चेहरे का रंग उड़ा है जिनका उन पर कौनसा रंग लगायें,
हुलिया बिगाड़ा है जिन्होंने स्वयं का उनके साथ कैसे होली मनायें।
हर पल देते हैं जो धोखा वह लोग क्या समझेंगे हास परिहास,
शब्दों का जो अनर्थ करते वह क्या जायेंगे किसी के दिल के पास,
सभी के साथ वादे करते हुए जिंदगी गुजारी कभी पूरे किये नहीं,
दिखाकर सपने दिल का सौदा किया दाम कभी पूरे दिये नहीं,
भूख, भ्रष्टाचार और भय के विषय बेचते हैं बाजार में सस्ता जताकर,
अपनी मंजिल पर पहुंचते हैं वही दूसरों को रास्ता भटकाकर,
चाल जिनकी टेढ़ीमेढ़ी चरित्र लापता चेहरे पर पाखंड की छाया है,
चमक रहे कैमरे पर वही चेहरे जिनकी असुंदर नीयत और काया है
कहें दीपक बापू होली पर झूठ बोलकर करते हैं लोग मजाक
करें प्रतिदिन प्रलाप उनके शब्दों में कहां हास्य का तत्व हम पायें।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja “”Bharatdeep””
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak ‘Bharatdeep’,Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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