कौटिल्य का अर्थशास्त्र:अशुभ गुण वाले का कभी आश्रय न लें


१.चंपा के साथ  रहने पर तिलों में वैसे ही सुगन्ध आ जाती है, रस वैसे ही  नहीं खाया जाता है पर उसकी गंध  तिलों में आ जाती है इस कारण अपना प्रभाव अवश्य डालते हैं। वह संक्रामक माने जाते हैं

अभिप्राय- किसी व्यक्ति में कोई अच्छा गुण है पर वह यदि बुरे लोगों की संगति में आ जाता है तो उनके दुर्गुणों का प्रभाव उस पर आ जाता है।  इसलिए अगर कोई व्यक्ति  अच्छा लगे तो यह भी देखना चाहिये कि वह किन लोगों के बीच रह रहा है और उसका उठाना बैठना किनके साथ है और उसका घर कैसा है।  यदि उसकी पारिवारिक और सामाजिक पृष्ठभूमि ठीक नहीं है तो यह मानना चाहिए कि उसमें वह दुर्गुण भी होंगे।

जल का गंगाजल का प्रवाह जब सागर में बह जाता है तब वह पीने योग्य नहीं रहता, विद्वान के लिए यह उचित है कि अशुभ गुण वाले का आश्रय कभी न ले  अन्यथा वह भी समुद्र में मिल गए जल के समान होगा।
जिन लोगों के मन स्वच्छ हैं उन्हें ही ही अपना मित्र बनाएं.

अभिप्राय-इसका आशय यह है कि सदैव ही गुणवान व्यक्ति से अपन संपर्क रखना चाहिऐ. वैसे हमें देखा होगा कि कुछ लोग बोलने में बहुत मीठे होते हैं पर उनका आचरण अत्यंत खराब होता है. हो सकता है वह अपने स्वार्थों की वजह से हमसे अच्छी बात करते हों पर दूसरों के प्रति घृणा, विश्वासघात और बेईमानी का व्यवहार करते हैं और ऐसे दिखाते है कि हमारे हितैषी हैं पर यह समझ लेना चाहिऐ कि समय निकलते ही हमारे साथ भी वही  व्यवहार करेंगे यह मान लेना चाहिए.

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