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निगाहों ने खो दी है अच्छे बुरे की पहचान-हिन्दी शायरी (nanigah ne kho di pahchan-hindi shayari)


लोगों की संवेदनाऐं मर गयी हैं
इसलिये किसी को दूसरे का दर्द
तड़पने के लिये मजबूर नहीं कर पाता है।

निगाहों ने खो दी है अच्छे बुरे की पहचान
अपने दुष्कर्म पर भी हर कोई
खुद को साफ सुथरा नज़र आता है।

उदारता हाथ ने खो दी है इसलिये
किसी के पीठ में खंजर घौंपते हुए नहीं कांपता,
ढेर सारे कत्ल करता कोई
पर खुद को कातिल नहीं पाता है।

जीभ ने खो दिया है पवित्र स्वाद,
इसलिये बेईमानी के विषैले स्वाद में भी
लोगों में अमृत का अहसास आता है।

किससे किसकी शिकायत करें
अपने से ही अज़नबी हो गया है आदमी
हाथों से कसूर करते हुए
खुद को ही गैर पाता है।
————

कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
—————————
यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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हिन्दी के ब्लाग क्रिकेट मैच से पिट जाते हैं-व्यंग्य चिंत्तन


वह हमारा मित्र है बचपन का! कल हम पति पत्नी उसे घर देखने गये। कहीं से पता लगा कि वह बहुत बीमार है और डेढ़ माह से घर पर ही पड़ा हुआ है।
घर के बाहर दरवाजे पर दस्तक दी तो उसकी पत्नी ने दरवाजा खोला और देखते ही उलाहना दी कि ‘आप डेढ़ महीने बाद इनको देखने आये हैं।’
मैने कहा-‘पर उसने मुझे कभी फोन कर बताया भी नहीं। फिर उसका मोबाइल बंद है।’
वह बोली-‘नहीं, हमारा मोबाइल चालू है।’
मैंने कहा-‘अभी आपको बजाकर बताता हूं।’
वह कुछ सोचते हुए बोलीं-‘हां, शायद जो नंबर आपके पास है उसकी सिम काम नहीं कर रही होगी। उनके पास दो नंबर की सिम वाला मोबाइल है।’

दोस्त ने भी उलाहना दी और वही उसे जवाब मिला। उसकी रीढ़ में भारी तकलीफ है और वह बैठ नहीं सकता। पत्थरी की भी शिकायत है।
हमने उससे यह तो कहा कि उसका मोबाइल न लगने के कारण संशय हो रहा था कि कहीं अपनी बीमारी के इलाज के लिये बाहर तो नहीं गया, मगर सच यह है कि यह एक अनुमान ही था। वैसे हमें भी हमें पंद्रह दिन पहले पता लगा था कि वह बीमार है यानि एक माह बाद।

हमें मालुम था कि बातचीत में ब्लागिंग का विषय आयेगा। दोनों की गृहस्वामिनियों के बीच हम पर यह ताना कसा जायेगा कि ब्लागिंग की वजह से हमारी सामाजिक गतिविधियां कम हो रही हैं। हालांकि यह जबरन आरोप है। जहां जहां भी सामाजिक कार्यक्रमों में उपस्थिति आवश्यक समझी हमने दी है। शादियों और गमियों पर अनेक बार दूसरे शहरों में गये हैं। वहां भी हमने कहीं साइबर कैफे में जाकर अपने ईमेल चेक करने का प्रयास नहीं किया। एक बार तो ऐसा भी हुआ कि जिस घर में गये वहां पर इंटरनेट सामने था पर हमने उसे अनदेखा कर दिया। बालक लोग इंटरनेट की चर्चा करते रहे पर हमने खामोशी ओढ़ ली। इसका कारण यह था कि हमने जरा सा प्रयास किया नहीं कि हम पर ब्लाग दीवाना होने की लेबल लगने का खतरा था। बसों में तकलीफ झेली और ट्रेनों में रात काटी। कभी अपने ब्लाग की किसी से चर्चा नहीं की। अलबत्ता घर पर आये तो सबसे पहला काम ईमेल चेक करने का किया क्योंकि यह हमारा अपना समय होता है।
लगभग दो घंटे तक मित्र और उनकी पत्नी से वार्तालाप हुआ। हमने उससे यह नहीं पूछा कि ‘आखिर उसके खुद के ब्लाग का क्या हुआ?’
उसने इंटरनेट कनेक्शन लगाने के बाद अपन ब्लाग बनाया था। उसने उस पर एक कविता लिखी और हमने पढ़ी थी। उससे वादा किया था कि वह आगे भी लिखेगा पर शर्त यह रखी थी कि हम उसे घर आकर ब्लाग की तकनीकी की पूरी जानकारी देंगे। इस बात को छह महीने हो गये। अब बीमारी की हालत में उससे यह पूछना सही नहीं था कि उसके ब्लाग का क्या हुआ।
उसे हमने अपने गूगल का इंडिक का टूल भी भेजा था ताकि हिन्दी लिखने में उसे आसानी हो पर पता नहीं उसका उसने क्या किया?
उसकी बीमारी पर चर्चा होती रही। उसका मनोबल गिरा हुआ था। आखिरी उसकी पत्नी ने कह ही दिया कि ‘यह इंटरनेट पर रात को दो दो बजे तक काम करते थे भला क्यों न होनी थी यह बीमारी?’
हमने पूछ लिया कि ‘क्या तुम ब्लाग लिखते थे।’
इसी बीच श्रीमती जी ने हमारी तरफ इशारा करते हुए कहा कि ‘यह भी बाहर से आते ही थोड़ी देर में ही इंटरनेट से चिपक जाते हैं, और रात के दस बजे तक उस पर बैठते हैं।’
मित्र पत्नी ने कहा-‘पर यह तो रात को दो दो बजे तक कभी कभी तो तीन बजे तक वहां बैठे रहते हैं।’
श्रीमतीजी ने कहा-‘पर यह दस बजे नहीं तो 11 बजे के बाद बंद कर देते हैं। सुबह अगर बिजली होती है तो बैठते हैं नहीं तो चले जाते हैं।’
इधर हमने मित्र से पूछा-‘तुम इंटरनेट पर करते क्या हो? वह मैंने तुम्हें हिन्दी टूल भेजा था। उसका क्या हुआ? वैसे तुमसे जब भी ब्लाग के बारे में पूछा तो कहते हो कि समय ही नहीं मिलता पर यहां तो पता लगा कि तुम रात को दो बजे तक बैठते हो। क्या करते हो?’
वह बोला-‘मैं बहुत चीजें देखता हूं गूगल से अपना घर देखा। रेल्वे टाईम टेबल देखता हूं। अंग्रेजी-हिन्दी और हिन्दी-अंग्रेजी डिक्शनरी देखता हूं। अंग्रेजी में लिखना है। बहुत सारी वेबसाईटें देखता हूं। अखबार देखता हूं। स्वाईल फ्लू जब फैला था उसके बारे में पूरा पढ़ा। हां, मैं अंग्रेजी वाली वेबसाईटें पढ़ता हूं। मैं अंग्रेजी में लिखना चाहता हूं। हिन्दी तो ऐसे ही है।’
‘कैसे?’हमने पूछा
‘कौन पढ़ता है?’वह बोला।
‘‘हमने पूछा तुम अखबार कौनसे पढ़ते हो?’
वह बोला-‘हिन्दी और अंग्रेजी दोनों ही पढ़ता हूं। हां, अपना लेखन अंग्रेजी में करना चाहता हूं। जब मैं ठीक हो जाऊं तो आकर ब्लाग की तकनीकी की विस्तार से जानकारी दे जाना। हिन्दी बहुत कम लोग पढ़ते हैं जबकि अंग्रेजी से अच्छा रिस्पांस मिल जायेगा।’
हम वहां से विदा हुए। कुछ लोग तय कर लेते हैं कि वह बहुत कुछ जानते हैं। इसके अलावा अपने समान व्यक्ति से कुछ सीखना उनको छोटापन लगता है। हमारा वह मित्र इसी तरह का है। जब उसने ब्लाग बनाया था तो मैं उसे कुछ जानकारी देना चाहता था पर वह समझना नहीं चाहता था। उसने उस समय मुझसे ब्लाग के संबंध में जानकारी ऐसे मांगी जैसे कि वह कोई महान चिंतक हो ओर मैदान में उतरते ही चमकने लगेगा-‘मेरे दिमाग में बहुत सारे विचार आते हैं उन्हें लिखूंगा’, ‘एक से एक कहानी ध्यान में आती है’ और ऐसी बातें आती हैं कि जब उन पर लिखूंगा तो लोग हैरान रह जायेंगे’।
उसने मेरे से हिन्दी टूल मांगा था। किसलिये! उसके कंप्यूटर में हिन्दी फोंट था पर उसकी श्रीमती जी को अंग्रेजी टाईप आती थी। वह कहीं शिक्षिका हैं। अपने कक्षा के छात्रों के प्रश्नपत्र कंप्यूटर पर हिन्दी में बनाने थे और हिन्दी टाईप उनको आती नहीं थी। उस टूल से उनको हिन्दी लिखनी थी।
उसने उस टूल के लिये धन्यवाद भी दिया। जब भी उसके ब्लाग के बारे में पूछता तो यही कहता कि समय नहीं मिल रहा। अब जब उसकी इंटरनेट पर सक्रियता की पोल खुली तो कहने लगा कि अंग्रेजी का ज्ञान बढ़ा रहा है। हमने सब खामोशी से सुना। हिन्दी लेखकों की यही स्थिति है कि वह डींगें नहीं हांक सकते क्योंकि उसमें कुछ न तो मिलता है न मिलने की संभावना रहती है। अंतर्जाल पर अंग्रेजी में कमाने वाले बहुत होंगे पर न कमाने वाले उनसे कहीं अधिक हैं। हमारे सामने अंग्रेजी ब्लाग की भी स्थिति आने लगी है। अगर सभी अंग्रेजी ब्लाग हिट हैं तो शिनी वेबसाईट पर हिन्दी ब्लाग उन पर कैसे बढ़त बनाये हुए हैं? अंग्रेजी में अंधेरे में तीर चलाते हुए भी आदमी वीर लगता है तो क्या कहें? एक हिन्दी ब्लाग लेखक के लिये दावे करना मुश्किल है। हो सकता है कि हमारे हिन्दी ब्लाग हिट पाते हों पर कम से कम एक विषय है जिसके सामने उनकी हालत पतली हो जाती है। वह है क्रिकेट मैच! उस दिन हमारे हिन्दी ब्लाग दयनीय स्थिति में होते हैं। ऐसे में लगता है कि ‘हम किसी को क्या हिन्दी में ब्लाग लिखने के लिये उकसायें जब खुद की हालत पतली हो।’ फिर दिमाग में विचार, कहानी या कविताओं का आना अलग बात है और उनको लिखना अलग। जब ख्याल आते हैं तो उस समय किसी से बात भी कर सकते हैं और उसे बुरा नहीं लगा पर जब लिखते हैं तो फिर संसार से अलग होकर लिखना पड़ता है। ऐसे में एकांत पाना मुश्किल काम होता है। मिल भी जाये तो लिखना कठिन होता है। जो लेखक हैं वही जानते हैं कि कैसे लिखा जाये? यही कारण है कि दावे चाहे जो भी करे लेखक हर कोई नहीं बन जाता। उस पर हिन्दी का लेखक! क्या जबरदस्त संघर्ष करता हुआ लिखता है? लिखो तो जानो!
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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इश्क और मशीन-हास्य कविता (hasya kavita)


माशुका को उसकी सहेली ने समझाया
‘आजकल खुल गयी है
सच बोलने वाली मशीन की दुकानें
उसमें ले जाकर अपने आशिक को आजमाओ।
कहीं बाद में शादी ा पछताना न पड़े
इसलिये चुपके से उसे वहां ले जाओ
उसके दिल में क्या है पता लगाओ।’

माशुका को आ गया ताव
भूल गयी इश्क का असली भाव
उसने आशिक को लेकर
सच बोलने वाली मशीन की दुकान के
सामने खड़ा कर दिया
और बोली
‘चलो अंदर
करो सच का सामना
फिर करना मेरी कामना
मशीन के सामने तुम बैठना
मैं बाहर टीवी पर देखूंगी
तुम सच्चे आशिक हो कि झूठे
पत लग जायेगा
सच की वजह से हमारा प्यार
मजबूत हो जायेगा
अब तुम अंदर जाओ।’

आशिक पहले घबड़ाया
फिर उसे भी ताव आया
और बोला
‘तुम्हारा और मेरा प्यार सच्चा है
पर फिर भी कहीं न कहीं कच्चा है
मैं अंदर जाकर सच का
सामना नहीं करूंगा
भले ही कुंआरा मरूंगा
मुझे सच बोलकर भला क्यों फंसना है
तुम मुझे छोड़ भी जाओ तो क्या फर्क पड़ेगा
मुझे दूसरी माशुकाओं से भी बचना है
कोई परवाह नहीं
तुम यहां सच सुनकर छोड़ जाओ
मुश्किल तब होगी जब
यह सब बातें दूसरों को जाकर तुम बताओ
बाकी माशुकाओं को पता चला तो
मुसीबत आ जायेगी
अभी तो एक ही जायेगी
बाद में कोई साथ नहीं आयेगी
मैं जा रहा हूं तुम्हें छोड़कर
इसलिये अब तुम माफ करो मुझे
अब तुम भी घर जाओ।’

…………………….

दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
कवि एंव संपादक-दीपक भारतदीप
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लेखक संपादक-दीपक भारतदीप

यह तो है हिंदी का अंतर्जाल युग -आलेख


हिंदी की विकास यात्रा का चार खंडों में बांटा जाता है और इसमें हमारे यहां सबसे अधिक भक्ति काल महत्वपूर्ण रहा है। आजकल आधुनिक काल के दौर से हिंदी गुजर रही है। मैं सोचता हूं कि अंतर्जाल पर लिखी जा रही हिंदी को आखिर किस स्वरूप में देखा जाय। हिंदी की अंतर्जाल यात्रा को अभी तक कोई अधिक समय नहीं हुआ है और देखा जाय तो इस पर पुरानी पुस्तकों से उठाकर भी बहुत लिखा जा रहा है। आधुनिक काल के अनेक लेखकों के नाम यहां बार-बार आते हैं उनकी रचनाओं की चर्चा भी यहां पढ़ने को मिलती है। अगर पुराने आध्यात्म ग्रंथों और स्वर्णकाल (भक्ति काल) की उल्लिखित रचनाओं का छोड़ दिया जाये तो आधुनिक काल के रचनाकारों की रचनायें यहां अधिक लोकप्रिय नहीं हो पा रहीं हैं-मुझे ऐसा आभास हो रहा है।

स्वर्णकाल या भक्ति काल की रचनायें अधिकतर काव्यात्मक हैं और उनके रचनाकारों मीरा, तुलसी, सूर, कबीर और रहीम आदि कवियों ने अपनी रचनाओं में बहुत संक्षिप्त में जीवन के गूढ़ रहस्यों को उजागर करने के साथ भक्ति और ज्ञान का प्रकाश फैलाया। उन्होंने गागर में सागर भरा जो कि अंतर्जाल पर लिखकर लोकप्रियता प्राप्त करने की प्रथम शर्त है। आधुनिक काल में भी ऐसी रचनाएं होती रहीं हैं पर वह उनकी चर्चा बहुत कम होती हैं। यहां बड़े उपन्यास और कहानियों को पढ़ना कठिन है। हां, आगे चलकर जब इस पर घर में प्रिंट निकालना सस्ता होगा तभी ऐसी संभावना बनती है कि बड़ी रचनाओं को लोकप्रियता मिलने लगे। अभी तो कंप्यूटर के साथ जो प्रिंटर मिल रहा है उसकी स्याही बहुत महंगी है और इस कारण उस पर प्रिंट निकालना महंगा है।

मैं मानता हूं कि अंतर्जाल पर हिंदी के स्वरूप के समझने के लिए इसे हिंदी का अंतर्जाल युग भी कह सकते हैं और जो लोग लिख रहे हैं उनको इस बात को समझना चाहिए कि वह हिंदी का एक युग अपने कंधे पर लेकर चल रहे हैं। मैं अनेक नये लेखकों को पढ़ता हूं तो लगता है कि उनमें नवीन शैली से लिखने का अभ्यास अब अच्छा होता जा रहा है। आधुनिक काल तक हिंदी कागज पर चली थी पर अंतर्जाल पर कागज का स्वरूप फोटो के रूप में है। यहां गागर में सागर भरने की शर्त वैसी है जैसे स्वर्ण काल के रचनाकारों ने निभाई। अपनी कहानियों के साथ प्रकृति या दृश्यव्य वस्तुओं का वर्णन पढ़ने से पाठकों में उकताहट आ सकती है। बहुत संक्षिप्त और सीधें बात कहने से भाषा का सौंदर्य ढूंढने वालों को भी निराशा का अनुभव हो सकता है। ऐसे में संक्षिप्त रूप के साथ भाषा का सौंदर्य जो रचनाकार अपने पाठ में देंगे वह यहां पर बहुत लोकप्रिय होंगे।

अक्सर लोग एक दूसरे पर फब्तियां कसते हैं-‘अरे, कविता लिखते हो तो क्या तुलसी या सूर हो जाओगे, या ‘कहानी लिखते हो तो क्या अमुक विख्यात लेखक जैसे हो जाओगे’। मेरा मानना है कि तुलसी,मीरा,सूर,रहीम और कबीर जैसा संत बनना तो एक अलग विषय है पर यहां कई कहानीकारों के लिए हिंदी मे लिखते हुए ‘अंतर्जाल के कहानीकार, व्यंग्यकार और कवि’ के रूप में प्रसिद्ध होने की संभावनाएं बहुत है।
हिंदी के आधुनिक काल के रचनाकारों की एक लंबी फेहस्ति बहुत लंबी है। आधुनिक काल के लेखकों और कवियों ने हिंदी के विकास के लिये तत्कालीन सामाजिक परिस्थितियों को दृष्टिगत बहुत सारी रचनाएं लिखीं पर उनमे बदलाव के कारण उनका पढ़ना कम होता गया है। स्वर्णकाल के कवियों ने मानव के मूल स्वभाव के दृष्टिगत अपनी बात लिखी जिसमें बदलाव कभी नहीं आता पर परिस्थितियों को घ्यान में रखकर लिखीं गयी आधुनिक काल की रचनाएं इसलिये पुरानी होने के कारण लोकप्रिय नहीं रह पातीं और धीरे-धीरे नयी परिस्थितियों में लिखने वाले लेखकों रचनाऐं लोगों के मस्तिष्क मेंे स्थान बनाती जातीं हैं।
अनेक लेखक अब भी अपनी किताबें छपवाने के लिए लालायित रहते हैं। मेरा अंतर्जाल पर पर्दापण ही मेरे एक ऐसे मित्र लेखक के कारण हुआ जिसने अपनी किताब छपवाई थी और वह मुझसे अंतर्जाल की एक पत्रिका का पता मांग रहा था। मैंने इंटरनेट लगवाया इसलिये था कि इससे देश की प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं में अपनी रचनाएं त्वरित गति से भेज सकूंगा। जब उस मित्र ने मुझे उस पत्रिका का पता ढूंढने के लिये कहा तो मैं हिंदी शब्द डालकर उसे ढूंढ रहा था पर वह नहीं मिली। आज वही शब्द डालता हूं तो बहुत कुछ आ जाता है। धीरे-धीरे मैंने अपने ब्लाग को ही पत्रिका मानकर इस पर लिखना शुरू किया।

मुझे लगता है कि लोगों में हिंदी में अच्छा पढ़ने की बहुत ललक है पर अभी पाठक और लेखक के बीच के संबंध व्यापक आधार पर स्थापित नहीं हो पा रहे पर यह आगे जरूर बनेंगे। हालांकि इसमें सबसे सबसे बड़ा सवाल पहचान का है कि जिसने हमकों लिखा है वह असली नाम से है या छद्म वाला। मैरे पास कई टिप्पणी आती हैं और उससे यह समझना कठिन लगता है कि आम पाठक की है या किसी मित्र ब्लाग लेखक की-हालांकि मुझे लगता है कि आगे चलकर पाठक भी अपनी टिप्पणियों लिखेंगे और वह अपने पंसदीदा लेखकों के बारे में विचार व्यक्त करेंगे। वजह हिंदी में पढ़ने वाले लोग यह जानते हैं कि अच्छा लिखने वालों की इस देश में कमी नहीं है पर पत्र-पत्रिकाओं में उनके सामने वही लेखक आते हैं जो लिखने के अलावा छपवाने में भी माहिर होते हैं। इसमें छिपा हुआ कुछ नहीं है। अधिकतर कालम लिखने वालों के परिचय में उनका लेखक के रूप मेंे कम दूसरा प्रसिद्ध परिचय अधिक छपा रहता है। फिल्म, साहित्य, कला, चित्रकला, संगीत, पत्रकारिता और आकर्षक व्यवसायों में वही पुराने लोग हैं या उनकी संतानें अब अपना काम कर रहीं हैं। लोग नया चाहते हैं और उनको पता है कि यह स्वतंत्र रूप से केवल अंतर्जाल पर ही संभव है।
कुछ लोग पुराने साहित्यकारों के नामों के सहारे यहां अपना प्रचार कर रहे हैं पर उनको अधिक सफलता नहीं मिलने वाली। पाठक लोग नया चाहते हैं और पुरानी रचना और रचनाकार जिनको वह जानते हैं अब यहां पढ़ना नहीं चाहते। मैं ब्लाग जगत पर निरंतर सजगता से देखता हूं। मै ढूंढता हूं कि मौलिक लेखक कौन है? हां, अब यह देखकर खुशी हो रही है कि मौलिक लेखक अब यहां खूब लिख रहे है।
मेरी मौलिक लेखकों को सलाह है कि वह पीछे न देखें। चलते चले जायें। अगर कोई उनसे कहता है कि तुम क्या अमुक लेखक जैसे बड़े बन सकते हो? तो उसका जवाब न दो क्योंकि तुम उससे भी बडे बन सकते हो। तुम्हारी रचनाऐं तो अनंतकाल तक यहां रहने वाली हैं जबकि पुराने रचनाकारों की रचनाऐं और किताबें अल्मारी में बंद पड़ी रहती हैं जब तक कोई उसे न खोले पढ़ी नहीं जातीं। जबकि अंतर्जाल लेखकों की रचनाएं तो चाहे जहां पहुंच सकतीं हैं और बिना किसी मेहनत के कोई इसका अनुवाद कर भी पढ़ सकता है। हिंदी के अंतर्जाल युग में वही लेखक अपना मुकाम लोगों के हृदय में बनायेंगे तो मौलिक रूप से लिखेंगे। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि कई लेखक तो इसलिए नाम कमा सके कि येनकेन प्रकरेण उन्होंने संपर्क बनाकर शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में अपनी रचनाएं छपवायीं। अंतर्जाल तो एक खुला मैदान है जहां कोई किसी के आगे लाचार या मजबूर नहीं है। इसलिये मैं मानता हूं कि हिंदी के अंतर्जाल युग का सूत्रपात हो चुका है। आधुनिक काल के कई समर्थक इसका विरोध कर सकते हैं पर उसका जवाब भी मैं कभी दूंगा हालांकि उस पर विवाद खड़ा होगा और वैसे भी सब तरफ फ्लाप होते ब्लाग को देखते हुए यह समय ठीक नहीं है।

हिंदी-अंग्रेजी टूल बहुत दिलचस्प लगा-आलेख (2)


हिंदी -अंग्रेजी अनुवाद टूल का मैं कल से उपयोग कर रहा देख रहा हूं तो उसमें सुखद आश्चर्य का अनुभव हो रहा है। प्रथम तो यह कि यदि शुद्ध हिंदी भाषा को लिखेंगे तो ही वह स्वीकार करेगा। कहीं पाठ को लिखने के दौरान उर्दू या इंग्लिश शब्द का उपयोग किया तो वह उसे स्वीकार नहीं करेगा। जैसे भावनाओं को जजबात नहीं लिख सकते। धर्म को मजहब नहीं लिख सकते । भ्रम को गलतफहमी लिखेंगे तो वह कोई नहीं पढ़ पायेगा। अगर कोई हिंदी शब्द लिखने में गलती कर जाते हैं तो अंग्रेजी में अनुवाद करने वाला टूल उसे अनुवाद करने की बजाय वैसे का वैसे ही प्रस्तुत कर देता है।

मै अंग्रेजी में अनुवाद से पहले अपनी देवनागरी भाषा में पाठ लिखने के बाद उसे यूनिकोड टूल में ले जाता हूं फिर उसे अनुवाद टूल में रखता हूं और जब उसमें कोई लिख गया शब्द नहीं बदला होता है तो उसे पहले अपने मूल पाठ में सही करता हूं। एक से अधिक शब्द होने पर सभी शब्दों को पुनः लिखने के बाद फिर उसे यूनिकोड में बदलने वाले टूल पर लाता हूं वहां से फिर अनुवाद वाले टूल पर कर देखता पड़ता है कि सही हुआ कि नहीं। बहरहाल अब यह तो इग्लिश में पढ़ने वाले ही तय करेंगे कि उसका परिणाम कैसा है पर एक बात निश्चित है कि वह अगर ऐसे टूलों से ही हिंदी पढ़ने वाले हैं तो उसके लिये मेरे द्वारा किये गये थोड़े प्रयास भी मेरे द्वारा रचित पाठ को अधिक पढ़ने योग्य बना देंगे बनिस्बत अन्य हिंदी ब्लाग के उन पाठों के जो इस अनुवाद वाले टूल पर परीक्षण करके नहीं रखे गये। कल कुछ ब्लागर लिख रहे थे कि इसमें कुछ कमियां है और इसका उपाय यह है कि जो ब्लागर चाहते हैं तो उनके सामने दो रास्ते हैं कि वह अपने पाठ का इस अनुवाद टूल पर परीक्षण कर देखें कि उसमें पूरे शब्द अंग्रेजी में आ रहे हैं कि नहीं, जो नहीं आ रहे उनमें परिवर्तन कर फिर देखें और अपनी पोस्ट रखें दूसरा यह कि छोड़ दे पढ़ने के इच्छुक पाठक के लिये जो इस टूल से वैसा ही पढ़ेगा जैसा कि अपने रखा है पर उसके लिये उसे यह टूल लाना पड़ेगा। ऐसे में वह शायद जहमत न उठाये तो आपने अगर अपना पाठ अंग्रेजी में रखा है तो वह पढ़ ही लेगा।

मैने कुछ पोस्टों पर प्रयोग किया और पाया कि वैसी भाषा किसी के लिये नहीं हो सकती जिसका वह पाठक है पर भाव तो समझा ही जा सकता है। मैंने आज कुछ इंग्लिश ब्लाॅगरों की पोस्ट को हिंदी में पढ़ा। उसमें बहुत दिक्कत है पर अंग्रेजी और हिंदी दोनों के पाठ मेरे सामने थे तो भाव और अर्थ मैंने एकदम समझ लिया। मैं यह कह सकता हूं कि मैंने आज जो इंग्लिश ब्लाग देखे वह पूरी तरह पढ़े और समझे हैं। उनकी विषय वस्तु पूरी तरह वैसे ही मेरे समझ में आयी जैसा उसका लेखक चाहता था। थोड़ी मेहनत हुई पर जिस तरफ विश्व का ब्लाग जगत बढ़ रहा है उसकी दृष्टि से वह कोई अधिक नहीं थी। इंग्लिश-हिंदी अनुवाद टूल का मतलब यह है कि आप दुनियां की पंद्रह भाषाओं में घुसपैठ कर सकते हैं और जब ऐसा करेंगे तो दूसरी भाषा के ब्लागर भी ऐसा ही करेंगे। भले ही अनुवाद के पाठ ऐसे नहीं आ रहे जैसे अपेक्षित हैं पर वह इतने बुरे नहीं है कि संवाद कायम करने के लिये काफी न हों। समय की कमी के कारण कुछ लोग इस पर अधिक काम न करें पर जिनके पास समय है वह पूरी दुनियां में अनेक भाषाओं में अपने मित्र बनायेंगे। क्या यह आश्चर्य नहीं होगा कि जब कोई चीनी अपनी हमारी पोस्ट को अपनी भाषा में पढ़ने का प्रयास करेगा।
हालांकि मैंने अपनी कुछ पोस्टों का अंग्रेजी अनुवाद कर उसे ब्लाग पर प्रस्तुत किया है पर हमेशा ऐसा नहीं करूंगा पर यह तय है कि उनको लिखने के बाद इंग्लिश अनुवाद टूल पर परीक्षण कर उसे इस लायक तो बनाऊंगा कि उसे कोई अहिंदी भाषी पढ़ना चाहे तो उसे दिक्कत न आये। इसके अलावा इंग्लिश ब्लाग भी पढ़ता रहूंगा ताकि उसे जानकारियां मिल सकें। आज तीन ब्लाग पढ़कर यह समझ में आ गया कि जितनी अंग्रेजी सीखी है वह पर्याप्त है।

it translashan by google tool
Hindi – English tool seemed very interesting – Article (2)

Hindi – English translation tool use from tomorrow I am going to see if there is a feeling of pleasant surprise. First, the Hindi language to write the net if he will accept. During much of the text to write English or Urdu word used, it will not accept it. Such as feelings jajbat can not write. religion to religion can not write. Write to the confusion, misunderstanding that no one will read. If a mistake in writing the Hindi word to the English are translated into a tool to translate it so instead of just presenting them out.

I translated into English from its first published in the language of the text after writing it in Unicode tools it takes I am strongly in the translation tool and when it was writing a word, it is not changed before I correct in his original text. More than one word at all to re-write the words again after a change in the Unicode tool brought on from there, then I can see the translation of the tool that is not correct that. However, it is now in inglish determine that its reading of the results of what is certain is that if one thing from such टूलों Hindi, who read for him by my little efforts have been made to the text Created by me to read more qualified Blog other than the will of the Hindi translation of the texts of the tool on the test were not maintained. Yesterday that there were some blogger write some drawbacks and is the measure that ब्लागर who want that way, their front two of his trial on the text of the translation tool that it can see the whole word in English that are not , Which did not come back to see them change and keep his second post that leave the reader to read the willing tool of the things just want it kept as it is for him on this tool will bring. So perhaps he did not, you’ve taken into account if your English is, he will read it.

I used some of the posts and found that such a language for which the reader can not be understood, but the price may be. Today I have some English blogger the post read in Hindi. There is a lot of trouble both in English and Hindi text in front of me was the sense of meaning and I totally understood. I can say that I am today that he viewed the English Blog read and fully understood. Her subject matter so I fully understand his films, as was the author. A little hard on the side of the world’s Blog world is increasing its terms, it was not any more. English – Hindi translation tool means is that you fifteen languages of the world can infiltrate and will do so when the other language blogger do the same. Even if such a translation of the text has not been as expected but it is not so bad, that is not enough to maintain dialogue. Due to time some of the people who do more work time is not on the whole world in several languages, create your friend. Is it any wonder that when the Chinese will not be posted to our own will try to read in their language.
However, I have some posts on the Blog of the English translation it is always presented on it so that I will not write them after the English translation tool on the testing that will make it worth it to a non-speaking, reading to go to trouble Do not come. Besides, I read the English blog information so that it can get. Today, the three Blog reading was in the understanding that it is learnt English as adequate.

लिखने वाले हिट्स की परवाह नहीं करते-आलेख


मैं सोचता हूँ कि ब्लोगरों के विषय पर कम लिखूं पर रोज कोई न कोई ऐसी बात होती है कि मुझे अपनी पुरानी लिखी बातें दोहरानी पड़ती हैं और कई बार तो ऐसा होता है कि मैं शाम को घर लौटते समय कोई विषय सोचता हूँ पर यहाँ ब्लोग पर कुछ ऐसा देखता हूँ तो फिर इसी विषय पर लिखने बैठ जाता हूँ।

आज श्री सुरेश चिपलूनकर जी ने भी ब्लोग जगत से तौबा(अच्छा यह है कि उन्होने शायद शब्द जोडा है) करने का फैसला सुना दिया। मैं तो हतप्रभ रह गया क्योंकि वह अकेले ब्लोगर हैं जिनसे मैं ग्वालियर में मिल चुका हूँ। पहले मैं उनको इतना नहीं पढता था पर उनसे मुलाक़ात के बाद उनकी पुरानी और नई पोस्ट पढता रहा। उनके लिखे को देखकर बहुत प्रसन्नता होती है। उनका व्यक्तित्व बहुत प्रभावी लगा और अगर कोई नया ब्लोगर होगा तो उसे सुरेश चिपलूनकर जी को आदर्श मानने के लिए कहूंगा। किसी भी फोरम पर हिट न मिलने का दुख उनको भी है। इस मामले में उनसे मुझे कोई हमदर्दी नहीं है और क्योंकि जैसा वह लिखते हैं उसकी उनको जरूरत नहीं है बल्कि उनमें इतना सामर्थ्य है कि वह मुझ जैसे फ्लॉप ब्लोगरों से हमदर्दी जाता सकें। हम दोनों मिले पर किसी ने ब्लोगर मीट की रिपोर्ट नहीं छापी यह इस बात का प्रमाण है कि हम कितने सहज भाव के लोग हैं। कहते हैं कि संयोग तो संयोग को ढूढ़ लेता है।

राजीव तनेजा, परमजीत बाली, रविन्द्र प्रभात, ममता श्रीवास्तव, घुघूती बासूती और उड़न तश्तरी मेरे ब्लोग पर निरंतर संपर्क में रहते हैं और उससे ऐसा लगता है कि सहज भाव से लेखन करने वालों की रचना में धार रहती है। दरअसल उछलकूद करने वाले कम संख्या में रहते हैं पर दिखते अधिक हैं जबकि सहज भाव के लोग अधिक होते हैं पर दिखते कम हैं।

पहले सुरेश चिपलूनकरजी के बारे में थोडी बात और कर लें।
1.वह अपने ब्लोग अपने मित्रों को भेजते हैं और उनको वह वहीं पढ़ते हैं और उनकी संख्या चारों फोरमों की सफलतम पोस्टों की हिट से अधिक होती है।
2.वह व्यापक विषयों पर लिखते हैं और ब्लोग और ब्लोगरों पर कम ही लिखते हैं। विवादास्पद नहीं लिखते। जैसे-जैसे प्रसिद्धि मिलेगी आम पाठकों में उनको बहुत पढा जायेगा। यह भी आज संयोग है कि मैं अपने मित्रों को अपने जिन ब्लोगों के पते दिए हैं उन पर उनको लिंक करने वाला था और उन सबको कह भी दिया है।
3.गहन अध्ययन कर लिखते हैं और उसके पाठक वैसे भी कम होते हैं। उन जैसा लेखन इन ब्लोगों पर मैंने नहीं देखा है पर वह अपने मित्रों के अलावा फोरमों पर नये संपर्क समयाभाव के नहीं बना पाए। फोरमों पर तो अगर शीर्षक में ब्लोग लिखा हो तो वह हिट हो जाता है। सुरेश चिपलूनकर जी को तो मित्र लोग ईमेल पर ही पढ़ लेते है तो फिर उनको वहाँ हिट ब्लोग विषय पर लिखने से भी मिलेंगे इसमें संदेह है। फिर हम लोगों के मन में हिट है तो किसकी परवाह करते हैं।
४.ब्लागस्पाट पर होने के कारण वर्डप्रेस के ब्लोग उनके संपर्क में अधिक नहीं आ पाते। वर्डप्रेस के ब्लोगर अगर चौपालों पर जिसे नही देख पाते उसे अपने डेशबोर्ड पर भी देख लेते हैं पर अगर ब्लोगस्पॉट के ब्लोग चूक गए तो फिर उसे नहीं देख पाते।

यह फोरम तो केवल आपस में मेल मिलाप की भूमिका तक ही ठीक हैं पर आपकी पोस्ट तो आगे भी जाती है। केवल ब्लोगर ही देखते हैं यह बात नहीं है अन्य लोग भी देखते हैं। कमेन्ट देने वाले ब्लोगर आपके मित्र की तरह हैं और आप जिन की पोस्टें हिट देखते हैं वह उनके मित्रों का परिणाम है और पहले अपने को तो हिट बना लें फिर किसी को बनाएं। इस हिट-फ्लॉप के चक्कर में पढना बेकार है। कौन कैसा लिख रहा है सब देख रहे हैं।

जहाँ तक लिख का समाज और लोगों को बदलने की बात तो यह एक भ्रम है कि हम अपने लिखे से कुछ बदल सकते हैं। अरे, इस समाज को भगवान श्रीकृष्ण और श्रीराम और संत शिरोमणी कबीरदास और महान विचारक चाणक्य अपने अनुभव और ज्ञान की अनमोल संपदा सौंप गए तब उसके यह हाल हैं तो वह किसके लिखने से बदलेगा। हाँ एक लेखक के रूप में उस ज्ञान की धारा को आगे बढाने का नैतिक कर्तव्य पूरा करना ही एक धर्म हैं।

लोगों पर प्रभाव पड़ता है और मैं कई पोस्टों से इतना प्रभावित होता हूँ कि कमेन्ट लिखते समय अगर वह लिखूं तो ब्लोगर कहेंगे कि मजाक उड़ा रहा है।
कल भी लिखा था और आज भी लिख रहा हूँ सौ से अधिक हिट भी हिन्दी में क्या मायने रखते हैं? जबकि यह करोडों लोगों की भाषा है। मजे के लिए लिखो तो खूब मजा आयेगा। लिखने का व्यसन तो मेरा पुराना है और यहाँ अपनी एक तरह से डायरी लिख रहा हूँ। ऐसे में मित्रों का मिलना तो एक बोनस है और सुरेश चिपलूनकर जी से हुई भेंट और राजीव तनेजा से फोन पर हुई बातचीत इसी लिखे का परिणाम है।

बस इतना इस विषय पर आज इतना ही। इस विषय पर इसी ब्लोग पर मैं पहले भी लिख चुका हूँ कि चौपालों के हिट या फ्लॉप एक भ्रम है। मैं उम्मीद करता हूँ कि सुरेश चिपलूनकर जी आगे भी लिखना जारी रखेंगे।

कुछ देर आत्ममुग्ध हो जाएं, ब्लोग पर लिख आयें-हास्य कविता


आओ कुछ पल के लिए आत्ममुग्ध हो जाएं
चलो अपने ब्लोग पर लिख आयें
हमारे लिखने से ज़माना नहीं बदल जायेगा
पर दिल का गुबार तो निकल जायेगा
वैसे भी किसी के लिखे से
जमाना क्या बदलेगा
पहले तो हम ही बदल जाएं

कुछ लिखेंगे नहीं तो कुछ पढ़ने लगेंगे
किसने क्या लिखा उसके जाल में फंसेंगे
ढेर सारी किताबे लिखी गयी हैं
कुछ पडी हैं रद्दी की तरह अलमारी में
तो कुछ मशहूर हुईं हैं जंग करवाने के लिए
पूजने के लिए आलों में रखीं है
पर नहीं है वह भी पढ़ने के लिए
आओ अपना ही लिखा पढ़ते जाएं

वाद और नारों पर चलता रहा है समाज
नहीं उसके विचारों में गहराई आज
भेड़ की तरह हांके जाते लोग
जागते हुए खुली आंखों से नींद में
चलने का हो गया सबको रोग
आओ कुछ अपना ही लिखा पढ़ते जाएं

मन को बहना है इधर या उधर
जाना है वहीं ले जायेगा वह जिधर
कोई हमें पहले हांके कोई कथा सुनाकर
रच डालें कई कहानी और कवितायेँ
कोई हमें मन्त्र-मुग्ध कर
बाँध कर अपनी दरबार में सजाए
आओ कुछ पल के लिए आत्ममुग्ध हो जाएं
चलो अपने ब्लोग पर लिख आयें
————————————–

ब्लाग पर त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाने वालों का आभार


कुछ ब्लोगों में शब्द और वर्तनी की गलतिया आ जाती हैं. मैं खुद कई गलतियां कर जाता हूँ, यह स्वीकार करते हुए कोई शर्म नहीं है कि यह गलतिया मेरी लापरवाही से होतीं हैं. जो लोग मेरा इनकी तरफ आकर्षित कराते हैं उनका आभारी हूं. वैसे कई ब्लोगर अनजाने में यह गलतियां कर जाते हैं और जल्दबाजी में उनको ठीक करना भूल जाते हैं.

इन गलतियों के पीछे केवल एक ही कारण है कि हम जब इसे टंकित कर रहे हैं तो अंग्रेजी की बोर्ड का इस्तेमाल करते हैं. दूसरा यह कि कई शब्द ऐसे हैं जो बाद में बेक स्पेस से वापस आने पर सही होते हैं, और कई शब्द तो ऐसे हैं जो दो मिलाकर एक करने पड़ते हैं. ki से की भी आता है और कि भी. kam से काम भी आता है कम भी. एक बार शब्द का चयन करने के बाद दुबारा सही नहीं करना पड़ता है पर गूगल के हिन्दी टूल का अभ्यस्त होने के कारण कई बार इस तरफ ध्यान नहीं जाता और कुछ गलतिया अनजाने में चली जाती हैं. वैसे तो मैं कृतिदेव से करने का आदी हूँ और यह टूल इस्तेमाल करने में मुझे बहुत परेशानी है, पर मेरे पास फिलहाल इसके अलावा कोई चारा नहीं है. वैसे मैं अंतरजाल पर लिखने से पहले अपनी रचनाएं सीधी कंप्यूटर पर कृतिदेव में टायप करता था और हिन्दी टूल से अब भी यही करता हूँ और मुझे कहने में कोई संकोच नहीं है कि अपने मूल स्वरूप के अनुरूप नहीं लिख पाता. ऐसा तभी होगा जब मैं हाथ से लिखकर यहाँ टाइप करूंगा. अभी यहाँ बड़ी रचनाएं लिखने का माहौल नहीं बन पाया है और जब हाथ से लिखूंगा तो बड़ी हो जायेंगी. इसलिए अभी जो तात्कालिक रूप से विचार आता है उसे तत्काल यहाँ लिखने लगता हूँ, उसके बाद पढ़ने पर जो गलती सामने आती है उसको सही करता हूँ फिर भी कुछ छूट जातीं हैं.

चूंकि अंग्रेजी की बोर्ड का टाईप सभी कर रहे हैं इसलिए गलती हो जाना स्वाभाविक है पर इसे मुद्दा बनाना ठीक नहीं है और अगर सब कमेन्ट लिखते समय एक दूसरे इस तरफ ध्यान दिलाएं तो अच्छी बात है-क्योंकि जब कोई रचना या पोस्ट चौपाल पर होती है तो उसका ठीक हो जाना अच्छी बात है, अन्य पाठकों के पास तो बाद में पहुँचती है और तब तक यही ठीक हो जाये तो अच्छी बात है. वैसे कुछ लिखने वाले वाकई कोई गलती नहीं करते पर कुछ हैं जिनसे गलतियां हो जातीं हैं. हाँ इस गलती आकर्षित करने पर किसी को बुरा नहीं मानना चाहिए. अब बुध्दी हो या बुद्धि हम समझ सकते हैं कि कोई जानबूझकर गलती नहीं करता. इस पर किसी का मजाक नहीं बनाना चाहिऐ. मैंने बडे-बडे अख़बारों में ऐसी गलतियां देखीं हैं.

इस मामले में मैं उन लोगों का आभारी हूँ जिन्होंने मेरा ध्यान इस तरफ दिलाया है, और अब तय किया है कि अपने लिखे को कम से कम दो बार पढा करूंगा. इसके बावजूद कोई रह जाती है तो उसका ध्यान आकर्षित करने वालों का आभार व्यक्त करते हुए ठीक कर दूंगा.

कौटिल्य अर्थशास्त्र:दुष्ट के साथ संधि न करें


  • 1. दूर्भिक्ष और आपत्तिग्रस्त स्वयं ही नष्ट होता है और सेना का व्यसन को प्राप्त हुआ राज प्रमुख युद्ध की शक्ति नहीं रखता।
    2. विदेश में स्थित राज प्रमुख छोटे शत्रु से भी परास्त हो जाता है। थोड़े जल में स्थित ग्राह हाथी को खींचकर चला जाता है।
    3. बहुत शत्रुओं से भयभीत हुआ राजा गिद्धों के मध्य में कबूतर के समान जिस मार्ग में गमन करता है, उसी में वह शीघ्र नष्ट हो जाता है।
    4.सत्य धर्म से रहित व्यक्ति के साथ कभी संधि न करें। दुष्ट व्यक्ति संधि करने पर भी अपनी प्रवृति के कारण हमला करता ही है।
    5.डरपोक युद्ध के त्याग से स्वयं ही नष्ट होता है। वीर पुरुष भी कायर पुरुषों के साथ हौं तो संग्राम मैं वह भी उनके समान हो जाता है।अत: वीर पुरुषों को कायरों की संगत नहीं करना चाहिऐ।
    6.धर्मात्मा राजप्रमुख पर आपत्ति आने पर सभी उसके लिए युद्ध करते हैं। जिसे प्रजा प्यार करती है वह राजप्रमुख बहुत मुश्किल से परास्त होता है।
    7.संधि कर भी बुद्धिमान किसी का विश्वास न करे। ‘मैं वैर नहीं करूंगा’ यह कहकर भी इंद्र ने वृत्रासुर को मार डाला।
    8.समय आने पर पराक्रम प्रकट करने वाले तथा नम्र होने वाले बलवान पुरुष की संपत्ति कभी नहीं जाती। जैसे ढलान के ओर बहने वाली नदियां कभी नीचे जाना नहीं छोडती।
  • सदैव हंसते रहो


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    मनुष्य के मुख पर मुसकान सौभाग्य का चिह्न है। हंसना मनुष्य की स्वाभाविक क्रिया है। विधाता के सृष्टि का कोइ दूसरा प्राणी हंसता हुआ नहीं दिखता। प्रसिद्ध चिंत्तक वायर ने ठीक लिखा है-‘जब भी संभव हो हंसो, यह ऐक सस्ती दवा है, हंसना मानव-जीवन का ऐक उज्जवल पहलू है।’

    पाश्चात्य तत्ववेत्ता स्टर्नने तो यहाँ तक कहा है कि-‘मुझे विश्वास है हर बार जब कोई व्यक्ति हंसता या मुसकराता है वह उसके साथ ही अपने जीवन में वृद्धि करता है।’

    स्वेट मार्डन प्रसन्नता को धन मानते हुए कहते हैं-‘ऐक ऐसा धन है, जिसे सब लोग इकट्ठा कर सकते हैं, वह धन है प्रसन्नता का धन। तुम पर कितनी ही मुसीबतें रहें, तुम कितने कठिनाईयों मैं हो, तुम्हारे सामने अन्धकार ही क्यों न हो, यदि तुम प्रसन्नता को अपनाए रहो तो तुम धनी हो। यह प्रसन्नता तुम्हारे जीवन को उच्च बनाएगी।’

    प्रसिद्ध विचारक कार्नेगी का कथन है-‘मुसकराहट थके हुए व्यक्ति के लिए विश्राम है, हतोत्साहित के लिए दिन का प्रकाश, सर्दी में ठिठुरते के लिए धुप है और कष्ट के लिए प्रकृति का सर्वोत्तम प्रतिकार है।’

    जबकि होमर के शब्दों में-‘मुस्कान प्रेम की भाषा है।’

    विलियम शेक्सपियर के कथानुसार-‘मुसकान के बल पर जो तुम चाहो पा सकते हो। तलवार से इच्छित वस्तु नष्ट हो जाती है।’
    प्रसन्नता वास्तव में चन्दन के समान है, उसे दुसरे के मस्तक पर लगाईये, उंगलिया अपने-आप ही सुगन्धित हो जायेंगी। जीन पोल प्रसन्नता को वसंत की तरह हृदय की सबा कलियाँ खिला देने वाली मानते हैं। तभी तो गेट ने प्रसन्नता हो सभी सदगुणों की माँ कहा है।

    इसलिये जीवन में सदैव हंसने और प्रसन्न रहने का प्रयास करो, और ऐसे लोगों से संपर्क मत रखो जो तुम्हें दुःख या अप्रसन्नता देकर तुम्हारी हंसी छीनने का प्रयास करते हैं।

    धोनी की कप्तानी का अब परीक्षण होगा


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    आस्ट्रेलिया की टीम  भारत दौरे पर आ गयी है और कल उसके साथ भारतीय टीम अपना  पहला एक दिवसीय मैच  खेलने  वाली है। बीस  ओवरीय विश्व कप में अपनी टीम  की जीत से हर्षित भारतीय दर्शकों की एक बार फ़िर क्रिकेट में रुचि जागी है पर उनको इन मैचों में वैसा खेल नहीं देखने को मिलेगा जैसा कि वह अपेक्षा कर रहे हैं। इसकी वजह यह है कि इसके नियम वैसे ही जैसे कि पहले थे। बीस ओवरों में नियम कुछ्ह अलग  है और जिसमें बल्लेबाजों को ज्यादा लाभ होता है और वह तेजी से बल्लेबाजी कर   रन बनाते हुए दर्शकों का मनोरंजन कर  सकते हैं जबकि एक दिवसीय  और  पांच दिवसीय टेस्ट मैचों के नियम गेंदबाज और बल्लेबाज दोनों के लिये समान रूप से  लाभदायक हैं।

                             अगर हम एक दिवसीय मैचों की दृष्टि से देखें तो भारतीय टीम की स्थिति उतनी ही दयनीय है जिस तरह पहले थी और विश्व की वरीयता सूची में उसका नबंर चर्चा लायक भी नहीं है। इसके अलावा पुराने खिलाडियों की वापसी भी कोई टीम के मनोबल बढने में सहायक सिद्ध नहीं होने वाली। जो दर्शक इन मैचों में बीस ओवरों वाले दृश्य देखने चाहेंगे उनको निराशा ही हाथ लगेगी। हालंकि एक दिवसीय मैचों के खेल में दक्षता के साथ रणनीतिक कौशल की भी आवश्यकता भी होती है और इस मामले भी भारतीय टीम बहुत् कमजोर है और कभी यह नहीं लगा कि उसका कप्तान कभी कोई रणनीति बनाकर   मैदान में उतरता है। अब धोनी को  नया कप्तान बनाया गया है और यह श्रंखला उसके लिये यह वास्तविक परीक्षा का समय है। उसके सामने सबसे बडी समस्या यह आने वाली है कि अब उसके साथ वह वरिष्ठ खिलाडी भी हैं जिन पर टीम में वैमनस्य की भावना उत्पंन करने की आरोप लगे हैं। एक संदेह यह भी है कि अपने से जूनियर खिलाडी जो अब उनका कप्तान भी है उसके लिये वह वैसा खेलेंगे भी के नहीं जैसा वह चाह्ता है।

                  वैसे तो इन खिलाडियों को टीम में शामिल  करने पर भी लोग सवाल उठा रहे हैं पर भारतीय टीम के चयन में कई बातें एसी होतीं हैं जिसकी वजह से समझोते किये जाते हैं। अगर किसी को यह पता होता कि बीस ओवर में भारतीय टीम जीत भी सकती है तो यकीन मानिये इन वरिष्ठ खिलाडियों को वहां भी ले जाया जाता। यदि भारतीय दर्शकों की रती भर भी दिल्चस्पी उस प्रतियोगिता में होती तो भी इन खिलाडियो को वहां झेलना पडता। इस प्रतियोगिता को भारतीय मीडिया ने भी अधिक महत्व नहीं दिया था वर्ना वह पहले ही इन खिलाडियों का टीम में शामिल करने के लिये दबाव बना देता। विश्व कप में विजय के बाद भारत पहुंचने पर ही धोनी और उसके साथियों को पता लगा कि वह कोई भारी सफ़लता प्राप्त कर लौटे है-यह बात धोनी ने खुद कही है। धोनी इस मामले में किस्मत के घनी रहे कि उनको इन खिलाडियों का सानिध्य   वहां नहीं मिला वरना वह भी असफ़ल कप्तानों की सूची में शामिल होते। इसमें कोई शक नहीं यह सब सीनियर महान हैं पर देश को विश्व विजयी बनाने कि उनमें कुब्बत  नहीं है और इनको ऐक नहीं पांच-पांच अवसर दिये जा चुके हैं। अब धौनी को ऐसी  हालतों से जूझना होगा जिसकी कल्पना भी उनहोने पहले नहीं की होगी। अगर वह इन वरिष्ठ खिलाडियों को साध पाये तो ही वह आगे भी सफ़लता का दौर जारी रख सकते हैं।

            अगर भारतीय टीम इस श्रंखला में अच्छा प्रदर्शन करती है तो भी उसकी विश्व वरीयता में थोडा सुधार हो सकता है इससे अधिक आकर्षण इसमे और अधिक नहीं है। हां नये  कप्तान और विश्व कप जीतने के तत्काल  बाद हो रही इस श्रंखला में लोग पहले से अधिक दिलचस्पी लेंगे इसमें कोई संदेह नहीं है। बीस ओवरीय  विश्व कप प्रतियोगिता में धोनी के लिये कप्तान की रूप में करने के लिये ज्यादा के लिये कुछ था भी नहीं पर यहां एक कप्तान के रूप में अपनी क्षमता का परिचय देना होगा।
     

    प्रचार और बाजार


    उपभोक्ता और निर्माता की
    मर्जी पर नहीं चलता बाजार
    करता है काम एक तंत्र
    जिसे कहते हैं प्रचार
    सामान खरीदने वाले
    कही रेडियो पर सुना हो
    कही टीवी पर देखा को
    कही पत्र-पत्रिका में पढा हो तब
    बनाते अपने विचार का आधार
    कभी कौन बनेगा करोड़पति
    कभी इंडियन आइडियल
    तो कभी चाहिए क्रिकेट का हीरो
    उत्पाद बेचने के लिए
    आजकल जरूरी है यह सब
    नहीं तो सिमट जाता है जीरो
    पर पूरा व्यापार

    कहै दीपक बापू
    आदमी की देह से ज्यादा
    उसकी अक्ल पर काबू पाने के लिए
    चल रही है विज्ञापन की जंग
    जिसमें पैसे के अलावा कोई
    किसी का साथी नही
    कोई किसी के संग
    साथ अपने अक्ल लेकर जाओ बाजार
    ठगी से बच नही सकते
    सस्ती चीज कही से ले नहीं सकते
    किसी चीज की गारंटी भी नहीं उपचार
    किसी चीज को खरीद कर ठग जाओ
    तो भूल जाओ
    मत करो पछतावे का विचार

    बहस और तर्क तो विद्वानों को करना चाहिए


    blogvani
    चिट्ठाजगतHindi Blogs. Com - हिन्दी चिट्ठों की जीवनधारा 

    बहस और तर्क विद्वानों के बीच होना चाहिए। विद्वान का मतलब यह कि जिस विषय पर बहस हो उसमें उसने कहीं न कहीं शिक्षा और उपाधि प्राप्त की हो या उसने उस विषय को इस तरह पढा हो कि उसे उसके संबंध में हर तथ्य और तत्व का ज्ञान हो गया हो। हमारे देश में हर समय किसी न किसी विषय पर बहस चलती रहती है और उसमें भाग लेने वाले हर विषय पर अपने विचार देते हैं जैसे कि उस विषय का उनको बहुत ज्ञान हो और प्रचार माध्यमों में उनका नाम गूंजता रहता है। उनकी राय का मतलब यह नहीं है कि वह उस विषय में पारंगत हैं। उनको प्रचार माध्यमों में स्थान मिलने का कारण यह होता है कि वह अपने किसी अन्य कारण से चर्चित होते हैं, न कि उस विषय के विद्वान होने के की वजह से ।

    स्वतंत्रता के बाद इस देश में सभी संगठनों, संस्थाओं और व्यक्तियों की कार्यशैली का एक तयशुदा खाका बन गया है जिससे बाहर आकर कोई न तो सोचना चाहता है और न उसके पास ऐसे अवसर हैं। धर्म, विज्ञान, अर्थशास्त्र, साहित्य, राजनीति, फिल्म और अन्य क्षेत्रों में बहुत लोग सक्रिय हैं पर प्रचार माध्यमों में स्थान मिलता है जिसके पास या तो कोई पद है या वह उन्हें विज्ञापन देने वाला धनपति है या लोगों की दृष्टि में चढ़ा कोई खिलाडी या अभिनेता है-यह बिल्कुल जरूरी नहीं है कि उसे उस विषय का ज्ञान हो जिस पर वह बोल रहा हो। इसी कारण सभी प्रकार की बहस बिना किसी परिणाम पर समाप्त हो जाती हैं या वर्षों तक चलती रहती हैं। जैसे-जैसे इलेक्ट्रोनिक प्रचार माध्यमों का विस्तार हुआ है और बहस भी बढने लगी है और कभी-कभी तो लगता है कि प्रचार माध्यमों को लोगों की दृष्टि में अपना प्रदर्शन में निरंतरता बनाए रखने के लिए विषयों की जरूरत है तो उनमें अपना नाम छपाने के लिए उन्हें यह अवसर सहजता से प्रदान करते हैं।

    अन्य विषयों पर बहस होती है तो आम आदमी कम ही ध्यान देता है पर अगर धर्म पर बहस चल रही है तो वह खिंचा चला आता है। धर्म में भी अगर भगवान् राम श्री और श्री कृष्ण का नाम आ रहा तो बस चलता-फिरता आदमी रूक कर उसे सुनने, देखने और पढने के लिए तैयार हो जाता है। मैं कुछ लोगों की इस बात से सहमत हूँ कि भगवान श्री राम और श्री कृष्ण इस देश में सभी लोगों के श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक हैं। लोग उनके प्रति इतने संवेदनशील होते हैं कि उनकी निन्दा या आलोचना से उन्हें ठेस पहुँचती हैं। इसके बावजूद कुछ लोग प्रचार की खातिर ऐसा करते हैं और उसमें सफल भी रहते हैं।

    धर्म के संबंध में सबसे बड़ी समस्या यह है कि हमारे प्राचीन ग्रंथों को शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में शामिल नहीं किया गया पर इसके बावजूद इन्हें श्रद्धा भाव से पढने वालों की कमीं नहीं है। यह अलग बात है कि कोई कम तो कोई ज्यादा पढता है। फिर कुछ पढने वाले हैं तो ऐसे हैं जो इसमें ऐसी पंक्तियों को ढूंढते हैं जिसे उनकी आलोचना करने का अवसर मिले। वह पंक्तिया किस काल और संदर्भ में कही गयी हैं और इस समय क्या भारतीय समाज उसे आधिकारिक रुप से मानता है या नहीं, इस बात में उन्स्की रूचि नहीं होती। मुझे तो आश्चर्य तो तब होता है कि ऐसे लोग अच्छी बातों की चर्चा क्यों नहीं करते-जाहिर है कि उनका उद्देश्य ही वही होता है किसी तरह नकारात्मक विचारधारा का प्रतिपादन करें। मजे की बात तो यह है कि जो उनका प्रतिवाद करने के लिए मैदान में आते हैं वह भी कोई बडे ज्ञानी या ध्यानी नहीं होते हैं केवल भावनाओं पर ठेस की आड़ लेकर वह भी अपने ही लोगों में छबि बनाते हैं-मन में तो यह बात होती है कि सामने वाला और वाद करे तो प्रतिवाद कर अपनी इमेज बनाऊं।

    मतलब यह कि धर्म मे विषय में ज्ञान का किसी से कोई वास्ता नहीं दिखता। एक मजेदार बात और है कि अगर किसी ने कोई संवेदनशील बयान दिया है प्रचार माध्यम भी उसके समकक्ष व्यक्ति से प्रतिक्रिया लेने जाते हैं बिना यह जाने कि उसे उस विषय का कितना ज्ञान है। भारत के प्राचीन ग्रंथों के कई प्रसिद्ध विद्वान है जो इस विषय के जानकार हैं पर उनसे प्रतिक्रिया नहीं लेने जाता जबकि उनके जवाब ज्यादा सटीक होते, पर उससे समाचारों का वजन नही बढ़ता यह भी तय है क्योंकि लोगों के दिमाग में भी यही बात होती है कि प्रतिक्रिया देने का हक केवल पद, पैसा और प्रतिष्ठा से संपन्न लोगों को ही है पंडितों (यहाँ मेरा आशय उस विषय से संबधित ज्ञानियों और विद्वानों से है जो हर वर्ग और जाति में होते हैं) को नहीं। वाद, प्रतिवाद और प्रचार के यह धुरी समाज कोई नयी चेतना जगाने की बजाय लोगों की भावनाओं का दोहन या व्यापार करने के उद्देश्य पर ही केंद्रित है।

    इसलिये जब ऐसे मामले उठते हैं तब समझदार लोग इसमें रूचि कम लेते हैं और असली भक्त तो बिल्कुल नहीं। इसे उनकी उदासीनता कहा जाता है पर मैं नहीं मानता क्योंकि प्रचार की आधुनिक तकनीकी ने अगर उसके व्यवसाय से लगे लोगों को तमाम तरह की सुविधाएँ प्रदान की हैं तो लोगों में भी चेतना आ गयी है और वह जान गए हैं कि इस तरह के वाद,प्रतिवाद और प्रचार में कोई दम नहीं है।

    शाश्वत सत्य के रुप हैं राम


    राम हैं एक काल्पनिक पात्र है
    आ रहे रोज ऐसे बयान
    बढ़ रही है जमाने में
    फिल्मों के नकली पात्रों का
    अभिनय करने वालों की शान
    अमीरों के ड्राइंग रूमों में
    लगती हैं लगती है तसवीरें
    पर फिर भी नहीं पाते
    देवताओं जैसी पूजा
    उठाया कुछ लोगों ने उन्हें यही दर्जा
    दिलाने का बीड़ा
    इसलिये रामजी के काल्पनिक
    होने का करते एलान

    चक दे इंडिया में देश को
    विश्व कप जीता दिखाकर
    करा रहे लोगों से वाह-वाह
    पर सच में क्या भारत ऐसे कहीं जीता
    एशिया कम में क्या जीती टीम
    पूरे देश में ‘चक दे इन्डिया’ का ढिंढोरा पीटा
    विश्व कप में पिटी हॉकी टीम पर
    कभी मंथन नहीं करेंगे
    फिल्मों में नकली पात्र गढ़कर
    लोगों को भ्रमित करेंगे
    देश की बढते दिखाते नकली शान

    मुन्ना भाई में गांधी मार्ग का नही
    गांधीगिरी का किया प्रचार
    गांधीजी का कम नकली पात्र के
    गुणों पर ज्यादा किया विचार
    रुपहले परदे पर अभिनेताओं की
    रामजी जैसी छबि उतारने का
    इस तरह प्रयास करेंगे
    कि परदे के बाहर की तस्वीर लोग भूलेंगे
    जब बाजार में ज्यादा नहीं टिकता झूठ
    विज्ञापन पर पलने वालों के उमेठते कान
    नकली हीरो के लिए बड़ी लकीर नहीं खींच सकते
    तो असली हीरो का कम करो मान

    हर फिल्म में ऐक ही हीरो करता है
    पूरे समाज का उद्धार
    बाकी पब्लिक दिखाते बेकार
    अकर्मण्य लोगों की फ़ौज बढाते
    जो अपनी दुर्गत से उबरने के लिए
    करती हीरो का इन्तजार
    कोई नकली हीरो आयेगा जो
    अकेले लड़कर उबार जाएगा
    रामजी की तरह वानर सेना नहीं जुटाएगा
    अगर कोई फिर हुआ अवतार तो
    हमें भी लड़ने के लिए बुलाएगा
    हमें घरो से निकालकर जंग के
    मैदान मे ले जाएगा
    इससे तो हीरो अच्छा जो सारा
    काम अकेले कर जाएगा
    यही सोच लोगों को नही होने
    देता सत्यता का भान

    कहैं दीपक बापू
    रामायण में अकेले रामजी ही नही
    हनुमान, सुग्रीव, अंगद, जाम्बवान
    और नल-नील भी नायक जैसा सम्मान पाते
    रामायण का भी यही है संदेश कि
    धर्म के लिए सब मिलकर लड़ो
    मर्यादा और भक्ति भाव से रहते हुए
    किसी से भी न डरो
    मत भूलो अपनी पहचान

    कण-कण में राम है
    कल्पनाओं से परे उनका काम है
    जो लिखते हैं पर वाल्मीकि और
    तुलसी जैसा न रच पाते न पाते समान
    कुंठा में व्यक्त करते अभिमान
    रामजी शाश्वत सत्य का प्रतीक है
    सच्चे भक्त ही यह जानते हैं
    वह बहकते नही हैं
    और हँसते हैं ऐसे सुनकर बयान
    —————————-

    अपनी भाषा के लिये किसी का मोहताज न होना


    हिन्दी दिवस पर कई लोग बोले
    हिन्दी की दशा बहुत खराब
    अंग्रेजी इलाकों एकदम शोचनीय
    यह न बताया कि अपने इलाक़े में
    कौनसी अंग्रेजी है पूज्यनीय
    तुम उठो -बैठो अंग्रेजी के साथ
    कौन करेगा हिन्दी में बात
    कैसे हो सकती है हिन्दी वंदनीय

    ——————————

    एक लेखक ने दूसरे से कहा
    ‘अंग्रेजी इलाक़े में हिन्दी की हालत
    बहुत खराब है
    चलो कुछ हिन्दी में पोस्टर
    चिपकाये आते हैं
    लोग आते – जाते पढेंगे
    यहाँ तो हमारा लिखा कोई
    पढता नही
    जब भी देखो फ्लाप हो जाते हैं

    दूसरा बोला
    ‘यार, अपने इलाक़े में भी तो
    अंग्रेजी की हालत खराब है
    पर अंग्रेज कभी पोस्टर चिपकाने
    यहाँ नहीं आते हैं
    जो चल रही है, जैसी चल रही है
    उसकी डोली भी देशी गुलाम
    उठाएँ जाते हैं
    फिर अच्छा हो कि हम
    करें आत्म मंथन
    कुछ अच्छा चिन्तन
    यहीं के हिट हमें फलेंगे
    वह अंग्रेज कभी हिन्दी नहीं समझेंगे
    उनकी उम्मीद पर क्यों हम
    अपनी आशाओं का आसमान टिकाये जाते हैं

    ————————————
    भाषा का संबंध रोटी से होता है
    और रोटी का पेट से
    मातृभाषा के प्रचार का प्रयास है व्यर्थ
    पूरी दुनियां में फ़ैल रहा है
     बाजारवाद का दर्शन तुम रहना
    अपनी गाँठ के पूरे
    रखना अपना धन संभालकर
    अपनी भाषा के लिये मोह्ताज न होना
    तुम्हारी भाषा के लिये जो वह
    कर रहे हैं उसमें हैं उनके अर्थ
    हिंदी भाषा के शब्दों के अर्थ से नहीं
    नजर में हैं हिंदी भाषी की जेब में अर्थ
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    यह मौसम पिकनिक का है?


                    हिंदी के मूर्धन्य कवियों ने अपनी काव्य रचनाओं में सदैव श्रृंगार रस की चाशनी में डुबोकर अपने लोकप्रिय रचनाएं प्रस्तुत की हैं। उनको पढने वाले लोगों के मस्तिष्क में वर्षा ऋतू की कल्पना इस तरह स्थापित है कि आज के युग में जब विश्व में पर्यावरण प्रदूषण और कम होते वनों की वजह से जो मौसम का मिजाज बिगडा और उसने इस ऋतू में जो नयी तकलीफें भारी गरमी और उमस के रुप में पैदा की हैं उसको झेलते हुए भी वह उसमें खोया रहता है, उसे यह पता ही नहीं कि जिस वर्षा ऋतू में वह यह सब झेल रहा है जिसकी काव्य कल्पनाएं उसके अंतर्मन में कहीँ आज भी हैं वह अब वैसा नहीं रहा जैसे पहले था।

                   उस समय  के कवियों ने वर्षा ऋतू में प्रियतम और प्रेयसी के विरह और मिलन पर ही अपने शब्दों सौन्दर्य को इस तरह प्रस्तुत किया है कि उसकी कल्पना हृदय पटल पर अंकित हो जाती है। जबकि हम देखें तो वर्षा ऋतू अब उतनी सुहावनी नहीं रही जितनी उस समय रही होगी जब यह रचनाएँ हुई। कहीँ अगर वर्षा इतनी हो जाती है कि लोग छत पर चढ़कर नील गगन की छाया में अपने प्राण बचाते हैं तो कहीँ नाम को बरसता है और कहीँ तो वह भी नहीं। अख़बार उठाकर देख लें-इस ऋतू में केवल बाढ़ और कम वर्षा और अवर्षा की खबरों से पटे मिलेंगे।बाकी सब तो ठीक है पर गड़बड़ यह हुई कि हिंदी पढने वालों को यह ऋतू इतनी भाती है कि बस वह इसे इन्जोय करना चाहते हैं।

              कवियों ने तो प्रियतम और प्रियतमा के विरह और मिलन पर सावन को हरा किया और भादों को सुखाया पर पाठक लोग हर आयु में इसे सुन्दर मानते हुए इसमें आनन्द उठाते हैं।अब जिसे प्यार होगा उसे भला भूख और प्यास से क्या लेना देना? इसलिये न कवियों ने उन्हें खिलाया और न कहीँ पिकनिक पर भेजा। थोडा बहुत इधर-उधर दौडाया और कर दीं अपनी रचना । उस पर फिर इन फिल्म वालों ने भी कम नहीं किया।

              लोग हिंदी पढने से छूटे तो फिल्म के रंग में रंग गये और हो गयी पूरी वर्ष ऋतू सुहावनी। कई लोग जिन्होंने अपनी युवावस्था में पिकनिक न मनाई न सोचा अब पिकनिक पर निकलने लगे हैं। जब पिकनिक पर जाएँगे तो अनाप-शनाप खाएंगे ही तो पेट बिगडेगा। फिर कुछ युवक पीने-पिलाने में भी लिप्त हो जाते हैं। सब ठीक अगर वर्षा वैसी हो तो जैसी कवियों ने चित्रित की है। वह नहीं होता। और पिकनिक कभी कभी तकलीफ देह भी हो जाती है।

     

                    वर्षा ऋतू में हमारे पुराने विज्ञानं के अनुसार ज्यादा घूमना नहीं चाहिऐ। हालांकि कहा जाता है कि पहले पक्की सड़कें नहीं थी इसलिये यह नियम बनाया गया है पर सड़कें अब कौनसी दिखाई देती हैं और कहीँ तो रेल कि पटरियाँ भी डूब जाती हैं। ऐसे में कैसे कहा जाये कि केवल इसी वजह से उन्होने वर्षा ऋतू में पर्यटन को वर्जित किया था। तब हमारे साधूसंत पर्यटन बंद कर देते थे। भारतीय विज्ञानं के अनुसार इस मौसम में खाना भी कम पचता है , इसलिये खाना कम चाहिए। मगर नहीं साहब लोग इसी मौसम में ही अपने पेट से ज्यादा अत्याचार करते हैं। परिणाम स्वरूप आजकल के डॉक्टर इस ऋतू का इतना इन्तजार करते हैं कि प्रीतम और प्रेयसी भी नहीं करते होंगे।

               इस मौसम मैं ऐक-दो बिमारी ऎसी जरूर फैलती है जिसका नाम पहले नहीं सुना होता और पिछले साल तो हमने अपने शहर में ऐसा कोई घर नहीं देखा जहां का कोई आदमी बीमार न पडा हो। हमारा घर शहर से दूर कालोनी में है इसलिये वहां इसकी चर्चा नहीं थी। हालत यह हुई कि लोगों कि वर्षा ऋतू में मस्ती हुई हो या न हो पर ढंग से दिवाली किसी कि नहीं मनी।मुझे सबसे ज्यादा वह दिन बुरा लगता है जिस दिन किसी पिकनिक पर जाना होता है। मुझे आज तक कोई ऎसी पिकनिक याद नहीं जिसका वास्तविक रुप से मैंने आनन्द लिया हो। अधिकतर पिकनिक सामूहिक होती हैं और उनमें केवल इसलिये जाना पड़ता है क्योंकि हमारा वहां या तो अपना चन्दा किसी न किसी रुप से दिया होता है या ऐसी मित्र मंडली रहती है जिसके दबाव का सामना नहीं कर पाते। पिकनिक का जब कार्यक्रम दस -पन्द्रह दिन पहले बनता है तब मौसम अगर अच्छा न हो तो लोग कहते है कि तब तक तो बरसात बहुत हो जायेगी और इतनी गरमी नहीं होगी और अच्छा होता है तो कहते हैं कि अब तो मौसम भी अच्छा हो गया।

                जिस दिन पिकनिक हुई है उस दिन तो बस! उस मौसम का वर्णन किसी कवि ने नहीं किया है। सुबह तो सब ठीक लगता है पर जैसे सूर्य की किरणों में तीव्रता आती है वैसे ही जो उमस पड़ती हैं और वह असहनीय कष्ट देती है,वहां लोग बैठ नहाते हैं और उससे फिर उमस होती है तो चीत्कार करते हुए मौसम को गाली देते हैं। कुछ लोग पीते हैं मतलब सब काम उल्टे ही होते हैं। बारह बजे नाश्ता और फिर चार बजे खाना। मतलब जिस मौसम में शरीर को संभालकर चलना चाहिऐ उसी मौसम में सबसे ज्यादा खिलवाड़ लोग करते हैं। इस मौसम में वैसे ही आदमी को मानसिक संताप होता है और उसे जहाँ शांत होना चाहिये वहीँ वह अपनी खुशहाली के लिए आक्रामक हो जाता है। पिकनिक के दौरान नहाते हुए डूबने की घटनाएँ इसलिये भी होती हैं।

                मेरी जान -पहचान के लोगों में ही ऎसे कम से कम पन्द्रह प्रकरण तो मैं देख चुका हूँ। पिकनिक से जहां मन में प्रसन्नता का भाव लेकर लौटना चाहिऐ वहां से अगर थकावट लेकर लौटे तो फायदा ही क्या?मैं अपने पुराने विद्वानों की मान्यताओं को बहुत महत्व देने लगा हूँ-क्योंकि इस मौसम में अपने शरीर से अगर ज्यादा काम लेने का प्रयास किया तो और आराम किया तो भी वही हालत होगी, ऐसे में कोशिश यही करता हूँ कि इस मौसम में सबसे ज्यादा शारीरिक और मानसिक सतर्कता बरती जाये। भला यह भी क्या बात हुई कि पिकनिक पर ताश खेलते जाएँ और शरीर से इतना पसीना निकले कि उससे पोंछने वाले रुमाल तक इस क़दर भीग जाएँ कि उन्हें निचोडो तो वह पसीना ऐसे निकले जैसे नल बह रहा हो।

                  हालांकि जिन कवियों ने सुन्दर शब्द और व्यल्रण से इस ऋतू को सजाया है उसमें कोई कमी नहीं है पर वह लोग ऐसी पिकनिक नहीं मनाने जाते थे न पीकर जल समूहों में डुबकी लगाते थे। अगर वह ऐसा करते तो ऐसी उत्कृष्ट कवितायेँ नही लिख सकते थे। उन्होने तो लिखकर ख़ूब आनन्द उठाया पर उन्हें पढने वालों का अब वर्षा ऋतू का ऐसा सुहावना मौसम नहीं मिल सकता।

    उसका दरबार कोई दुआओं की दुकान नहीं है


    लोहे लंगर से बनी ट्रक,बस, कार और
    मोटर साइकिल के झुंड खडे
    खरीदे थे जिन्होंने यह सब
    सर्वशक्तिमान के दरबार के द्वार
    पहले दीदार के लिए आकर टिकाये
    नियमित रुप से आने वाले
    सर्वशक्तिमान के दीदार करने वाले
    होते परेशान अन्दर कैसे जाये

    कहा ऐक भक्त ने
    ‘यार, इस लोहे लंगर के सामान को
    ज़रा दूर खड़ा किया करो
    पैदल आने वालों का भी ख़्याल किया करो
    ताकि हर भक्त आराम से आयेऔर जाये ‘

    उनके मलिक चिल्लाने लगे
    ‘हमारी मेहनत की कमाई से
    खरीदे गये हैं यह सामान
    दुआ देंगे इनको सर्वशक्तिमान
    हम पर उनकी बहुत कृपा है
    इसलिये मिली यह सवारी है
    तुम हो ढोंगी इसलिये
    तुम्हारी दुनिया अंधियारी है
    जब नहीं होती तुम पर कृपा
    तो क्यों पैदल चले आये’

    भक्त ने कहा
    ‘कृपा है तभी तो अमन और चैन से
    हम जीवन बिताते है
    इसलिये तो अपने पाँव पर आते हैं
    मधुमेह, उच्च रक्तचाप और कब्ज जैसे
    रोग हम से दूर ही नजर आते हैं
    उस पर है पूरा भरोसा
    हमारी रखेगा हर समय
    उसका भरोसा कोई पैट्रोल नहीं है
    जो लोहे लंगर के सामान मे भरवाते हैं
    उसकी दरबार में है सब जीव समान हैं
    अपने भक्तो पर मुक्त कंठ से हाथ रखते हैं
    उनका दरबार कोई दुआओं की दुकान नहीं है
    जो गारंटी कार्ड लेने आये’
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    भ्रष्टाचार शिरोमणि


    बिना लिये किसी फ़ाइल को हाथ
    तक कभी नही लगाते थे
    अपने दफ़्तर के शिरोमणि कहलाते थे
    उनहें भ्रष्टाचार शिरोमणि की उपाधि का
    सम्मान देने  का प्रस्ताव दिया गया
    तो उनहोने बडी मासूमियत से पूछा
    ‘यह किस उपलबिध पर दिया पर दिया जाता
    और मुझमें ऐसा कौनसा गुण नजर आता है
    जो मुझे इस लायक समझा गया’

    जवाब में उनहें बताया गया कि
    ‘यह उपरी कमाई में सिद्धहस्त  लोगों को
    दिया जाता है’
    जहां नहीं हो सकती
    वहां भी जो आदमी अपने करतब दिखाता है
    उसे ही इसके लिये चुना जाता है
    इस वर्ष आपको इसके लायक समझा गया’

    वह खुश हो गये और बोले
    ‘ठीक है, मुझे इसके लिये
    कितने पैसे देने होंगे
    क्योंकि मेरा नियम हैं अपने काम के
    बारे में कोई समझौता पसंद नही करता
    वहां सम्मान लेकर यहां बिना लिये
    काम कर दूंगा तो गलत सोचा गया’

    उनसे कहा गया कि
    ‘इसके लिये आपसे कुछ नहीं लिया जायेगा
    आपके इसी सिद्धांत की वजह से आपको चुना गया’

    तो वह अप्रसनन होते बोले
    ‘क्या आपने धर्मादा खाता खोल रखा है
    या मुझे ऐसा-वैस समझा गया
    जो एसे ही पुरुस्कार दिया जाता है
    यह तो आज की मर्यादा का सीधा
    उल्लंघन किया जाता है
    मैं आपके कार्यक्रम में नहीं आउंगा
    अपने पद को नहीं शरमाउंगा
    मेरा नियम है लेकर काम करो
    देकर काम कराओ
    इस परंपरा में बदलाब आये ऐसा
    कोई भी काम नहीं कर पाउंगा
    बिना लिये-दिये काम करने का
    दौर शुरू हो गया तो में कहां जाउंगा
    तीन पीढियों के लिये तो दौलत जमा की है
    सात पीढियों के लिये जोड कर जाउंगा
    मेरी पुश्तें भी याद करेंगी कि
    कोई उनके लिये सारे इंतजम कर गया’

    और उनसे प्रस्ताव वापस ले लिया गया
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    शेर ने कहा लोमड से-“यहां मानवतावाद मत फैला”


    शेर की गुफा में वह मृग का बच्चा शुरू से रह रहा था। उस कभी भी भय महसूस नहीं हुआ था पर पिछले कुछ दिनों से परेशान था और रात भर सो नहीं पाता था। दिन में जब शेर शिकार पर चला जाता तब उस चैन आता और वह आराम से सोता था।

    शेर के बच्चों ने उसकी यह बैचैनी महसूस की और अपने पिता और माँ को जानकारी दीं शेर और शेरनी को बहुत आश्चर्य हुआ और उससे सवाल किये तब भी वह जवाब नही दे रहा था। जब शेर ने उस अपनी दोस्ती का वास्ता दिया तब मृग ने कहा-”मुझे अब तुमसे डर लगने लगा है की कहीं तुम्हें शिकार नहीं मिला तो तुम मुझे ही खा जाओगे ”

    शेरनी भड़क उठी और कहने लगी कि ‘-जो बात हमने कभी सोची भी नहीं वह तुम्हारे मन में आई कैसे ? हम तुम्हें परिवार का ही सदस्य समझते हैं। बचपन से तुम्हें यहाँ रखा हुआ है और हमारे लिये ऐसा सोचना भी पाप है।”

    शेर ने कहा-”तुम यह बात सच-सच बताना की यह बात तुमसे कही किसने ? मैं देख रहा हूँ की तुम आजकल उस लोमड लुभाया से ज्यादा ही मिल रहे हो। ऐक बात बता दूँ की तुम उसके साथ ज्यादा दूर तक नहीं जाया करो, वह तुम्हारा ही शिकार कर खा जायेगा।आजकल वह शहर तक जाता है और इंसान का झूठा खाकर उसकी बुद्धि भी भ्रष्ट हो गये है।”

    मृग ने सहमते हुए कहा-‘यह बात तो वही कहता है और मैं इसलिये डरा-डरा रहता हूँ।”

    शेर ने कहा-‘कल तुम मेरे साथ चलना उसकी अकल ठिकाने लगा दूँगा।”

    अगले दिन शेर उसे साथ लेकर लोमड लुभाया के घर गया। लोमड उसे देखकर वह डर गया और कई आवाज देने पर भी अपने घर से बाहर नहीं आया। जब मृग ने आवाज दीं तब वह थोड़ी हिम्मत कर बाहर पास आया। शेर ने दो चार पंजे उसके गाल और पीठ पर जड़ दिये। उसकी मार से लोमड कराह रहा था तब शेर ने उससे कहा-‘तुमने मुझे क्या इंसान समझ रखा है, जो दोस्ती में दगा दूँगा। सुन साँप-नेवले , बिल्ली -चूहे , कुत्ते -बिल्ली की दोस्ती और शेर-हिरन की सच्ची मैत्री संभव है पर इंसानों के बीच यह संभव नहीं है। देख उधर मेरे डर के मारे बिल्ली कैसे चूहे को अपनी गोदी में चिपकाए पेड पर बैठी है और दूसरी डाली पर देख कैसे साँप और नेवला ऐक-दूसरे को थाम कर डरे सहमे मेरी तरफ देख रहे हैं। यह केवल इस जंगल में ही संभव है शहर में नहीं।”

    लोमड ने मृग से कहा’-तू दोस्त नहीं गद्दार है तुने सब जाकर इसे बता दिया।
    शेर आग बबूला हो गया और उसे घसीटने लगा, गीदड़ जोर से चिल्लाने लगा तब मृग ने जाकर शेर को रोका और कहा-”इसे छोड दो तुम जिस तरह मेरे दोस्त हो वैसे यह भी मेरे लिये है तुम तो अपनी दोस्ती निभा लोगे पर मेरी दोस्ती बदनाम हो जायेगी।’

    तब शेर ने उसे छोड दिया और कहा-” देख फिर भी तुझ पर तरस    दिखा  रहा हूँ नहीं तो आज तुझे मार डालता। मुझे तो लगता है की तू लोमड के भेष में कोई इंसान है जो ऐसे अविश्वास की बातें कर रहा है । अब इंसान सब में जीवात्मा के सिद्धांत को छोड कर केवल मानवतावादी हो गया है और हमारे रहने के लिये जो जंगल हैं उन्हें काट कर अपने लिये शहर बनाता जा रहा है। मैं तो केवल उतना ही शिकार करता हूँ जितने से मेरा और मेरे परिवार का पेट भर जाय पर इंसान का पेट कोई नहीं भर सकता और धीरे-धीरे सारे जंगल खत्म हो जायेंगे और इंसान अभी कर रहा है हमारा शिकार, फिर ऐक-दूसरे का शिकार करने लग जायेंगे, इसलिये तू यहाँ मानवतावाद मत फैला वरना समय से पहले मिट जायेंगे।”

    लोमड अपना मूँह लेकर रह गया और शेर मृग को साथ ले घर चला गया। उसके जाते ही जंगल के सारे प्राणी लोमड के इर्द-गिर्द एकत्रित हो गये उससे पूछने लगे-” क्या हुआ? शेर क्या कह रहा था?”

    लोमड ने कहा-” कह रहा था यहां मानवतावाद नहीं चलेगा।”
    सबने हैरान होकर पूछा-“यह फिर क्या बला है”
    लोमड ने कहा-“तुम नहीं समझोगे।” और वह अपने घर के अन्दर चला गया।

    गंदगी के ढेर भी काम आते हैं


    blogvani
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    शहर में गंदगी के ढेर देखकर 
    अंग्रेज पर्यटक ने स्थानीय 
    गाइड से पूछा -‘
    हमने सुना है जब हमारी कन्ट्री का
    राज्य  चलता था
    तब यहाँ  बहुत सफाई रहते थी
    अब तो चारों तरफ 
    गंदगी के ढेर लगे मिल जाते हैं
    पता नहीं लोग यहाँ 
    कैसे जिन्दा रह पाते हैं’
    गाइड ने कहा-‘
    हमने भी सुना है 
    अंग्रेज चले गये 
    अपनी औलाद छोड  गये
    सिर पर पाँव रखकर ऐसे भागे कि
    अंग्रेजी और अपना कल्चर
    यहीं भूल गये 
    उनके भूली-भटकी औलाद ने
    वह पहना और ओढा
    शासन भी उनका चलता है 
    उनका रास्ता अब जमीन 
    पर नहीं आकाश में निकलता है
    इसलिये यह बनते-बिगड़तेस्तंभ
    सब जगह लग जाते हैं
    इसमें आपके देश की 
    खूबसूरत इमारतों और 
    खूबसूरत कारो से सजी सड़कों 
    के दर्शनीय  फोटो भी पाये जाते हैं 
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    हर शहर में  गंदगी के ढेर 
    हर जगह इसलिये लगाये जाते हैं 
    क्योंकि  स्थानीय निकायों के चुनाव में 
     उनको दिखाकर हटाने  के
    वादे करने में उम्मीदवारों को 
    सहज लगता है 
    इस तरह वह  काम भी आते हैं 
     
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