अंतर्जाल पर हिंदी का नया वैश्विक काल प्रारंभ -संपादकीय


हिंदी में विभिन्न कालों की चर्चा बहुत रही है। सबसे महत्वपूर्ण स्वर्णकाल आया जिसमें हिंदी भाषा के लिये जो लिखा गया वह इतना अनूठा था कि उसकी छबि आज तक नहीं मिट सकी। विश्व की शायद ही कोई ऐसी भाषा हो जिसके भाग्य में एसा स्वर्ण काल आया हो। इसके बाद रीतिकाल आया। आजकल आधुनिक काल चल रहा है पर अब इस पर वैश्विक काल की छाया पड़ चुकी है। ऐसी अपेक्षा है कि इस वैश्विक काल में हिंदी का स्वरूप इतना जोरदार रहेगा कि भविष्य में यह अंग्रेजी को चुनौती देती मिलेगी। हिंदी ब्लाग जगत पर कुछ नये लेखक -इसमें आयु की बात नहीं क्योंकि जो इस समय भारत के हिंदी जगत प्रसिद्ध नहीं है पर लिखते हैं जोरदार हैं इसलिये उनको नया ही माना जाना चाहिये-इतना अच्छा और स्तरीय लिख रहे हैं उससे तो यह लगता है कि आगे चलकर उनके पाठ साहित्य का हिस्सा बनेंगे।
उस दिन कहीं साहित्यकार सम्मेलन था। वहां से लौटे एक मित्र ने इस लेखक से कहा-‘आखिर तुम इस तरह के साहित्यकार सम्मेलनों में में क्यों नहीं दिखते? यह ठीक है कि तुम आजकल अखबार वगैरह में नहीं छपते पर लेखक तो हो न! ऐसे सम्मेलनों में आया करो । इससे अन्य साहित्यकारों से मेल मिलाप होगा।’
इस लेखक ने उससे कहा-‘दरअसल अंतर्जाल पर इस तरह का मेल मिलाप अन्य लेखकों के साथ होने की आदत हो गयी हैै। वह लोग हमारा पाठ पढ़कर टिप्पणी लिखते हैं और हम उनके ब्लाग पर टिपियाते हैं।’
लेखक मित्र को इस लेखक के ब्लाग पर लिखने की बात सुनकर आश्चर्य हुआ। तब उसने कहा-‘यार, मेरे घर में इंटरनेट है पर मुझे चलाना नहीं आता। एक दिन तुम्हारे घर आकर यह सीखूंगा फिर स्वयं भी इंटरनेट पर लिखूंगा।’
हिंदी पत्र पत्रिकाओं में लिखने वाले लेखकों के लिये इंटरनेट अब भी एक अजूबा है। कुछ लोग जानबूझकर भी इसके प्रति उपेक्षा का भाव दिखाते हैं जैसे कि अंतर्जाल पर लिखने वाले साहित्यकार नहीं है या उनके द्वारा लिख जा रहा विषय स्तरीय नहीं है। कई पुराने साहित्यकार ब्लाग लेखकों को इस तरह संदेश देते हैं जैसे कि वह लेखक नहीं बल्कि कोई टंकित करने वाले लिपिक हों। हां, यहां शब्दों को लिखने की वजह टांके की तरह लगाना पड़ता है और शायद इसी कारण कई लोग इससे परहेज कर रहे हैं। कई पुराने लेखक इसीलिये भी चिढ़े हुए हैं क्योंकि आम लोगों का इंटरनेट की तरफ बढ़ता रुझान उन्हें अपनी रचनाओं से दूर ले जा रहा है।
इस लेखक ने हिंदी साहित्य की करीब करीब सभी प्रसिद्ध लेखकों का अध्ययन किया है। उनमें बहुत सारी बढ़िया कहानियां, व्यंग्य, निबंध, उपन्यास और कवितायें हैं पर हिंदी का व्यापक स्वरूप देखते हुए उनकी संख्या नगण्य ही कहा जा सकता है इसी नगण्यता का लाभ कुछ ऐसे लेखकों को हुआ जिनकी रचनायें समय के अनुसार अपना प्रभाव खो बैठीं। इसके अलावा एक बात जिसने हिंदी लेखन को प्रभावित किया वह यह कि हिंदी भाषा के साहित्य बेचकर कमाने वाले लोगों ने लेखक को अपने बंधुआ लिपिक की तरह उपयोग किया। इसलिये स्वतंत्र और मौलिक लेखक की मोटी धारा यहां कभी नहीं बह सकी। एक पतली धारा बही वह बाजार की इच्छा के विपरीत उन कम प्रसिद्ध लेखकों की वजह से जिन्होंने निष्काम भाव से लिखा पर न किसी ने उनकी रचनायें खरीदी और न उनको बेचने का कौशल आया। क्या आप यकीन करेंगे कि इस लेखक के अनेक साहित्यकार मित्र ऐसे भी हैं जो एक दूसरे पर पैसे के सहारे आगे बढ़ने का आरोप लगाते हैं। ऐसे आरोप प्रत्यारोपों के बीच लिखा भी क्या जा सकता था? इसलिये ही स्वतंत्रता संग्राम, अकालों और पुराने सामाजिक आंदोलनों पर पर लिखा गया साहित्य आज भी जबरन पढ़ने को हम मजबूर होते है। बाजार ने कसम खा रखी है कि वह किसी नये लेखक को प्रसिद्धि के परिदृश्य पर नहीं लायेगा। इसलिये ही केवल उनकी ही किताबें प्रकाशित होती हैं स्वयं पैसा देकर कापियां लेते हैं या फिर उनकी लेखन से इतर जो प्रतिष्ठा होती है और उनके प्रशंसक यह काम करते हैं। एक तरह से हिंदी का आधुनिक काल बाजार के चंगुल में फंसा रहा और वैश्विक काल उसे मुक्त करने जा रहा है।
सच बात तो यह है कि हिंदी के स्वर्णकाल के-जिसे भक्तिकाल भी कहा जाता है-बाद के कालों में हिंदी में कभी चाटुकारिता से तो कभी पाखंड और कल्पना से भरी रचनाओं से सजती गयी और लिखने वालों को पुरस्कार, सम्मान और इनाम मिले तो उन्होंने अपने सृजन को उसी धारा पर ही प्रवाहित किया। ऐसे मेें कुछ लेखकों ने निष्काम भाव से लिखते हुए जमकर लिखा और उन्होंने हिंदी भाषा का विस्तार एक नयी दिशा में करने का प्रयास किया। ऐसे ही निष्काम महान लेखक कम थे पर उन्होंने हिंदी का निर्बाध प्रवाह कर आने समय में इसके विश्व में छा जाने की बुनियाद रखी। इस धारा में इनाम, पुरस्कारों और सम्मानों से सजे लेखकों की तात्कालिक प्रभाव वाली कुछ रचनायें भी आयीं पर अब वह अपना प्रभाव खो चुकी हैं। ऐसे में कुछ ब्लाग लेखक गजब की रचनायें लिख रहे हैं। उनको पढ़कर मन प्रसन्न हो उठता है। सच बात तो यह है कि जिस तरह के विषय और उन पर मौलिक तथा स्वतंत्र लेखन यहां पढ़ने को मिल रहा है वह बाहर नहीं दिखाई देता।
हिंदी ब्लाग जगत पर पढ़ने पर सम सामयिक विषयों पर ऐसे विचार और निष्कर्ष पढ़ने को मिल जाते हैं जिनको व्यवसायिक प्रकाशन छापने की सोच भी नहीं सकते। ब्लाग लेखकों की बेबाक राय को प्रस्तुति कई संपादकों के संपादकीय से अधिक प्रखर और प्रसन्न करने वाली होती है।
अंतर्जाल पर हिंदी का जो आधुनिक कल चल रहा है वह अब वैश्विक काल में परिवर्तित होने वाला है-इसे हम सार्वभौमिक काल भी कह सकते हैं। अनुवाद के जो टूल हैं उससे हिंदी भाषा में लिखी सामग्री
किसी भी अन्य भाषा में पढ़ी जा सकती है। हिंदी लेखन में अभी तक उत्तर भारत के लेखकों का वर्चस्व था पर अब सभी दिशाओं के लेखक अंतर्जाल पर सक्रिय हैं। इसलिये इसके लेखन के स्वरूप में भी अब वैश्विक रूप दिखाई देता है। ऐसा लग रहा है कि कहानियों, व्यंग्यों, निबंधों और कविताओं की रचनाओं में पारंपरिक स्वरूप में-जिसमेें कल्पना और व्यंजना की प्रधानता थी- बदलाव होकर निजत्व और प्रत्यक्षता का बोलबाला रहेगा। हां, कुछ सिद्ध लेखक व्यंजना विद्या का सहारा लेंगे पर उनकी संख्या कम होगी। हां, संक्षिप्पता से प्रस्तुति करना भी का लक्ष्य रहेगा। जिस तरह ब्लाग लेखक यहां लिख रहे हैं उससे तो लगता है कि आगे भी ऐसे लेखक आयेंगे। ऐसा लगता है कि परंपरागत साहित्य के समर्थक चाहे कितना भी ढिंढोरा पीटते रहें पर अंतर्जाल के ब्लाग लेखक-वर्तमान में सक्रिय और आगे आने वाले- ही हिंदी को वैश्विक काल में अंग्रेजी एवं अन्य भाषाओं से अग्रता दिलवायेंगे और यकीनन उनकी प्रसिद्ध आने वाले समय में महानतम हिंदी लेखकों में होगी। अनेक ब्लाग लेखक साक्षात्कार, निबंध, कवितायें और कहानियां बहुत मासूमियत से लिख रहे हैं। अभी तो वह यही सोच रहे है कि चलो हिंदी के परांपरागत स्थलों पर उनको उनके लिये स्थान नहीं मिल रहा इसलिये अंतर्जाल पर लिखकर अपना मन हल्का करें पर उनके लिखे पाठों का भाव भविष्य में उनके प्रसिद्धि के पथ पर चलने का संकेत दे रहा है।
कुल मिलाकर अंतर्जाल पर हिंदी का वैश्विक काल प्रारंभ हो चुका है। इसमें हिंदी एक व्यापक रूप के साथ विश्व के परिदृश्य पर आयेगी और इसकी रचनाओं की चर्चा अन्य भाषाओं में जरूर होगी। हां, इसमें एक बात महत्वपूर्ण है कि हिंदी के स्वर्णकाल या भक्तिकाल की छाया भी इस पड़ेगी और हो सकता है कि वैश्विक काल में उस दौरान की गयी रचनाओं को भी उतनी लोकप्रियता विदेशों में भी मिलेगी। अंतर्जाल पर इस ब्लाग/पत्रिका लेखक के अनेक पाठों पर तो ऐसे ही संकेत मिले हैं।

Post a comment or leave a trackback: Trackback URL.

टिप्पणी करे