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चाणक्य नीति-पवित्र काम मन लगाकर पूरा करें (pavitra kaam-chankya niti in hindi)


नीति विशारद चाणक्य कहते हैं कि
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धनहीनो न हीनश्च धनिकः स सुनिश्चयः।
विद्यारत्नेद यो हीनः स हीनः सर्ववस्तुष।।
हिंदी में भावार्थ-
धन से रहित व्यक्ति को
दीन हीन नहीं समझना चाहिये अगर वह विद्या ये युक्त है। जिस व्यक्ति के पास धन और अन्य वस्तुयें हैं पर अगर उसके पास विद्या नहीं है तो वह वास्तव में दीन हीन है।
दुष्टिपतं न्यसेत् पादं वस्त्रपूतं पिबेजलम्।
शास्त्रपूतं वदेद् मनः पूतं समाचरेत्।।
हिंदी में भावार्थ-
आंखों से देखकर जमीन पर पांव रखें। कपड़े से छान कर पानी पियो। शास्त्र से शुद्ध कर वाक्य बोलें और कोई भी पवित्र काम मन लगाकर संपन्न करें।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-समाज में निर्धन आदमी को अयोग्य मान लेने की प्रवृत्ति है और यही कारण है कि उसमें वैमनस्य फैल रहा है। एक तरफ धनी मानी लोग यह अपेक्षा करते हैं कि कोई उनकी रक्षा करे दूसरी तरफ अपनी रक्षा के लिये शारीरिक सामथ्र्य रखने वाले निर्धन व्यक्ति का सम्मान करना उनका अपने धन का अपमान लगता है। संस्कार, संस्कृति और धर्म बचाने के लिये आर्तनाद करने वाले धनी लोग अपने देश के निर्धन लोगों का सम्मान नहीं करते और न ही उनके साथ समान व्यवहार उनको पसंद आता है। धनीमानी और बाहूबली लोग देश पर शासन तो करते हैं पर उसे हर पल प्रमाणिक करने के उनके शौक ने उनको निर्धन समाज की दृष्टि में घृणित बना दिया है।
यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि युद्ध में कोई धनीमानी नहीं बल्कि गरीब परिवारों के बच्चे जाते हैं। अमीर तो उनकी बहादुरी और त्याग के वजह से सुरक्षित रहते हैं पर फिर भी उनके लिये गरीब और उसकी गरीबी समाज के लिये अभिशाप है। गरीब की गरीबी की बजाय उसे ही मिटा डालने के लिये उनकी प्रतिबद्धता ने निचले तबके का शत्रु बना दिया है। यह देश दो हजार वर्ष तक गुलाम रहा तो केवल इसलिये कि समाज के धनी और बाहूबली वर्ग ने अपना दायित्व नहीं निभाया।

आदमी को हमेशा ही सतर्क रहना चाहिये। कहीं भी जमीन पर पांव रखना हो तो उससे पहले अपनी आंखों की दृष्टि रखना चाहिये। आजकल जिस तरह सड़क पर हादसों की संख्या बढ़ रही है उससे तो यही लगता है कि लोग आंखों से कम अनुमान से अधिक चलते हैं। अधिकतर बीमारियां पानी के अशुद्ध होने से फैलती हैं और जितना स्वच्छ पानी का उपयोग किया जाये उतना ही बीमार पड़ने का खतरा कम हो जाता है। इसके अलावा निरर्थक चर्चाओं से अच्छा है आदमी धार्मिक ग्रंथों और सत्साहित्य की चर्चा करे ताकि मन में पवित्रता रहे। मन के पवित्र होने से अनेक काम स्वत: ही सिद्ध होते हैं।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप

चाणक्य नीति:कुमित्र पर कभी विश्वास न करें


१.आंखों से देखभाल का पैर रखें, पानी कपडे से छान कर पीयें. शास्त्रानुसार वाक्य बोलें, मन में सोच कर कार्य करें.
२.दान, शक्ति, मीठा बोलना, धीरता और सम्यक ज्ञान यह चार प्रकार के गुण जन्म जात होते हैं, यह अभ्यास से नहीं आते.
३.जिसकी मन में पाप हैं, वह सौ बार तीर्थ स्नान करने के बाद भी पवित्र नहीं हो सकता, जिस प्रकार मदिरा जलाने पर भी शुद्ध नहीं होता.
४.जो वर्ष भर मौन रहकर भोजन करता है, वह हजार कोटी वर्ष तक स्वर्ग लोक में पूजित होता है.
५.पीछे-पीछे बुराई कर काम बिगाड़ने वाले और सामने मधुर बोलने वाले मित्र को अवश्य छोड़ देना चाहिए.
६.कुमित्र पर कदापि विश्वास न करें क्योंकि वह आपकी कभी भी आपकी पोल खोल सकता है.
७.अपने शास्त्रों के किसी एक श्लोक अथवा उस में से भी आधे का प्रतिदिन करना चाहिए. इससे अपने मन और विचार की शुद्ध होती है.