Tag Archives: sahity

ब्लाग पर त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाने वालों का आभार


कुछ ब्लोगों में शब्द और वर्तनी की गलतिया आ जाती हैं. मैं खुद कई गलतियां कर जाता हूँ, यह स्वीकार करते हुए कोई शर्म नहीं है कि यह गलतिया मेरी लापरवाही से होतीं हैं. जो लोग मेरा इनकी तरफ आकर्षित कराते हैं उनका आभारी हूं. वैसे कई ब्लोगर अनजाने में यह गलतियां कर जाते हैं और जल्दबाजी में उनको ठीक करना भूल जाते हैं.

इन गलतियों के पीछे केवल एक ही कारण है कि हम जब इसे टंकित कर रहे हैं तो अंग्रेजी की बोर्ड का इस्तेमाल करते हैं. दूसरा यह कि कई शब्द ऐसे हैं जो बाद में बेक स्पेस से वापस आने पर सही होते हैं, और कई शब्द तो ऐसे हैं जो दो मिलाकर एक करने पड़ते हैं. ki से की भी आता है और कि भी. kam से काम भी आता है कम भी. एक बार शब्द का चयन करने के बाद दुबारा सही नहीं करना पड़ता है पर गूगल के हिन्दी टूल का अभ्यस्त होने के कारण कई बार इस तरफ ध्यान नहीं जाता और कुछ गलतिया अनजाने में चली जाती हैं. वैसे तो मैं कृतिदेव से करने का आदी हूँ और यह टूल इस्तेमाल करने में मुझे बहुत परेशानी है, पर मेरे पास फिलहाल इसके अलावा कोई चारा नहीं है. वैसे मैं अंतरजाल पर लिखने से पहले अपनी रचनाएं सीधी कंप्यूटर पर कृतिदेव में टायप करता था और हिन्दी टूल से अब भी यही करता हूँ और मुझे कहने में कोई संकोच नहीं है कि अपने मूल स्वरूप के अनुरूप नहीं लिख पाता. ऐसा तभी होगा जब मैं हाथ से लिखकर यहाँ टाइप करूंगा. अभी यहाँ बड़ी रचनाएं लिखने का माहौल नहीं बन पाया है और जब हाथ से लिखूंगा तो बड़ी हो जायेंगी. इसलिए अभी जो तात्कालिक रूप से विचार आता है उसे तत्काल यहाँ लिखने लगता हूँ, उसके बाद पढ़ने पर जो गलती सामने आती है उसको सही करता हूँ फिर भी कुछ छूट जातीं हैं.

चूंकि अंग्रेजी की बोर्ड का टाईप सभी कर रहे हैं इसलिए गलती हो जाना स्वाभाविक है पर इसे मुद्दा बनाना ठीक नहीं है और अगर सब कमेन्ट लिखते समय एक दूसरे इस तरफ ध्यान दिलाएं तो अच्छी बात है-क्योंकि जब कोई रचना या पोस्ट चौपाल पर होती है तो उसका ठीक हो जाना अच्छी बात है, अन्य पाठकों के पास तो बाद में पहुँचती है और तब तक यही ठीक हो जाये तो अच्छी बात है. वैसे कुछ लिखने वाले वाकई कोई गलती नहीं करते पर कुछ हैं जिनसे गलतियां हो जातीं हैं. हाँ इस गलती आकर्षित करने पर किसी को बुरा नहीं मानना चाहिए. अब बुध्दी हो या बुद्धि हम समझ सकते हैं कि कोई जानबूझकर गलती नहीं करता. इस पर किसी का मजाक नहीं बनाना चाहिऐ. मैंने बडे-बडे अख़बारों में ऐसी गलतियां देखीं हैं.

इस मामले में मैं उन लोगों का आभारी हूँ जिन्होंने मेरा ध्यान इस तरफ दिलाया है, और अब तय किया है कि अपने लिखे को कम से कम दो बार पढा करूंगा. इसके बावजूद कोई रह जाती है तो उसका ध्यान आकर्षित करने वालों का आभार व्यक्त करते हुए ठीक कर दूंगा.

इस ब्लोग की पाठक संख्या दस हजार के पार


आज दीपकबापू कहिन ने १० हजार पाठकों का आंकडा पार कर लिया है. मेरे द्वारा बनाया जब यह ब्लोग बनाया गया था तब मुझे यह मालुम भी नहीं था की मैं बना क्या रहा हूँ?कमेन्ट क्या होती हैं. इसका पता इतना लंबा है तो केवल इसीलिए के जब उसे लिख रहा तो इस बात का ज्ञान भी नहीं था कि इसे हमेशा लिखना होगा. इसे कोई अन्य कैसे पढेगा इसका ज्ञान भी नहीं था. यू.टी.ऍफ़-८ ई फाइल में देव-१० फॉण्ट में लिखता था. हिन्दी श्रेणी भी नही रखा पाया था इसलिए डैशबोर्ड पर भी नहीं दिखता था.

उस समय हमारे मित्र उन्मुक्त जी ने इसे देखा और बताया कि वह इसे पढ़ नहीं पा रहे थे. मुझे हंसी आयी. सोचा कोई होगा जो मुझे परेशान कर रहा है याह खुद कुछ जानता नहीं है और मुझे सीखा रहा है. उसी समय ब्लागस्पाट का एक ब्लोग भी बनाया था जिसे आज दीपक भारतदीप का चिंतन नाम से जाना जाता है. उसमें इस तरह अपनी घुसपैठ कर ली थी कि वह तो सादा हिन्दी फॉण्ट में भी काम करने लगा था.

उन्मुक्त जी ने दोनों की कापी मेरे पास भेज दी तो मैं दंग रह गया. उनकी दशा देखकर मुझे हैरानी हो रही थी. शहर के अन्य कंप्यूटरों पर देखा तो मुझे सही दिखाए दे रहे थे. ब्लोग बनने से जितना खुश था उतना ही अब परेशान हो रहा था. इसी परेशानी में गूगल का हिन्दी फॉण्ट मेरे हाथ आया. कैसे? यह मुझे याद नहीं. उसीसे लिखना शुरू किया और लिखता चला गया. हर नये प्रयोग के लिए नया ब्लोग खोलता था. एक नहीं आठ ब्लोग खोल लिए. इसी बीच नारद पर पंजीकरण का प्रयास किया, पर पंजीकरण करना आये तब तो हो. मेरे प्रयासों के उनको गुस्सा आया और बिन करने की धमकी दे डाली. आज जब काम करता हूँ और जो ब्लोग लिखने कि पूरी प्रकिया है उसे देखकर तो उनका गुस्सा सही लगता है. इसके बाद मैं चुप हो गया और लिखने लगा. तब एक दिन सर्व श्री सागर चंद नाहर, उन्मुक्त जी संजय बैगानी और पंकज बैगानी जी की कमेन्ट आयी कि आप तो बहुत लिख चुके हैं पर नारद पर आपका ब्लोग नहीं दिख रहा है आप पंजीकृत कराईये.

मैं उस समय सब करने को तैयार था सिवाय नारद पर पंजीकरण कराने के. क्योंकि अब कोई गलती वहाँ से मेरे को बिन करा सकती थी. मैं सिर पकड़ कर बैठ गया कि अब इस नारद से कैसे सुलझें. बहरहाल उसे दिन भाग्य था और पंजीकरण कैसे हो गया यह अब मुझे भी याद नहीं है. उसके बाद मेरा ब्लोग मैदान में आ गया. धीरे-धीर समझ में आने लगा कि वह सब लोग मेरे को अपने साथ जोड़ने के लिए इतनी मेहनत कर रहे थे. उन्मुक्त जी के प्रयास तो बहुत प्रशंसनीय हैं. मैं इन सब लोगों का आभारी हूँ.

अंतर्जाल लिख्नते समय मेरे पास कोई योजना नहीं थी. मेरे एक लेखक मित्र ने मुझे अभिव्यक्ति (अंतर्जाल की पत्रिका) का पता दिया था. वहाँ मुझे नारद दिखता था पर मैं उसे नहीं देखता था और जब देखा तो भी मुझे उसमें रूचि नही जागी-इसका कारण यह भी था कि उसमें मुझे उस समय साहित्य जैसे विषय पर कुछ लिखा गया नहीं लगा. एक बार मेरी नजर ब्लागस्पाट पर एक हिन्दी ब्लोग पर पढ़ गई. मैंने उसे पढा तो आश्चर्य हुआ. उस विषय में मेरी दिलचस्पी बहुत थी और उस लेखक ने जो लिखा उससे मैं बहुत प्रभावित हुआ. उसने मुझे भी उसी तरह लिखने की प्रेरणा दी. अभिव्यक्ति को तो मैं अपनी रचनाएं भेज रहा था पर उस ब्लोग को मैं आज तक नहीं भूल पाया. उसकी विषय सामग्री मेरे दिमाग में आज तक है. मुझे उस लेखक का नाम याद नहीं है. मुझे उस समय अनुभव नहीं था उसके नीचे कमेंट देखता तो शायद कुछ याद रहता-उस समय कमेंट लगाने की बात तो मैं सोच भी नहीं सकता. हाँ, ऐसा लगता है कि उस ब्लोग अपनी इन चारों फोरम पर होना चाहिए. फुरसत में मैं इन फोरम पर उसका ब्लोग तलाशता हूँ. उसके बारे में कोई संकेत इसलिए नहीं दे सकता क्योंकि वह उस समय एक विवादास्पद विषय पर लिखा गया था पर उसकी स्पष्टवादिता ने मेरे मन को खुश कर दिया था. तब मुझे लगा कि इस ब्लोग विधा को मैं अपने सृजन को लोगों तक पहुचा सकता हूँ. उस ब्लोग लेखक ने जो व्यंग्य लिखा था वह कोई समाचार पत्र या पत्रिका शायद ही छापने का साहस कर सके और मुझे लगा कि यह विधा आगे आम आदमी को आपनी बात कहने के लिए बहुत योगदान देने वाली है. मैं उस अज्ञात ब्लोग लेखक को कभी नहीं भूल सकता.

श्रीश शर्मा -(ईसवामी) का नाम यहाँ लेना जरूरी है इसलिए लिख रहा हूँ. वह मेरे मित्र हैं और उनकी कोई सलाह मेरे काम नहीं आती या मैं उनके अनुसार चल नहीं पाता यह अलग बात है पर उस अज्ञात ब्लोग लेखक के बाद उनका नंबर भी याद रखने लायक है. जब मैंने अभिव्यक्ति पर नारद खोला तो उनका ब्लोग देखा(यह भी हो सकता है कोई उनका लेख हो) जिसमें उनका कंप्यूटर पर काम करते हुए फोटो था. मैं उस फोटो को देखने से पहले ब्लोग लिखने का फैसला कर चुका था और वहाँ इसलिए गया था कि आगे कैसे बढूँ. उनका लिखा मेरे समझ में नहीं आया पर तय कर चुका था कि इस राह पर चलना ही है और मैं यह नहीं जानता था कि उनसे मेरी मित्रता होने वाली है-उन्होने अभी मुझे गूगल ट्रांसलेटर टूल का पता भेजा और मैं कह सकता हूँ कि उनकी यह पहली सलाह है जो काम आ रही है इससे पहले उनका बताया काम तो नहीं आता पर इस इस रास्ते पर अनुभव बढ़ता जाता था.एक बात जो मुझे प्रभावित करती थी कि उन्होने कोई बात पूछने पर उसका उत्तर अवश्य सहज भाव से देते थे , मैंने बाद में श्री देवाशीष और श्री रविन्द्र श्रीवास्तव के लेख भी पढे और आगे बढ़ने का विचार दृढ़ होता गया. आज मैं जब पीछे मुड़कर देखता हूँ तो हँसता हूँ. शायद यह सब हँसेंगे कि यह क्या लिख रहा है पर मैं बता दूं कि उनका काम अभी ख़त्म नहीं हुआ है मुझ जैसे अभी कई होंगे जिनकी उन्हें मदद करनी होगी. इन सबका धन्यवाद ज्ञापित करते हुए आशा करूंगा कि यह लोग अपना सहयोग जारी रखेंगे.
आखिर में समीर लाल जी का धन्यवाद ज्ञापित करूंगा कि उन्होने मेरा होंसला बढाने में कोई कसर नहीं छोडी. चिट्ठा चर्चा में उन्होने दीपक बापू कहिन के लिए लिखा था कि यह ब्लोग नया अलख जगायेगा. उनको यह बताने के लिए ही मैं लिख रहा हूँ १० हजार पाठकों का आंकडा पर कर चुके इस ब्लोग की एक दिन में पाठक संख्या का सर्वोत्तम आंकडा १९१ है जो पिछले सप्ताह ही बना था. उसके बाद हैं १७७, १६६, १५२, और १४८ है. कल इसकी संख्या ९७ थी.

यह केवल जानकारी भर है और मैं अपने मित्रो और पाठकों को इस बात के लिए प्रशंसा करता हूँ कि उनकी जो पढ़ने में रुचियाँ हैं उनसे अंतर्जाल पर अच्छा लिखने वालों की संख्या बढेगी. लोग अच्छा पढ़ना चाहते हैं अगर लिखा जाये तो. मैं आगे भी लिखता रहूंग इस विश्वास के साथ कि आप भी मेरे को प्रेरित करते रहेंगे. मैं चारों फोरम-नारद, ब्लोग्वानी, चिट्ठाजगत और हिन्दी ब्लोग- के कर्णधारों का आभारी हूँ जो अपना सहयोग दे रहे हैं.

खोटी और खरी नीयत


असली सांप पालते तो
शायद अकारण डसने का ख़तरा
नही नजर नहीं आता
पर सांप जैसे मन वाले इंसानों को
पालने वाला कभी भी उनके दंश का
शिकार हो जाता
असली बिच्छू को पालने से
भी कोई भय नजर नहीं आता
क्योंकि उस पर ध्यान हमेशा जाता
पर बिच्छु जैसी नीयत वाले
इंसान से साथ निभाने वाला
कभी भी उनका शिकार हो जाता
कहैं दीपक बापू जो दिखता है
उसकी पहचान बहुत आसान है
पर नीयत का पता लगाना भी जरूरी है
जो बात करें साफ और भाषा हो खरी
समझो उनका दिल और नीयत है साफ
जो करें चिकनी-चुपडी बातें
वादे करें लुभावने
सपने दिखाएँ सुहावने
उनकी नियत में खोट साफ नजर आता

कौटिल्य अर्थशास्त्र:राजप्रमुख अपने पुत्रों पर दृष्टि रखें


blogvani
चिट्ठाजगतHindi Blogs. Com - हिन्दी चिट्ठों की जीवनधारा

  1. मदोन्मत्त हुए राजप्रमुख (राजा) के पुत्र निरंकुश हाथी का समान अभिमानी होकर भ्राता तथा पिता की ह्त्या कर डालते हैं।
  2. ऐसे पुत्र अनेक विषयों में अपने आग्रह करते हैं जिससे राज्य की रक्षा में बहुत कठिनाई आती है, जैसे व्याघ्र द्वारा भक्षित मांस की व्याघ्र के रहते हुए रक्षा नहीं हो सकती है।
  3. राजप्रमुख को चाहिए कि वह अपने पुत्रो तथा अपने सहायकों को विनम्रता सिखाये, यी वह विनम्र नहीं होंगे तो कुल और राज्य भी नष्ट हो सकता है।
  4. दुर्बुद्धि पुत्र का त्याग भी नहीं करना चाहिऐ। यदि उसे निकाला जायेगा तो शत्रु से मिलकर वह पिता की भी ह्त्या कर सकता है
  5. अगर राजपुत्र व्यसनों में पडा हो तो उसमें पडे अन्य व्यक्तियों के द्वारा उसे परेशान करवाए ताकि वह व्याकुल होकर उनसे विरक्त हो जाये।

नोट-इसमें राजा शब्द की जगह आज के संदर्भों में राजप्रमुख शब्द प्रयोग किया गया है।