Tag Archives: हिंदी साहित्य

ईसवी सवंत् 2015 और भारतीय अध्यात्मिक दर्शनं-नये वर्ष पर हिन्दी चिंत्तन लेख


            1 जनवरी 2015 से नया ईसवी संवत या अंग्रेजी वर्ष प्रारंभ हो गया  है। हालांकि हमारे यहां कैलेंडर इसी अंग्रेजी वर्ष के आधार पर ही छपते हैं पर इन्हीं कैलेंडरों में ही भारतीय संवत् की तारीखें भी सहायक बनकर उपस्थित रहती हैं।  दूसरी बात यह है कि हमारे यहां भारतीय संवत् अनेक भाषाई, जातीय तथा क्षेत्रीय समाज अलग अलग तरीके से मनाते हैं इससे ऐसा लगता है कि इसे मानने वालों की संख्या कम है पर इतना तय है कि भारतीय संवत् ने अभी अपना महत्व खोया नहीं है। फिर हमारे यहां नवधनाढ्य, नवप्रतिष्ठित तथा नवशिक्षित लोगों को समाज से अलग दिखने की प्रवृत्ति होती है-इसे हम नवअभिजात्य वर्ग भी कह सकते हैं। हमारे यहां अंग्रेज चले गये पर अपने प्रशंसक छोड़ गये जिनकी पीढ़ियां नव संस्कार का बोझा ढो रही है।  नये पुराने का अंतद्वंद्व हमारे जैसे अध्यात्मिक चिंत्तकों के लिये व्यंग्य का सृजक बन गया है।  हिन्दी भाषा के वाहक समाचार पत्र तथा टीवी चैनल को अब केवल अपनी भाषा की क्रियायें ही उपयोग करते है जिस कारण उसे  संज्ञा और सर्वनाम के लिये वह बिना झिझक अंग्रेजी करने में जरा भी शर्म नहीं होती। नवअभिजात्य वर्ग को प्रसन्न रखने से ही उनका व्यवसायिक उद्देश्य पूरा होता है।

            हमारे देश में भौतिकता के बढ़ते प्रभाव के कारण एक ऐसे नवअभिजात्य समाज का निर्माण हुआ है जिसके लिये संस्कार, आस्था और धर्म शब्द नारे भर हैं।  अंतर्मुखी चिंत्तन की प्रक्रिया से दूर बाह्य आकर्षण के जाल में फंसे इस नये समाज को वस्तु, व्यक्ति तथा विषय में परिवर्तित रूप से संपर्क की चाहत प्रबल रहती है।  वह इस संपर्क के संभावित प्रभाव का अनुमान किये बिना ही अनुसंधान करने की क्रिया को को जीवन का आधार मानता है।

            31 दिसम्बर की रात्रि को नववर्ष के आगमन में मौज मस्ती की थकावट के बाद 1 जनवरी को प्रातः का उगता सूरज देखना सभी के लिये सहज नहीं है।  31 दिसम्बर की रात्रि के दौरान ही 12 बजे नया वर्ष आता है।  यह उस घड़ी से प्रकट होता है जो अंग्रेजों की ही देन है।  यह अच्छी देन है पर उसमें रात्रि 12 बजे तारीख बदलने की बात स्वीकार करना अंग्रेजी सभ्यता की पहचान है।  भारतीय कैलेंडर की तारीख प्रातः तीन बजे बदलती है-ऐसा एक विद्वान ने बताया था। हमारे देश में ग्रामीण पृष्ठभूमि में पले लोग आज भी तीन बजे ही नींद से उठते हैं।  उनका नींद से उठना ही तारीख बदलना है।  जब जागे तभी सवेरा!  जागे तो फिर सोते नहीं काम पर चलना होता है।  अंग्रेजी वर्ष मनाने वाले जागते हुए दिन बदलते हैं और फिर सो जाते हैं।  सुबह लाने वाला सूरज उन्हें नहीं निहारता।

            हमारे देश में संस्कार किसी एक नियम पुस्तक से नहीं चलते। नियमों का कोई दबाव नहीं है।  व्यक्ति के पास अनेक विकल्प हैं।  वह कोई भी विकल्प चुन सकता है। अपने कर्म से वह कितनी भौतिक सफलता प्राप्त करता है यह चर्चा का विषय हो सकता है पर किसी के लिये आदर्श नहीं बन सकता।  आदर्श वह बनता है जो दूसरों को भी सफलता के लिये प्रेरित करे। दूसरों की सफलता पर भी हार्दिक रूप से प्रसन्न प्रकट करे। नवअभिजात्य वर्ग के लिये केवल अपनी सफलता और उसका प्रचार ही एक ध्येय बन गया है।  अब समाज कथित रूप से  अभिजात्य और पिछड़ा दो वर्गों में दिखता है।  सुविधा के लिये हम कह सकते हैं कि एक गाड़ी के दो पहिये हैं पर सच यह है कि दोनों के बीच विरोधाभास है।  कथित अभिजात्य वर्ग धन, पद और प्रतिष्ठा के मद में मदांध होकर शेष समाज को पिछड़ा मानता है। पिछड़ा उसकी इस दृष्टि से अपने अंदर घृणा का भाव पाले रहता है। यह द्वंद्व हमेशा रहा है पर नव संस्कृति के प्रभाव ने उसे अधिक बढ़ा दिया है। यही कारण है कि जहां  सभी जगह अभिजात्य स्थानों पर नव वर्ष की बधाई का दौर चलता है वहीं उनसे परे होकर रहने वालों के लिये एक दिन के आने और जाने से अधिक इसका महत्व नहीं होता।  हमारे देश में ऐसे ही लोगो की संख्या ज्यादा है। तब एक देश में दो देश या एक समाज में दो समाज के बीच का विभाजन साफ दिखाई देता है।

प्रस्तुत है इस अवसर पर एक कविता

——————-

शराब पीते नहीं

मांस खाना आया नहीं

वह अंग्रेजी नये वर्ष का

स्वागत कहां कर पाते हैं।

भारतीय नव संवत् के

आगमन पर पकवान खाकर

प्रसन्न मन होता है

मजेदार मौसम का

आनंद भी उठाते हैं।

कहें दीपक बापू विकास के मद में,

पैसे के बड़े कद में,

ताकत के ऊंचे पद मे

जिनकी आंखें मायावी प्रवाह से

 बहक जाती हैं,

सुबह उगता सूरज

देखते से होते वंचित

रात के अंधेरे को खाती

कृत्रिम रौशनी उनको बहुत भाती है,

प्राचीन पर्वों से

जिनका मन अभी भरा नहीं है,

मस्तिष्क में स्वदेशी का

सपना अभी मरा नहीं है,

अंग्रेजी के नशे से

वही बचकर खड़े रह पाते हैं।

———–

दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’

कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक ‘भारतदीप”,ग्वालियर 

poet,writer and editor-Deepak ‘BharatDeep’,Gwalior

http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका

६.ईपत्रिका

७.दीपकबापू कहिन

८.जागरण पत्रिका

८.हिन्दी सरिता पत्रिका

नाम के साथ बदनामी-हिन्दी हास्य कविता(naam ke sath badnami-hindi comedy poem)


मंदिर में मिलते ही बोला फंदेबाज

‘‘दीपक बापू तुमने इतना लिखा

फिर भी फ्लाप रहे,

पता नहीं किसके शाप सहे,

इससे तो अच्छा होता तुम

कोई संत बन जाते,

खेलते माया के साथ

शिष्य की बढ़ती भीड़ के साथ

जगह जगह आश्रम बनाते,

कुछ सुनाते कवितायें,

दिखाते कभी गंभीर

कभी हास्य अदायें,

हल्दी लगती न फिटकरी

प्रचार जगत के सितारे बन जाते।

हंसकर बोले दीपक बापू

‘‘यह तुम्हारी सहृदयता है

या दिल में छिपा कोई बुरा भाव,

हमें उत्थान की राह दिखाते हो

या पतन पर लगवा रहे हो दांव,

अपनी चिंता के बोझ से ही

हो जाते हैं बोर

भीड़ की भलाई सोचते हुए

बुद्धि से भ्रष्ट हो जाते,

कितना भी ज्ञान क्यों न हो

माया है महाठगिनी

अपने ही इष्ट भी खो जाते,

अनाम रहने से

स्वतंत्रता छिन नहीं जाती,

मुश्किल होती है जब

नाम के साथ बदनामी

लेकर आती संकट

घिन हर कहीं छाती,

प्रसिद्धि का शिखर

बहुत लुभाता है,

गिरने पर उसी का

छोटा पत्थर भी कांटे  चुभाता है,

सत्य का ज्ञान

होने पर भी

अपने आश्रम महल बनाकर

माया के अंडे हर ज्ञानी पाता है,

मगर होता है जब भ्रष्ट

अपनी सता से

तब अपने पीछे लगा

डंडे का हर दानी पाता है,

तुम्हारी बात मान लेते

हम इस धरती पर

चमकते भले ही पहले

मगर बाद में बिचारे बन जाते।

———————————

लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja “”Bharatdeep””
Gwalior, madhyapradesh

कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर

poet, Editor and writer-Deepak  ‘Bharatdeep’,Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com

————————-

यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका 

५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका

योग साधना से तन मन और विचार में मजबूती संभव-हिंदी लेख


                       प्रातःकाल समाचार सुनना अच्छा है या भजन! एक जिज्ञासु ने यह प्रश्न किया।

            इसका जवाब यह है कि समाचार सुनने पर हृदय में प्रसन्नता, आशा, तथा सद्भाव उत्पन्न होने की  संभावना के साथ ही हिंसा, निराशा, तनाव तथा क्रोध का भाव आने की आशंका भी रहती है।  भजन से मन में राग उत्पन्न अच्छा रहता है पर जब वह बंद हो जायेगा तो क्लेश भी होगा।  योग सूत्र के अनुसार राग में व्यवधान के बाद क्लेश उत्पन्न ही होता है।

            प्रातःकाल सबसे अच्छा यही है कि समस्त इंद्रियों को मौन रखकर ध्यान किया जाये।  यही मौन सारी देह में नयी ऊर्जा का संचार करता है। यही ऊर्जा पूरे दिन देह में स्फूर्ति बनी रहती है। पढ़ने या सुनने से यह बात समझ में नहीं आयेगी। करो तो जानो।

            एक योग साधक सुबह उद्यान में अपने नित्य क्रम में व्यस्त था। उसके पास एक अन्य व्यक्ति आया और बोला-‘‘यार, इस तरह क्या हाथ पांव चला रहे हो। हमारे साथ घूमो तो देह को अधिक लाभ मिलेगा।

            साधक हंसकर चुप रहा। वह फिर बोला-‘‘इस तरह की साधना से कोई लाभ नहीं होता। चिकित्सक कहते हैं कि पैदल घूमने से ही बीमारी दूर रहती है। तुम हमारे साथ घूमो! दोनो बाते करेंगे तो भारी आनंद मिलेगा।

            साधक ने कहा-‘‘पर वह तो मुझे अभी भी मिल रहा है।

            ‘‘तुम नहीं सुधरोगे’’-ऐसा कहकर चला गया।

            कुछ देर बार वह घूमकर लौटा और पास बैठ गया और बोला-‘‘अभी भी तुम योग साधना कर रहे हो। मैं तो थक गया! तुम थके नहीं!’’

            साधक ने कहा-‘‘तुम दूसरों के साथ बात करते अपनी ऊर्जा क्षरण कर रहे थे और मेरी देह मौन होकर उसका संचय कर रही थी। थक तो मैं तब जाऊंगा जब बोलना शुरू करूंगा।’’

            वह व्यक्ति व्यथित होकर उठ खड़ा हुआ-‘‘यार तुमसे तो बात करना ही बेकार है। तुम्हारे इस मौन से क्रोध आता है। इसलिये मैं तो चला।’’

            मौन केवल वाणी का ही नहीं कान, आंख और मस्तिष्क में भी रहना चाहिये।  यही योग है।  मौन रहका प्राणों के आयाम पर ध्यान रखने की क्रिया को जो आनंद है वह करने वाले ही जानते हैं।

—————

 कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

कवि, लेखक और संपादक-दीपक “भारतदीप”,ग्वालियर 

poet, writer and editor-Deepak “BharatDeep”,Gwalior

http://rajlekh-patrika.blogspot.com

यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन

४.हिन्दी पत्रिका

५.दीपकबापू कहिन

६. ईपत्रिका 

७.अमृत सन्देश पत्रिका

८.शब्द पत्रिका

पाकिस्तान पेशावर से सबक लेगा इसकी संभावना नहीं-हिन्दी चिंत्तन लेख


            पाकिस्तान के एक सैन्य विद्यालय में आतंकवादियों ने 131 बच्चों सहित 141 बच्चों को मार दिया। विश्व की दर्दनाक घटनाओं में यह एक है और हमारे भारत देश की दृष्टि से यह आज से दस वर्ष पूर्व मुंबई में घटित हिंसक घटना के बाद दूसरे नंबर की है।  हम पाकिस्तान से ज्यादा आतंकवादी हिंसक घटनायें झेल चुके हैं।  यह सभी घटनायें पाकिस्तान से प्रायोजित होती हैं।  भारत ही नहीं पूरा विश्व पाकिस्तान से निर्यात किये जाने वाले आतंकवाद का दर्द झेल रहा है।  हम अगर इस घटना का आंकलन उस तरह की अपराधिक घटनाओं से करें जिसमें अपराधी बम बनाकर बेचते हैं पर उसे बनाते हुए कभी कभी उनके घर में ही विस्फोट हो जाता है।  इसके बावजूद वह बम बनाना और बेचना बंद नहीं करते।

            इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह घटना बहुत पीड़ादायक है पर इससे पाकिस्तान की नीति में सुधार की आशा करना बेकार है क्योंकि वह जिस राह पर चला है उसमें भारत के प्रति सद्भावना का मार्ग उसके लिये निषिद्ध है।  अनेक लोग इस घटना  धर्म से जोड़कर यह दावा कर रहे हैं कि कोई भी धर्म इस तरह के हमले की प्रेरणा नहीं देता। इस घटना में धर्म से कोई संबंध नहीं है क्योंकि यहां पाकिस्तानी सेना से नाराज आतंकवादी गुट ने उसे सबक सिखाने के लिये यह हमला करने का दावा किया है।  पाकिस्तान में कोई आतंकवादी घटना धर्म से संबद्ध नहीं होती वरन् वहां के अंातरिक समुदायों का अनवरत संघर्ष इसका एक बड़ा कारण होता है।  यह संघर्ष जातीय, क्षेत्रीय और भाषाई विवादों से उत्पन्न होता है। पाकिस्तान का हम कागज पर जो क्षेत्रफल देखते हैं उसमें सिंध, ब्लूचिस्तान और सीमा प्रांत के साथ पंजाब भी शामिल है पर धरातल पर पंजाबी जाति, भाषा तथा क्षेत्र का सम्राज्य फैला है।  पंजाब को छोड़कर बाकी तीनों प्रांतों के लोेग हर तरह से उपेक्षित हैं जबकि सत्य यह है कि पंजाबी लोगों ने उनका शोषण कर संपन्नता अर्जित की है।

            पाकिस्तान की वास्तविकता केवल लाहौर तथा इस्लामाबाद तक सिमटी है।  इसलिये पेशावर या कराची में होने वाली घटनाओं से वहां किसी प्रकार का भावनात्मक प्रभाव नहीं पड़ता।  पाकिस्तान के सभ्रांत वर्ग में पंजाबियों को ऊंचा स्थान प्राप्त है।  जिस सैन्य विद्यालय में यह कांड हुआ है वहां आतंकवादियों ने सेन्य अधिकारियों के बच्चों को छांटकर मारा है।  यह बुरी बात है इससे हम सहमत नहीं है पर इसमें एक संदेह है कि वहां सेना में उच्च पदों पर पंजाबी अधिक हैं उससे कहीं अन्य जाति या भाषाई गिरोहोें ने बदले की कार्यवाही से तो यह नहीं किया? पाकिस्तान पंजाब के सक्रिय भारत विरोधी आतंकवादियों के विरुद्ध कार्यवाही नहीं करता।  उसे वह मित्र लगते हैं मगर जिस तरह उसने आतंकवाद को प्रश्रय दिया है वह दूसरे इलाकों में उसके विरुद्ध फैल रहा है।

            भारतीय प्रचार माध्यमों में अनेक विद्वान यह अपेक्षा कर रहे हैं कि पाकिस्तान इससे सुधर जायेगा तो वह गलती पर हैं। उन्हें यह बात सोचना भी नहीं चाहिये।  यह बात सच है कि पाकिस्तान की सिंधी, पंजाबी, ब्लूची तथा पश्तो भाषाी जनता में भारत के प्रति अधिक विरोध नहीं है पर वहां के उर्दू भाषी शासकों के लिये यही एक आधार है जिसके आधार पर उन्हें सहधर्मी राष्ट्रों से राज्य संचालन के लिये गुप्त सहायता मिल पाती है।  वैसे भी वहां के भारत विरोधी इस घटना में अपनी भड़ास परंपरागत ढंग से निकाल रहे हैं। दो चार दिन के विलाप के बाद फिर उनका प्रभाव वहां दिखाई देगा। पेशावर की यह घटना लाहौर और इस्लामाबाद पर अधिक देर तक भावनात्मक प्रभाव डालकर उसकी रीति नीति में बदलाव की प्रेरणा नहीं बन सकती।     इस घटना में मारे गये बच्चों के प्रति सहानुभूति में कहने के लिये शब्द नहीं मिल रहे हैं। किसी भी दृष्टिकोण से हम अपने हृदय को समझा नहीं पा रहे कि आखिर इस दुःख को झेलने वाली माओं का दर्द कैसे लिखा जाये? फिर भी हम उन बच्चों को श्रद्धांजलि देते हुए भगवान से प्रार्थना करते हैं कि उनके परिवार को यह दुःख झेलने की शक्ति दे।

 कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

कवि, लेखक और संपादक-दीपक “भारतदीप”,ग्वालियर 

poet, writer and editor-Deepak “BharatDeep”,Gwalior

http://rajlekh-patrika.blogspot.com

यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन

४.हिन्दी पत्रिका

५.दीपकबापू कहिन

६. ईपत्रिका 

७.अमृत सन्देश पत्रिका

८.शब्द पत्रिका

योग और तप से पवित्रता आती है-पंतजलि योग साहित्य


            विश्व में पर्यावरण प्रदूषण के प्रभाव से गर्मी का प्रभाव बढ़ रहा है। इससे मनुष्य ही नहीं वरन् पक्षु पक्षियों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव देखा जा सकता है।  सामान्य लोग प्रत्यक्ष दैहिक दुप्प्रभाव देख सकते हैं मगर इस प्रदूषण से पैदा होने वाले  अप्रत्यक्ष मानसिक तथा वैचारिक दोषों को केवल मानसिक और सामाजिक विशेषज्ञ ही समझ पाते हैं। पर्यावरण प्रदूषण, आधुनिक साधनों का दिनचर्या में निरंतर उपयोग तथा असंतुलित सामाजिक व्यवहार से लोगों की मनस्थिति अत्यंत क्षीण होंती जा रही है।

            भारतीय योग साधना का नियमित अभ्यास करने के बाद ही हम इस बात का अनुभव कर सकते हैं कि एक सामान्य और योगाभ्यासी मनुष्य में क्या अंतर है? कुछ वर्ष पूर्व योगाभ्यास प्रारंभ करने वाले एक योग साधक ने इस लेखक को बताया  अनेक बार कुछ व्यक्ति कुछ बरसों के बाद मिले तो उनके व्यवहार में अनेपक्षित परिवर्तन का अनुभव हुआ।  पहले लगा कि यह उम्र या परिवार की वजह से हो सकता है पर धीमे धीमे लगा कि कहीं न कहीं पर्यावरण प्रदूषण तथा अन्य कारण भी कि उनके असंतुलित व्यवहार के लिये जिम्मेदार है।

पतंजलि योग साहित्य में कहा गया है कि

——————————-

कायेन्द्रियसिद्धिशुद्धिखयत्तपसः।

            हिन्दी में भावार्थ-तप के प्रभाव से जब विकार नष्ट होने के बाद प्राप्त शुद्धि से शरीर और इंद्रियों में सिद्धि प्राप्त होती है।

            हम यह नहीं कहते कि सभी लोग मानसिक रूप से मनोरोगी होते जा रहे हैं पर सामाजिक तथा स्वास्थ्य विशेषज्ञ इस बात को मान रहे हैं कि समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग दैहिक रोगों का शिकार हो रहा है जिससे विकृत या बीमार मानसिकता का दायर बढ़ता रहा है।  भारतीय योग विधा का प्रभाव इसलिये बढ़ रहा है क्योंकि पूरे विश्व के स्वास्थ्य विशेषज्ञ मान रहे हैं है कि इसके अलावा कोई अन्य उपाय नहीं है। भारतीय योग साधना में आसन, प्राणायाम, धारण और ध्यान की ऐसी प्रक्रियायें हैं जिनमें तपने से साधक में गुणत्मक परिवर्तन आते हैं।  इसके लिये हमारे देश में अनेक निष्काम योग शिक्षक हैं जिनसे प्रशिक्षण प्राप्त किया सकता है। इस संबंध में भारतीय योग संस्थान के अनेक निशुल्क शिविर चलते हैं जिनमें जाकर सीखा जा सकता है।

लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’

लश्कर, ग्वालियर (मध्य प्रदेश)

कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
hindi poet,writter and editor-Deepak ‘Bharatdeep’,Gwalior
http://dpkraj.blgospot.com

यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका5.दीपक बापू कहिन
6.हिन्दी पत्रिका 
७.ईपत्रिका 
८.जागरण पत्रिका 
९.हिन्दी सरिता पत्रिका

देह के अंदर और बाहर दोनों की सफाई आवश्यक-2 अक्टूबर महात्मा गांधी जयंती पर भारत स्वच्छता अभियान पर विशेष हिन्दी लेख


            प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान वहां के राष्ट्रपति बराक ओबामा को महात्मा गांधी रचित श्रीगीता प्रदान की।  हम जैसे योग तथा अध्यात्मिक साधकों के लिये श्री नरेंद्र मोदी की अध्यात्म तथा योग के प्रति जो लगाव है वह अत्यंत रुचिकर विषय है।  इसका कारण यह है कि सामान्य जीवन बिताने वाले साधक की अध्यात्मिक क्षमता पर अन्य लोग सहजता से विश्वास नहीं करते क्योंकि बिना बड़ी भौतिक उपलब्धि के किसी को हमारा समाज ज्ञानी नहीं मानता।  यह मानवीय गुण है  वह शक्तिशाली, उच्च पदस्थ और धनिक के आचरण का सभी  लोग अनुसरण करते हैं।  भगवान श्रीकृष्ण ने मद्भागवत गीता में इस बात का उल्लेख भी किया है कि श्रेष्ठ व्यक्ति का पूरा समाज अनुसरण करता है। उन्होंने स्वयं ही महाभारत युद्ध में श्रीअर्जुन का सारथि बनना इसलिये भी स्वीकार किया ताकि उन्हें शस्त्र भी न उठाना पड़े और कर्म से विमुख होने का आरोप भी न लगे।  श्रीमोदी भी योग तथा अध्यात्मिक दर्शन में रुचि रखने के बाद भी भारत का सर्वोच्च राजसी पद धारण किये हुए हैं इससे उनकी साधना से मिली सिद्धि का परिणाम भी माना जा सकता है। यही कारण है कि आजकल पूरे विश्व में भारतीय अध्यात्मिक दर्शन तथा योग साधना की चर्चा भी खूब हो रही है।

            श्रीमोदी ने सत्ता संभालने के पद निंरतर सक्रियता दिखाई दी है।  उन्होंने 2 अक्टुबर को महात्मा गांधी जयंती पर भारत में स्वच्छता अभियान प्रारंभ करने की घोषणा करने के साथ ही संयुक्त राष्ट्रसंघ में योग दिवस मनाने का प्रस्ताव देकर भारत के अध्यात्मिक प्रेमियों को जहां प्रसन्न किया वहीं शेष विश्व को भी चकित कर दिया है।  जहां बाहरी स्वच्छता से देह की इंद्रियां सुख ग्रहण करती हैं वहीं योग से अंदर भी ऐसी स्वच्छता का भाव पैदा होता है जिससे यही धरती स्वर्ग जैसी लगती है।  भगवान श्रीकृष्ण के अनुसार उनको ज्ञानी भक्त प्रिय है। ज्ञानी भक्त की पहचान यह दी गयी है कि जो स्थिर, स्वच्छ तथा पवित्र स्थान पर त्रिस्तरीय आसन बिछाकर प्राणायाम तथा ध्यान करे।  इसका सीधा आशय यही है कि पहली स्वच्छता बाहर ही होना चाहिये क्योंकि उसका प्रत्यक्ष संबंध देह से है।  देह हमेशा ही प्रथमतः बाह्य वातावरण से प्रभावित होती है।  अगर वह वातावरण सकारात्मक है तो फिर बुद्धि, मन और विचारों की स्वच्छता के लिये योग साधना सहजता से की जा सकती है। इस तरह आंतरिक तथा बाह्य स्चच्छता जीवन में ऐसा आत्मविश्वास पैदा करती है कि मनुष्य जिन संासरिक विषयों में बड़ी उपलब्धि पाने के लिये लालायित रहता है वह उसे सहजता से प्राप्त कर लेता है। योग साधना के अभाव में  दैहिक, मानसिक तथा वैचारिक रुगणता होने से जहां  मनुष्य एक साधक की अपेक्षा अधिक सांसरिक विषयों में उपलब्धि करने के लिय उत्सुक रहता है वहीं शक्ति के अभाव में हारता भी जल्द है।

            2 अक्टुबर 2014 महात्मा गांधी की जयंती का दिन पिछले अन्य वर्षों की अपेक्षा अधिक चर्चा का विषय इसलिये ही बना है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी न केवल राजनीतिक विषय बल्कि आर्थिक, सामाजिक तथा अध्यात्मिक विषयों में भी नये प्रकार का स्फूर्तिदायक संदेश दे रहे हैं।  हमारी तो यही कामना है कि वह सफल हों।  हम जैसे सामान्य, स्वतंत्र तथा मौलिक विचार लेखकों की अपनी कोई महत्वांकाक्षा नही होती पर यह कामना तो होती है कि अपने आसपास के लोग भी प्रसन्न रहे।  योग साधना, गीता अध्ययन तथा सात्विक कर्म से ही यह जीवन सहजता से जिया जा सकता है। हमारे ब्लॉग पाठकों की संख्या अधिक नहीं है और न ही ऐसे संपर्क सूत्र है कि किसी प्रधानमंत्री तक अपनी बात पहुंचा सके।  इसलिये अपने पाठकों से ही अपनी बात कहकर दिल खुश करते हैं।  योग तथा श्रीगीता पर किस भी व्यक्ति की सक्रियता हमें प्रसन्न करती है इसलिये ही यह लेख भी लिखा है। हम आशा करते हैं कि प्रधानमंत्री अपने नियमित कर्म में सफल रहकर देश एक नया अध्यात्मिक मार्ग का निर्माण करेंगे।

 

लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’

लश्कर, ग्वालियर (मध्य प्रदेश)

कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
hindi poet,writter and editor-Deepak ‘Bharatdeep’,Gwalior
http://dpkraj.blgospot.com

यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका5.दीपक बापू कहिन
6.हिन्दी पत्रिका 
७.ईपत्रिका 
८.जागरण पत्रिका 
९.हिन्दी सरिता पत्रिका

हिन्दी दिवस पर सम्मान-हास्य कविता


रास्ते में तेजी से चलता

मिल गया फंदेबाज और बोला

‘‘दीपक बापू तुम्हारे पास ही आ रहा था

सुना है दस सर्वश्रेष्ठ हिन्दी ब्लॉग लेखक

सम्मान पाने वाले हैं,

ऐसा लगता है हिन्दी के अंतर्जाल पर भी

अच्छे दिन आने वाले हैं,

हो सकता है तुमको भी

कहीं से सम्मान मिल जाये,

हमारा छोटा शहर भी

ऐसी किसी खबर से हिल जाये,

आठ साल अंतर्जाल पर हो गये लिखते,

पहल दिन से आज तक

तुम फ्लाप कवि ही दिखते,

मिल जाये तो मुझे जरूर याद करना

मैंने ही तुम्हारे अंदर हमेशा

उम्मीद जगाई,

सबसे पहले दूंगा आकर बधाई।

सुनकर हंसे दीपक बापू और बोले

‘‘अंतर्जाल पर लिखते हुए अध्यात्म विषय

हम भी हम निष्काम हो गये हैं,

कोई गलतफहमी मत रखना

हमसे बेहतर लिखने वाले

बहुत से नाम हो गये हैं,

हमारी मजबूरी है अंतर्जाल पर

हिन्दी में लिखते रहना,

शब्द हमारी सासें हैं

चलाते हैं जीवन रुक जाये वरना,

मना रहे हैं जिस तरह

टीवी चैनल हिन्दी दिवस

उससे ही हमने प्रसन्नता पाई,

नहीं मिलेगा हमें यह तय है

फिर भी देंगे

सम्मानीय ब्लॉग लेखको को हार्दिक बधाई,

हम तो इसी से ही प्रसन्न हैं

हिन्दी ब्लॉग लेखक शब्द

अब प्रचलन में आयेगा,

अपना परिचय देना

हमारे लिये सरल हो जायेगा,

सम्मान का बोझ

नहीं उठा सकते हम,

उंगलियां चलाते ज्यादा

कंधे उठाते कम,

इसी से संतुष्ट हैं कि

अंतर्जाल पर हिन्दी लिखकर

हमने अपने ब्लॉग लेखक होने की छवि

अपनी ही आंखों में बनाई।

————

लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’

लश्कर, ग्वालियर (मध्य प्रदेश)

कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
hindi poet,writter and editor-Deepak ‘Bharatdeep’,Gwalior
http://dpkraj.blgospot.com

यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका5.दीपक बापू कहिन
6.हिन्दी पत्रिका 
७.ईपत्रिका 
८.जागरण पत्रिका 
९.हिन्दी सरिता पत्रिका

सोने के अंडे देने वाली मुर्गी कभी नज़र नहीं आयी-हिंदी व्यंग्य कविता


कई ठगों ने बेच दी

लोगों को  सोने का अंडा देने वाली मुर्गी

मगर धरती पर कभी नज़र नहीं आयी।

बहुत से आशिकों ने

माशुकाओं से किया वादा

आसमान से तारे तोड़ लाने का

मगर जमीन पर

कभी चमक नज़र नहीं आयी।

इंसानों की पीढ़ियां गुजर गयी

हाथ उठाये आकाश की तरफ

दरियादिली बरसने की आस में

मगर किसी फरिश्ते की छवि

इस धरती पर नज़र नहीं आयी।

कहें दीपक बापू कुदरत का कमाल है

हर शय मौजूद है इंसानी शरीर में

फिर भी बेखबर हैं सभी

ढूंढने जाते खुशी बाज़ार में पैसा लेकर

खर्च कर भी तसल्ली

किसी में नज़र नहीं आयी।

————–

नाचते नाचते मोर

थकने के बाद अपनै मैले पांव

देखकर रोता है।

इंसान भी चढ़ जाता

धन पद और प्रतिष्ठा के शिखर पर

फिर अकेले में बोर होता है।

बेजुबानों की मौत भी होती लापता

इंसान को लगता है छोटा घाव

तब बहुत शोर होता है।

कहें दीपक बापू कुदरत का खेल

बहुत अजीब है,

जिनकी जेब भरी

बेदिल होकर भी कहलाते दिलवाले

पसीने में दिल लगाता इंसान

कहलाता गरीब है,

कोई नहीं लगता हिसाब

कोई इंसान जिंदादिल होकर

कितना समय बिताता

कितनी उम्र मुफ्त में खोता है।

——————–

 

लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश

writer and poet-Deepak raj kukreja “Bharatdeep”,Gwalior madhya pradesh

संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

athor and editor-Deepak  “Bharatdeep”,Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.शब्दलेख सारथि
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका
५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका 
६.अमृत सन्देश  पत्रिका

धर्म अब व्यवसाय बन गया है-हिन्दी व्यंग्य काव्य रचनायें


हर कोई बैठा है हाथ में लेकर मूर्तियां पुजवाने के लिये,

जिसकी नहीं पुजे लग जाता दूसरे की तुड़वाने के लिये।

किसी ने लगाया ने अपने माथे पर चंदन की टीका

किसी ने अपने चेहरे पर स्थापित दाढ़ी बढ़ा ली,

चाहे जहां सर्वशक्तिमान के नाम पर शब्दों की जंग लड़ा ली,

कहें दीपक बापू भक्ति का मसला दिल से जुड़ा है

धर्म के ठेकेदारों ने बना लिया धंधा कमाने के लिये।

———–

सर्वशक्तिमान की  भक्ति करने पर वह इतराते हैं,

दिल है खाली जुबान पर नाम लेकर इठलाते हैं।

कहें दीपक बापू पाखंड से पहचानी जा रही आस्था,

सत्य के नाम पर सत्ता का बना रहे रास्ता,

ज्ञान की राह कभी सभी समझी नहीं

रट लिये शब्द अब दूसरों को सिखलाते हैं।

———–

धर्म के मसले पर हर रोज नयी चर्चा हो जाती है,

शब्दों की भारी भीड़ अधर्म की पहचान पर खर्चा हो जाती है।

कहें दीपक बापू विद्वानों के बीच बहस की जगह जंग होती है

तस्वीरों से शुरु शून्य पर खत्म चर्चा हो जाती है।

——–

आओ कोई मुद्दा नहीं है धर्म पर बात कर लें,

बैठे बिठाये अधर्म पर घात कर लें।

मौन रहने में शक्ति है पर देखता कौन है,

अपनी छवि दिखाने के लिये सभी आमादा

शोर के बीच अकेला खड़ा है वह शख्स जो मौन है।

कहें दीपक बापू किसी ने जप लिये वेद मंत्र,

कोई बना रहा है सर्वशक्तिमान के नाम पर तंत्र,

रट लेते जिन्होंने शब्द ग्रंथ से

लगा लिया है उन्होंने धर्म का बाज़ार,

भ्रम के धुंऐं के बीच बेच रहे आस्था का अचार,

सच्चे ज्ञानी का इकलौता एक ही साथ मौन है।

—————

 कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

कवि, लेखक और संपादक-दीपक “भारतदीप”,ग्वालियर 

poet, writer and editor-Deepak “BharatDeep”,Gwalior

http://rajlekh-patrika.blogspot.com

यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन

४.हिन्दी पत्रिका

५.दीपकबापू कहिन

६. ईपत्रिका 

७.अमृत सन्देश पत्रिका

८.शब्द पत्रिका

हिन्दी में लिख लिया तो समझ लो अच्छा दिन है-राष्ट्रभाषा पर निबंध


          देश में राजनीतिक परिवर्तन के साथ ही इस बात पर भी बहस एक टीवी चैनल पर चली कि क्या हिन्दी के भी अच्छे दिन आने वाले हैं? दरअसल इस बहस का आधार यह था कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी हिन्दी भाषा के प्रचार प्रसार के एक बहुत समर्थक  भी हैं।  वह भविष्य में  विदेशी नेताओं से हिन्दी में बात करेंगे।  इसे लेकर हिन्दी के कुछ विद्वान उत्साहित हैं।  उनका मानना है कि जिस तरह देश के आर्थिक विकास की लहर पूरे देश के अच्छे दिन आने के नारे को बहाकर लायी है उसी तरह हिन्दी भी अब अंतराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानजनक स्थान प्राप्त करेगी।  हमारा मानना है कि हिन्दी भाषा अंततः भविष्य में वैश्विक भाषा बनेगी पर इसके लिये भारत के सामान्य जनमानस में यह विश्वास जगाना आवश्यक है कि भविष्य में उसका काम बिना हिन्दी के चलने वाला नहीं है।

         इसमें कोई संदेह नहीं है कि नये प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी राष्ट्रभाव से ओतप्रोत हैं पर यह भी सच है कि देश में आर्थिक विकास करने के साथ ही संास्कृतिक उत्थान बिना सामान्य जन के बिना  संभव नहीं है।  हम यहां केवल हिन्दी भाषा की चर्चा कर रहे हैं इसलिये यह कहने में संकोच नहीं है कि इस संबंध में आम भारतीय का रवैया भी वही है जो उसका अपने जीवन को लेकर है।  जिस तरह वह यह आशा करता है कि उसके जीवन का उद्धार कोई अवतारी पुरुष करेगा वही हिन्दी के संबंध में भी उसकी धारणा है।  हर सभ्रांत व्यक्ति चाहता है कि उसके बच्चे को अंग्रेजी में महारथ हासिल करना चाहिये और हिन्दी का सम्मान दूसरे लोग करें।  स्थिति यह है कि अनेक कलाकारों, विद्वानों, तथा लेखकों का जीवन हिन्दी भाषा के दम पर चल रहा है पर वह अपनी बात कहने के लिये अंग्रेजी का सहारा लेते हैं।  सबसे बड़ी बात यह है कि सभ्रांत वर्ग जो कि भाषा, संस्कृति, संस्कार तथा ज्ञान की रक्षा में सबसे ज्यादा योगदान देता है उसमें आत्मविश्वास का अभाव है। उसे नहीं लगता कि हिन्दी के सहारे आर्थिक विकास किया जा सकता है। उसका दूसरा संकट यह भी है कि वह पूरी तरह से अंग्रेंजी का आत्मसात भी नहीं कर पाया है। हमने अनेक कलाकारों, विद्वानों, तथा लेखकों को हिन्दी की खाते और अंग्रेजी की बजाते देखा है पर यह पता ही नहीं लग पाता कि वह अंग्रेजी में ही सोचते हैं या हिन्दी में सोचकर अंग्रेजी में बोलते हैं।  हिन्दी विद्वानों में भी भारी अंतर्द्वंद्व है। वह हिन्दी का प्रयोग बढ़ाने के लिये उसमें जमकर अंग्रेजी शब्द ठूंसने की बात करता है। परिणाम यह हो रहा है कि एक हिंग्लििश भाषा का निर्माण हो रहा है जो भविष्य में किसी काम की नहीं है। भाषा की रक्षा साहित्य से होती है और हिंग्लिश वाले किसी साहित्य रचना योग्य नहीं लगते।  जिनकी हिन्दी लेखन में रुचि है वह अपनी भाषा में शब्दों का प्रयोग सावधानी से करते हैं।

     बाज़ार हिन्दी भाषियों को उपभोक्ता से अधिक स्तर प्रदान नहीं करता।  अंतर्जाल पर भी यही हाल है। अंग्रेजी पर टीका टिप्पणी करने वालों को प्रचार माध्यम महत्व देते हैं।  किसी के हिन्दी वाक्य अगर प्रचारित होते हैं तो वह कोई बड़ा धनी, पदवान या कलाकार होता है।  सामान्य लोगों को अपने फेसबुक या ट्विटर पर आने वालों को यह प्रचार माध्यम दिखाते हैं पर किसी खास विषय पर लिखे गये किसी ब्लॉग या फेसबुक के ऐसे पाठ की चर्चा कभी नहीं देखी गयी जो किसी सामान्य लेखक ने लिखा हो।

     हिन्दी के अच्छे दिन आयेंगे या नहीं यह तो नहीं कहा जा सकता पर हिन्दी में लेखन करने वालों को यह कदापि आशा नहीं करना चाहिये कि उन्हें कोई सम्मान या पुरस्कार  चमचागिरी या संगठित ठेकेदारों की चरणवंदना किये बिना मिल जायेगा। हिन्दी लेखन तो स्वांत सुखाय ही हो सकता है।  अगर आप लेखक हैं तो अपनी कोई रचना लिख लें तो समझिये वही अच्छा दिन है। पिछले सात वर्षों से अंतर्जाल पर लिखते हुए हमने यही अनुभव किया है।

 

लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा “भारतदीप”

ग्वालियर, मध्यप्रदेश 

Writer and poet-Deepak Raj Kukreja “Bharatdeep”

Gwalior, Madhya pradesh

कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak ‘Bharatdeep’,Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।

अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका

४.दीपकबापू कहिन

5.हिन्दी पत्रिका 

६.ईपत्रिका 

७.जागरण पत्रिका 

८.हिन्दी सरिता पत्रिका 

९.शब्द पत्रिका

जहान के गम से परेशान-हिन्दी व्यंग्य कवितायें


जब तक तक उनके चेहरे पर नकाब था
उनकी सुंदरता के अहसास से ही
दिल में हलचल मची थी
उतारा तो हमारी आंखें ही उदास हो गयीं
ख्यालों में बसी उनकी तस्वीरें कहीं खो गयीं।
कहें दीपक बापू मिट्टी से बने रंग बिरंगे खिलौने
सजावट में घर की शोभा बढ़ाते हैं,
टूटे तो हम उनके लिये बेकद्री जताते हैं,
इंसान तोड़ते हैं जब भरोसा खिलौने की  तरह
तब टूटते हैं हम खुद
फिर ढूंढते अपनी दूसरी जगह आशायें
जो दिल में कही सो गयीं।
————-

लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja “Bharatdeep”,Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

athor and editor-Deepak  “Bharatdeep”,Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

झगड़े से बचने के लिये अज्ञानी की छवि बनाये रखें-संत मलूक दास के दर्शन के आधार पर चिंत्तन लेख


     हमारे देश में दहेज परंपरा अब एक विकृत रूप ले चुकी है| सच बात यह है हमारे यहं लड़की के जन्म पर लोग इतने खुश नहीं होते जितना लड़के के समय होते हैं| इसकी मुख्य वजह यह है कि लड़की का बाप होने पर दूसरे के सामने झुकना पड़ता है जबकि लड़के कि वजह से दूसरे अपने सामने झुकते हैं| हमारे सामाजिक तथा अध्यात्मिक चिन्त्तक समाज का अनेक वर्षों से सचेत कर रहे हैं पर कोई सुधार नहीं हो रहा है| पहले तो कहा जाता था कि समाज अशिक्षित है पर अब तो यह देखा जा रहा है कि अधिक शिक्षित होने पर दहेज कि रकम अधिक मिलती है|

गुरुवाणी में कहा गया है

—————————

होर मनमुख दाज जि रखि दिखलाहि,सु कूड़ि अहंकार कच पाजो

      हिंदी में भावार्थ-श्री गुरू ग्रन्थ साहिब के अनुसार लड़की के विवाह में  ऐसा दहेज दिया जाना चाहिए जिससे मन का सुख मिले और जो सभी को दिखलाया जा सके। ऐसा दहेज देने से क्या लाभ जिससे अहंकार और आडम्बर ही दिखाई दे।

हरि प्रभ मेरे बाबुला, हरि देवहु दान में दाजो।’


हिन्दी में भावार्थ-श्री गुरुग्रंथ साहिब में दहेज प्रथा का आलोचना करते हुए कहा गया है कि वह पुत्रियां प्रशंसनीय हैं जो दहेज में अपने पिता से हरि के नाम का दान मांगती हैं।

     दहेजहमारे समाज की सबसे बड़ी बुराई है।चाहे कोई भी समाज हो वह इस प्रथा सेमुक्त नहीं है।अक्सर हम दावा करते हैं कि हमारे यहां सभी धर्मों कासम्मान होता है और हमारे देश के लोगों का यह गुण है कि वह विचारधारा कोअपने यहां समाहित कर लेते हैं।इस बात पर केवल इसलिये ही यकीन किया जाताहै क्योंकि यह लड़की वालों से दहेज वसूलने की प्रथा उन धर्म के लोगों में भीबनी रहती है जो विदेश में निर्मित हुए और दहेज लेने देने की बात उनकी रीतिका हिस्सा नहीं है।कहने का आशय यह है कि दहेज लेने और देने को हम यहमानते हैं कि यह ऐसे संस्कार हैं जो हमारी पहचान हैं  मिटने नहीं चाहिए।  कोई भी धर्म या  समाज हो  कथित रूप से इसी पर इतराता है।

      इस प्रथा के दुष्परिणामों पर बहुत कम लोग विचार करते हैं। इतना ही नहीं आधुनिक अर्थशास्त्र की भी इस पर नज़र नहीं है क्योंकि यह दहेज प्रथा हमारे यहां भ्रष्टाचार और बेईमानी का कारण है और इस तथ्य पर कोई भी नहीं देख पाता। अधिकतर लोग अपनी बेटियों की शादी अच्छे घर में करने के लिये ढेर सारा दहेज देते हैं इसलिये उसके संग्रह की चिंता उनको नैतिकता और ईमानदारी के पथ से विचलित कर देती है। केवल दहेज देने की चिंता ही नहीं लेने की चिंता में भी आदमी अपने घर पर धन संग्रह करता है ताकि उसकी धन संपदा देखकर बेटे की शादी में अच्छा दहेज मिले। यह दहेज प्रथा हमारी अध्यात्मिक विरासत की सबसे बड़ी शत्रु हैं और इससे बचना चाहिये। यह अलग बात है कि अध्यात्मिक, धर्म और समाज सेवा के शिखर पुरुष ही अपने बेटे बेटियों की शादी कर समाज को चिढ़ाते हैं। सच बात तो यह है कि यह पर्थ हमारे समाज के अस्तित्व पर संकर खड़ा किये हुए है और अगर यह ख़त्म नहीं हुए तो एक दिन यह समाज भी कह्तं हो जाएगा।

————————————-

 

संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

athor and editor-Deepak Raj Kukreja “Bharatdeep”,Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.शब्दलेख सारथि
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका
५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका 
६.अमृत सन्देश  पत्रिका

गरीबी का दर्द-हिंदी व्यंग्य कविता


जिन्होंने देखी नहीं कभी गरीबी

क्या रहेगी उनकी दर्द से करीबी

हमदर्दी के बयान देकर तालियां बटोर लें यह अलग बात है,

प्रचार सुख में गुजरता उनका दिन बहलती रात है।

कहें दीपक बापू पर्दे पर नकली जंग रोज दिखती है,

बंदूक और तोप नहीं कलम पहले उसकी पटकथा लिखती है,

पेशेवर सजाते  चित्र प्रदर्शनी जो समाचार जैसे लगते हैं,

देख कर वाह वाह कर रहे दर्शक खुद को ठगते हैं,

नायकत्व की छवि बन गयी है बहुत सारे इंसानी बुतों की

बाहर बैठे निर्देशकों के इशारे से पर्दे पर चलते फिरते हैं

मजे लेने में लगे लोग क्या जाने यह अंदर की बात है।

————-

लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा “भारतदीप”

ग्वालियर, मध्यप्रदेश 

Writer and poet-Deepak Raj Kukreja “Bharatdeep”

Gwalior, Madhya pradesh

कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak ‘Bharatdeep’,Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।

अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका

४.दीपकबापू कहिन

5.हिन्दी पत्रिका 

६.ईपत्रिका 

७.जागरण पत्रिका 

८.हिन्दी सरिता पत्रिका 

९.शब्द पत्रिका

सिंहासन और बादशाह -हिंदी व्यंग्य कविताएँ


जिनसे उम्मीद होती मौके पर सहारे की

वही ताना देकर हैरान करने लगें,

क्या कहें उनको

ढांढस देना चाहिये जिनको जिंदगी की जंग में

वही हमारी हालातों को देखकर डरने लगें।

कहें दीपक बापू ऊंचे महलों में जो रहते हैं,

महंगे वाहनों में सड़क पर साहबों की तरह बहते हैं,

दौलतमंद है,

मगर देह से मंद है,

मन उनके बंद हैं,

आदर्श के लिये युद्ध वह क्या लड़ेंगे

अपना घर बचाने के लिये

जो अपने से ताकतवर के यहां पानी भरने लगें।

————-

सिंहासन का स्वाद जिसने एक बार चखा

वह विलासिता का आदी हो जाता है,

दिन दरबार में बजाता चैन की बंसी

रात को राजमहल में निद्रा वासी हो जाता है।

कहें दीपक बापू दुनियां चल रही भगवान भरोसे

बादशाह अपने फरिश्ते होने की गलतफहमी मे रहते

आम आदमी अपने कड़वे सच में भी

भगवान दरबार में जाकर भक्ति का आनंद उठाता है।

——–

 

लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’

लश्कर, ग्वालियर (मध्य प्रदेश)

कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
hindi poet,writter and editor-Deepak ‘Bharatdeep’,Gwalior
http://dpkraj.blgospot.com

 

यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका5.दीपक बापू कहिन
6.हिन्दी पत्रिका 
७.ईपत्रिका 
८.जागरण पत्रिका 
९.हिन्दी सरिता पत्रिका

 

ईमानदारी और मजबूरी-लघु हिंदी व्यंग्य कविताएँ


दौलत चाहे बेईमानी से घर में आये

पहरेदारी के लिये ईमानदार शख्स जरूरी है,

ईमानदारी अभी तक नहीं मिटी इस धरती पर

जिंदगी बचाने के लिये उसे बनाये रखना

सर्वशक्तिमान की मजबूरी है।

कहें दीपक बापू अमीरों के छल कपट से

बन जाते है महल

इसे भाग्य कहें या दुर्भाग्य

ईमानदारी की रिश्तेदार मजदूरी है।

——–

हमने तो वफा निभाई उन्हें अपना समझकर

वह उसकी कीमत पूछने लगे,

क्या मोल लगाते हम अपने जज़्बातों का

जो उन पर हमने लुटाये थे

बिना यह सोचे कि वह पराये हैं या सगे।

कहें दीपक बापू रिश्ता निभाना भी उन्होंने व्यापार समझा

जिसकी तौल वह रुपयों की तराजू में करने लगे।

—————

लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा “भारतदीप”

ग्वालियर, मध्यप्रदेश 

Writer and poet-Deepak Raj Kukreja “Bharatdeep”

Gwalior, Madhya pradesh

कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak ‘Bharatdeep’,Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।

अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका

४.दीपकबापू कहिन

5.हिन्दी पत्रिका 

६.ईपत्रिका 

७.जागरण पत्रिका 

८.हिन्दी सरिता पत्रिका 

९.शब्द पत्रिका

क्रिकेट मैचों में हार की आशा नहीं आंशका होती है-हिन्दी व्यंग्य चिंत्तन लेख


      जब हमारे देश में हिन्दी के अधिक से अधिक उपयोग की बात आती है तो अनेक लोग यह कहते हैं कि भाषा का संबंध रोटी से है। जब आदमी भूखा होता है तो वह किसी भी भाषा को सीखकर रोटी अर्जित करने का प्रयास करता है। वैसे देखा जाये तो हिन्दी भाषा के आधुनिक काल की विकास यात्रा प्रगतिशील लेखकों के सानिध्य में ही हुई है और वह यही मानते हैं कि सरकारी कामकाज मेें जब तक हिन्दी को सम्मान का दर्जा नहीं मिलेगा तब हिन्दी राष्ट्रभाषा के पद पर वास्तविक रूप से विद्यमान नहीं हो सकती।

      हिन्दी के एक विद्वान थे श्रीसीताकिशोर खरे। उन्होंने बंटवारे के बाद सिंध और पंजाब से देश के अन्य हिस्सों में फैलकर व्यवसाय करने वाले लोगों का दिया था जिन्हेांने  स्थानीय भाषायें सीखकर रोजीरोटी कमाना प्रारंभ किया।  उनका यही कहना था कि जब हिन्दी को रोजगारोन्मुख बनाया जाये तो वह यकीनन प्रतिष्ठित हो सकती है।  इस लेखक ने उनका भाषण सुना था। यकीनन उन्होंने प्रभावपूर्ण ढंग से अपनी बात रखी थी।  बहरहाल हिन्दी के उत्थान पर लिखते हुए इस लेखक ने अनेक ऐसी चीजें देखीं जो मजेदार रही हैं। एक समय इस लेखक ने लिखा था कि कंप्यूटर पर हिन्दी  में लिखने की सुविधा मिलना चाहिये। मिल गयी।  टीवी पर हिन्दी शब्दों का उपयोग अधिक होना चाहिये।  यह भी होने लगा। हिन्दी के लिये निराशाजनक स्थिति अब उतनी नहंी जितनी दिखाई देती है।

      दरअसल अब हिन्दी ने स्वयं ही रोजीरोटी से अपना संबंध बना लिया है। ऐसा कि जिन लोगों को कभी हमने टीवी पर हिन्दी बोलते हुए नहीं देखा था वह बोलने लगते हैं। यह अलग बात है कि यह उनका व्यवसायिक प्रयास है।  अनेक क्रिकेट खिलाड़ी जानबूझकर हिन्दी समाचार चैनलों पर अंग्रेजी बोलते थे।  हिन्दी फिल्मों के अभिनेता भी पुरस्कार समारोह में अंग्रेजी बोलकर अपनी शान दिखाते थे।  अब सब बदल रहा है। यह अलग बात है कि हिन्दी को भारतीय आर्थिक प्रतिष्ठानों की बजाय विदेशी प्रतिष्ठिानों से सहयोग मिला है।

      आजकल क्रिकेट मैचों के  जीवंत प्रसारण का हिन्दी प्रसारण रोमांचित करता है। जिन चैनलों ने इस प्रसारण का हिन्दीकरण किया है वह सभी विदेशी पहचान वाले हैं।  इसमें ऐसे पुराने खिलाड़ी टीवी कमेंट्री करते हैं जिनको कभी हिन्दी शब्द बोलते हुए देखा नहीं था।  इनमें एक तो इतने महान खिलाड़ी रहे हैं जिनके नाम पर युग चलता है पर उन्होंने हिन्दी में कभी संवादा तब शायद ही बोला हो जब खेलते थे पर अब कमेंट्री में पैसा कमाने के लिये बोलने लगे हैं।  मजेदार बात यह है कि इन जीवंत प्रसारणों गैर हिन्दी क्षेत्र के खिलाड़ी अच्छी हिन्दी बोलते का प्रयास करते हुए जहां मिठास प्रदान करते हैं वही उत्तर भारतीय पुराने खिलाड़ी अनेक बार कचड़ा कर हास्य की स्थिति उत्पन्न करते हैं। इतना ही नहीं समाचार चैनलों पर भी कुछ उद्घोषक यही काम कर रहे हैं।

      सबसे मजेदार पुराने क्रिकेट खिलाड़ी  नवजोत सिद्धू हैं जो आजकल हिन्दी बोलने वालों में प्रसिद्ध हो गये हैं।  सच बात तो यह है कि हिन्दी में बोलते हुए  हास्य रस के भाव का सबसे ज्यादा लाभ उन्होंने ही उठाया है।  वह कमेंट्री के साथ ही कॉमेडी धारावाहिकों में भी अपनी मीठी हिन्दी से अपनी व्यवसायिक पारी खेल रहे हैं।  मूल रूप से पंजाब के होने के बावजूद जब वह हिन्दी में बोलते हैं तो अच्छा खासा हिन्दी भाषी साहित्यकार भी यह मानने लगेगा कि वह उनसे बेहतर जानकार हैं। मुहावरे और कहावतें को सुनाने में उनका कोई सानी नहीं है पर फिर भी कभी अतिउत्साह में वह हिन्दी के शब्दों को अजीब से उपयोग करते हैं।  टीवी उद्घोषक भी ऐसी गल्तियां करते हैं।  यह गल्तिया आशा आशंका, संभावना अनुमान, द्वार कगार और खतरा और उम्मीद शब्दों के चयन में ही ज्यादा हैं।

      अब कोई हार के कगार पर हो तो उसे आशा कहना अपने आप में हास्यास्पद है। अगर कहीं दुर्घटना हुई है तो वहां घायलों की संख्या में उम्मीद या संभावना शब्द जोड़ना अजीब ही होता है।  वहां अनुमान या आशंका शब्द उपयोग ही सहज भाव उत्पन्न करता।  उससे भी ज्यादा मजाक तब लगता है जब  कोई जीत के द्वार पर पहुंच रहा हो और आप उसे जीत की कगार की तरफ बढ़ता बतायें। नवजोत सिद्धू एक मस्तमौला आदमी हैं। हमारी उन तक पहुंच नहीं है पर लगता है कि उनके साथ वाले लोग भी ऐसे  ही है जिनको शायद इन शब्दों का उपयोग समझ में नहीं आता।  उनका शब्दों का यह उपयोग थोड़ा हमें परेशान करता है पर एक बात निश्चित है कि उन्होंने यकीनन उनकी जीभ पर सरस्वती विराजती है और जब बोलते हैं तो कोई उनका सामना आसानी से नहीं कर सकता।

      खेल चैनलों में खिलाड़ियों के नाम हिन्दी में होते हैं।  स्कोरबोर्ड हिन्दी में ही आता है।  इससे एक बात तो तय है कि भारत में हिन्दी का प्रचार बढ़ रहा है पर हिन्दी भाषा की शुद्धता को लेकर बरती जा रही असावधनी तथा उदासीनता स्वीकार्य नहीं है। न ही हिंग्लिश का उपयोग अधिक करना चाहिये।  एक प्रयास यह होना चाहिये कि क्रिकेट खिलाड़ियों से भी यह कहना चाहिये कि वह पुरस्कार लेते समय भी हिन्दी में ही बोलें। शुरु में  पाकिस्तानी खिलाड़ियों से उनकी बोली में बात हुई थी पर यह क्रम अधिक समय तक नहीं चला। यह प्रयास रमीज राजा ने किया था। उन्होंने मैच के बाद पुरस्कार लेने आये भारतीय खिलाड़ियों से भी हिन्दी में बात की थी।  एक बात तय रही कि हिन्दी से रोटी कमाने वाले संख्या की दृष्टि बढ़ते जा रहे हैं पर उनका लक्ष्य हिन्दी से भावनात्मक प्रतिबद्धता दिखाना नहीं है।  हमें उम्मीद है कि हिन्दी से कमाने वाले जब भाषा से अपनी हार्दिक प्रतिबद्धता दिखायेंगे तक उसका शुद्ध रूप भी सामने आयेगा।

 कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

 

कवि, लेखक और संपादक-दीपक “भारतदीप”,ग्वालियर 

poet, writer and editor-Deepak “BharatDeep”,Gwalior

http://rajlekh-patrika.blogspot.com

यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन

४.हिन्दी पत्रिका

५.दीपकबापू कहिन

६. ईपत्रिका 

७.अमृत सन्देश पत्रिका

८.शब्द पत्रिका

मसले और मजबूरी-हिन्दी क्षणिका


हमें ऊंचे लक्ष्य की तरफ उन्होंने मदद का

भरोसा देकर ऊबड़ खाबड़ रास्ते पर  धकेल दिया

मौका आया तो बताने लगे अपने मसले और मजबूरी,

यूं ही छोड़ जाते तो कोई बात नहीं

उन्होंने बना ली दिल से दूरी।

कहें दीपक बापू तन्हाई इतना नहीं सताती,

बिछड़ने के दर्द दूर करने की कोई दवा नही आती

हमने भी तय किया है

उसी जंग में उतरेंगे जो लड़ सकेंगे खुद ही पूरी।

 

लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja “”Bharatdeep””
Gwalior, madhyapradesh

कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर

poet, Editor and writer-Deepak  ‘Bharatdeep’,Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com

————————-

यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका 

५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका

दौलत के ढेर और आम इंसान-हिन्दी व्यंग्य कविता


आम इंसान जिंदा रहने के लिये मेहनत से जूझ रहा है,

जिसे मिला आराम का सामान वह मनोरंजक पहेलियां बूझ रहा है।

मुख से शब्दों की वर्षा करते हुए आसान है दिल बहलाना,

रोते अपने गम पर सभी नहीं आता दूसरे का दर्द सहलाना,

अपनी नीयत साफ नहीं पर पूरे ज़माने पर शक जताते,

अपनी गल्तियों पर जिम्मेदार खुद तोहमत गैरों पर लगाते,

बाज़ार से हसीन सपने खरीद लेते हैं सस्ते भाव में अमीर,

जज़्बातों के सौदे में कामयाब होते वही मार ले जो अपना जमीर,

कहें दीपक बापू दुनियां का कोई है उसूल यह बात जाओ भूल

दौलत के ढेर पर पहुंचा वही इंसान जो ज़माने का खून चूस रहा है।

——————

 

 कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

 

कवि, लेखक और संपादक-दीपक “भारतदीप”,ग्वालियर 

poet, writer and editor-Deepak “BharatDeep”,Gwalior

http://rajlekh-patrika.blogspot.com

यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन

४.हिन्दी पत्रिका

५.दीपकबापू कहिन

६. ईपत्रिका 

७.अमृत सन्देश पत्रिका

८.शब्द पत्रिका

सेवा के स्वांग स्वामी बनने के लिये किये जाते है-हिन्दी व्यंग्य कवितायें


जिनके महल रौशन है वह क्या अंधेरे घरों का दर्द जानेंगे,

रोटियों को ढेर जिनके सामने है वह भूख का क्या दर्द मानेंगे।

कांपते है जिनके हाथ व्यवस्था में बदलाव के नाम से

वह क्रांति का दावा बेबस लोगों के सामने करते हैं,

घूमते हैं कार में रिक्शा चालकों की चिंता का दंभ भरते हैं,

आदर्शवादी बाते कहना आसान है अमल में लाना जरूरी नहीं,

पर्दे पर चमक जाओ बयानों पर चलने की फिर मजबूरी नहंी,

पानी की प्यास पर देते हैं बहुत सारे बयान

घर में पीने के लिये उनके यहां समंदर भरे हैं,

प्यासों के दर्द पर जताते सहानुभूति वही

खुद प्यासे मरने के भय से जो डरे हैं,

कहें दीपक बापू नहीं मांगना रोटी और पानी

कभी भलाई के धंधेबाज दलालों से नहीं मांगना

तुम्हें भीड़ में भेड़ की तरह लगाकर अपना सीना तानेंगे।

——————-

सेवा के स्वांग स्वामी बनने के लिये किये जाते हैं,

दूसरे लोग बदनाम अपनी इज्जत बढ़ाने के लिये किये जाते हैं।

हर इंसान जी रहा स्वार्थ के लिये पर परमार्थ का करता दावा,

पुजने के लिये सभी तैयार आता रहे रोज उनके पास चढ़ावा।

दूसरे को नसीहतें देते हुए ढेर सारे उस्ताद मिल जायेंगे,

दाम खर्च करो तो बड़े बड़े ईमानदार हिलते नज़र आयेंगे,

शिक्षा कहीं नहीं मिलती ज़माने से वफादारी दिखाने की,

गद्दारी करते सभी जल्दी कामयाबी अपने नाम लिखाने की,

कहें दीपक बोते सभी अपने घर में बबूल हमेशा

आम उगने की उम्मीद सर्वशक्तिमान से किये जाते हैं।

लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश

writer and poet-Deepak raj kukreja “Bharatdeep”,Gwalior madhya pradesh

संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

athor and editor-Deepak  “Bharatdeep”,Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.शब्दलेख सारथि
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका
५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका 
६.अमृत सन्देश  पत्रिका

आदर्शवाद का ढोंग-हिन्दी व्यंग्य कविता


जिनके महल रौशन है वह क्या अंधेरे घरों का दर्द जानेंगे,

रोटियों को ढेर जिनके सामने है वह भूख का क्या दर्द मानेंगे।

कांपते है जिनके हाथ व्यवस्था में बदलाव के नाम से

वह क्रांति का दावा बेबस लोगों के सामने करते हैं,

घूमते हैं कार में रिक्शा चालकों की चिंता का दंभ भरते हैं,

आदर्शवादी बाते कहना आसान है अमल में लाना जरूरी नहीं,

पर्दे पर चमक जाओ बयानों पर चलने की फिर मजबूरी नहंी,

पानी की प्यास पर देते हैं बहुत सारे बयान

घर में पीने के लिये उनके यहां समंदर भरे हैं,

प्यासों के दर्द पर जताते सहानुभूति वही

खुद प्यासे मरने के भय से जो डरे हैं,

कहें दीपक बापू नहीं मांगना रोटी और पानी

कभी भलाई के धंधेबाज दलालों से नहीं मांगना

तुम्हें भीड़ में भेड़ की तरह लगाकर अपना सीना तानेंगे।

——————-

लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश

writer and poet-Deepak raj kukreja “Bharatdeep”,Gwalior madhya pradesh

संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

athor and editor-Deepak  “Bharatdeep”,Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com