जिनसे उम्मीद होती मौके पर सहारे की
वही ताना देकर हैरान करने लगें,
क्या कहें उनको
ढांढस देना चाहिये जिनको जिंदगी की जंग में
वही हमारी हालातों को देखकर डरने लगें।
कहें दीपक बापू ऊंचे महलों में जो रहते हैं,
महंगे वाहनों में सड़क पर साहबों की तरह बहते हैं,
दौलतमंद है,
मगर देह से मंद है,
मन उनके बंद हैं,
आदर्श के लिये युद्ध वह क्या लड़ेंगे
अपना घर बचाने के लिये
जो अपने से ताकतवर के यहां पानी भरने लगें।
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सिंहासन का स्वाद जिसने एक बार चखा
वह विलासिता का आदी हो जाता है,
दिन दरबार में बजाता चैन की बंसी
रात को राजमहल में निद्रा वासी हो जाता है।
कहें दीपक बापू दुनियां चल रही भगवान भरोसे
बादशाह अपने फरिश्ते होने की गलतफहमी मे रहते
आम आदमी अपने कड़वे सच में भी
भगवान दरबार में जाकर भक्ति का आनंद उठाता है।
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लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’
लश्कर, ग्वालियर (मध्य प्रदेश)
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
hindi poet,writter and editor-Deepak ‘Bharatdeep’,Gwalior
http://dpkraj.blgospot.com
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