पोते ने दादा से पूछा
‘‘अमेरिका और ब्रिटेन में
कोई इतनी भूतों की चर्चा नहीं करता,
क्या वहां सारी मनोकामनाऐं पूरी कर
इंसान करके मरता है,
जो कोई भूत नहीं बनता है।
हमारे यहां तो कहते हैं कि
जो आदमी निराश मरते हैं,
वही भूत बनते हैं,
इसलिये जहां तहां ओझा भूत भगाते नज़र आते हैं।’’
दादा ने कहा-
‘‘वहां का हमें पता नहीं,
पर अपने देश की बात तुम्हें बताते हैं,
अपना देश कहलाता है ‘विश्व गुरु’
इसलिये भूत की बात में जरा दम पाते हैं,
यहां इंसान ही क्या
नये बनी सड़कें, कुऐं और हैंडपम्प
लापता हो जाते हैं,
कई पुल तो ऐसे बने हैं
जिनके अवशेष केवल काग़ज पर ही नज़र आते हैं,
यकीनन वह सब भूत बन जाते हैं।’’
——–
कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह आलेख/हिंदी शायरी मूल रूप से इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान-पत्रिका’पर लिखी गयी है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन के लिये अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की हिंदी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.अनंत शब्दयोग
टिप्पणियाँ
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति के प्रति मेरे भावों का समन्वय
कल (30/8/2010) के चर्चा मंच पर देखियेगा
और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
धन्यवाद !
NICE TO LEARN FROM DADAJJI
bahut sahii kaha …………..satik baat
Nice…love it