Tag Archives: शेर

तुम्हारी ताकत-हिन्दी कविता (tumhari takat-hindi poem)


तेल उधार लेकर

घर के चिराग न जलाएँ,

मांगी मिठाई से

दिवाली न मनाएँ,

अँधेरों में जीना,

जुबान चाहे मांगे स्वाद

अपने होंठ भूख से सीना,

वरना गुड़ बनकर

अमीरों के हत्थे चढ़ जाओगे।

फिर गुलामी की जज़ीरों से

लड़ते रहोगे

आज़ादी के लिए छटपटाओगे।

————–

मांगने से मिलती नहीं अमीरी

छीनने से सिंहासन नहीं मिल जाता है।

अपनी दौलत, शौहरत और ताकत

पर भले ही तुम इतराते रहो

अपने घमंड से काँपते देखो ज़माना

सच यह है कि

तुम्हारी ताकत से

क्या हिलेगा देश में कोई पेड़

किसी शहर का पत्ता तक हिल नहीं पाता है।


कवि, लेखक और संपादक-दीपक “भारतदीप”,ग्वालियर 

poet, writer and editor-Deepak “BharatDeep”,Gwalior

http://rajlekh-patrika.blogspot.com

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भ्रष्टाचार एक अदृश्य राक्षस–हिन्दी हास्य कविताएँ/शायरी (bhrashtachar ek adrishya rakshas-hindi hasya kavitaen)


भ्रष्टाचार के खिलाफ
लड़ने को सभी तैयार हैं
पर उसके रहने की जगह तो कोई बताये,
पैसा देखकर
सभी की आंख बंद हो जाती है
चाहे जिस तरह घर में आये।
हर कोई उसे ईमानदारी से प्यार जताये।
———-
सभी को दुनियां में
भ्रष्ट लोग नज़र आते हैं,
अपने अंदर झांकने से
सभी ईमानदार घबड़ाते हैं।
भ्रष्टाचार एक अदृश्य राक्षस है
जिसे सभी गाली दे जाते हैं।

सुसज्जित बैठक कक्षों में
जमाने को चलाने वाले
भ्रष्टाचार पर फब्तियां कसते हुए
ईमानदारी पर खूब बहस करते है,
पर अपने गिरेबों में झांकने से सभी बचते हैं।

कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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निगाहों ने खो दी है अच्छे बुरे की पहचान-हिन्दी शायरी (nanigah ne kho di pahchan-hindi shayari)


लोगों की संवेदनाऐं मर गयी हैं
इसलिये किसी को दूसरे का दर्द
तड़पने के लिये मजबूर नहीं कर पाता है।

निगाहों ने खो दी है अच्छे बुरे की पहचान
अपने दुष्कर्म पर भी हर कोई
खुद को साफ सुथरा नज़र आता है।

उदारता हाथ ने खो दी है इसलिये
किसी के पीठ में खंजर घौंपते हुए नहीं कांपता,
ढेर सारे कत्ल करता कोई
पर खुद को कातिल नहीं पाता है।

जीभ ने खो दिया है पवित्र स्वाद,
इसलिये बेईमानी के विषैले स्वाद में भी
लोगों में अमृत का अहसास आता है।

किससे किसकी शिकायत करें
अपने से ही अज़नबी हो गया है आदमी
हाथों से कसूर करते हुए
खुद को ही गैर पाता है।
————

कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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जल संकट और हमदर्द-हिन्दी हास्य कविता (jal sakat aur hamdard-hindi hasya kavita)


लोगों के जल संकट से
हमदर्दी जताने के लिये उन्होंने
पूरा एक दिन सड़क पर
अनशन कर बिताया।
भले ही तंबू को चारों तरफ से ढंककर
गर्मी से बचने के लिये ऐसी भी लगवाया,
समय अच्छा बीते इसलिये टीवी भी चलवाया,
चेलों ने मजे लेकर नारे लगाये
उनको लोगों का सबसे बड़ा हमदर्द दिखाया।
———-

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किताब और हादसे-हिन्दी हास्य कवितायें


दिन भर वह दोनों ज्ञानी

अपने शब्दों की प्रेरणा से

लोगों को लड़ाने के लिये

झुंडों में बांट रहे थे,

रात को ईमानदारी से

लूट में मिले सामान में

अपना अपना हिस्सा

ईमानदारी से छांट रहे थे।

——-

शब्द रट लेते हैं किताबों से,

सुनाते हैं उनको हादसों के हिसाबों से,

पर अक्लमंद कभी खुद जंग नहीं लड़ते।

नतीजों पर पहुंचना

उनका मकसद नहीं

पर महफिलों में शोरशराबा करते हुए

अमन की राह में उनके कदम

बहुत  मजबूती से बढ़ते।

कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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चमचागिरी का फन-हिन्दी शायरी


बाजार के खेल में चालाकियों के हुनर में
माहिर खिलाड़ी
आजकल फरिश्ते कहलाते हैं।
अब होनहार घुड़सवार होने का प्रमाण
दौड़ में जीत से नहीं मिलता,
दर्शकों की तालियों से अब
किसी का दिल नहीं खिलता,
दौलतमंदों के इशारे पर
अपनी चालाकी से
हार जीत तय करने के फन में माहिर
कलाकार ही हरफनमौला कहलाते हैं।
———-
काम करने के हुनर से ज्यादा
चमचागिरी के फन में उस्ताद होना अच्छा है,
अपनी पसीने से रोटी जुटाना कठिन लगे तो
दौलतमंदों के दोस्त बनकर
उनको ठगना भी अच्छा है।
अपनी रूह को मारना इतना आसान नहीं है
इसलिये उसकी आवाज को
अनसुना करना भी अच्छा है।
किस किस फन को सीख कर जिंदगी काटोगे
नाम का ‘हरफनमौला’ होना ही अच्छा है।

लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
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अमीर का पीछा नहीं छोड़ता ज़मीर-हिन्दी हास्य व्यंग्य कविताएँ


आदर्श पुरुषों ने अपनी दरबार में
देशभक्ति का नारा बड़े तामझाम के साथ सजाया।
बाजार को बेचनी थी मोमबत्तियों
शहीदों के नाम पर,
इसलिये प्रचारकों से नारे को संगीत देने के लिये
शोक संगीत भी बजवाया।
भेजे आदर्श पुरुषों के नाम से
रुपयों से भरे लिफाफे
जिनकी समाज सेवा से आम इंसान हमेशा कांपे
दिल में न था भाव फिर भी
आदर्श पुरुषों के खौफ से
सभी ने देशभक्ति का गीत गाया।
———
उनकी देशभक्ति की दुहाई,
कभी नहीं सुहाई,
मुखौटे हैं वह बाजार के सौदागरों के
जो जज़्बात बेचने आते हैं,
उनकी जुबां कभी बोलती नहीं
पर पर्दे के पीछे
वही संवाद लिखकर लाते हैं,

खरीदे देशभक्तों ने बस, उनको दोहराया ।
——————–
इंसान की हर अदा पर मिलते हैं

पर सच बोलने पर कोई इनाम नहीं होता।

कितना भी हो जाये कोई अमीर,

पीछा नहीं छोड़ता उसका जमीर,

कैसे दे सकते हैं इनाम, उस शख्स को

बोलता है हमेशा सच जो,

खड़ी है दौलत की इमारत उनकी झूठ पर

चाटुकारों को लेते हैं, अपनी बाहों में भर

क्योंकि सच बोलने वालो से उनका काम नहीं होता।
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
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होली के अवसर पर विशेष लेख (special article on holi festival)


होली हमारे देश का एक परंपरागत त्यौहार है जो उल्लास से मनाया जाता रहा है। यह अलग बात है कि इसे मनाने का ढंग अब लोगों का अलग अलग हो गया है। कोई रंग खेलने मित्रों के घर पर जाता है तो कोई घर पर ही बैठकर खापीकर मनोरंजन करते हुए समय बिताता है। इसका मुख्य कारण यह है कि जब तक हमारे देश में संचार और प्रचार क्रांति नहीं हुई थी तब तक इस त्यौहार को मस्ती के भाव से मनाया जरूर जाता था पर अनेक लोगों ने इस अवसर पर दूसरे को अपमानित और बदनाम करने के लिये भी अपना प्रयास कर दिखाया। केवल शब्दिक नहीं बल्कि सचमुच में नाली से कीचड़ उठाकर फैंकने की भी घटनायें हुईं। अनेक लोगों ने तो इस अवसर पर अपने दुश्मन पर तेजाब वगैरह डालकर उनको इतनी हानि पहुंचाई कि उसे देख सुनकर लोगों का मन ही इस त्यौहार से वितृष्णा से भर गया। तब होली उल्लास कम चिंता का विषय बनती जा रही थी।
शराब पीकर हुड़दंग करने वालों ने लंबे समय तक शहरों में आतंक का वातावरण भी निर्मित किया। समय के साथ सरकारें भी चेतीं और जब कानून का डंडा चला तो फिर हुडदंगबाजों की हालत भी खराब हुई। हर बरस सरकारें और प्रशासन होली पर बहुत सतर्कता बरतता है। इस बीच हुआ यह कि शहरी क्षेत्रों में अनेक लोग होली से बाहर निकलने से कतराने लगे। एक तरह से यह उनकी आदत बन गयी। अब तो ऐसे अनेक लोग हैं जो इस त्यौहार को घर पर बैठकर ही बिताते हैं।
जब सरकारों का ध्यान इस तरफ ध्यान नहीं था और पुलिस प्रशासन इसे सामान्य त्यौहारों की तरह ही लेता था तब हुड़दंगी राह चलते हुए किसी भी आदमी को नाली में पटक देते। उस पर कीचड़ उछालते। शहरों में तो यह संभव ही नहीं था कि कोई पुरुष अपने घर की स्त्री को साथ ले जाने की सोचे। जब पूरे देश में होली के अवसर पर सुरक्षा व्यवस्था का प्रचनल शुरु हुआ तब ऐसी घटनायें कम हो गयी हैं। इधर टीवी, वीडियो, कंप्यूटर तथा अन्य भौतिक साधनों की प्रचुरता ने लोगों को दायरे में कैद कर दिया और अब घर से बाहर जाकर होली खेलने वालों की संख्या कम ही हो गयी है। अब तो यह स्थिति है कि कोई भी आदमी शायद ही अनजाने आदमी पर रंग डालता हो। फिर महंगाई और रंगों की मिलावट ने भी इसका मजा बिगाड़ा।
महंगाई की बात पर याद आया। आज सुबह एक मित्र के घर जाना हुआ। उसी समय उसके मोहल्ले में होली जलाने के चंदा मांगने वाले कुछ युवक आये। हमने मित्र से हाथ मिलाया और अंदर चले गये। उधर उनकी पत्नी पचास रुपये लेकर आयी और लड़कों को सौंपते हुए बोली-‘इससे ज्यादा मत मांगना।’
एक युवक ने कहा-‘नहीं, हमें अब सौ रुपये चाहिये। महंगाई बढ़ गयी है।’
मित्र की पत्नी ने कहा-‘अरे वाह! तुम्हारे लिये महंगाई बढ़ी है और हमारे लिये क्या कम हो गयी? इससे ज्यादा नहीं दूंगी।’
लड़के धनिया, चीनी, आलू, और प्याज के भाव बताकर चंदे की राशि बढ़ाकर देने की मांग करने लगे।
मित्र ने अपनी पत्नी से कहा-‘दे दो सौ रुपया, नहीं तो यह बहुत सारी चीजों के दाम बताने लगेंगे। उनको सुनने से अच्छा है इनकी बात मान लो।’
गृहस्वामिनी ने सौ रुपये दे दिये। युवकों ने जाते हुए कहा-‘अंकल और अंाटी, आप रात को जरूर आईये। यह मोहल्ले की होली है, चंदा देने से ही काम नहीं चलेगा। आना भी जरूर है।’
मित्र ने बताया कि किसी समय उन्होंने ही स्वयं इस होली की शुरुआत की थी। उस समय लड़कों के बाप स्वयं चंदा देकर होली का आयोजन करते थे अब यह जिम्मेदारी लड़कों पर है।’
कहने का अभिप्राय यह है कि इस सामूहिक त्यौहार को सामूहिकता से मनाने की एक बेहतर परंपरा जारी है। जबकि पहले जोर जबरदस्ती सामान उठाकर ले जाकर या चंदा ऐंठकर होली मनाने का गंदा प्रचलन अब बिदा हो गया है। जहां नहीं हुआ वह उसे रोकना चाहिये। सच बात तो यह है कि अनेक बेवकूफ लोगों ने अपने कुकृत्यों से इसे बदनाम कर दिया। यह खुशी की बात है कि समय के साथ अब उल्लास और शांति से यह त्यौहार मनाया जाता है।

इस अवसर पर कुछ क्षणिकायें 
————————————–
रंगों में मिलावट
खोऐ में मिलावट
व्यवहार में दिखावट
होली कैसे मनायें।
कच्चे रंग नहीं चढ़ता
अब इस बेरंग मन पर
दिखावटी प्यार कैसे जतायें।
———
रंगों के संग
खेलते हुए उन्होंने होली
कुछ इस तरह मनाई,
नोटों के झूंड में बैठकर
इठलाते रहे
इसलिये उनकी पूरी काया
रंगीन नज़र आयी।
———
अगर रुपयों का रंग चढ़ा गया तो
फिर कौनसे रंग में
बेरंग इंसान नहायेगा,
आंख पर कोई रंग असर नहीं करता
होली हो या दिवाली
उसे बस मुद्रा में ही रंग नज़र आयेगा।

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उधार पर ख्याल–व्यंग्य शायरी


प्लास्टिक की तलवारों से

प्रायोजित जंग को देखकर

कभी असली होने का वहम मत करना।

चाहे  किसी योद्धा के पेट में  

बंधी थैली से

खून बहता दिखे,

उसके असली होने पर

कोई कितने भी शब्द लिखे,

पर्दे पर दिखें या सड़क पर सजें

अफसानों को हकीकत समझ कर

कभी नहीं डरना।

———

अपने इरादों पर

चले ज़माना तो, अफसोस क्यों करते।

यहां तो खरीद कर बाजार से सपने

लोग उसी पर  ही मरते,

उधार पर लेकर दूसरे के ख्याल को

अपनी सोच बनाकर चले रहे सभी

अपनी अक्ल को तोलने में डरते।

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पुतलों के भेष में इंसान-हिन्दी हास्य कवितायें


न हार है, न जीत है,
न क्रोध है,न प्रीत है।
पर्दे के दृश्यों में मत बहो
सभी इंसानों से अभिनीत हैं।
——-
उनकी अदायें देखकर
हम भी हैरान थे,
दरअसल पुतलों के भेष में
वह चलते फिरते इंसान थे।
पर उनका कदम बढ़ता था
दूसरे के इशारे पर,
जुबां से निकलते तभी शब्द
लिख कर देता कोई कागज पर,
लुटाये लोगों ने उन पर पैसे
अपनी झोली में समेट कर, वह चल पड़े
किसी को जानते न हों जैसे,
चेहरा सजाया था फरिश्तों की तरह
दरअसल वह खरीदे हुए शैतान थे।

रोज नैतिकता की बात

हर बार आदर्श पर चर्चा

सिद्धांतों की दुहाई देते लोग थकते नहीं हैं।

फिर भी समाज के बिगड़ते जाने की चिंता

सभी को सता रही है,

हर जगह से

भ्रष्टाचार की बू आ रही है,

धर्म की राह के सभी राहगीर,

अपने पाप से बना रहे अपने लिये खीर,

प्रवचनों में ढेर सारे लोगों का जमा है झुंड,

शायद मूक और बधिर हैं सभी नरमुंड,

चक्षुओं से देखते आसमान में

देवताओं के जमीन पर आने की राह,

अपने को छोड़कर सभी इंसानों को

ईमानदारी का बोझ ढोते देखने की चाह,

वह उम्मीदें करते हैं जमाने से

जो खुद पूरी कर सकते नहीं हैं।

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बेपैंदी का लोटा-हिंदी व्यंग्य कविताएँ


मतलब के लिए इंसान

अपना दिल इस तरह बदल जाते

कि आखें होती तो

बेपैंदी के लोटे भी देखकर शर्माते।

जुबान होती तो

एक दूसरे पर इंसान होने का शक जताते।

———-

नब्बे फीसदी सांप

जहरीले नहीं होते

यह विशेषज्ञ ने बताया।

तब से इंसानों की सांप से

तुलना करना बंद कर दिया हमने

क्योंकि सांप के डसने से

कई लोगों को बचते देखा

पर इंसानों के धोखे से बचता

कोई नज़र नहीं आया।
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दिखावटी प्रेम का अभिनय-हिन्दी व्यंग्य कविता


उन्होंने अपने अभिनय से

कर ली दुनियां अपनी मुट्ठी में

पर अपना ही सच भूल जाते हैं।

बोलते अपनी जुबां से, वह जो भी शब्द,

करता है उसे कोई दूसरा कलमबद्ध,

दूसरों के इशारे पर बढ़ाते कदम,

उनके चलने को होता बस, एक वहम,

पर्दे पर हों या पद पर

अपने ही अहसासों को भूल जाते हैं,

फुरसत में भी आजादी से  सांस लेना मुश्किल

बस, आह भरकर रह जाते हैं।

जमाना उनको बना रहा है अपना प्रिय

जो दिखावटी प्रेम का अभिनय किये जाते हैं।

कवि लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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स्वयंवर का नया रूप-हिंदी हास्य कविता (svyanvar ka naya roop-hasya kavita)


पति ने पत्नी से कहा

‘ बहुत कोशिश पर भी इतने दिनों में

अपने बेटे की

 शादी नहीं करवा पाये,

कमाता कौड़ी भी नहीं है

पर कमाऊ दिखाने के लिये

अपने बैंक खाते भी उसके नाम करवाये।

जानने वाले लोग पोल खाते हैं

इसलिये क्यों न अब उसके लिये स्वयंवर

आयोजित किया जाये।

नयी परंपरा है

लोग दौड़े चले आयेंगे

हो सकता है कि काम बन जाये।’

पत्नी ने कहा

‘हां, अच्छा है

अपना बेटा भी भगवान राम की तरह ही गुणवान है,

भले ही कमाता नहीं पर अपनी शान है,

सीता जैसी बहू मिल जाये

तो जीवन धन्य हो जाये,

पर समधी भी जनक जैसा हो,

दहेज देने में झिझके नहीं, ऐसा हो,

पर किसी पर यकीन नहीं करना

अपने कार्यक्रम में ऐसे ही लोगों को

आमंत्रित करना जिनके पास माल हो,

ऐसा न कि बाद में बुरा हाल हो,

घुसने से पहले सभी को

अपनी मांग बता देना,

उनकी हालत भी पता कर लेना,

सभी खोये रहें इस नयी स्वयंवर परंपरा में

पर तुम कम दहेज पर सहमत न होना

कोई कितना भी समझाये।’
———————
कान में लगाये मोबाइल पर

ऊंची आवाज में बतियाते

पांव उठाता सीना तानकर

आंखों से बहती कुटिल मुस्कराहट

वह अभिमान से चला जा रहा है।

लोगों ने बताया

‘अपनी बेईमानी से कभी लाचार

वह भाग रहा था जमाने से

गिड़गिड़ाता तथा छोटे इंसानों के सामने भी

अब मिल गया है उसे लोगों के भला करने का काम

उसकी कमाई से उसका कद बढ़ता जा रहा है।
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दुश्मनी के सौदे-हिन्दी शायरी


दौलत की रौशनी से अमीर, अपनी महफिलें सजाते हैं,

गरीबों के दिल में लगे आग, इसलिये  चिराग जलाते हैं।

मत बहको ऊंचे उनके ठाठ देखकर, हमेशा धोखा खाओगे,

बेचने वाली शयों के, सौदागर ही पहले ग्राहक बन जाते हैं।

दरियादिल दिख रहे है, पर सारा सामान मुफ्त का सजा है

कहीं से चीज का मिला तोहफा, कहीं से पैसा जुटाते हैं।

घी से भरा उनका घर, मिलावटी तेल के कनस्तर बेचकर

मौत के मुख में भेजने पहले, जिंदगी का रास्ता बताते हैं।
———————–
राज रखकर ही राज

चलाये जाते हैं

सामने कर दुश्मनी के सौदे

बंद कमरे में दोस्तों में

हाथ मिलाये जाते हैंजाते हैं।

जज़्बात मर गये हैं लोगों के

प्यार हो या नफरत

दिल के अदंर तक नहीं पहुंचती

केवल जमाने को दिखाये जाते हैं।

——–

दिन भर दिखाते रहे

अपनी दुश्मनी जमाने को,

रात को चले दोस्ती निभाने को।

विज्ञापन का युग है

तारीफों पर अब लोग नहीं बहलते

इसलिये लोग चल पड़ते हैं

दोस्त के ही हाथ से अपने लिये गालियां लिखाने को।

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तकदीर और चालाकियां-हिन्दी व्यंग्य कवितायें (taqdir aur chalaki-hindi comic poems


लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
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————————————
अपने गम और दूसरे की खुशी पर मुस्कराकर

हमने अपनी दरियादिली नहीं दिखाई।

चालाकियां समझ गये जमाने की

कहना नहीं था, इसलिये छिपाई।

——–

अपनी तकदीर से ज्यादा नहीं मिलेगा

यह पहले ही हमें पता था।

बीच में दलाल कमीशन मांगेंगे

या अमीर हक मारेंगे

इसका आभास न था।

———-

रात के समय शराब  में बह जाते हैं

दिन में भी वह प्यासे नहीं रहते

हर पल दूसरों के हक पी जाते हैं।

अपने लिये जुटा लेते हैं समंदर

दूसरों के हिस्से में

एक बूंद पानी भी हो

यह नहीं सह पाते हैं।

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यकीन बेचने वाले फरिश्ते-व्यंग्य कविता


गरीब और भूखे के लिये

रोटी एक सपना होती है,

मगर भरे हैं जिनके पेट

भूख भी भूत बनकर

उनके पीछे होती है।

इंसान की जिंदगी

कुछ सपने देखती

कुछ डरों के साथ बीत रही होती है।

…………………..

चाहे इंसान कितने भी

बड़े हो जायें

फरिश्ते नहीं बन पाते हैं।

यकीन बेचने वाले

अपने अंदाज-ए-बयां से

चाहे दिलासा दिलायें

यकीन नहीं करना

सर्वशक्तिमान बनने के लिये

सभी मुखौटा लगाकर आते हैं।

काला हो या गोरा

जो चेहरे पर मुस्कराहट ओढ़े हैं

वही वफा और यकीन बेचने आते हैं।


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कामयाबी का खिताब-हिन्दी व्यंग्य कविता


 दिन भर अपने लिए साहब शब्द सुनकर

वह रोज फूल जाते हैं।

मगर उनके ऊपर भी साहब हैं

जिनकी झिड़की पर वह झूल जाते हैं।
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नयी दुनियां में पुजने का रोग

सभी के सिर पर चढ़ा है।

कामयाबी का खिताब

नीचे से ऊपर जाता साहब की तरफ

नाकामी की लानत का आरोप

ऊपर से उतरकर नीचे खड़ा है,

भले ही सभी जगह साहब हैं

बच जाये दंड से, वही बड़ा है

——–

साहबी संस्कृति में डूबे लोग

आम आदमी का दर्द कब समझेंगे।

जब छोटे साहब से बड़े बनने की सीढ़ी

जिंदगी में पूरी तरह चढ़ लेंगे।

कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
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इशारों के बंधन-हिन्दी व्यंग्य शायरी


हांड़मांस के बुत हैं

इंसान भी कहलाते हैं,

चेहरे तो उनके अपने ही है

पर दूसरे का मुखौटा बनकर

सामने आते हैं।

आजादी के नाम पर

उनके हाथ पांव में जंजीर नहीं है

पर अक्ल पर

दूसरे के इशारों के बंधन

दिखाई दे जाते हैं।

नाम के मालिक हैं वह गुलाम

गुलामों पर ही राज चलाये जाते हैं।

कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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अमीर की विलासिता और गरीब की हाय-हिन्दी व्यंग कवितायें(amir ki vilasita-hindi vyang kavita)


बड़े लोगों की होती है बड़ी बातें।

छोटा तो दिन में भी

छोटी शर्म का काम करते भी घबड़ाये

बड़ा आदमी गरियाता है

गुजारकर बेशर्म रातें।।

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छोटे आदमी की रुचि

फांसी पर झूले

या लजा तालाब में डूबे

बड़ा आदमी अपनी रातें गरम कर

कुचलता है कलियां

फिर झूठी हमदर्दी जताये।

बड़े आदमी की विलासता भी

लगाती उसके पद पर ऊंचे पाये।

———

हर जगह बड़े आदमी की शिकायत

बरसों तक कागजों के ढेर के नीचे

दबी पड़ी है।

छोटे की  हाय भी

उसके बीच में इंसाफ की उम्मीद लिये

जिंदा होकर सांसें अड़ी है।

बड़े लोग हो गये बेवफा

पर समय की ताकत के आगे

हारता है हर कोई

हाय छोटी है तो क्या

इंसाफ की उसकी उम्मीद बड़ी है।

 

कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप

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जज़्बातों की कत्लगाह-हिन्दी शायरी (jazbat-hindi shayri)


 अपनी रोटी पकाकर

मेहननकश  इंसान आग बुझा देता है

पर जिस शैतान ने

लालच को लक्ष्य बना लिया

वह पूरे जमाने को

झौंक कर झुलसा देता है।

भर जाता है दो रोटी से पेट,

पर खातों में अपनी रकम को

बढ़ते देखकर भी नहीं सो रहा सेठ,

अपने पास जमा सोने की ईंटों से भी

नहीं भर रहा है दिल उसका

तिनके से बनी झौंपड़ी को खाक कर

उसकी राख में रुपया तलाश लेता है।

फरिश्ते और शैतान

कोई आसमान में नहीं बसते,

इंसानी चेहरों में वह भी संवरते,

पसीने की आग से जो रोटी खा रहे हैं,

अपने दर्द और खुशियों के साथ

जीवन बिता रहे हैं,

मुफ्त में जिनको मिली है विरासत,

जंग की ही करते हैं सियासत,

बनते हैं जो जमाने के खैरख्वाह,

नाम के हैं वह फरिश्ते

उनके आशियाने हैं

इंसानी जज़्बातों की कत्लगाह,

ऐसा हर शैतान

अपनी जिंदगी  के चैन के लिये

जमाने की बैचनी बढ़ा देता है।

 

लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
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