनने पर मुझे एक रोमांच का अनुभव होता है बाकी मेरे हिस्से में लोकप्रियता आयेगी या नहीं इस पर मैं विचार नहीं करता। वैसे तो लोकप्रियता की चाहत सभी में होती है पर निष्काम भाव से लिखते हुए मुझे इसकी परवाह इसलिये भी नहीं होती क्योंकि मुझे लगता है कि मेरा रास्ता उसी तरफ ही जाता है। इसलिये इन परिवर्तनों का रोमांच अनुभव करते हुए लिखता जाता हूं।

अंतर्जाल लेखक हिंदी में अन्य भाषा के शब्दों के उपयोग पर स्वविवेक से निर्णय करें-आलेख


हिंदी भाषा में अन्य भाषाओं के शब्द समावाष्टि करने पर अनेक लोग नुक्ताचीनी करते हैं। समाचार पत्र-पत्रिकाओं में पिछले कई बरसों से मैंने इस विषय पर अनेक चर्चाएं पढ़ी हैं। उनको पढ़कर मैं यही अनुमान करता था कि लोग अपने प्रचार के लिए ऐसी बातें लिख रहे हैं जिन्हें वह अपने जीवन में शायद ही अपनाते होंगे। शुरूआती दौर में जब मैं लिखता था तो उसमें कुछ शब्द उर्दू मेंे आ जाने पर मेरे दिमाग में कुंठा आ जाती थी। अगर शुद्ध हिंदी शब्द लिखने का प्रयास करता तो लगता था कि वैचारिक प्रवाह कागज पर आने में कहीं न कहीं बाधा आ रही है। बाद में पंजाब केसरी में व्यंग्य प्रकाशित होने के बाद मैं इस दुविधा से निकल आया।

इस देश में अभी तक हिंदी पर संगठित क्षेत्र का नियंत्रण रहा है। हिंदी के लेखक और साहित्यकारों का समूह अपने अपने दृष्टिकोण के साथ अपने संगठनों में काम करता है। वाद और नारों पर चलने के आदी हो चुके इस देश के लेखक भी उसी राह पर चलते हैं। समाचार पत्र पत्रिकाओं में मैंने अनेक ऐसे लेखकों के लेख देखे जो स्वयं ही असंमजस्य में प्रतीत होते हैं। हिंदी को शुद्ध रखने के समर्थक और विरोधी केवल औपचारिक रूप से ही इन बहसों में शामिल होते रहे हैं ताकि लोग समझें कि वह विद्वान हैं। कोई नई बात कहने या संतुलित दृष्टिकोण रखने वाले लेखकों को कहीं भी स्थान नहीं मिला। इसलिये जो कथित विद्वान लेखक इन बहसों में अपना समय नष्ट करते रहे उसका परिणाम शून्य रहा।

हमारे देश में हर कार्य संगठित रूप से होता है और ऐसे में असंगठित लोग बहुत कठिनाई से अपना स्थान बनाते हैं। वाद और नारों पर चलने वाले लेखकों ने लंबे समय तक हिंदी लेखन पर अपना नियंत्रण रखा और आज अंतर्जाल पर लेखकों का जो समूह चालीस और पचास की आयु को पार कर चुका है उसका यहां खुलकर लिखना इस बात का प्रमाण है कि वह असंतुष्ट हैं। बात हम हिंदी की शुद्धता की करें तो मुझे लगता है कि वह आम आदमी के कारण ही अपना अस्तित्व बचा पायी है। वरना तो आपने देखा होगा कि हिंदी की लिपि पर ही लोग सवाल उठाते रहे हैं। इसी अंतर्जाल पर रोमन लिपि का विवाद के बारे में पुराने ब्लाग लेखक जानते है जिसमें मैंने भी अपनी हास्य कवितायें बरसाईं थी। एक आलेख में मैंने हिंदी के ऐसे शुभचिंतकों से अनेक सवाल भी पूछे थे।

शुद्ध हिंदी का समर्थक वह तबका है जो लिखता तो ऐसे शब्द हैं जिसे सामान्य आदमी आम बोलचाल में प्रयोग न होने के कारण क्लिष्ट मानता है पर वही लेखक बोलते समय उन्हीं विजातीय भाषा के शब्दों का प्रयोग करते हैं जिनका वह विरोध कर चुके है। यह तबका अपने को अच्छा लेखक साबित करने के लिये ही शुद्ध और क्लिष्ट हिंदी शब्दों का प्रयोग करता है ताकि उसके पाठ या रचनाओं का वैचारिक धरातल यदि कमजोर भी तो उसे भाषा की दुरूहता का लाभ मिल जाये। लोग समझें नहीं पर यह कहें कि लेखक अच्छा है क्योंकि उसकी हिंदी अच्छी है। दूसरा यह कि कोई मौलिक लेखक जिसे भाषा का सामान्य ज्ञान हो और उसके शब्दों में कोई विशिष्टता न हो उसे चुनौती नहीं दे सके।

हिंदी भाषा में विजातीय भाषा के समर्थक केवल नारा लगाते रहे पर उनका लिखा कभी प्रभावी नहीं रहा। ऐसे में अनेक लेखक इन विचारों को पढ़कर विचलित हो जाते हैं और उनको कभी अपने अच्छा लेखक बन पाने की संभावना नहीं दिखती तो वह लिखना छोड़ देते हैं। आजकल अंतर्जाल पर जिस तरह वेबसाइट और ब्लाग लेखक बड़ी संख्या में आ रहे उन्हें ऐसी किसी बहस से परे रहकर अपने मौलिक लेखन पर ही ध्यान देना चाहिए। अपने अंदर चल रहे विचारों का वह सीधे आने दें। शब्दों के चयन पर अपना समय बर्बाद करेंगे तो उनको अपने विचार प्रवाह में बाधा उत्पन्न होती नजर आयेगी और वह उस पाठ या रचना को वह स्वरूप नहीं दे पायेंेगे जो वह देना चाहते हैं। अगर उनको लगता है कि कहीं शब्द में गड़बड़ है तो वह उसे लिखने के बाद अपने संपादन कौशल का प्रयोग करते हुए सुधारें। समय मे साथ कुछ शब्द अंग्रेजी और उर्दू से हिंदी भाषा में आते गये हैं और कुछ तो ऐसे भी हैं जो भाषा को दोरंगी कर देते हैं। ऐसे में यही हो सकता है कि अगर अन्य भाषा का शब्द आवश्यक लगे तो कोष्टक में हिंदी शब्द लिखकर अपना दायित्व निर्वाह किया जा सकता है।
जैसे मैं लिखता हू कि ‘ट्रेन का टिकिट कंफर्म हो गया है।’
अब इसमें ट्रेन और टिकिट तो आम बोलचाल की भाषा में बहुत समय से है पर कंफर्म शब्द अब प्रचलन में अधिक आया है और थोड़ा परेशान करता लगता है। इसलिये कंफर्म के लिये कोष्टक में पुष्ट या पुष्टि लिख सकते हैं ताकि अपनी भाषा के प्रति दायित्व पूरा हो जाये।

गाड़ी मिस हो गयी के लिये चूक शब्द कोष्टक में ले सकते हैं। वैसे यह बात तभी करें जब हम किसी कहानी या व्यंग्य में किसी अन्य पात्र से कहला रहे हों। यहां यह बात भी उल्लेखनीय है कि किसी कहानी या व्यंग्य की पृष्ठभूमि बहुत महत्वपूर्ण होती है। बड़े शहरों में कई विजातीय भाषाओं के कई ऐसे शब्द प्रचलन में आ गये हैं कि वह कई कहानियों और व्यंग्यों की पृष्ठभूमि में उपयोग किये जायेंगे। इसलिये भाषा के शब्दों के प्रयोग मेंं सावधानी बरतें और भले ही आवश्यक हो तो अंग्रेजी शब्द का प्रयोग करे। साथ ही यह भी याद रखें कि आगे आने वाले समय में आपका पाठ का प्रिंट निकालकर कहीं पढ़ाना चाहे तो उसमें अंग्रेजी शब्द का अनावश्यक प्रयोग आपके अंक काट सकता है। देश की अधिकांश हिंदी भाषी आबादी शहरी क्षेत्रों में प्रचलन में आये अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग नहीं अभी नहीं जानती है इसलिये अंग्रेजी शब्द के साथ हिंदी का शब्द जरूर जोड़ें। यह मानकर चलें कि आगे आपके पाठों के प्रिंट भी निकाल कर पढ़े जा सकते हैं।

मुख्य बात हिंदी में लिखना है। कई प्रकार की रूढताओं से परे रहकर ही यह संभव है। संगठन के रूप में सक्रिय लोग इन रूढ़ताओं को इसलिये जीवित रखना चाहते हैं ताकि नयी पीढ़ी आगे न आ सके। यही कारण है कि कई बड़े लेखक ब्लाग लेखन की आलोचना कर रहे हैं क्योंकि इससे उनका वह वर्चस्व समाप्त हो रहा है जो अपने व्यवसायिक और सामाजिक संगठनों की शक्ति पर उन लोगों ने बना रखा था। आजादी की बात करने वाले ऐसे लोग सर्वाधिक नियंत्रित व्यवस्था के समर्थक रहे है। इसलिये अंतर्जाल के लेखक भाषा के संबंध में अपने साथियों के साथ सतत चर्चा करें पर लिखते समय अपने विचार प्रवाह में बाधा न आने देते हुए बाद में संपादन के द्वारा उसे इस तरह पठनीय बनायें कि अंग्रेजी का शब्द आवश्यक होने पर ही वहां रह पाये। अपना विचार भाषा की शुद्धिकरण पर चल रही बहस से दूर ही रहें क्योंकि मैंने ऐसी बहसों से कुछ नहीं सीखा है।
………………………………………………………………………………….
दीपक भारतदीप

अंतर्जाल पर किसी से द्वेष रखना बेकार-आलेख


मेरे एक ऐसा ब्लाग जिस पर मैं ही तीन-तीन महीने जाकर नहीं देखता कि वहां क्या हो रहा है? ऐसा ब्लाग जिस पर मेरी अभी तक 12 पोस्ट और उस पर 801 व्यूज हैं। उस पर मेरे अन्य ब्लाग लिंक हैं पर वह कहीं भी लिंक नहीं है। अगर मेरे मित्र चाहें भी तो उस पर नहीं पहुंच सकते और उन्हें वहां जाने की आवश्यकता भी नहीं है क्योंकि उस पर कभी कभार दूसरे ब्लाग से कापी कर मै अपनी पोस्टें ऐसे ही रख देता हूं।
उस ब्लाग/पत्रिका पर वह टिप्पणीकर्ता सर्च में इंजिन में अंग्रेजी में यह Hasya shayari india, शब्द डालकर आया। उसने तीन टिप्पणियां लिखीं और जाहिर है जो तीसरी थी वह पहले रखी गयी थी और उसने शुरूआत में ही लिखा Actually , I belongs from UP. और उसके बाद वह मनु स्मृति के बारे में लिखा कि ऐसा उसमें नहीं लिखा गया। आप पता करों कौनसी मनु स्मृति से लिख रहे हो। कविता के बारे में उसने लिखा कि मैंने आपकी कविता पढ़ी एकदम बकवास है और हास्य व्यंग्य पर लिखा कि मैं आपकी कविता ही नहीं बल्कि अधिकतर कवितायें पढ़ी। लोगों को लिखना ही नहीं आता। तमाम तरह की उसने प्रतिकूल बातें लिखीं और आर्तनाद करते हुए लिखा ‘प्लीज मत लिखो‘। प्लीज शब्द एक पंक्ति में बीस बार था।

मैंने लिखना किसी के कहने से प्रारंभ नहीं किया था और किसी के कहने से बंद करने वाला नहीं हूं। मैं नकारात्मक विचार वाले लोगों के साथ अपनी संगत भी नहीं करता। अगर कोई मेरे विषय से असहमत होने वाली टिप्पणी लिखता है तो उसे रखने में मुझे एतराज भी नहीं है पर अपने प्रति अपमान करने की इजाजत किसी को नहीं देता। इसलिये उन टिप्पणियों को माडरेट नहीं किया और भी भी वह वहां वजूद बनाये हुए हैं।
किसी प्रतिकूल टिप्पणीकर्ता पर लिखने की जरूरत भी मुझे नहीं पड़ती पर उसने शुरूआत जिस ढंग से की वह मेरे लिये बहुत पहले से विचार का विषय है। उसकी पहली पंक्तियों से ही मैंने इस विषय पर विचार करना शूरू कर दिया था।
अभी दो दिन पहले ही मेरे एक पाठ पर एक वरिष्ठ ब्लागर ने अपनी टिप्पणी में लिखा था कि कुछ लोग यहां प्रांतवाद से ग्रस्त हैं। वह मेरे मित्र हैं और उनकी बात ने मुझे चिंता में डाल दिया। यह ब्लाग लेखक मध्य प्रदेश के हैं और मैं भी मध्यप्रदेश का हूं। मध्यप्रदेश के इस समय बहुत सारे ब्लाग लेखक अंतर्जाल पर अति सक्रिय हैं बल्कि उनका लिखा अत्यंत प्रभावी भी प्रमाणित हो रहा है, अगर ऐसे में उनके मन में एसी बात हैं तो सभी प्रदेशों के ब्लाग लेखकों को आत्ममंथन करना चाहिए। हो सकता है यह संदेह निरर्थक हो पर ऐसी कुछ गतिविधियां अवश्य हो रही होंगी जिससे उत्तर प्रदेश, दिल्ली, बिहार या अन्य बड़े प्रदेशों और शहरों के ब्लाग लेखकों के जाने या अनजाने कृत्य से एसा झलक रहा हो। जहां तक मेरा सवाल है मैं तो लिखने में ही इस तरह मस्त रहता हूं कि मेरा इस तरफ ध्यान नहीं जाता। फिर समय भी इतना नहीं मिल पाता कि मैं इस तरफ ध्यान दे सकूं। वैसे भी मुझे तो हर प्रदेश से बराबर समर्थन मिल रहा है और फिर मेरे विषय ही ऐसे हैं कि देश के किसी प्रदेश का पाठक एक बार अगर मेरे ब्लाग को रुचि से पढ़ जाये तो मुझसे दूर रह भी नहीं सकता। यही कारण है कि इस पाठ को मैं लिख रहा हूं कि ताकि कोई जाने अनजाने अपनी गतिविधियों से ऐसे संदेह पैदा कर रहा हो तो वह अपनी तरफ ध्यान दे। इसलिये कुछ आत्ममंथन कर लिया जाये तो अच्छा रहेगा। अगर मेरी किसी गतिविधि से ऐसी आशंका हो तो बता दें फिर उसमें सुधार कर लूंगा।
बात उत्तर प्रदेश की जरूर करूंगा क्योंकि इस मामले में बहुत समय से लिखने का विचार करता रहा था। अगर मेरी आलोचना या निंदा करनी है तो उस टिप्पणीकर्ता को यह बताने की क्या आवश्यकता थी कि वह उत्तर प्रदेश से है। क्या वह बताना चाहता था कि उत्तर प्रदेश का होना ही विद्वान होने का प्रमाण है और इसी कारण वह मुझे फेल भी कर रहा है। क्या वह बताना चाहता है कि मध्यप्रदेश का होने के कारण मुझे उसके उत्तर प्रदेश होने का आभास होते ही विचलित हो जाना चाहिए।
वह कोई आम पाठक नहीं हो सकता। वह कोई ब्लाग लेखक ही है जो मुझसे बहुत चिढ़ा हुआ है। रोमन लिपि में हिंदी लिखकर वह मुझे धोखा नहीं दे सकता। वह डरपोक भी है क्योंकि मेरे उस ब्लाग से वह दूसरे ब्लाग पर भी गया था पर उसने वहां ऐसी टिप्पणी नहीं लिखी। वजह! उसे पता है कि यह ब्लाग लेखक आर्ई डी वगैरह से ढूंढ नहीं सकता पर दूसरे ब्लाग पर धुरंधर ब्लाग लेखक आते हैं जो आई डी से उसे पकड़ सकते हैं। उड़न तश्तरी ने अपने एक आलेख में ऐसे ही एक टिप्पणीकर्ता को पहचानने का दावा किया था और वह इन ब्लाग पर आते हैं। मैंने छद्म नामों के बारे में कहा भी है कि उसमें मेरे मित्र और आलोचक दोनों ही हैं। ऐसे में अधिक माथापच्ची करना मैं ठीक नहीं समझता। उसके ब्लाग लेखक होने पर संदेह इसलिये भी है कि क्योंकि आजकल अनेक ब्लाग लेखक फोरमों की बजाय सर्च इंजिनों में ही प्रयोग कर रहे हैं। संभवतः उसने मेरा वह ब्लाग ऐसे ही पकड़ा होगा।

मुख्य बात तो प्रदेश का नाम इस तरह लिखना जैसे कि उससे वह कोई ऊंचा ज्ञान रखने वाला हो अपने आप में उसकी संकीर्ण मानसिकता का परिचायक है। मैंने यह विषय पहले इसलिये उठाया कि अंतर्जाल पर ऐसे किसी भ्रम को पालना ही निरर्थक है जिसका अस्तित्व ही नहीं है। अपने प्रारम्भिक दौर में हिंदी में उत्तर प्रदेश के लेखकों को बहुत प्रभाव रहा था। सच तो यह है कि भारत के अन्य प्रदेशों में हिंदी पढ़ाने वाले शिक्षकों की बहुत बड़ी संख्या उत्तर प्रदेश से ही थी। पाठय पुस्तकों में उत्तर प्रदेश के लेखकों की रचनाओं को ही स्वाभाविक रूप से अधिक स्थान मिला। हिंदी के प्रचार माध्यमों में उत्तर प्रदेश के लोग बहुतायत में रहे मगर समय के साथ अन्य प्रदेशों में अगर हिंदी का विस्तार हुआ तो वहां लेखक भी पैदा हुए। मध्य प्रदेश के हरिशंकर परसाईं और शरद जोशी का व्यंग्यकार के रूप में उल्लेखनीय योगदान है। अब हिंदी प्रचार माध्यमों में समस्त प्रदेशों के लोग सक्रिय हैं। उत्तर प्रदेश के बुद्धिजीवी भी किसी भी प्रकार का भेदभाव किये बिना अन्य प्रदेश के लोगों के साथ जुड़े हुए हैं पर एक वर्ग है जो इस सत्य को स्वीकार नहीं कर रहा कि उत्तर प्रदेश के बाहर भी बहुत अच्छे लेखक हो सकते हैं। उसे अपने प्रदेश के गौरव के साथ किसी दूसरे प्रदेश को गौरवान्वित होते नहीं देखना चाहता। यह वर्ग चाहता है कि उनके प्रदेश के लोगों द्वारा ही प्रतिपादित विषय पर ही समस्त प्रदेशों के बुद्धिजीवी चिंतन करते हुए उनका नेतृत्व स्वीकार करें।

हिंदी ब्लाग जगत में मेरे कुछ मित्र श्री शिवकुमार मिश्र, अफलातून, राजेंद्र त्यागी और रविंद्र प्रभात तथा अन्य कई ब्लाग लेखक बहुत बढि़या और प्रभावपूर्ण लिखते हैं क्योंकि वह किसी ऐसे प्रांतवाद के चक्कर में कभी फंसते नहीं दिखते। इसी तरह उनके लिखने का दृष्टिकोण व्यापक संदर्भों में होता है पर शायद कुछ ब्लाग लेखक जो प्रभावपूर्ण नहीं लिख पा रहे उनको यही एक सहारा लगता है कि कभी किसी रूप में प्रांत तो कभी शहर का नाम लेकर अपने लिए हिट जुटाये जायें। सच तो यह है कि वह इसी सोच के चलते प्रभावहीन भी होते जा रहे हैं। मैं ऐसे अनेक पाठ देख चुका हूं जो मुझे संकीर्ण आधारों पर लिखे जाने के कारण प्रभावित नहीं कर पाते।
मेरा अपने समग्र साथियों को यही संदेश है कि वह प्रांत या शहरों के दायरों में बंध कर न लिखें। यह अंतर्जाल है जहां हजारों पाठक आ रहे हैं जिनकी दिलचस्पी आपके पाठ में हैं। वह आपके प्रदेश के है केवल इसलिये आपको पसंद नहीं करेंगे बल्कि वह अपने मन के संतोष के लिये पढ़ना चाहेंगे। हो सकता है कि आप प्रांत के नाम पर अपने लिये हिंदी फोरम पर कुछ दिन अपने लिए हिट जुटा लें पर कुछ समय बाद वह भी आपसे उकताने लगेंगे। दीर्घकालीन दृष्टि से व्यापक विषयों पर बृहद शैली में लिखना ही सकारात्मक परिणाम दे सकता है। मैं तो ऐसी संभावना देख रहा हूं कि जब बेहतर लिखने पर अन्य देशों में भी अपने मित्र बना सकते हैं क्योंकि भाषा की दीवार अब धीरे धीरे गिरती नजर आ रही है।
मैंने यह बात उस टिप्पणीकर्ता की अपमानजनक टिप्पणियों से क्षुब्ध होकर नहीं लिखी बल्कि उसने अपने उत्तर प्रदेश के होने का जिस तरह प्रदर्शन किया उसने हैरान हुआ। मेरा अनुमान है कि वह कोई ब्लाग लेखक है। इसका अनुमान भी करता हूं कि वह कौन हो सकता है? वह इस लेखक को पढ़ेगा यह भी मेरा दावा है क्योंकि मैं उसके वही शब्द श्रेणी में उसी ब्लाग पर रखूंगा जहां वह आया था। वह मुझे सिखाये उससे अधिक उसे सीखने की जरूरत है। वह मेरे ऐसे ब्लाग पर क्यों आया जिसे मैं कहूं कि हल्का है? मेरे कुछ मित्रों को याद होगा जनवरी में मेरे एक हल्के ब्लाग की रेटिंग पांच रखकर मुझे अपमानित किया गया था और वही ब्लाग अब मेरा सबसे हिट ब्लाग बनने जा रहा है। यह दूसरा अवसर है जब मेरे हल्के ब्लाग को निशाना बनाया गया है-क्या छानबीन का विषय नहीं है। मैं कभी इनसे विचलित नहीं होता क्योंकि मुझे अपने ब्लाग लेखक मित्रों ने ही इतना साहसी बना दिया है कि मुझे पर ऐसी टिप्पणियों की परवाह तक नहीं होती। इन ब्लाग लेखकों में उत्तर प्रदेश के भी ब्लाग लेखक मित्र भी शामिल है। जहां तक पाठकों का सवाल है तो मुझे पता है कि अंतर्जाल पर पढ़ने वाले व्यापक दृष्टिकोण वाले ही होते हैं और उन पर रहे मेरे संभावित प्रभाव के ही भय से कुछ लोग मुझे विचलित करने का प्रयास कर रहे है। मैंने तो अपने पाठों में कई बार लिखा है कि राष्ट्र, प्रांत. शहर, जाति, धर्म, भाषा और वर्ग के नाम पर भ्रामक समूह बनाये गये हैं जिनको बनाने वाले लोग अन्य लोगों को भेड़ की तरह हांकते हैं। बाहर से ठोस दिखने वाले यह समूह वैचारिक रूप से खोखले होते हैं और इनका संचालन वाद और नारों के द्वारा किया जाता है। लेख को समाप्त करने से पहले याद आया कि मैं पिछले कुछ समय से एक ब्लाग लेखक से बहुत नाराज था कि उसने मेरी एक कविता पर बहुत बदतमीजी से टिप्पणी लिखी थी हालांकि वह बहुत विद्वान हैं और मैं कभी उन पर बरसने वाला था पर वह उस दिन मेरी एक कविता पर प्रसन्नता से इतनी जोरदार टिप्पणी रख गये कि मैं हक्का बक्का रह गया। तब मेरे मन में आया कि यहां किसी से द्वेष रखना बेकार है। इस कथित प्रांतवाद पर शेष बात फिर कभी।

हास्य कविताएं और गंभीर चिंतन है पाठकों की पसंद-संपादकीय


कविता लिखना बहुत सहज है और कोई भी लिख सकता है पर वह पाठक के हृदय में उतर जाये वही कविता उसकी भाषा का साहित्य बन जाती है। जहां कवि में यह भावना आयी कि वह अपने लिखे से समाज में बदलाव लायेगा वहां न केवल अपनी रचनाधर्मिता को खो बैठता है वहीं कुछ समय बाद अपनी रचनाओं से ही निराश होने लगता है। मूलतः मैं भावुक हूं और मुझे कवि होना चाहिए पर मैंने अपनी पहली रचनाएं गद्य के रूप में ही लिखी। यही कारण है कि मेरी कविताओं के गद्य होने का बोध भी होता है। मैं अपने लिखने पर स्वयं खुश होता हूं पर अगर कोई उसे पढ़ता है तो और भी खुशी होती है।

मेरी अनेक संपादकों से मित्रता है और जब मैं उनको अपनी कविता प्रकाशन के लिए देता हूं तो नाकभौं सिकोड़ लेते हैं और अगर उसे ही मैं खड़े ही गद्य कर दूं तो वह उसे छाप लेते हैं। कुछ लंबी कवितायें मैंने जानबूझकर लिखकर एक संपादक को दीं तो वह बिना देखे ही उनको नकारते हुए कहने लगे-‘अरे यार, कोई गद्य रचना हो तो दो। मैंने उससे दो कागा मांगे और बातें करते हुए ही उसी कविता को गद्य में बदल दिया। वह छप गयी और उसकी तारीफ भी हुई। मेरे एक मित्र ने उसकी तारीफ की और कहा कि‘इसी तरह ही व्यंग्य लिखा करो। कविताओं में इतना मजा नहीं आता।’
कुछ लोगों को कविता से एलर्जी है और कहीं छपी कविता को देखकर उससे मूंह फेर लेते हैं। उसके पास दिख रहा चुटकुला पढ़ लेंगे पर वह कविता नहीं पढ़ेंगे। हां, इस आदत के बारे में कई लोग मेरे सामने स्वीकार कर चुके हैं।

कविता लिखने की एक विधा है और उसकी विषय सामग्री ही महत्वपूर्ण होती है उसका स्वरूप नहीं। मुख्य बात यह है कि सृजनकर्ता अपने पाठ में किस विषय को किन शब्दों और भावों को प्रवाहित कर रहा है यह अधिक महत्वपूर्ण है। अगर आज कवियों को सम्मान कम मिल रहा है (कुछ व्यवसायिक हास्य कवियों या विभिन्न विचारधाराओं से जुड़े कवियों की बाद छोड़ दें) तो इसका कारण यह है कि आजकल पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होना कोई आसान काम नहीं है और बहुत कम लोग होते हैं जिनको स्थान मिल पाता है। ऐसे में कवियों के लिऐ अपने पाठों को रचना के अलावा उनको पाठकों तक पहुंचाने का मार्ग भी प्रशस्त करना कठिन हो जाता है। जिन्होंने एक सीमित दायरे में मुझे पढ़ा है वह अक्सर मुझ कहते हैं कि‘तुम अपनी रचनाएं बड़े अखबारों में क्यों नहीं भेजते।‘
मैं आखिर वहां अपनी रचनाएं कैसे भेजू। पहले उनको परिश्रम से टाइप करूं फिर डाक के पैसे खर्च कर उनको भिजवाऊं और प्रतीक्षा करता रहूं कि कब प्रकाशित हो रहीं हैं। मेरी यह प्रतीक्षा कभी समाप्त नहीं हुई। राष्ट्रीय और प्रादेशिक स्तर पर रचनाएं छपीं पर उसने कोई आय नहीं हुई। एजेंसियों के माध्यम से कई जगह मेरी रचनाएं प्रकाशित हुई और लोग उनके बारे में कोई अपनी राय स्पष्ट रूप से नहीं देते थे जबकि गद्य पर उनकी बाछें खिल जातीं थीं। राष्ट्रीय स्तर पर छपी रचनाओं की अनेक कटिंग आईं, पर फिर भी मैं भीड़ में ही खोया रहा। कविताएं अगर छपीं तो वह स्थानीय स्तर की पत्र-पत्रिकाओं में ही छपीं।

वास्तविक लेखक को अपने विषयों पर चिंतन और मनन के अलावा अन्य कुछ नहीं आता ऐसे में बाजार का प्रबंधन करना उसके लिए कठिन है। ऐसी स्थिति में भाग्य कहें यह कौशल कुछ कवियों की रचनाएं इन पत्र-पत्रिकाओं मेेंं छप जातीं हैं और उनके विषय शायद लोगों का पसंद नहीं होते यही कारण है कवियों के प्रति लोगों के मन में निराशावादी रवैया घर कर गया है।

फिर पीड़ा से ही कविता का जन्म होता है और इस देश में पीड़ा बहुत है इसलिये कवि भी बहुत है। यह कवि उस पीड़ा को अपने शब्दों में प्रशंसा की आशा में व्यक्त करते हैं और चंद लोग उनको दिखाने के लिये दाद देते है तो उनको यह भ्रम हो जाता है। जबकि वास्वविकता यह है कि आम लोग ऐसी कविताएं पढ़ना चाहते हैं जिसमें कोई संदेश होने के साथ उसका आत्मविश्वास बढ़ता हो या उसको हंसने का अवसर मिलता हो। यही कारण है कि साहित्यक दृष्टि से नहीं लिखी गयी हास्य कवितायें भी लोगों में वाहवाही लूटती हैं। देखा जाये तो हास्य कविताएं अपने आप में कविताएं होती ही नहीं है। यह मैं कह रहा हूं जो तीन सौ से अधिक हास्य कवितायें अपने ब्लाग पर लिख चुका हूं। मेरे निजी मित्र जो कि मेरे द्वारा कवितायें लिखने पर नाकभौं सिकोड़ते हैं वह भी कहते हैं कि मजा आ गया पर यार उसको हम कविता नहीं मानेंगे।’
वह प्रतिदिन मुझसे व्यंग्य की अपेक्षा करते हैं यह संभव नहीं है। वैसे मैं अगर बेहतर व्यंग्य लिखना चाहूं तो उसके लिये मुझे पहले हाथ से लिखना पड़ेगा और फिर उसे यहां टाईप किया जा सकता है। फिलहाल यह संभव नहीं है क्योंकि यहां से किसी भी प्रकार की आय या सहयोग की कोई फिलहाल आशा नहीं है। पाठक संख्या की वृद्धि की गति धीमी है। फिर अभी कोई विज्ञापन वगैरह नहीं है। इसके बावजूद यहां हर तरह के पाठक हैं। हास्य कविताओं ने जहां लोकप्रियता दिलाई वहीं गंभीर चिंतन (अपने निजी मित्रों में केवल इसलिये ही मुझे लेखक माना जाता है) ने तो कई ऐसे लोगों के हृदय में बिठा दिया है कि आप अगर उनके सामने मेरे नाम लेंगे तो उनके चेहरे पर मुस्कान आ जायेगी-यह मेरी आत्मप्रवंचना नहीं है मेरे निजी मित्र यही राय रखते हैं। प्रसंगवश मैं सोच रहा हूं कि अपने रजिस्टर में दज दीपक बापू कहिन में राजेंद्र अवस्थी का वह चिंतन यहां लिखूं जिसने मुझे इस चिंतन की तरफ मोड़ा। हालांकि मैं चिंतन पहले भी लिखता था पर उनकी रचना पढ़ने के बाद मेरे अंंदर चिंतन लिखने का आत्मविश्वास आया उस पर स्चयं भी आश्चर्यचकित होकर देखता हूं और लिखता हूं। उस समय इतना डूब जाता हूं कि लगता है कि जो लिख रहा है वह कोई और है। यही कारण है कि हमेशा सभी ब्लाग लेखकों को ललकार कहता हूं कि अगर पढ़ोगे नहीं तो तुम क्या तुम्हारे फरिश्ते भी मौलिक लेखन नहीं कर सकते। राजेंद्र अवस्थी जी का वह चिंतन मैं कई बार पढ़ता हूं और मुझे उसे पढ़ने में इतना मजा आता है कि कुछ लिखने का मन करने लगता है।

मुद्दे की बात कविता की है। कविता में पीड़ाओं को व्यक्त करना बुरी बात नहीं है पर आपके पास उनकी कोई दवा नहीं होती ऐसे में आप अपनी कविताओं के पाठकों में आत्मविश्वास स्थापित करें जिससे कि वह उन पीड़ाओं को सहजता से अनुभव कर सकें। आप इस बात को अनुभव करें कि सुख और दुख की अनुभूति तो मन से है ऐसे में पाठक के लिये अपने कविताओं में ऐसे शब्द जरूर रखें जिससे उसमें आत्मविश्वास पैदा हो। नित-प्रतिदिन मैं अंतर्जाल पर कई ऐसे कवियों के नाम मैं पढ़ता हूं जिनके बारे में कहीं पढ़ा नहीं। संभवतः इसका कारण यह है कि हिंदी भले ही पूरे देश की भाषा है पर इसका एक प्रादेशिक स्वरूप भी है। कई कवि अपने प्रदेशों में बहुत जाने जाते हैं क्योंकि उनके नाम वहां के अखबारों में छपते रहते हैं पर दूसरे प्रदेश में उनको कोई जानता तक नहीं। यह अलग बात है कि अंतर्जाल इस सीमा को समाप्त कर देगा। ऐसे में जो कवि और लेखक अपनी मौलिकता के साथ यहां लिखेंगे उनको देश ही नहीं विदेश में भी लोकप्रियता मिलेगी। शर्त यही है कि उनकी रचनाएं बहिर्मुखी होना चाहिए। कवियों के अपने रचनाओं को लिखते समय इस बात की परवाह नहीं करना चाहिए कि उस पर उनको प्रतिक्रिया त्वरित मिलेगी कि नहीं। डूब कर लिखें और पीड़ा को अभिव्यक्ति देते हुए पाठकों का आत्मविश्वास बढ़ायें।

अगर मैं पाठको की प्रतिक्रियाओं को देखूं तो उससे स्पष्ट संकेत मिलता है कि या तो हंसाओ या ऐसा संदेश दो जिससे आत्म्विश्वास बढ़े या कोई ऐसा चिंतन व्यक्त करो जो सकारात्मक सोच हमारे अंदर भी उत्पन्न करे। अक्सर कुछ लोग सोचते हैं कि मैं अपने ब्लाग/पत्रिकाओं पर इतना अधिक लिखता क्यों हूं? इसका जवाब है पाठकों के लिये यह पत्रिका है और मेरे लिये डायरी। वैसे कल अगर अवसर मिला तो मैं राजेंद्र अवस्थी का वह लेख इसी ब्लाग पर लिखूंगा क्योंकि वह मुझे भुलाये नहींं भूलता। आज मैं गंभीर मूड में था और एक चिंतन मेरे दिमाग में चल रहा था पर जब मैंने अपने उस रजिस्टर को खोलकर देखा तो उसमें वह दिखाई दिया तब मैंने सोचा कि इतना इतना अच्छा चिंतन मैं नहीं लिख सकता क्यों न इसे टाईप कर अपने ब्लाग@पत्रिका पर चढ़ा दिया जाये।

अपने ब्लाग/पत्रिकाओं पर अधिक लिखने का जहां तक प्रश्न है। जब मुझे लोकप्रियता मिल जायेगी तो अपना एक ही ब्लाग पर लिखूंगा पर अभी वह दूर है। सबसे बड़ी बात यह है कि हास्य कवितायें लिखने को मन अब नहीं करता क्योंकि वह हिंदी के यूनिकोड में अपने पाठ काम चलाने के लिए लिख रहा था। अब देव और कृतिदेव का यूनिकोड आ जाने से जब भी हास्य कविता लिखने का विचार करता हूं तब गद्य की तरफ ही मन चला जाता है। यह आश्चर्य की बात है जिन हास्य कविताओं से लोकप्रियता मिली वह मेरा कृत्रिम रूप है। यह भी एक वास्तविकता है कि तब मैं यह मानकर चल रहा था कि इस तरह अधिक मेहनत होगी नहीं। जब तक हो रही है ठीक है। फिर अपनी शूरूआत में ही मैं पढ़ चुका था कि अपने ब्लाग पर नियमित रूप से लिखते रहो इसी कारण भी रचनाकर्म अनवरत चलता रहा। अब मुझे कोई जल्दी भी नहीं है कृतिदेव में मैं यहां लंबी पारी खेलूंगा। हां याद आया जब मुझे सात वर्ष उच्च रक्तचाप हुआ था तब एक संपर्क में आने वाली युवा महिला ने मुझसे सहानुभूति जताते हुए पूछा था-‘इतनी छोटी आयु में आपको उच्च रक्तचाप हो कैसे गया?’
तब मैंने उससे कहा था-‘उच्च रक्तचाप मेरे व्यसनों का परिणाम हैं। एक बार मैं थोड़ा संभल जाऊं तो लंबी पारी खेलूंगा।’
एक माह पहले फिर उससे मुलाकात हुई तब उसने उत्सुकता से पूछा-कैसी चल रही है यह दूसरी पारी? आपके चेहरे पर देखकर तो सब ठीक लग रहा है।’
मैं केवल मुस्करा दिया।
कल इस ब्लाग/पत्रिका के बीस हजार पाठक संख्या पार करने पर मैं कुछ कह नहीं पाया आज कह रहा हूं। लिखो! बेपरवाह होकर लिखो! आम पाठक के लिये लिखो! लोगों का आत्मविश्वास बढ़ाने के लिये लिखोगे तो तुम में भी आत्मविश्वास आयेगा। मेरे निजी मित्र न केवल मेरे पाठों को पढ़ते हैं बल्कि मेरे ब्लाग/पत्रिकाओं पर लिंक अन्य ब्लाग के विषयों पर चर्चा करते हैं और उनकी पसंद के आधार पर ही मैं लिखने का प्रयास करता हूं। हालांकि मै हमेशा उनकी पसंद का ध्यान नहीं रखता। वह मेरे इस संपादकीय को पसंद नहीं करेंगे पर कभी कभी अपने मन की बात लिखना बुरा नहीं होता। आखिर लेखक का भी मन होता है।

अपनी गलतियों से सिखाता हुआ बीस हजार की पाठक संख्या पार कर गया यह ब्लोग


मेरे यह ब्लाग/पत्रिका भी आज बीस हजार की पाठक संख्या को पार कर गया। ऐसा करने वाला यह तीसरा ब्लाग/पत्रिका है। इस ब्लाग का नाम गंभीरता से नहीं लिखा गया। पता तो केवल प्रयोग करने के लिये डाला गया इसी कारण इतना लंबा है। इस ब्लाग से मेरी ऐसी यादें जुड़ीं हुईं है जो मेरा आत्म विश्वास बढ़ाती हैं। कभी कभी मेरे दिमाग में उग्रता का भाव आता है तो मैं इसके लिये ही लिखने लगता हूं। अंतर्जाल पर अपने लिखने के लिऐ एक लेखक जब तकनीकी ज्ञान से रहित हो तब पर किन हालतों से गुजरता है और किस तरह अपनी गलतियों से सीखता है यही संदेश यह ब्लाग मुझे देता है।

आज से सात वर्ष पूर्व मैं उच्च रक्तचाप का शिकार हुआ। तब मुझे लगा कि मैं जब भी अध्यात्म और लेखन से दूर जाता हूं मेरे अंदर अनेक शारीरिक विकार उत्पन्न होते है। ऐसे में मैंने लिखने में अपना मन लगाने के साथ ध्यान में अपना मन लगाने का विचार किया। चूंकि यह दोनों मनोवृत्तियां मेरे अंदर प्रारंभ से ही है इसलिये अनेक लोगों से व्यक्तिगत संपर्क में इस पर चर्चा होती रहती है। उन्हीं दिनों एक भक्त किस्म के व्यक्ति को मैं अपनी एक अध्यात्म संबंधी रचना दिखा रहा था तो उसने मुझसे कहा ‘तुम तो दीपक बापू हो‘। फिर वह जब भी मिलते मुझे इसी नाम से बुलाते हैं। उन्हीं दिनों मैं एक रजिस्टर खरीद लाया और उस पर ऐसे ही शीर्षक लिख दिया ‘दीपक बापू कहिन’। अकेले बैठकर उस पर चिंतन वगैरह लिखता और कभी कभी पत्रिकाओं के लिए व्यंग्य वगैरह लिखता तो वह अलग से लिखता। उस रजिस्टर पर मैंने कविताएं भीं लिखीं।

जब अंतर्जाल पर लिखना शुरू किया तो वह रजिस्टर मेरे पास ही था क्योंकि मैं कृतिदेव से पाठ लिखकर इस प्रकाशित करने वाला था। अक्षरग्राम से मेरा संपर्क जम नहीं रहा था। पता नहीं कैसे वर्डप्रेस पर जब दीपक बापू कहिन लिखा कर हाथ पांव मारे तो अक्षरग्राम जैसा कुछ सामने आता लगा-तब मैं नहीं जानता था कि यह एक दरवाजा है जहां से मैं दाखिल हो रहा हूं। फिर नारद से भी संपर्क नहीं जम रहा था तब चल पड़ा था अपनी अकेली राह। हां, मुझे याद है उन्मुक्त का वह संदेश ‘आपका ब्लाग तो कूड़ा दिख रहा है।’ हतप्रभ होकर मैंने दूसरा ब्लाग बनाया जिसे आज ‘शब्द पत्रिका’ फिर तीसरा ‘हिंदी पत्रिका’ के नाम से जाना जाता है। ‘हिंदी पत्रिका’ पर यूनिकोड में एक क्षणिका टाईप कर प्रकाशित की और उस पर मिली थी मुझे पहली टिप्पणी। मगर मुझे आगे लेकर निकली थी उन्मुक्त जी और सागरचंद नाहर की टिप्पणियां। मैं उन्मुक्त जी का प्रशंसक हूं। कभी भ्रमित नहीं करते और तकनीकी ब्लाग लेखकों में उनको और अनुनादजी को मैं बहुत मानता हूं। श्रीश शर्मा जी की बहुत याद आती है पर वह दिखते ही नहीं।

ब्लाग लेखकों ने प्रेरित किया और समय समय पर टूल भी बताये पर ब्लाग की तकनीकी के बारे में मुझे किसी ने कुछ नहीं सिखाया। अगर मैं सीखा तो अपनी गलतियों से। अभी दोतीन दिनों से चिट्ठाकार चर्चा में बहस इस बात पर चल रही है कि किसी के ब्लाग पर व्यस्क सामग्री की चेतावनी आ रही है। तमाम बड़े ब्लाग लेखक उसके साथ सहानुभूति जता रहे हैं पर यह किसी को समझ में नहीं आ रहा है कि ब्लाग स्पाट की सैटिंग में उसने व्यस्क सामग्री पर ‘हां‘ पर क्लिक कर रखा है। मैंने दो दिन पहले भी बताया था और आज भी लिख रहा हूं। पहले मेरा लिखा अगर पढ़ा होता तो शायद आज उनको इतने सारे शब्द खर्च नहीं करना पड़ता। इससे एक बात तो पता लगती है कि जो तकनीकी श्रेणी का छलावा है वह भी कम नहीं है।

चिट्ठा चर्चा में श्री समीरलाल ‘उड़न तश्तरी’ ने लिखा था कि ‘दीपक बापू कहिन इस ब्लाग जगत में नया अलख जगायेगा‘। मैं आज भी सोचता हूं कि उन्होंने केवल तुक्का मारा था या पढ़कर प्रभावित हुए थे। क्योंकि मुझे लगता है कि वह अब कहीं जाकर बेहतर लिख रहे हैं। उस समय तो मुझे उनके पाठों में अधिक रुचि नहीं रहती थी। उस समय मैं उनकी परवाह भी नहीं करता था पर आज देखकर लगता है कि वह वाकई प्रभावशाली व्यक्तित्व के मालिक हैं। उस समय उनके अधिकतर पाठ ब्लाग लेखकों को ही प्रभावित करने वाले लगते थे। अब उनके लेखक में जो गंभीरता आ रही उससे ही लगता है कि वह न केवल अच्छे लेखक भी हैं बल्कि पाठक भी हैं। वैसे अच्छे पाठक अच्छे लेखक हो यह जरूरी नहीं है पर अच्छे लेखक जरूर अच्छे पाठक होते हैं। आप देखिये तीन दिन पहले मैंने ही ब्लाग स्पाट के ब्लाग लेखक को व्यस्क सामग्री संबंधी जानकारी दी पर किसी ने नहीं पढ़ी और आज सभी लोग फिर उसी बहस में लगे रहे। यह इस बात का प्रमाण है कि लोग कम पढ़ते हैं और लिखने का प्रयास अधिक करते हैं। मैं आज यह सोचता हूं कि मैं एक ब्लाग लेखक होकर वेबसाइट धारकों सलाह लेने की गलती करता था इसी कारण हमेशा परेशान रहा-यह संदेश मुझे इसी ब्लाग पर मिलता है। इस ब्लाग को विलंब इसलिये भी लगा कि मैंने इस पर रचनाएं भी एक अंतराल के बाद ही दोबारा प्रकाशित करना शुरू कीं।

आने वाले समय में भी मैं सोच रहा हूं कि थोड़ा अधिक बेपरवाह होकर लिखा जाये। अभी कुछ बातें स्पष्ट करने में थोड़ा संकोच होता है पर अब उसे भी छोड़ना होगा। अंतर्जाल पर लटके-झटके और भ्रमजाल का विस्तार हो रहा है। फिर अब यह भी अनुभव हो रहा है कि वेबसाइट बनाने वाले ब्लाग लेखक एक तरह से अपने को अलग समझ रहे हैं। वह अपने को ऐसा ही समझ रहे हैं जैसे अधिक पैसा खर्च कर विशिष्ट कक्ष में बैठे हैं। इनमें कुछ मेरे मित्र है और वाकई भोले हैं पर कुछ चालाक हैं और उनकी मित्रता केवल दिखावा है। लिखने के मामले में अधिक प्रभाव नहीं छोड़ते भले ही टिप्पणियां उनके पास अधिक होती हैं। वेबसाइट का मालिक होने के बावजूद वह ब्लाग जगत में इसलिये सक्रिय हैं कि उनके कुछ निहितार्थ हैं। मैं मूलतः अल्हड आदमी हूं पर चालाकियां मेरे सामने छिपतीं नहीं है। बहरहाल मैं अपने पाठको, मित्रों और हितचिंतकों का आभारी हूं। यह मेरा सेनापति ब्लाग है और ब्लाग लेखकों के साथ ही अनेक वेबसाइटें इस पर मेहरबान हैं। हां, पाठकों का समर्थन अधिक नहीं मिल पा रहा है इसलिये यह विलंब से इस मुकाम पर आया। अब मेरा सोचना है कि मुझे लिखना कम कर यहां हिंदी ब्लाग जगत पर साहित्य लिखने वालों पर प्रेरणा देन का काम भी टिप्पणियां उनके ब्लाग पर रखकर करना चाहिए। यहां ऐसा लिखने वाले कई हैं पर उनको प्रेरित करने वालों में समीरलाल और दो तीन अन्य लोग ही इस बात के लिए प्रयत्नशील रहते हैं पर यह संख्या पर्याप्त नहीं है।
विभिन्न प्रमुख स्थानों से आये पाठक

narad.akshargram.com 965
blogvani.com 819
filmyblogs.com/hindi.jsp 334
google.co.in/ig?hl=hi 296
chitthajagat.in 146
blogvani.com/?mode=new 75
blogvani.com/Default.aspx?count=100 63
anantraj.blogspot.com 48
rajlekh.blogspot.com 43
narad.akshargram.com/page/2 38
rajlekh.wordpress.com 36
parikalpnaa.blogspot.com 36
gwaliortimes.com 35
blogvani.com/Default.aspx?mode=new 32
narad.akshargram.com/?show=all 31
blogvani.com/Default.aspx?count=50 28

पाठकों के पसंद से विभिन्न पाठ
Title Views
रहीम के दोहे: सं 423
पुराने ताजमहल ़/a> 212
चाणक्य नीति:अस़/a> 211
तन में तंत्र मन 193
पति-पत्नी और चो༯a> 192
वर्षा ऋतु:कहीं ༯a> 169
फिर करना अभिमा़/a> 168
संत कबीर वाणी:ज༯a> 166
भजन करते-करते भ༯a> 148
गर्मी पर लिखी ग༯a> 147
निष्काम और सहज ༯a> 139
चाणक्य नीति:कु़/a> 136
इस ब्लोगर मीट प༯a> 135
अपना नाम भी होग༯a> 128
काहेका भला आदमॼ/a> 127
रहीम के दोहे: जा 127
उसने मोबाइल की ༯a> 126
गीत-संगीत का मो༯a> 118
रहीम के दोहे: वा 115
मूर्ति पूजा से ༯a> 113
रहीम के दोहे:मा༯a> 112
अंग्रेजी की लत़/a> 111
रहीम के दोहे:मे 104
शेयर बाजार के उ༯a> 104