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ऑपरेशन में ध्यान की विधा का उपयोग-हिन्दी लेख(opretion and dhyan yoga-hindi lekh)


                ईरान के डाक्टर का एक किस्सा प्रचार माध्यमों में देखने को मिला जिसे चमत्कार या कोई विशेष बात मानकर चला जाये तो शायद बहस ही समाप्त हो जाये। दरअसल इसमें ध्यान की वह शक्ति छिपी हुई है जिसे विरले ही समझ पाते हैं। साथ ही यह भी कि भारतीय अध्यात्म के दो महान ग्रंथों ‘श्रीमद््भागवत गीता’ तथा ‘पतंजलि योग साहित्य’ को भारतीय शिक्षा प्रणाली में न पढ़ाये जाने से हमारे देश में से जो हानि हो रही है उसका अब शिक्षाविदों को अंांकलन करना चाहिए। यह भी तय करना चाहिए कि धर्मनिरपेक्षता के नाम पर इन दो ग्रंथों का शैक्षणिक पाठ्यक्रम में शामिल न कर कहीं हम अपने देश के लोगों के अपनी पुरानी विरासत से परे तो नहीं कर रहे हैं।
           पहले हम ईरान के डाक्टर हुसैन की चर्चा कर लें। ईरान के हुसैन नाम के चिकित्सक अपने मरीजों को बेहोशी का इंजेक्शन दिये बिना ही उनकी सर्जरी यानि आपरेशन करते हैं। अपने कार्य से पहले वह मरीज को आंखें बंद कर अपनी तरफ घ्यान केंद्रित करते हैं। उसके बाद अपने मुख से वह कुछ शब्द उच्चारण करते हैं जिससे मरीज का ध्यान धीरे धीरे अपने अंगों से हट जाता है और आपरेशन के दौरान उसे कोई पीड़ा अनुभव नहीं होती। इसे कुछ लोग हिप्टोनिज्म विधा से जोड़ रहे हैं तो कुछ डाक्टर साहब की कला मान रहे हैं। हमें यहां डाक्टर हुसैन साहब की प्रशंसा करने में कोई संकोच नहीं है। उनके प्रयासों में कोई दिखावा नहीं है और न ही वह कोई ऐसा काम कर रहे हैं जिससे अंधविश्वास को बढ़ावा मिले। ऐसे लोग विरले ही होते हैं जो अपने ज्ञान का दंभ भरते हुए दिखावा करते हैं। सच कहें तो डाक्टर हुसैन संभवत उन नगण्य लोगों में हैं जो जान अनजाने चाहे अनचाहे ध्यान की विधा का उपयोग अपने तरीक से करना सीख जाते हैं या कहें उनको प्रकृत्ति स्वयं उपहार के रूप में ध्यान की शक्ति प्रदान करती है । उनको पतंजलि योग साहित्य या श्रीमद्भागवत गीता पढ़ने की आवश्यकता भी नहीं होती। ध्यान की शक्ति उनको प्रकृति इस तरह प्रदान करती है कि वह समाधि आदि का ज्ञान प्राप्त किये बिना उसका लाभ लेने के साथ ही दूसरों की सहायता भी करते हैं।
           हुसैन साहब के प्रयासों से मरीज का ध्यान अपनी देह से परे हो जाता है और जो अवस्था वह प्राप्त करता है उसे हम समाधि भी कह सकते हैं। उस समय उनका पूरा ध्यान भृकुटि पर केद्रित हो जाता है। शरीर से उनका नाता न के बराबर रहता है। इतना ही नहीं उनके हृदय में डाक्टर साहब का प्रभाव इतना हो जाता है कि वह उनकी हर कही बात मानते है। स्पष्टतः ध्यान के समय वह हुसैन साहब को केंद्र बिन्दु बनाते हैं जो अंततः सर्वशक्मिान के रूप में उनके हृदय क्षेत्र पर काबिज हो जाते हैं। वहां चिक्त्सिक उनके लिये मनुष्य नहीं शक्तिमान का आंतरिक रूप हो जाता है। ऐसी स्थिति में उनकी देह के विकार वैसे भी स्वतः बाहर निकलने होते है ऐसे में हुसैन जैसे चिकित्सक के प्रयास हों तो फिर लाभ दुगुना ही होता है। देखा जाये तो ध्यान में वह शक्ति है कि वह देह को इतना आत्मनिंयत्रित और स्वच्छ रखता है उसमें विकार अपना स्थान नहीं बना पाते।
         इतिहास में ईरान का भारत से अच्छा नाता रहा है। राजनीतिक रूप से विरोध और समर्थन के इतिहास से परे होकर देखें तो अनेक विशेषज्ञ यह मानते हैं कि ईरान की संस्कृति हमारे भारत के समान ही है। कुछ तो यह मानते हैं कि हमारी संस्कृति वहीं से आकर यहां परिष्कृत हुई पर मूलतत्व करीब करीब एक जैसे हैं।
         ध्यान कहने को एक शब्द है पर जैसे जैसे इसके अभ्यस्त होते हैं वैसे ही इस प्रक्रिया से लगाव बढ़ जाता है। वैसे देखा जाये तो हम दिन भर काम करते हैं और रात को नींद अच्छी आती है। ऐसे में हम सोचते हैं कि सब ठीक है पर यह सामान्य स्थिति है इसमें मानसिक तनाव से होने वाली हानि का शनैः शनै प्रकोप होता है। हम दिन में काम करते है और रात को सोते हैं इसलिये मन और देह की शिथिलता से होने वाले सुख की अनुभूति नहीं कर पाते। जब कोई सामान्य आदमी ध्यान लगाना प्रारंभ करता है तब उसे पता लगता है कि उससे पूर्व तो कभी उसका मन और देह कभी विश्राम कर ही नहीं सकी थी। सोये तो एक दिमाग ने काम कर दिया और दूसरा काम करने लगा और जागे तो पहले वाली दिमाग में वही तनाव फिर प्रारंभ हो गया। इसके बीच में उसे विश्राम देने की स्थिति का नाम ही ध्यान है और जिसे जाग्रत अवस्था में लगाकर ही अनुभव किया जो सकता है।
ध्यान के विषय में यह लेख अवश्य पढ़ें
पतंजलि योग विज्ञान-योग साधना की चरम सीमा है समाधि (patanjali yog vigyan-yaga sadhana ki charam seema samadhi)
        भारतीय योग विधा में वही पारंगत समझा जाता है जो समाधि का चरम पद प्राप्त कर लेता है। आमतौर से अनेक योग शिक्षक योगासन और प्राणायाम तक की शिक्षा देकर यह समझते हैं कि उन्होंने अपना काम पूरा कर लिया। दरसअल ऐसे पेशेवर शिक्षक पतंजलि योग साहित्य का कखग भी नहीं जानते। चूंकि प्राणायाम तथा योगासन में दैहिक क्रियाओं का आभास होता है इसलिये लोग उसे सहजता से कर लेते हैं। इससे उनको परिश्रम से आने वाली थकावट सुख प्रदान करती है पर वह क्षणिक ही होता है । वैसे सच बात तो यह है कि अगर ध्यान न लगाया जाये तो योगासन और प्राणायाम सामान्य व्यायाम से अधिक लाभ नहीं देते। योगासन और प्राणायाम के बाद ध्यान देह और मन में विषयों की निवृत्ति कर विचारों को शुद्ध करता है यह जानना भी जरूरी है।
    पतंजलि योग साहित्य में बताया गया है कि 
           ——————————
      देशबंधश्चित्तस्य धारण।।
    ‘‘किसी एक स्थान पर चित्त को ठहराना धारणा है।’’
     तत्र प्रत्ययेकतानता ध्यानम्।।
       ‘‘उसी में चित्त का एकग्रतापूर्वक चलना ध्यान है।’’
        तर्दवार्थमात्रनिर्भासयं स्वरूपशून्यमिव समाधिः।।
        ‘‘जब ध्यान में केवल ध्येय की पूर्ति होती है और चित्त का स्वरूप शून्य हो जाता है वही ध्यान समाधि हो जाती है।’’
        त्रयमेकत्र संयम्।।
          ‘‘किसी एक विषय में तीनों का होना संयम् है।’’
           आमतौर से लोग धारणा, ध्यान और समाधि का अर्थ, ध्येय और लाभ नहीं समझते जबकि इनके बिना योग साधना में पूर्णता नहीं होती। धारणा से आशय यह है कि किसी एक वस्तु, विषय या व्यक्ति पर अपना चित्त स्थिर करना। यह क्रिया धारणा है। चित्त स्थिर होने के बाद जब वहां निरंतर बना रहता है उसे ध्यान कहा जाता है। इसके पश्चात जब चित्त वहां से हटकर शून्यता में आता है तब वह स्थिति समाधि की है। समाधि होने पर हम उस विषय, विचार, वस्तु और व्यक्ति के चिंत्तन से निवृत्त हो जाते हैं और उससे जब पुनः संपर्क होता है तो नवीनता का आभास होता है। इन क्रियाओं से हम अपने अंदर मानसिक संतापों से होने वाली होनी को खत्म कर सकते हैं। मान लीजिये किसी विषय, वस्तु या व्यक्ति को लेकर हमारे अंदर तनाव है और हम उससे निवृत्त होना चाहते हैं तो धारणा, ध्यान, और समाधि की प्रक्रिया अपनाई जा सकती है। संभव है कि वस्तु,, व्यक्ति और विषय से संबंधित समस्या का समाधाना त्वरित न हो पर उससे होने वाले संताप से होने वाली दैहिक तथा मानसिक हानि से तो बचा ही जा सकता है।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak  “Bharatdeep”,Gwalior
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भ्रष्टाचार एक अदृश्य राक्षस–हिन्दी हास्य कविताएँ/शायरी (bhrashtachar ek adrishya rakshas-hindi hasya kavitaen)


भ्रष्टाचार के खिलाफ
लड़ने को सभी तैयार हैं
पर उसके रहने की जगह तो कोई बताये,
पैसा देखकर
सभी की आंख बंद हो जाती है
चाहे जिस तरह घर में आये।
हर कोई उसे ईमानदारी से प्यार जताये।
———-
सभी को दुनियां में
भ्रष्ट लोग नज़र आते हैं,
अपने अंदर झांकने से
सभी ईमानदार घबड़ाते हैं।
भ्रष्टाचार एक अदृश्य राक्षस है
जिसे सभी गाली दे जाते हैं।

सुसज्जित बैठक कक्षों में
जमाने को चलाने वाले
भ्रष्टाचार पर फब्तियां कसते हुए
ईमानदारी पर खूब बहस करते है,
पर अपने गिरेबों में झांकने से सभी बचते हैं।

कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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बाबा रामदेव क्या चमत्कार कर पायेंगे-हिन्दी आलेख (swami ramdev ka bhrashtacha ke viruddhi andolan-hindi lekh)


बाबा रामदेव और किरणबेदी ने मिलकर भ्रष्टाचार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। कुछ लोग उनके प्रयासों पर निराश हैं तो कुछ आशंकित! इस समय देश के जो हालात हैं वह किसी से छिपे नहीं हैं क्योंकि भारत का आम आदमी अज़ीब किस्म की दुविधा में जी रहा है। स्थिति यह है कि लोग अपनी व्यथाऐं अभिव्यक्ति करने के लिये भी प्रयास नहीं कर पा रहे क्योंकि नित नये संघर्ष उनको अनवरत श्रम के लिये बाध्य कर देते हैं।
      बाबा रामदेव के आंदोलन में  चंदा लेने के अभियान पर उठेंगे सवाल-हिन्दी लेख (baba ramdev ka andolan aur chanda abhiyan-hindi lekh)
      अंततः बाबा रामदेव के निकटतम चेले ने अपनी हल्केपन का परिचय दे ही दिया जब वह दिल्ली में रामलीला मैदान में चल रहे आंदोलन के लिये पैसा उगाहने का काम करता सबके सामने दिखा। जब वह दिल्ली में आंदोलन कर रहे हैं तो न केवल उनको बल्कि उनके उस चेले को भी केवल आंदोलन के विषयों पर ही ध्यान केंद्रित करते दिखना था। यह चेला उनका पुराना साथी है और कहना चाहिए कि पर्दे के पीछे उसका बहुत बड़ा खेल है।
    उसके पैसे उगाही का कार्यक्रम टीवी पर दिखा। मंच के पीछे भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम का पोस्टर लटकाकर लाखों रुपये का चंदा देने वालों से पैसा ले रहा था। वह कह रहा था कि ‘हमें और पैसा चाहिए। वैसे जितना मिल गया उतना ही बहुत है। मैं तो यहां आया ही इसलिये था। अब मैं जाकर बाबा से कहता हूं कि आप अपना काम करते रहिये इधर मैं संभाल लूंगा।’’
          आस्थावान लोगों को हिलाने के यह दृश्य बहुत दर्दनाक था। वैसे वह चेला उनके आश्रम का व्यवसायिक कार्यक्रम ही देखता है और इधर दिल्ली में उसके आने से यह बात साफ लगी कि वह यहां भी प्रबंध करने आया है मगर उसके यह पैसा बटोरने का काम कहीं से भी इन हालातों में उपयुक्त नहीं लगता। उसके चेहरे और वाणी से ऐसा लगा कि उसे अभियान के विषयों से कम पैसे उगाहने में अधिक दिलचस्पी है।
            जहां तक बाबा रामदेव का प्रश्न है तो वह योग शिक्षा के लिये जाने जाते हैं और अब तक उनका चेहरा ही टीवी पर दिखता रहा ठीक था पर जब ऐसे महत्वपूर्ण अभियान चलते हैं कि तब उनके साथ सहयोगियों का दिखना आवश्यक था। ऐसा लगने लगा कि कि बाबा रामदेव ने सारे अभियानों का ठेका अपने चेहरे के साथ ही चलाने का फैसला किया है ताकि उनके सहयोगी आसानी से पैसा बटोर सकें जबकि होना यह चाहिए कि इस समय उनके सहयोगियों को भी उनकी तरह प्रभावी व्यक्तित्व का स्वामी दिखना चाहिए था।
अब इस आंदोलन के दौरान पैसे की आवश्यकता और उसकी वसूली के औचित्य की की बात भी कर लें। बाबा रामदेव ने स्वयं बताया था कि उनको 10 करोड़ भक्तों ने 11 अरब रुपये प्रदान किये हैं। एक अनुमान के अनुसार दिल्ली आंदोलन में 18 करोड़ रुपये खर्च आयेगा। अगर बाबा रामदेव का अभियान एकदम नया होता या उनका संगठन उसको वहन करने की स्थिति में न होता तब इस तरह चंदा वसूली करना ठीक लगता पर जब बाबा स्वयं ही यह बता चुके है कि उनके पास भक्तों का धन है तब ऐसे समय में यह वसूली उनकी छवि खराब कर सकती है। राजा शांति के समय कर वसूलते हैं पर युद्ध के समय वह अपना पूरा ध्यान उधर ही लगाते हैं। इतने बड़े अभियान के दौरान बाबा रामदेव का एक महत्वपूर्ण और विश्वसीनय सहयोगी अगर आंदोलन छोड़कर चंदा बटोरने चला जाये और वहां चतुर मुनीम की भूमिका करता दिखे तो संभव है कि अनेक लोग अपने मन में संदेह पालने लगें।
            संभव है कि पैसे को लेकर उठ रहे बवाल को थामने के लिये इस तरह का आयोजन किया गया हो जैसे कि विरोधियों को लगे कि भक्त पैसा दे रहे हैं पर इसके आशय उल्टे भी लिये जा सकते हैं। यह चालाकी बाबा रामदेव के अभियान की छवि न खराब कर सकती है बल्कि धन की दृष्टि से कमजोर लोगों का उनसे दूर भी ले जा सकती है जबकि आंदोलनों और अभियानों में उनकी सक्रिय भागीदारी ही सफलता दिलाती है। बहरहाल बाबा रामदेव के आंदोलन पर शायद बहुत कुछ लिखना पड़े क्योंकि जिस तरह के दृश्य सामने आ रहे हैं वह इसके लिये प्रेरित करते हैं। हम न तो आंदोलन के समर्थक हैं न विरोधी पर योग साधक होने के कारण इसमें दिलचस्पी है क्योंकि अंततः बाबा रामदेव का भारतीय अध्यात्म जगत में एक योगी के रूप में दर्ज हो गया है जो माया के बंधन में नहीं बंधते।
बाबा स्वामी रामदेव के हम शिष्य नहीं है पर एक योग साधक के नाते उनके अंतर्मन में चल रही साधना के साथ ही विचारक्रम का कुछ आभास है जिसे अभी पूरी तरह से लिखना संभव नहीं है। यहां एक बात बता दें कि आम बुद्धिजीवी चाहे भले ही उनके समर्थक हों इस बात का आभास नहीं कर सकते कि रामदेव बाबा की क्षमता कितनी अधिक है। उनके कथन और दावे अन्य सामान्य कथित महान लोगों से अलग हैं। वही एक व्यक्ति है जो परिणामोन्मुख आंदोलन का नेतृत्व कर सकते हैं और वह भी ऐसा जिसका सदियों तक प्रभावी हो। इससे भी आगे एक बात कहें तो शायद कुछ लोग अतिश्योक्ति समझें कि अगर बाबा रामदेव इस पथ पर चले तो एक समय अपने अंदर भगवान कृष्ण के अस्तित्व का आभास करने लगेंगे जो कि एक पूर्ण योगी के लिये ही संभव है। ऐसा हम इसलिये कह रहे हैं कि परिणाममूलक अभियान का सीधा मतलब है कि हिंसा रहित एक आधुनिक महाभारत का युद्ध! जब वह सारथी की तरह अपने अर्जुनों-मतलब साथियों-के रथ का संचालन करेंगे तब अनेक तरह से वार भी होंगे। यह एक ऐसा युद्ध होगा जिसे कोई पूर्ण योगी ही जितवा सकता है।
हां, एक अध्यात्मिक लेखक के रूप में हमें यह पता है कि अनेक भारतीय विचाराधारा समर्थक भी बाबा रामदेव को एक योग शिक्षक से अधिक महत्व नहीं देते और इसके पीछे कारण यह कि वह स्वयं योग साधक नहीं है। हम भी बाबा रामदेव को योग शिक्षक ही मानते हैं पर यह भी जानते हैं कि योग माता की कृपा से कोई भी शिक्षक महायोगी और महायोद्धा बन सकता हैं।
जो लोग या योग साधक नित बाबा रामदेव को योग शिक्षा देते हुए देखते हैं हैं वह उनके चेहरे, हावभाव, आंखें तथा कपड़ों पर ही विचार कर सकते हैं पर जो उनके अंदर एक पूर्णयोग विद्यमान है उसका आभास नियमित योग साधक को ही हो सकता है।
अब आते हैं इस बात पर कि आखिर बाबा रामदेव जब भ्रष्टाचार के विरुद्ध हिंसा रहित नया महाभारत रचेंगे तब उन पर आक्रमण किस तरह का होगा? उनका बचाव वह किस तरह करेंगे?
हम बाबा रामदेव से बहुत दूर हैं और किसी प्रत्यक्ष सहयोग के नाम पर अगर कुछ धन देना पड़े तो देंगे। कुछ लिखना पड़ा तो लिख देंगे। भारत को महान भारत बनाने के प्रयासों का सदैव हृदय से समर्थन करेंगे पर उनके साथ मैदान में आने वाले कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों को यह बता दें कि उनके विरोधियों के पास अधिक हथियार नहीं है-शक्ति तो नाम की भी नहीं है। कभी न बरसने पर हमेशा गरजने वाले बादल समूह हैं भ्रष्टाचार को सहजता से स्वीकार करने वाले लोग! मंचों पर सच्चाई की बात करते हैं पर कमरों में उनको अपना भ्रष्टाचार केवल अपनी आधिकारिक कमाई दिखती है।
अभी तो प्रचार माध्यम उनके आधार पर अपनी सामग्री बनाने के लिये प्रचार खूब कर रहे हैं पर समय आने पर यही बाबा रामदेव के विरुद्ध विष वमन करने वालों को निष्पक्षता के नाम पर स्थान देंगे।
इनमें सबसे पहला आरोप तो पैसा बनाने और योग बेचने का होगा। उनके आश्रम पर अनेक उंगलियां उठेंगी। दूसरा आरापे अपने शिष्यों के शोषण का होगा। चूंकि योगी हैं इसलिये हिन्दू धर्म के कुछ ठेकेदार भी सामने युद्ध लड़ने आयेंगे। पैसा बनाने और योग बेचने के आरोपों का तो बस एक ही जवाब है कि योगी समाज को बनाने और बचाने के लिये माया को भी अस्त्र शस्त्र की तरह उपयोग करते हैं। माया उनकी दासी होती है। समाज उनको अपना भगवान मानता है। जहां तक करों के भुगतान करने या न करने संबंधी विवाद है तो यहां यह भी स्पष्ट कर देना चाहिए कि वह तो धर्म की सेवा कर रहे हैं। अस्वस्थ समाज को स्वस्थ बना रहे हैं जो कि अनेक सांसरिक बातों से ऊपर उठकर ही किया जा सकता-मतलब कि योगी को तो केवल चलना है इधर उधर देखना उसका काम नहीं है। लक्ष्मी तो उसकी दासी है, और फिर जो व्यक्ति, समाज या संस्थायें भ्रष्टाचार को संरक्षण दे रही है वह किस तरह नैतिकता और आदर्श की दुहाई एक योगी को दे सकती हैं?
आखिरी बात यह है कि सच में ही समाज का कल्याण करना है तो धर्म की आड़ लेना बुरा नहीं है। बुरा तो यह है कि अधर्म की बात धर्म की आड़ लेकर की जाये। चलते चलते एक बात कहें जो किसी योगी के आत्मविश्वास और ज्ञान का प्रमाण है वह यह कि बाबा रामदेव के अनुसार भ्रष्टाचार के विरुद्ध किसी एक मामले पर प्रतीक के रूप में काम करना शुरुआत है न कि लक्ष्य! अगर आप योग साधक नहीं हैं तो इस बात का अनुभव नहीं कर सकते कि योग माता की कृपा से ही कोई ऐसी दिव्य दृष्टि पा सकता है जो कि छोटे प्रयासों से संक्षिप्त अवधि में बृहद लक्ष्य की प्राप्ति की कल्पना न करे।
वैसे बाबा रामदेव को भी यह समझना चाहिए कि अगर कुछ जागरुक और सक्रिय लोग उनका समर्थन करने के लिये आगे आयें हैं तो वह उनका सही उपयोग करें। उनका आना वह योगमाता की कृपा का ही परिणाम है जो सभी योग साधकों को नहीं मिलती। योग से जुड़े भी दो प्रकार के लोग होते हैं-एक तो पूर्ण निष्काम योगी जो समाज के लिये कुछ करने का माद्दा रखते हैं दूसरे योग साधक जो केवल अपनी देह, मन तथा विचारों के विकारों के विसर्जन के अधिक कुछ नहीं करते। ऐसे में हम जैसा एक मामूली नियमित योग साधक केवल उनकी लक्ष्य प्राप्ति के लिये योग माता से अधिक कृपा की कामना ही कर सकता है। देखेंगे आगे आगे क्या होता है? बहरहाल उनके समर्थकों के साथ ही आलोचकों को भी बता दें कि एक योगी के प्रयास सामान्य लोगों से अधिक गंभीर और दूरगामी परिणाम देने वाले होते हैं। समर्थकों से कहेंगे कि वह योग साधना अवश्य शुरु करें और आलोचकों से कहेंगे कि पहले यह बताओ कि क्या तुम योग साधना करते हो। अगर नहीं तो यह अपने आप ही तय करो कि क्या तुम्हें उनकी आलोचना का हक है? भारत का नागरिक और योग साधक होने के नाते हमारी बाबा रामदेव के ंव्यक्तित्व और कृतित्व में हमेशा रुचि रही है और रहेगी।
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कवि लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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भ्रष्टाचार के विरुद्ध अभियान,आंदोलन,bhrashtachar ke virddh andolan,abhiyan,prayas
बाबा रामदेव क्या नया महाभारत रच पायेंगे-हिन्दी लेख (baba ramdev aur naya mahabharat-hindi lekh)

याद्दाश्त और ज़िंदगी-हिन्दी कविता (yaddashta aur zindagi-hindi poem)


अवसाद के क्षण भी बीत जाते हैं,
जब मन में उठती हैं खुशी की लहरें
तब भी वह पल कहां ठहर पाते हैं,
अफसोस रहता है कि
नहीं संजो कर रख पाये
अपने गुजरे हुए वक्त के सभी दृश्य
अपनी आंखों में
हर पल नये चेहरे और हालत
सामने आते हैं,
छोटी सी यह जिंदगी
याद्दाश्त के आगे बड़ी लगती है
कितनी बार हारे, कितनी बार जीते
इसका पूरा हिसाब कहां रख पाते हैं।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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प्रजांतत्र का चौथा खंभा-हिन्दी हास्य कविता (prajatantra ka chautha khanbha-hindi hasya kavita)


समाज सेवक ने कहा प्रचारक से
‘यार, तुम भी अज़ीब हो,
अक्ल से गरीब हो,
हम चला रहे गरीबों के साथ तुमको भी
करके अपनी मेहनत से समाज सेवा,
वरना नहीं होता कोई तुम्हारा भी नाम लेवा,
हमारी दम पर टिका है देश,
हमारी सुरक्षा व्यवस्था की वजह से
कोई नहीं आता तुमसे बदतमीजी से पेश,
फिर भी तुम हमारे भ्रष्टाचार के किस्से
क्यों सरेराह उछालते हो,
अरे, आज की अर्थव्यवस्था में
कुछ ऊंच नीच हो ही जाता है,
तुम क्यों हमसे बैर पालते हो,
बताओ हमारा तुम्हारा याराना कैसे चल पायेगा।’

सुनकर प्रचारक हंसा और बोला
‘क्या आज कहीं से लड़कर आये हो
या कहीं किसी भले के सौदे से कमीशन नहीं पाये हो,
हम प्रचारकों को आज के समाज का
चौथा स्तंभ कहा जाता है,
हमारा दोस्ताना समर्थन
तुम्हारा विरोध बहा ले जाता है,
फिर यह घोटाले भ्रष्टाचार का विरोध करने के लिये नहीं
हिस्से के बंटवारा न होने पर
उजागर किये जाते हैं,
मिल जाये ठीक ठाक तो
जिंदा मामले दफनाये भी जाते हैं
तुम्हारे चमचों ने नहीं किया होगा
कहीं हिस्से का बंटवारा
चढ़ गया हो गया मेरे चेलों का इसलिये पारा,
इतना याराना मैंने तुमसे निभा दिया
कि ऐसी धौंस सहकर दिखा दिया,
बांध में पानी भर जाने पर
उसे छोड़ने की तरह
हिस्सा आगे बढ़ाते रहो
शहर डूब जाये पानी में
पर हम उसे हंसता दिखायेंगे
लोगों को भी सहनशीलता सिखायेंगे
पैसे की बाढ़ में बह जाने का
खतरा हमें नहीं सतायेगा,
वह तो रूप बदलकर आंकड़ों में
बैंक में चला जायेगा,
रुक गया तो
लोकतंत्र का चौथा स्तंभ
टूटकर तुम पर गिर जायेगा।’’
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कवि, संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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आतंक और युद्ध में फर्क होता है-हिन्दी लेख (diffarence between terarrism and war-hindi aticle)


फर्जी मुठभेड़ों की चर्चा कुछ
इस तरह सरेआम हो जाती कि
अपराधियों की छबि भी
समाज सेवकों जैसी बन जाती है।
कई कत्ल करने पर भी
पहरेदारों की गोली से मरे हुए
पाते शहीदों जैसा मान,
बचकर निकल गये
जाकर परदेस में बनाते अपनी शान
उनकी कहानियां चलती हैं नायकों की तरह
जिससे गर्दन उनकी तन जाती है।
——–
टीवी चैनल के बॉस ने
अपने संवाददाता से कहा
‘आजकल फर्जी मुठभेड़ों की चल रही चर्चा,
तुम भी कोई ढूंढ लो, इसमें नहीं होगा खर्चा।
एक बात ध्यान रखना
पहरेदारों की गोली से मरे इंसान ने
चाहे कितने भी अपराध किये हों
उनको मत दिखाना,
शहीद के रूप में उसका नाम लिखाना,
जनता में जज़्बात उठाना है,
हमदर्दी का करना है व्यापार
इसलिये उसकी हर बात को भुलाना है,
मत करना उनके संगीन कारनामों की चर्चा।
———–

कवि लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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चमकती चीजों का वजूद–हिन्दी व्यंग्य कविता


चमकता पत्थर हो या हीरा
देखने में एक जैसा नज़र आता है।
चमकती चीजों का वजूद
वैसे भी आंखों से आगे कहां जाता है।
पेट की भूख बुझाता अन्न,
गले की प्यास को हराता जल,
सर्वशक्तिमान का तोहफा है
मिलता है आसानी से इंसान को
शायद इसलिये अनमोल नहीं कहलाता है।
—————————–
तूफान जैसा क्यों
भागना चाहते हो,
हवा की तरह बहने में भी मजा आता है।
उम्र कम है तेजी से दोड़ने वालों की
बढ़ती गति के साथ
डोर टूट जाती है ख्यालों की
आसमान छूने की चाहत बुरी नहीं है
पर तारे हाथ आयें या चंद्रमा
पत्थर के टुुकड़ों या मिट्टी के
ढेर के अलावा हाथ क्या आता है।
——–

कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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तकदीर और चालाकियां-हिन्दी व्यंग्य कवितायें (taqdir aur chalaki-hindi comic poems


लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
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अपने गम और दूसरे की खुशी पर मुस्कराकर

हमने अपनी दरियादिली नहीं दिखाई।

चालाकियां समझ गये जमाने की

कहना नहीं था, इसलिये छिपाई।

——–

अपनी तकदीर से ज्यादा नहीं मिलेगा

यह पहले ही हमें पता था।

बीच में दलाल कमीशन मांगेंगे

या अमीर हक मारेंगे

इसका आभास न था।

———-

रात के समय शराब  में बह जाते हैं

दिन में भी वह प्यासे नहीं रहते

हर पल दूसरों के हक पी जाते हैं।

अपने लिये जुटा लेते हैं समंदर

दूसरों के हिस्से में

एक बूंद पानी भी हो

यह नहीं सह पाते हैं।

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जज़्बातों की कत्लगाह-हिन्दी शायरी (jazbat-hindi shayri)


 अपनी रोटी पकाकर

मेहननकश  इंसान आग बुझा देता है

पर जिस शैतान ने

लालच को लक्ष्य बना लिया

वह पूरे जमाने को

झौंक कर झुलसा देता है।

भर जाता है दो रोटी से पेट,

पर खातों में अपनी रकम को

बढ़ते देखकर भी नहीं सो रहा सेठ,

अपने पास जमा सोने की ईंटों से भी

नहीं भर रहा है दिल उसका

तिनके से बनी झौंपड़ी को खाक कर

उसकी राख में रुपया तलाश लेता है।

फरिश्ते और शैतान

कोई आसमान में नहीं बसते,

इंसानी चेहरों में वह भी संवरते,

पसीने की आग से जो रोटी खा रहे हैं,

अपने दर्द और खुशियों के साथ

जीवन बिता रहे हैं,

मुफ्त में जिनको मिली है विरासत,

जंग की ही करते हैं सियासत,

बनते हैं जो जमाने के खैरख्वाह,

नाम के हैं वह फरिश्ते

उनके आशियाने हैं

इंसानी जज़्बातों की कत्लगाह,

ऐसा हर शैतान

अपनी जिंदगी  के चैन के लिये

जमाने की बैचनी बढ़ा देता है।

 

लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
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जलवायु परिवर्तन पर गंभीर नहीं हैं अमीर देश-हिंदी लेख


कोपेनहेगन में जलवायु परिवर्तन को लेकर जोरदार सम्मेलन हो रहा है। इसमें गैस उत्सर्जन को लेकर अनेक तरह की बहसें तथा घोषणायें चर्चा में सामने आ रही हैं। ऐसा लगता है कि यह मुद्दा अब इतना राजनीतिक हो गया है कि सभी देश अपने अपने बयानों ने प्रचार में अपना शाब्दिक खेल अपना प्रभाव दिखा रहे हैं। इधर भारत में भी तमाम तरह की बहस देखने को मिल रही है। यह सच है कि विकसित देशों ने ही पूरी दुनियां का कचड़ा किया है पर इससे विकासशील देश अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते क्योंकि वह भले ही विकास न कर पायें हों पर उनका प्रारूप विकसित देशों जैसा ही है। दूसरी बात यह है कि अपने देश के बुद्धिजीवी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रचार में अपनी देश की शाब्दिक बढ़त दिखाकर अमेरिका तथा चीन के मुकाबले अपने देश को कम गैस उत्सर्जन करने वाला बताकर एक कृत्रिम देश भक्ति का भाव प्रदर्शन कर रहे हैं।
जलवायु परिवर्तन गैस के उत्सर्जन का मुद्दा महत्वपूर्ण हो सकता है पर प्रथ्वी के पर्यावरण से खिलवाड़ केवल इसी वजह से नहीं हो रहा। पर्यावरण से खिलवाड़ करने के लिये तो और भी अनेक कारण सामने उपस्थित हैं जिसमें पेड़ पौद्यों का कटना तथ वन्य जीवों की हत्या शामिल है। इसके अलावा कारखानों द्वारा जमीन के पानी का दोहन तथा उनकी गंदगी का जलाशयों में विसर्जन भी कम गंभीर मुद्दे नहीं है। गंगा और यमुना के पानी का हाल क्या है सभी जानते हैं।
उस दिन टीवी समाचारों में देखने को मिला जिनमें भारत के कुछ जागरुक लोग कोपेनहेगन में विश्व समुदाय का ध्यान आकर्षित करने का अभियान चलाये हुए हैं। अच्छी बात है पर क्या ऐसे जागरुक लोग भी दुनियां भर के विशिष्ट समुदाय द्वारा तय किये ऐजेंडे पर समर्थन या विरोध कर केवल आत्मप्रचार की अपनी भूख शांत करना चाहते हैं? क्या भारत में पर्यावरण संकट से निपटने के लिये कोई बड़ा जागरुकता अभियान नहीं चलाया जा सकता।
एक दो साल पहले दक्षिण भारत का ही एक प्रसंग आया था। वहां एक कोला कंपनी ने अपने कारखाने के लिये जमीन के पानी का इतना दोहन किया कि वहां के आसपास के मीलों दूर तक का भूजल स्तर नीचे चला गया। इसके लिये अमेरिका में प्रदर्शन हुए पर क्या इस देश के कथित जागरुक लोगों ने एक बार भी उस विषय का कहीं विस्तार किया? यह केवल दक्षिण का ही मामला नहीं है। देश के अनेक स्थानों में जलस्तर नीचे चला गया है। वैसे तो लोग यही कहते हैं कि यह निजी क्षेत्र के नागरिकों द्वारा अनेक बोरिंग खुदवाने के कारण ऐसा हुआ है पर इनमें से कुछ ऐसे कारखानेदार भी हैं जो जमकर पानी का दोहन कर पानी का जलस्तर नीचे पहुंचा रहा हैं। यह केवल एक प्रदेश या शहर की नहीं बल्कि देशव्यापी समस्या है। क्या जागरुक लेागों ने कभी इस पर काम किया?
रास्ते में आटो या टैम्पो से जब घासलेट का धुंआ छोड़ा जाता है तब वहां से गुजर रहे आदमी की क्या हालत होती है, यह भी एक चर्चा का विषय हो सकता है।
कहने का तात्पर्य यह है कि जलवायु और पर्यावरण को लेकर भारतीय जनमानस के सामने अन्य देशों को शाब्दिक प्रचार में खलनायक बनाकर शब्दिक बढ़त दिखाकर उसकी देशभक्ति का दोहन करना ठीक नहीं है। अगर गैस उत्सर्जन समझौता हो गया तो भारत पर आगे विकसित राष्ट्र गलत प्रकार से दबाव डालेंगे-ऐसा कहकर खाली पीली डराने की आवश्यकता नहीं है। सच तो यह है कि जलवायु परिवर्तन या पर्यावरण प्रदूषण से अपना देश भी कम त्रस्त है-इसके लिये अंतर्राष्ट्रीय कारणों के साथ घरेलू परिस्थतियां भी जिम्मेदार हैं। सर्दी के मौसम में भ्ीा अनेक प्रकार की गर्मी पड़ रही है-यह गैस उत्सर्जन की वजह से हो सकता है। इसकी वजह से जलस्तर नीचे जायेगा यह भी सच है पर पानी के दोहन करने वाले बड़े कारखाने इसमें अधिक भूमिका अदा करें तो फिर सवाल अपने देश की व्यवस्था पर उठेंगे। यह आश्चर्य की बात है कि अनेक बुद्धिमान लोगों ने इस पर बयान देते हुए केवल विदेशी देशों पर ही सवाल उठाकर यह साबित करने का प्रयास किया कि इस देश की अपनी कोई जिम्मेदारी नहीं है। यह सच है कि विकसित राष्ट्रों पर न केवल गैस उत्सर्जन को लेकर दबाव डालना चाहिये बल्कि उनके परमाणु प्रयोगों पर भी सवाल उठाना चाहिये, पर साथ ही अपने देश में आर्थिक, सामाजिक तथा अन्य व्यवस्थायें हैं उनके दोष भी देखने हों्रगे। विषयों का विभाजन करने की पश्चिमी रणनीति है। वह एक से दूसरा विषय तब तक नहीं मिलाते जब तक उनका हित नहीं होता। वह पर्यावरण की चर्चा करते हुए गैरराजनीतिक होने का दिखावा करते हैं पर अगर बात उनके पाले में हो तो राजनीतिक दबाव डालने से बाज नहीं आते।
अगर विश्व समुदाय एक मंच पर एकत्रित होकर काम न भी करे तो भी देश के जागरुक तथा अनुभवी लोगों को भारत में पर्यावरण सुघार के लिये काम करना चाहिये। इसके लिये विश्व समुदाय या सुझाये गये कार्यक्रमों और दिनों पर औपचारिक बयानबाजी करने से कोई हल नहीं निकलने वाला।

काव्यात्मक पंक्तियां
———
मौन को
कोई कायरता तो
कोई ताकत का प्रतीक बताता है।
पर सच यही है कि
मौन ही जिंदगी में अमन लाता है।
———
कृत्रिम हरियाली की चाहत ने
शहरों को रेगिस्तान बना दिया
सांस के साथ
अंदर जाते विष का
अहसास इसलिये नहीं होता
हरे नोटों ने इतना संवेदनहीन बना दिया।

————–
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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आदमी और अहसास-हिन्दी चिंतन और कविता (admi aur ahsas-hindi lekh aur kaivta)


आदमी अपनी जिंदगी को अपने नज़रिये से जीना चाहता है पर जिंदगी का अपना फलासफा है। आदमी अपनी सोच के अनुसार अपनी जिंदगी के कार्यक्रम बनाता है कुछ उसकी योजनानुसार पूर्ण होते हैं कुछ नहीं। वह अनेक लोगों से समय समय पर अपेक्षायें करता है उनमें कुछ उसकी कसौटी पर खरे उतरते हैं कुछ नहीं। कभी कभी तो ऐसा भी होता है कि संकट पर ऐसा आदमी काम आता है जिससे अपेक्षा तक नहीं की जाती। कहने का तात्पर्य यह है कि जिंदगी भी अनिश्तताओं का से भरी पड़ी है पर आदमी इसे निश्चिंतता से जीना चाहता है। बस यहीं से शुरु होता है उसका मानसिक द्वंद्व जो कालांतर में उसके संताप का कारण बनता है। अगर आदमी यह समझ ले कि उसका जीवन एक बहता दरिया की तरह चलेगा तो उसका तनाव कम हो सकता है। जीवन में हर पल संघर्ष करना ही है यही भाव केवल मानसिक शक्ति दे सकता है। इस पर प्रस्तुत हैं कुछ काव्यात्मक पंक्तियां-
खुद तरसे हैं
जो दौलत और इज्जत पाने के लिये
उनसे उम्मीद करना है बेकार।
तय कोई नहीं पैमाना किया
उन्होंने अपनी ख्वाहिशों
और कामयाबी का
भर जाये कितना भी घर
दिल कभी नहीं भरता
इसलिये रहते हैं वह बेकरार।
————-
समंदर की लहरों जैसे
दिल उठता और गिरता है।
पर इंसान तो आकाश में
उड़ती जिंदगी में ही
मस्त दिखता है।
पांव तले जमीन खिसक भी सकती है
सपने सभी पूरे नहीं होते
जिंदगी का फलासफा
अपने अहसास कुछ अलग ही लिखता है।
—————————–

कवि लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
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ज़िंदगी और परदे का सच-हिंदी व्यंग्य कविताएँ (zindagi aur parde ka sach-hindi vyangya kavitaen)


 इस देश का आदमी
उड़ना चाहता है ऊंची उड़ान
अपने पांवों में पुरानी ज़जीरों को बांधकर.
अपनी आँखों से परदे पर
देखकर आकाश का सुनहरा दृश्य
बहलता है  सपनों के साथ
फड़कते  हैं  उसके  हाथ
नकली नायकों की कामयाबी
देखकर ही  चल पड़ता है
अंधेरी राहों पर
उसे पाने का ठानकर..
——————————-
 
परदे पर जो तुम देख रहे हो
उसे मत समझना
झूठ को सच  की तरह
वहां सजाया जाता है..
दुनिया में जो हो सके
वही वहां दिखाया जाता है..
तुम्हारा सच ही तुमसे छिपाया जाता है
झूठ के रास्ते चलो
इसलिए तुमकों बहलाया जाता है..
 
 

—————————-
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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वादा और इंतजार-व्यंग्य कविता (vada aur intzar-hindi vyangya kavita)


गिला शिकवा खूब किया
दिन भर पूरे जमाने का
फिर भी दिल साफ हुआ नहीं।
इतने अल्फाज मुफ्त में खर्च किये
फिर भी चैन न मिला
दिल के गुब्बारों का बोझ कम हुआ नहीं।
इंसान समझता है
पर कुदरत का खेल कोई जुआ नहीं।
—————–
उन्होंने चमन सजाने का वादा किया
नये फूलों से सजाने का
पता नहीं कब पूरा करेंगे।
अभी तो उजाड़ कर
बना दिया है कचड़े का ढेर
उसे भी हटाने का वादा
करते जा रहै हैं
पता नहीं कब पूरा करेंगे।
इंतजार तो रहेगा
उनके घर का पेट अभी खाली है
पहले उसे जरूर भरेंगे।
तभी शायद कुछ करेंगे।

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लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
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रिश्ता और सवाल जवाब-हास्य कविता (rishta aur sawal jawab-hasya kavita


रिश्ता तय करने पहुंचे लड़के ने
लड़की से पूछा
‘‘क्या तुम्हें खाना पकाना
सिलाई कढ़ाई, बुनाई तथा
घर गृहस्थी का काम करना आता है।’’
पहले शर्माते
फिर लड़के से आंख मिलाते हुए
लड़की बोली
‘हां, सब आता है।
पर आप यह भी बताईये
क्या आपको घर गृहस्थी चलाने लायक
कमाना भी आता है।
मैं खाना पकाने के लिये
परंपरागत सामान नहीं उपयोग करती
चाहिये उसके लिए इलेक्ट्रोनिक सामान,
कढ़ाई के लिये ढेर सारे कपड़े
सिलाई, बुनाई और कढ़ाई की
कंप्यूटरीकृत मशीनें भी लाना होंगी
जिस पर करूंगी मैं यह सब काम
तभी होगा मुझे जिंदगी में इत्मीनान,
साथ में अपना मोबाईल, लैपटाप और
खुद के कमरे में अलग से टीवी हो
तभी मुझे मजा आता है।
अगर यह सब न कर सकें इंतजाम
तो कह जाईये कि ‘लड़की पसंद नहीं आई’
जो भी लड़का मुझे देखने आता
यही सवाल करता है
मेरा जवाब सुनकर यही कह जाता है।’’

………………………….

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काटना पर कुछ बोना नहीं- हास्य व्यंग्य कविताएँ (katana aur bona-hasya
काटना है पर कुछ बोना नहीं है
पाना है हर शय, कुछ खोना नहीं है।
पूरी जिंदगी का मजा जल्दी लेने के आदी लोग
आज कर, अभी कर की सोच के साथ
पल में प्रलय से इतना डरे हैं
कि खतरे देख नहीं पाते
क्योंकि अपनी ही जिंदगी उनको
ढोना नहीं है।
………………..
आज के जमाने में शैतान भी
सजकर सामने आयेगा।
मनोरंजन में नयेपन की
चाहत में भाग रहे लोगों को
फरिश्ता नजर आयेगा।
इंसान की बढ़ती चाहत
अक्ल पर डाल देती है पर्दा
पीछे का सच किसे नहीं पता चल पायेगा।
……………………..

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इश्क और मशीन-हास्य कविता (hasya kavita)


माशुका को उसकी सहेली ने समझाया
‘आजकल खुल गयी है
सच बोलने वाली मशीन की दुकानें
उसमें ले जाकर अपने आशिक को आजमाओ।
कहीं बाद में शादी ा पछताना न पड़े
इसलिये चुपके से उसे वहां ले जाओ
उसके दिल में क्या है पता लगाओ।’

माशुका को आ गया ताव
भूल गयी इश्क का असली भाव
उसने आशिक को लेकर
सच बोलने वाली मशीन की दुकान के
सामने खड़ा कर दिया
और बोली
‘चलो अंदर
करो सच का सामना
फिर करना मेरी कामना
मशीन के सामने तुम बैठना
मैं बाहर टीवी पर देखूंगी
तुम सच्चे आशिक हो कि झूठे
पत लग जायेगा
सच की वजह से हमारा प्यार
मजबूत हो जायेगा
अब तुम अंदर जाओ।’

आशिक पहले घबड़ाया
फिर उसे भी ताव आया
और बोला
‘तुम्हारा और मेरा प्यार सच्चा है
पर फिर भी कहीं न कहीं कच्चा है
मैं अंदर जाकर सच का
सामना नहीं करूंगा
भले ही कुंआरा मरूंगा
मुझे सच बोलकर भला क्यों फंसना है
तुम मुझे छोड़ भी जाओ तो क्या फर्क पड़ेगा
मुझे दूसरी माशुकाओं से भी बचना है
कोई परवाह नहीं
तुम यहां सच सुनकर छोड़ जाओ
मुश्किल तब होगी जब
यह सब बातें दूसरों को जाकर तुम बताओ
बाकी माशुकाओं को पता चला तो
मुसीबत आ जायेगी
अभी तो एक ही जायेगी
बाद में कोई साथ नहीं आयेगी
मैं जा रहा हूं तुम्हें छोड़कर
इसलिये अब तुम माफ करो मुझे
अब तुम भी घर जाओ।’

…………………….

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कहीं कहीं झगडे भी फिक्स होंगे -हास्य व्यंग्य कविताएँ


पहले तो क्रिकेट मैचों पर
फिक्सिंग की छाया नजर आती थी
अब खबरों में भी होने लगा है उसका अहसास।
शराबखानों पर करते हैं लोग
सर्वशक्तिमान का नाम लेकर हमला
कहीं टूटे कांच तो कहीं गमला
बहस छिड़ जाती है इस बात पर कि
सर्वशक्तिमान के बंदे ऐसे क्यों होना चाहिये
लंबे चैड़े नारों का दौर शुरु
हर वाद के आते हैं भाषण देने गुरु
ढेर सारे जुमले बोले जाते हैं
टूटे कांच और गमलों के साथ
जताई जाती है सहानुभूति
पर ‘शराब पीना बुरी बात है’
इस पर नहीं होता कोई प्रस्ताव पास।
खबरफरोश भूल जाते हैं शराब को
सर्वशक्तिमान के नाम पर ही
होती है उनको सनसनी की आस।
किसे झूठा समझें, किस पर करें विश्वास।
…………………………
शराब चीज बहुत खराब है
पीने वाला भी कर सकता है
न पीने भी कर सकता है
भले झगड़ा खराब है।
शराब खानों पर हुए झगड़ो पर
अब रोना बंद कर दो
क्योंकि सदियों से
करवाती आयी है जंग यह शराब
जैसे जैसे बढ़ते जायेंगे शराब खाने
वैसे ही नये नये रूपों में झगड़े
सामने आयेंगे
कहीं पीने वाले पिटेंगे तो
कहीं किसी को पिटवायेंगे
कहीं जाति तो कहीं भाषा के
नाम पर होंगे
कहीं प्रचार के लिये
पहले से ही तय झगड़े होंगे
इन पर उठाये सवालों का
कभी कोई होता नहीं जवाब है।

………………………………………..

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आखिर उसने इस ब्लाग के पूर्व पाठ की कापी क्यों नहीं की-आलेख


उसने कल मेरा इसी ब्लाग पर लिखा गया आलेख पढ़ा और इसलिये उसने उसकी कापी नहीं की क्योंकि इसमें उसी पर आक्षेप किया गया था। इसका मतलब साफ है कि वह एक सक्रिय ब्लाग लेखक है। उसने मेरे पाठ की कापी अपने ब्लाग पर रखकर एक तरह से अपराधिक कृत्य किया है। वह शायद अनुमान नहीं कर सकता कि मैं उसे ढूंढ लूंगा। उसे कोई अधिकार नहीं है कि मुझे पैसे का भुगतान किये बिना अपनी वेबसाईट पर मेरे पाठ रखे।

उसने मेरे कल तीन ऐसे ब्लाग की पोस्टें कापी कीं जो हिंदी के ब्लाग एक जगह दिखाये जाने वाले फोरमों नारद, चिट्ठाजगत और हिंदी ब्लाग पर ही दिखते हैं ब्लागवाणी पर नहीं। इनके नाम हैं साहित्य पत्रिका, अभिव्यक्ति पत्रिका, और अनुभूति पत्रिका। इन तीनों के नाम मैं अक्सर बदलता रहता हूं और कल ही इनका यह नाम रखा था, पर वह इनसे पहले से ही पाठ उठा रहा है। इन पर मैं कभी कभी अपनी पुराने पाठ रखता हूं। जो 12 ब्लाग सभी फोरमों पर दिखते हैं उन पर अपनी नये पाठ रखता हूं। कल के व्यूज देखने से पता चलता है कि उसने नारद और चिट्ठाजगत से ही यह ब्लाग देखे हैं। वह इन्हीं फोरमों से यह कापी करता होगा क्योंकि ब्लागवाणी से उसे पकड़े जाने का भय भी है। ब्लागवाणी पर पसंद का बटन किसी भी कंप्यूटर से एक बार ही दबता है और यह संदेह पैदा करता है कि कहीं वहां उसकी पकड़ न हो। नारद और चिट्ठाजगत से उसे ऐसा भय नहीं है। मतलब वह पुराना आदमी है और यहां से पूरी तरह जानकार है।

सवाल यह है कि उसने विनय प्रजापति ‘नजर’ और मेरे ब्लाग से ही कापी इस क्यों की? इसका उत्तर यह है उसमें साहित्य जैसे विषय होते हैं जो कि आम पाठक के लिये एक अच्छी सामग्री होती है। उसका यह ब्लाग किसी फोरम पर नहीं है। उसने डोमेन लिया है और वह पैसे कमाना चाहता है। वह यहां भी सक्रिय है एक सभ्य ब्लागर के रूप में। उसकी कार्यशैली को मैं जानता हूं उसे इस पाठ के माध्यम से यही समझा रहा हूं।
इससे साहित्यक ब्लाग लेखक हताश होंगे। डोमेन के पैसे का भुगतान तो लोग कर रहे हैं पर हमारे पाठों को वह फ्री का माल नहीं समझ सकते। यह अपने ब्लाग लेखकों और मित्रों को बता दूं यहां डोमेन होना या फ्री ब्लाग होना कोई मायने नहीं रखता। यहां महत्व है लिखे गये विषय का! चुराने वाले तो वेब साइट से भी चुरा सकते हैं और ब्लाग से भी! वह मुझसे चिढ़ा हुआ है और फायदा भी उठाना चाहता है। उसने पेैसे खर्च कर डौमेन तो ले लिया पर लिखे क्या? ताउम्र छलकपट में निकाल दी। लिखने के लिये सरल हृदय होना आवश्यक है। उसने ब्लाग बनाया पर लिखता क्या होगा? उसने विनय प्रजापति ‘नजर’, अचेत, रेवा स्मृति तथा मेरे साहित्यक पाठों की कापी अपने यहां रखी क्योंकि वह ऐसा नहीं लिख सकता।
वह अपने कमाने के लिये मेरा मुफ्त में उपयोग नहीं कर सकता है। मेरे एक पाठ की कीमत है 2500 रु.। उसे अधिक लग सकती है। वह कह सकता है कि यह तो फालतू पड़ी थी। नहीं, उसे यह बात समझनी होगी कि शोरुम में सोने के अनेक कीमती गहने पड़े रहते हैंं पर उससे उनकी कीमत कम नहीं हो जाती। मेरे उसने ढाई लाख रुपये से अधिक के पाठों की कापी की है और उसका भुगतान वह कर नहीं सकता। अगर कोई उस ब्लाग को देखेगा तो कहेगा कि यह तो दीपक भारतदीप का ब्लाग है। वह मेरे नाम को भी भुनाना चाहता है। भले ही फोरमों पर मुझे उस जैसे हिट नहीं मिलते पर आम पाठक की पहुंच मेरे ब्लाग पर बढ़ती जा रही है इसलिये वह मेरे नाम को भी लिख रहा है। यह उसकी चाल है। वह कथित रूप से इन फोरमों पर हिट ब्लागर ही हो सकता है। वह तकनीकी ब्लागर नहीं हैं पर प्रयोक्ता के रूप में वह इसका उपयोग अच्छी तरह जानता है।

उसकी सक्रियता का प्रमाण यह है कि कल उसने मेरे पाठ को अपने कापी कर अपने यहां चिपकाने का काम नहीं किया। आज मेरे कमेंट को माडरेट नहीं कर रहा है। शायद वह अपने उस ईमेल को भी नहीं खोलता होगा जिससे यह ब्लाग संबंद्ध है। वह देख चुका है कि इस पर बवाल मच रहा है। मैंने तकनीकी मित्रों से सलाह की है उनका कहना है कि उसे ढूंढना कोई मुश्किल काम नहीं है। मैं गुस्से में हूं पर अपना विवेक कभी नहीं खोता। यहां अनेक ब्लाग लेखकों ने मुझे कभी न कभी सहयोग और प्रेरणा दी है इसलिये नहीं चाहता कि किसी को इतना मानसिक अधिक आघात पहुंचा दूं कि फिर मुझे पैर वापस खींचने का अवसर ही न रहे। यहां अनेक ब्लाग लेखक है, और पिछले पौने दो वर्षों से अनेक ब्लाग लेखकों से मेरी मित्रता है और करीब करीब सभी सहृदय हैं। कई तो बहुत भोले हैं और मुझे उनके किसी की चाल में फंसने पर दुःख होता है। जिस ब्लाग लेखक पर संदेह है उसे पता नहीं क्यों मैं शुरू से संशय से देखता आया हूं। वह सक्रिय ब्लाग लेखकों है पर उसने टिप्पणी अधिक से अधिक तीन बार दी होगी और उसके प्रिय विषय देखकर मुझे यह समझते देर नहीं लगती कि बेकार की बातें भी कर सकता है।

किसी भी ब्लाग लेखक का पाठ कापी कर अपने ब्लाग पर रखना अपराधिक कृत्य है। इसके लिये उसकी पूर्व अनुमति आवश्यक है।
दीपक भारतदीप, लेखक और संपादक

आज मैं राजीव तनेजा जी की शिकायत पर उस ब्लाग पर गया जहां उनकी कहानी कापी कर रखी गयी थी। उसका भी मैंने विश्लेषण किया तो लगा कि अधिक से अधिक दो लोग ही ऐसे हैं जो ऐसा काम कर रहे हैं। उस पर जो देखकर आया उसे पर आगे लिखूंगा। हां, इतना तय है कि यह ब्लाग पर साहित्य लिखने वाले ब्लाग लेखकों को हतोत्साहित करने वाला कदम है। वैसे अगर नारद और चिट्ठा जगत के पास ऐसा कोई साफ्टवेयर हो कि पता चले कि कल मेरे इन तीन ब्लाग को किस ईमेल से देखा गया तो पता चला सकता है कि वह कौन है क्योंकि कुछ लोगों के पास ऐसे साफ्टवेयर हैं जिससे ईमेल से फोन नंबर पता किया जा सकता है-ऐसा । कल मेरे ब्लाग पर वहां से दो-दो व्यूज आये उनमें एक तो सहृदय ब्लाग लेखक अपनी टिप्पणी दे गये। इसका मतलब दूसरा देखने वाला ही संदेह के घेरे में हो सकता है। अधिक व्यूज होते तो मैं नहीं कहता। वैसे एक बात और है कि वर्डप्रेस के ब्लाग कम व्यूज ही बताते हैं इसलिये मैं इस पर दावे से कुछ नहीं कह सकता कि अन्य व्यूज नहीं होंगे। मै ऐसे ही किसी का नाम नहीं लूंगा जब तक मुझे कोई प्रमाण नहीं मिलेगा। बाकी अभी मैं उसकी गतिविधियों पर नजर रखे हुए हैं उसे रोकना तो होगा ही नहीं तो यहां मौलिक लेखक करना बेकार ही लगने लगेगा।

लेख प्रकाशित करने के चिट्ठकार समूह की चर्चा देखी तो पता चला कि आई डी तो ढूंढ निकाला है। नाम कुछ अंग्रेजी में है पर इससे क्या? वह हिंदी जानता है या कोई ऐसा उसका सहायक है। उसने कल मेरी पाठ की कापी नहीं की इसका आशय यह है कि उसका मतलब वह समझ गया है। वैसे जिस ब्लाग लेखक पर मेरा संदेह है वह न हो तो अच्छा ही है। कम से कम मुझे इस बात की प्रसन्नता होगी कि कि हमारे अपने लोगों पर कभी कोई ऐसा आक्षेप नहीं करेगा।

कुछ इधर की, कुछ उधर की-व्यंग्य आलेख


मैं जैसे ही स्कूटर से उतरा तो मेरे मित्र ने मुझे देखते ही कहा-‘पिटवा दी भद्द। टोक दिया न उडन तश्तरी ने कि आजकल तो दनादन कवितायें लिखते जा रहे हो। क्या बचा अब? मना करता हूं कि इतनी सारी कवितायें मत लिखो।’

मैं उसकी बात सुन रहा था। कल मैंने अपने ब्लाग/पत्रिका पर छहः कवितायें प्रकाशित की थीं और मेरे ब्लाग लेखक मित्र समीर लाल ‘उडन तश्तरी’ ने एक जगह सहज भाव से लिख दिया कि ‘आजकल तो दनादन कवितायें लिखी जा रही हैं। मेरा मित्र उसका ही हथियार बना मेरी मजाक बना रहा था।

मैंने भी बनते हुए गंभीरता से कहा-‘हां यार! मेरी एक कविता तैयारी पड़ी थी वह इसलिये ही मैंने पोस्ट नहीं की कि कहीं अपनी छबि खराब न हो जाये। बाकी लोग तो इतना नहीं देखते जितना समीरलाल की दृष्टिपथ में आता है। वैसे तुमने कब देखी उनकी टिप्पणी?’
वह बोला-‘कल रात ही देखी।’वह ऐसे बोल रहा था जैसे कि कोई नया राज बता रहा हो-‘ कल मेरा टीवी खराब हो गया था तो सोचा चलो तुम्हारे ब्लाग ही पढ़ डालें। हमने सारे ब्लाग देख मारे। तुमने कल छहःकवितायें लिख मारीं। यार, हमें तो किसी को यह बताते हुए भी शर्म आये कि हमारा कोई ब्लागर दोस्त छह कवितायें लिख सकता है। ऐसे ब्लागर से दोस्ती रखने पर तो हमारी दूसरी मित्र मंडलियां हमें बिरादरी से बाहर भी निकाल सकती हैं।’
मेरा एक अन्य मित्र हंसते हुंए इस संवाद को सुन रहा था वह बोला-‘‘यार, तुम कवितायें कम लिखा करो। यह हमेशा रोता रहता है कि वह लेख या व्यंग्य नहीं लिखता।’
मैंने अपने पहले मित्र से कहा-‘‘वैसे कल तुम्हारा टीवी खराब था इसलिये तुमने यह सब देखा। अगर टीवी खराब नहीं होता तो तुम क्या करते?’

वह बोला-‘वही देखते। हां, तुम्हारे इतने सारे ब्लाग एक साथ नहीं देखते और यह पता नहीं चलता कि तुमने कितनी कवितायें लिखीं हैं। हम तुम्हारे ब्लाग से यह तो पढ़ ही लेते है कि तुमने कौनसी तारीख को लिखा था। अगर पुरानी तारीख का होता है तो मैं नहीं पढ़ता। तुम यार कोई व्यंग्य, कहानी या चिंतन लिखा करो। यह कवितायें हमेंं पसंद नहीं है।’

मैंने कहा-‘पुरानी तारीखों से तुम्हारा क्या आशय है? अरे भई, मै। लिख रहा हूं डेढ़ बरस से और तुम पढ़ रहे हो तीन महीने से। पहले बहुत सारे व्यंग्य और कहानियां लिखे हुए हैं। तुम उनको पढ़ा करो। वह सम सामयिक तो हैं नहीं कि उनका प्रभाव नहीं पड़ता हो।

वह तुनक कर बोला‘-यार, हम कहीं में जाते हैं तो पुरानी पत्रिका या समाचार पत्र देख कर उसे पढ़ने का मन नहीं करता। अगर मजबूरी में कहीं पढ़ना पड़ता है तो यह बात मन में बराबर बनी रहती है कि हम पुराना पढ़ रहे है। मैं तुम्हारे ब्लाग को भी इसी तरह पढ़ता हूं फिर तुमने अपने ब्लाग पर अपने नाम के साथ पत्रिका शब्द जोड़ रखा हैं। जिस ब्लाग को मैं खोलता हूं उसमें अगर तुम्हारे लिखे पर पुरानी तारीख होती है तो तुम्हारे दूसरे ब्लाग और वहीं अन्य ब्लागर मित्रों के ब्लाग खोलकर पढ़ता हूं। उनके पढ़ने पर भी यही हाल रहता है।’
मैंने हंसकर पूछा-‘तो जो पुराना लिखा है उसका क्या करें? वैसे अंतर्जाल पर नया पुराना क्या होता है यह मेरी समझ से परे है। वहां हमारा हर पाठ स्वतंत्र ढंग से खुलता है। वह तो मेरी वजह से तुम्हें मेरे और मेरे मित्रों के ब्लाग इतनी आराम से मिल रहे हैं वरना अगर तुम स्वयं प्रयास करते तो तुम्हे सभी ब्लाग के पाठ तुम्हारें सर्च के हिसाब से मिलेंगे। वहां तुम्हारे लिये नये पुराने के नखरे नहीं चल सकते।’

अन्य मित्र ने बहस में हस्तक्षेप करते हुए कहा-‘यार, तुम इसके लिए अपने पुराने लेखों को ही दोबारा प्रकाशित कर दो । कंप्यूटर पर तुम सब करना जानते हो। कापी कर फिर पेस्ट कर दो। इसको क्या पता लगेगा कि पुराना लिखा हुआ है। वहां तो नयी तारीख आ जाती होगी।’

मेरा पहला मित्र बोला‘-हां, यह ठीक है। मुझे क्या पता लगेगा?नये पुराने का टैंशन नहीं होगा तो फिर आराम से पढ़ लूंगा।’

मैंने हंसते हुए कहा-‘क्या खाक ठीक होगा? एक बार समीरलाल ‘उडन तश्तरी’ ने ब्लाग स्पाट के ब्लाग से वर्डप्रेस पर रखी गयी ऐसी ही पोस्ट के बारे में लिखा था कि‘यह पोस्ट पढ़ी हुई लग रही है। अब किसी और ने ऐसा लिख दिया तो तुम्हीं फिर रोते फिरोगे कि ‘मेरे दोस्त की भद्द पिट गयी।’
पहला दोस्त आश्चर्य चकित होकर पूछने लगा-‘यार, तुम्हारे साथ ऐसा भी हो चुका है।’
मैंने कहा-‘मैंने कहा उड़न तश्तरी की टिप्पणियां तो बहुत सहज हैं जबकि अपने ब्लाग/पत्रिकाओं पर मुझे अब कटुतापूर्ण टिप्पणियों का सामना करना पड़ रहा है। मैं ही नहीं स्वयं उड़न तश्तरी को भी ऐसी हालतों से गुजरता पड़ रहा है। वैसे तुम कविताओं का रोना करो बंद और अपना टीवी सुधरवा लो ताकि मैं बेफिक्री से लिख सकूं।
दूसरा दोस्त अब मेरे पक्ष में आ गया और बोला-‘वैसे टीवी देखकर दिमाग से खराब करने की बजाय तो कविता लिखना और पढ़ना ही सही है। वैसे जैसा यह लिखता है तो कवितायें भी दमदार होती होंगी।’
पहला मित्र बोला-‘बहुत दिलचस्प और दमदार! पर यह ऊपर शीर्षक पर ही कविता या शायरी मत लिखा करो। आगे पढ़ने का मन ही नहीं करता।’
आखिर मुझे कहना पड़ा-‘जिनका नहीं पढ़ना हो वह न बाध्य न हों इसलिये लिखता हूं। आखिरी बात यही है कि टीवी देखना मैंने कर दिया है बंद। इसलिये मेरे पास इसके अलावा कोई चारा नहीं है कि कवितायें लिखकर ही मन बहलाऊं। तुम जिन टीवी और अखबार वालों से हमारी तुलना कर रहे हो वह तुम्हारी परवाह भी नहीं करते। सब लोग रोते हैं कि यार कहीं कुछ ढंग का पढ़ने या देखने को नहीं मिलता।’
पहला मित्र बोला-‘हां, यह बात सही है। सच तो यह है कि तुम्हारे ब्लाग पर आने के बाद जब दूसरे ब्लाग और फोरम पर जाता हूं तो मुझे पढ़ना अच्छा लगता है। बस, हम तुम अच्छा लिखो यही चाहते हैं। जहां तक टीवी देखने का सवाल है अब वाकई बोरियत भरे कार्यक्रम आने लगे हैं। तुम्हारे ब्लाग खुलने का मतलब है कि हमारे पूरे दो घंटे अच्छा पढ़ लेते हैं।‘

मैं चलने को हुआ और उससे कहा-‘एक बात समझ लो। मैं ब्लाग या पत्रिका पर लिख रहा हूं कोई अखबार नहीं निकालता। अखबार तो दो घंटे में पुराने हो जाते हैं, पर अंतर्जाल पर ब्लाग हमेशा बने रहेंगे। वह किसी अल्मारी में बंद नहीं होंगे न कबाड़ में बिकेंगे

मुझे बाद में इस संवाद पर स्वयं हंसी आ रही थी। सबसे बड़ी बात यह है कि ब्लाग लेखक और व्यक्तिगत मित्रों के बीच खड़े एक पुल की तरह मुझे रोमांच अनुभव हो रहा था। मेरे ब्लाग लेखक मित्र हो या निजी मित्र उनकी आलोचनाओं और प्रशंसाओं से सीखता हूं। यही कारण है कि मैं नित नया लिखने के लिये प्रेरित होता हूं।

शब्द हमेशा हवाओं में लहराते हैं-कविता


हर शब्द अपना अर्थ लेकर ही
जुबान से बाहर आता है
जो मनभावन हो तो
वक्ता बनता श्रोताओं का चहेता
नहीं तो खलनायक कहलाता है
संस्कृत हो या हिंदी
या हो अंग्रेजी
भाव से शब्द पहचाना जाता है
ताव से अभद्र हो जाता है

बोलते तो सभी है
तोल कर बोलें ऐसे लोगों की कमी है
डंडा लेकर सिर पर खड़ा हो
दाम लेकर खरीदने पर अड़ा हो
ऐसे सभी लोग साहब शब्द से पुकारे जाते हैं
पर जो मजदूरी मांगें
चाकरी कर हो जायें जिनकी लाचार टांगें
‘अबे’ कर बुलाये जाते हैं
वातानुकूलित कमरों में बैठे तो हो जायें ‘सर‘
बहाता है जो पसीना उसका नहीं किसी पर असर
साहब के कटू शब्द करते हैं शासन
जो मजदूर प्यार से बोले
बैठने को भी नहीं देते लोग उसे आसन
शब्द का मोल समझे जों
बोलने वाले की औकात देखकर
उनके समझ में सच्चा अर्थ कभी नहीं आता है

शब्द फिर भी अपनी अस्मिता नहीं खोते
चाहे जहां लिखें और बोले जायें
अपने अर्थ के साथ ही आते हैं
जुबान से बोलने के बाद वापस नहीं आते
पर सुनने और पढ़ने वाले
उस समय चाहे जैसा समझें
समय के अनुसार उनके अर्थ सबके सामने आते हैं
ओ! बिना सोचे समझे बोलने और समझने वालों
शब्द ही हैं यहां अमर
बोलने और लिखने वाले
सुनने और पढ़ने वाले मिट जाते हैं
पर शब्द अपने सच्चे अर्थों के साथ
हमेशा हवाओं में लहराते हैं
……………………….
दीपक भारतदीप

आलोचना किसी की, बिफरता कोई और है-आलेख


हिंदी ब्लाग जगत में नित नये अनुभव होते हैं। यह पता ही नहीं लगता कि कोई उसी बात पर नाराज हो रहा है जिस पर बता रहा है या कोई अन्य कारण है। कभी कभी तो लगता है कि कोई पुरानी बातों से त्रस्त होकर ऐसे विषय पर आलोचना ऐसे विषय पर तो नहीं कर रहा है जिससे उसका संबंध नहीं है। फिर अनाम या छद्म नाम हो तो संदेह और बढ़ जाता है कि कहीं वह ऐसे ही विषयों पर नजर रखने के लिए तो नहीं है।
सुरेश चिपलूनकर जी ने एक लेख लिखा जिसमें कुछ फिल्मी हीरो द्वारा प्रस्तुत किये जा रहे कार्यक्रमों की आलोचना थी। वह अपने तीखे शब्दों से अपनी आलोचना करने के लिए जाने जाते है और शायद अपने ब्लाग मित्रों में इसी कारण लोकप्रिय भी हैं। मैं समझता हूं कि वह हर विषय की निष्पक्ष विवेचना करते हैं। यह अलग बात है कि कुछ लोग जिन्हें केवल अपनी पंसद का ही सुहाता है वह उनसे चिढ़ जाते हैं। मुझे एक बार तो उनके आलोचकों पर हंसी आ गयी थी। उन्होंने क्षेत्रीय विवाद में बिल्कुल किसी का पक्ष न लेते हुए लिखा था पर उसमें दोनों पक्ष उन पर प्रहार कर रहे थे और मुझे नहीं लगता था कि वह लोग उसे समझ पाये।

आज भी कुछ ऐसा ही लगा उनके ब्लाग पर किसी ऐसे टिप्पणीकर्ता की टिप्पणी थी जो उनके आलेख को समझा ही नहीं और चिपलूनकर जी ने उसका जवाब अपने ब्लाग पर दिया जिसमें उस टिप्पणीकर्ता का ईमेल या ब्लाग का पता न होने पर गुस्सा भी जाहिर किया गया था। असहमत लोग जब अनाम या छद्म नाम से टिप्पणी लिखते हैं तो कई सवाल मेरे मस्तिष्क में आते हैं। कुछ मीडिया से जुड़े लोग हमारे ब्लाग पर निगाह रख रहे है। जिस तरह क्रिकेट और फिल्म मिल रहे हैं वैसे ही ब्लाग और फिल्म भी मिल रहे हैं-इसमें भी मेरे कुछ दार्शनिक ढंग के विचार हैं पर वह यहां नहीं रख सकता।

मैंने आज ही एक लेख में यह विषय उठाया था कि ब्लाग लिखवाने के पीछे कोई हिंदी के प्रति किसी का सौहार्द नहीं बल्कि उसके लिखे जाने के प्रचार का किसी को लाभ है वही उसके लिये प्रयास कर रहा है। ऐसे लोग यहां सक्रिय हैं। फिल्मी हीरो का ब्लाग बन गया उसकी खबर आखिर यहंा ब्लाग पर देने की क्या जरूरत हैं? फिर चाहते हैं कि अन्य लोग भी इस पर लिखें। यह जो फिल्म हीरो हैं इनमें एक के पास भी समय नहीं है कि वह अपना ब्लाग स्वयं लिखें-इसके लिए उनके सहायक ही बहुत हैं। उनको प्रचार की आवश्यकता नहीं पर वह उन कंपनियों से जुड़े हैं जो संचार माध्यमों की रीढ़ बनती जा रहीं है। उनको हिंदी मे ब्लाग नहीं बल्कि उनके लिखते रहने का प्रचार चाहिए ताकि अन्य लोग भी प्रेरित होकर इंटरनेट कनेक्शन ले। उनके लोग यहां सक्रिय हैं। अगर नहीं तो जरा आज सुरेश चिपलूनकर का आलेख देखें और एक ब्लाग पर उसमें उल्लेखित हीरो के ब्लाग बनने का समाचार दूसरे ब्लाग पर है। इसलिये अब यहां किसी हीरो की आलोचना सहन नहीं की जा रही है।

क्रिकेट में खेल रहे अनेक खिलाड़ी और फिल्मों में काम कर रहे अभिनेता ब्लाग बनाते जायेंगे और उसका प्रचार होगा। इनमें से किसी का ब्लाग हिंदी में नहीं होगा। मुझे बहुत आश्चर्य हुआ जब मैंने वह कमेंट देखी। कितनी बदतमीजी से लिखी गयी थी। मुझे लगता है कि हिंदी ब्लाग जगत अब नये रूप में आ रहा है जहां यह पता ही नहीं लग रहा है कि कौन किसके लिए काम कर रहा है? एक अभिनेता की आलोचना पर ऐसी टिप्पणी! मैं ऐसे लोगों को बता दूं कि भई, हम किसी के बंधुआ नहीं हैं। हर महीने छह सौ से साढ़े छह सौ रुपये भुगतान करते है। स्वतंत्र अभियक्ति का साधन है इसलिये हाथ घिसते हुए लिख रहे हैं। अगर तुम असहमत हो तो अपने ब्लाग पर लिखो। एसी वाहियात टिप्पणी वह भी अनाम और छद्म नाम से करते हो। अपने ईमेल का पता नहीं देते।

मैंने कहा था कि कुछ लोग हैं जो लिखने और पढ़ने के साथ टिप्पणियों के लिये कोई अन्य फायदे ले रहे हैं। हमारे ब्लोग लेखक मित्र पूरे पते के साथ बड़े प्रेम से टिप्पणी लिखते हैं तो प्रसन्नता होती है पर अगर कोई अनाम या छद्म नाम रखता है तो हम मान लेते हैं कि उसे कोई फायदा है। मेरा अनुमान सही था इस ब्लाग जगत पर नजर रखी जा रही है और बढ़ती पाठक संख्या केवल उसी का ही परिणाम है कि कुछ लोगों को ब्लाग लेखकों को प्रोत्साहित करने के साथ उन पर नजर रखने के लिऐ नियुक्त किया गया है। ऐसा नहीं है कि आम पाठक यहां नहीं है पर उसकी संख्या कम हैं। मेरे एक आलेख में कुछ फिल्मी हीरो के नाम थे और सभी का नाम डालकर उसे पढ़ा गया। इसी आधार पर मैंने अपना आज का लेख लिखा था और लगता है कि वाकई यही बात है। कंपनियों के लिए माडलिंग करने वाले फिल्मी अभिनेताओं की यहां आलोचना इसलिये सहन नहीं की जा रहीं-यह आलोचना भी कोई ऐसी नहीं है बल्कि इस तरह की समाचार पत्रों में आये दिन होती रहती है। आखिर कुछ ऐसा है जो हम ब्लाग लेखक समझ नहीं पा रहे पर धीरे-धीरे सब स्पष्ट होता जायेगा। जहां तक मेरा विचार है जो हिंदी भाषा के ब्लाग लेखक हैं उनमें एक भी मुझे इस प्रवृत्ति का नहीं है और अब यहां बाहर से ऐसे लोग सक्रिय हो रहे हैं जो यहां अपना नियंत्रण बनाना चाहते है। आखिर सवाल यह है कि आलोचना किसी की हो रही है और बिफरता कोई अन्य है तब यह सवाल तो उठेगा ही ।